Thursday, December 27, 2012

बलात्कारियों को सरकारी प्रस्ताव


आदरणीय बलात्कारियों


पहले तो आप हैरान मत होना कि हम कैसे आपको  आदरणीय कह रहे हैं। बलात्कार की घटना पर चहुंओर कड़े कदम की मांग पर घिरी उपीए सरकार के मुखिया मन्नू जी नें हमको आप लोगों से बातचीत के लिये इंटरलोक्यूटर नियुक्त किया है।  आप लोगो को समाज की मुख्यधारा में लाने के खातिर हमें  आपके  आदरणीय होने के अहसास और आत्मसम्मान  को जगाना होगा, ताकि आप हिंसा और बलात्कार छोड़ दें। देखिये महिलाओं के साथ संबध बनाने का जो तरीका आपने चुना है वह निहायत ही अलोकतांत्रिक, अमानवीय और निंदनीय है।  जिस तरह हिंसा छोड़े बिना नक्सलवादियो से बातचीत नही की जा सकती है वैसे ही आपसे भी  बलात्कार बंद किये बातचीत नही की जा सकती। हम यह मानते हैं कि फ़िल्मो और विज्ञापनो में आपको कामुक और अश्लील दूष्य दिखा आपको उत्तेजित किया गया है। हम यह भी जानते है कि माश्चराईजर के विज्ञापन मे  हीरो का हाथ जिस तरह की सुंदरी की त्वचा पर फ़िसलता है वैसी सुंदरिया आपको उपलब्ध नहीं है। भारत में लोकतंत्र है और सभी को बराबरी का अधिकार है। हम चाहते हैं कि आप सही राह अपना कर अपना हक हासिल करें। देखिये हम आपको याद दिलाते है वो पुराना फ़िल्मी गीत

बड़े मियां दीवाने ऐसे न बनों।

हसीना क्या चाहे हमसे सुनों॥

सुंदरिया ऐसे ही नही मानती है उसके लिये बाजार से विशेष उत्पाद लेने पड़ते हैं। इसलिये जिस एक्स इफ़ेक्ट डिओ को लगाने से राह चलती कोई भी सुंदरी हीरो के साथ चिपक जाती है वह डिओ हमारी सरकार ने आपको दस रूपये बोटल उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है। साथ ही जाकी की वह अंडरवियर जिसे दिखाते ही महिलाओ के मन में कामना भड़क उठती है वह दस रूपये प्रति नग के रियायती भाव से आपको उपलब्ध कराये जायेंगे। हमने एक कमेटी बनाने का भी फ़ैसला किया है जो ऐसे समस्त उत्पादो को चिन्हांकित करेगी जिन्हे दे कर आपको जबरदस्ती के बजाये सहमती से संबंध बनाने का अवसर मिल सके। हमारी महात्वाकाक्षी डाईरेक्ट कैश ट्रांसफ़र योजना  के तहत आपको हर महिने हजार रूपये ट्रांसफ़र किये जाने पर भी विचार चल रहा है जिससे आप पोस्ट कतरी सराय गया से चमत्कारी सिद्ध अंगूठी,  मंगा अपनी मनोकामना पूरी कर सके।

हम जानते हैं कि जब हमारे देश कि जनता का ही हम पर पर विश्वास नही करती तो आप कहां से करेंगे। सो हम विश्वास जमाने के कदम के रूप में  उन ज्योतिषियों पंडितो की मुफ़्त सुविधा तत्काल आपको प्रदान कर रहे हैं जो चौबीस घंटे के अंदर करी कराई, वशीकरण, रूठा प्यार वापस आना, मनचाही महिला को वश में करने का ग्यारनटीड उपाय प्रदान करते है। इस हेतु आप
 पंडित संजय शर्मा
 इंदिरा मार्केट दुर्ग
 97540-55554

सूफ़ी रहमत अली
मौदहापारा रायपुर
9716640425

से संपर्क कर सकते है।
( इन की प्रमाणिकता स्थापित करने के लिये पत्र के साथ उस लीडिंग अखबार की प्रति संलग्न है जिसमे इनके विज्ञापन प्रतिदिन आते है।)

आपस की बात है भईया हम लोगो केर उपर शनी की साढ़े साती चल रही है। भगवान के अल्लाह की खातिर दो चार महिने के लिये ये सब बंद कर दो। कम से कम दिल्ली छोड़ किसी  भी राज्य में बलात्कार करो वहां न मीडिया जायेगा न बवाल मचेगा। दिल्ली मे बवाल मचा हुआ है,  प्रदर्शनकारी शरिया कानून लागू कर बलात्कारियो को सरेआम फ़ांसी देने की मांग कर रहे हैं।  लागू कर देंगे तो फ़िर बवाल मच जायेगा कि महिलाओं को बुरका पहनने कहते हो। एक तरफ़ कुंआ है दूसरे तरफ़ खाई। हमारा नही तो देश का सोचो ऐसे एक एक बलात्कार पीड़िता को सिंगापुर भेजना पड़ जाये तो देश कंगाल हो जायेगा । इस बेचारी का आंत निकाल दिये हो कितनो को तो रोज बलात्कार के बाद आग लगा दी जाती है। अरे जब देश नही बचेगा तो बलात्कार कहा करोगे भाई यह भी तो सोचो।

आशा है आप सरकार के प्रस्तावो को गंभीरता से लेकर सरकार की अच्छी नीयत का जवाब सकारात्मक कदम से देंगे। हम विश्वास दिलाते है कि नार्को एनालिसिस, पुलिस सुधार, फ़ोरेंसिक लैब को आधुनिक बनाने का हमारा कोई इरादा नही है, ना ही हमे सत्ता से हटा सता पाने की ख्वाहिश रखने वाले दलो का ऐसा कोई विचार है। बस  मीडिया और फ़िल्मो के द्वारा अमेरिका की तरह फ़्री सेक्स वाली ओपन सोसाईटी बनने  की देर है। उसके बाद आप लोगो की सारी परेशानियां दूर हो जायेंगी।

आपका शुभचिंतक

अरूणेश सी दवे


सूचना - "महिला संगठन, बुद्धीजीवी उपीए सरकार के इस इस कदम और मेरे इस पत्र पर कोई भी प्रदर्शन करने के पहले गुगल में जा इंटरलोकूटर का अर्थ और उसके काम करने के तरीको को उगलवा ले"

Sunday, December 23, 2012

दिल्ली गैंगरेप- आंदोलन नहीं पागलपन


दिल्ली गैंग रेप की जघन्य घटना ने देश को उद्वेलित कर दिया है। वास्तव मे यह जघन्यतम अपराध भी है, लेकिन इसके बाद जो कुछ देश में हुआ वह अभूतपूर्व है। यह कोई अकेली घटना भी नही थी। ऐसी घटनाएं रोज इस देश के हर शहर में घटती है। और इस घटना में तो पुलिस ने सारे अपराधियों को गिरफ़्तार कर लिया लड़की को सर्वश्रेष्ठ उपचार मिल रहा है। एक सरकार इससे ज्यादा क्या कर सकती है?  "महिलायें सुरक्षित नहीं है" का नारा जरूर कई सवाल खड़े करता है। पर इस सवाल का जवाब सरकार और पुलिस के पास नही समाज के पास होना चाहिये। उसी समाज के पास जिसके तोड़ फ़ोड़ हिंसा या तथाकथित शांती पूर्ण प्रदर्शन कर रहे लोग हिस्सा हैं।


दरअसल यह प्रदर्शन, हिंसा और पागलपन स्वयंस्फ़ूर्त नही है। मीडिया द्वारा चार दिनो से एक ही घटना दिखा दिखा कर, पुलिस को दोषी निकम्मा ठहरा ठहरा कर, उकसाया गया गुस्सा था। शुरू में कैमरा टीमों द्वारा प्रदर्शन की जगह और समय क्षात्रो एवं अन्य संगठनो से तय करके जमा किया जमावड़ा था। टीआरपी का खेल, सनसनी की चाहत में इस बेलगाम मीडिया ने उस ज्वार को पैदा किया जिसमें समस्याओं से त्रस्त और समाधानो से दूर गुस्साया मध्यमवर्ग जुट गया। राष्ट्रपति भवन में घुसने की जिद लगाया अनियंत्रित युवा माब जिसमें महिलाये, बूढ़े, बच्चे भी शामिल थे क्या पुलिस से फ़ुलों के हार की उम्मीद कर रहा था? बधाई की पात्र है दिल्ली पुलिस जिसने दो दिनो की हिंसा और प्रदर्शन को इतने प्रोफ़ेशनल और मानवीय तरीके से अपने जख्मी जवानो अधिकारियों की कीमत पर संभाला। वरना कितने जख्मी होते कितने मरते उसका कोई हिसाब न होता और यही मीडिया गला फ़ाड़ कर "लोकतंत्र की हत्या हो गयी" चीख रहा होता।

"हमारे नेता नपुंसक है", "हमारी पुलिस नपुंसक है" "बलात्कारी को फ़ांसी दो" का नारा लगाने वालो से मै पूछना चाहता हूं कि कहा से आये है ये लोग? इन बलात्कारियों को इसी समाज ने पैदा किया है और नेताओ को भी। और मनोविकार पैदा कौन कर रहा है? जापानी तेल और लिंग वर्धक यंत्र का विज्ञापन कौन छापता है नेता या मीडिया? पुरूष जीन्स के विज्ञापन में अर्धनग्न महिला का फ़ोटो कौन दिखाता है नेता या मीडिया ? महिलाओ के जिस्म की नुमाइश कर अपना माल बेचने वाले बाजार को माध्यम कौन दे रहा है नेता कि मीडिया ??? अपने उकसाये आंदोलन के इस हिंसा के दौर में पहुंचने पर लोगो से शांती और अहिंसा की अपील कर रहे मीडिया ने पत्रकारिता नैतिकता और ढोंग की सारी हदें पार कर दी हैं। खाप पंचायत वाले अपनी बेटियों को जब इस बाजारवाद के दुष्परिणामो से बचाने की कोशिश करते तो यही मीडिया उनको तालीबान करार देता है। फ़ांसी की सजा ही एक समाधान हो सकता है पर इस देश में कानून का कितना दुरूपयोग होता है यह भी किसी से छुपा नही है। जरूरत फ़ोरेंसिक लैब को अत्याधुनिक बनाने और ऐसे जघन्य अपराधों में नार्को एनालिसिस जैसे आधुनिक उपायों को कानूनी जामा पहनाने की है। लेकिन इसकी बात और मांग कर कौन रहा है?
यह आंदोलन तो बिना नेतृत्व, समाधान का बेसरपैर का आंदोलन है। लोकपाल जैसे सशक्त नेतृत्व समाधान और कानूनी प्रस्तावो वाले आंदोलन के साथ इस मीडिया ने क्या किया था? जनता का अंहिसक शांती पूर्ण आंदोलन जब चरम पर पहुंचा तब इसी मीडिया ने उसके पैरो के नीचे से जमीन खसका दी थी। "भीड़ नही आई" की हेडलाईन्स से लेकर तमाम हथकंडे अपनाये गये। मतलब साफ़ है इस मीडिया को आंदोलन के उद्देश्यो से कोई लेना देना नही है। सनसनी फ़ैलाओ, टीआरपी खींचो और जब अपने को पोषित करने वाले वर्ग के हितों में आंच आती नजर आये तो तत्काल कन्नी काट लो। 


दरअसल मध्यमवर्ग में घोटालो महंगाई को लेकर भयानक गुस्सा है, जो आज हिंसा में नजर आ रहा है।। इस गुस्से की लहर फ़ैलाने वाले विपक्ष से भी अनेकों सवाल पूछे जाने चाहिये। कांग्रेस पार्टी की सरकार को महाभ्रष्ट करार देने वाले, चार सौ लाख करोड़ के तथाकथित कालाधन, दो लाख करोड़ से ज्यादा के हर महिने खुलासा होने वाले घोटालों पर चीखते चिल्लाते विपक्षी तब कहां थे जब यह घोटाले हो रहे थे? 2G लाईसेंस की बंदरबाट जब हो रही थी तब क्या भाजपा के महारथी सो रहे थे? जब कोयला खदान फ़ोकट के भाव में बाटी जा रही थी तब ये शरद यादव, वामपंथी  क्या संसद में नही थे? क्या ये इतने नकारा है कि इन्हे पता ही नही चलता? सबके तार जब इस खेल में जुड़े हुये है,  अंबानी के घोटाले के उपर बोलने का साहस जब किसी के पास नही है, तो घोटाला घोटाला क्यों चीखना? सत्ता चाहिये तो जात, धर्म, आरक्षण की पालिटिक्स में माहिर बनो। खेल के नियम जब तय है तो कांग्रेस के लगातार जीतने पर फ़ाउल फ़ाउल क्यों चिल्लाना। यह देश जैसा भी चल रहा है कम से कम चल तो रहा है। इसको मिस्र तो मत बना दो।



और आखिर में दिल्ली पुलिस से मैं अपील करूंगा कि अब मौका लगे तो आम जनता के बजाये इन मीडिया वालो को कूटना। इनको भी तो पता चले पुलिस से टकराव और हिंसा मे जब चोट लगती है तो दर्द कितना होता है।

Thursday, November 29, 2012

भारतीयों का "नुन्नू" सबसे छोटा


सुबह सवेरे हमारे पड़ोसी चिंताराम जी अत्यंत चिंतित अवस्था में हमारे पास पहुंचे। फ़ुसफ़ुसा कर बोले- ’ दवे जी गजब हो गया, अभी अभी सर्वे की खबर आयी है कि भारतीयों का सबसे छोटा होता है।" हमने कहा - ’देखो मियां दिल बड़ा होने का कोई फ़ायदा भी नहीं है। कोई दूसरी समां गयी तो भारतीय बीबीयां मार मार के छप्पर कर देती है।’ चिंताराम जी बोले -’ गुरू दिल नहीं सामान छोटा होता है’’ हमने कहा-  यार कौन सा सामान है आगे से बड़ा बनवा लिया जायेगा।’  चिंताराम जी का मुंह उतर गया- ’ बोले, अब कुछ नही हो सकता गुरू अनुवांशिक साईज है। आप समझ नहीं रहे हम उस सामान विशेष का बात कर रहे है जिससे प्रजनन होता है। यह बात बीबीयों को मालूम पड़ जायेगी तो हम लोग क्या मुंह दिखायेंगे। रोज टांट सुनने मिलेगा "है छोटा सा, बस बातें बड़ी बड़ी करवा लो।’ 



 हमने उन्हे ढांढस बंधाया - ’देखो चिंताराम जी अंग्रेजी में कहावत है, "When it happens to all it happens to none।" जब सभी भारतीयों का छोटा है तो यह कोई टांट का विषय नही। भगवान ने हर देश के आदमी औरत का डिजाईन एक दूसरे के हिसाब से न बनाया है भाई।  आजकल तो महिलायें खुद ही साईज जीरो के पीछे पड़ी हैं।' चिंताराम जी बोले -’ दवे जी लफ़्फ़ाजी से सच झूठ नहीं हो जाता।  इस खबर को सेंसर करवाईये,  वरना कहीं मुह दिखाने लायक नहीं रहा जायेगा’ हमने चिंतित अवस्था में कहा-  ’चिंताराम जी ये बताओ पाकिस्तानियों का साईज क्या है। ’ चिंताराम जी मुस्कुराते हुये बोले - ’ अपने ही बराबर का है गुरू। हमने कहा - ’ फ़िर तो टेंशन की बात नही है।  नही साले सुबह शाम छेड़ते,  इस मुद्दे पर जवाब देना भी मुश्किल हो जाता। अब  ये हिंदुओ को दुनिया में सबसे श्रेष्ठ,  मुसलमानों को दुनिया में सबसे श्रेष्ठ  बताने वालों को तो मुंह छुपाने का जगह भी नहीं मिलेगा। बड़े साईज वाला एक मिनट में कह देगा ’जा बे मेरा सात इंच का है तेरा सिर्फ़ चार का।"

चिंताराम जी भड़क गये - ’ दवे जी,   दुखी होने वाली बात पर दांत निपोर रहे हो। यहां हिंदुस्तानियो की मर्दानगी दांव पर लग गयी है और आप को ठिठोली सूझ रहा है। ’ हमने कहा - ’ काहे चिढ़कते हो भाई, सेक्स में सामान विशेष का साईज मैटर नहीं करता है यह वैज्ञानिक तथ्य है।  अपने बड़े बूढ़े कह भी गये है- ’बड़ा हुआ सो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।’  फ़िर अपन भारतीय तो बच्चा पैदा करने में विश्व गुरू हईये हैं। चिंताराम जी बोले - " कुछ भी कहो दवे जी यह भारतीय मर्दों को बदनाम करने की साजिश है। हमने कहा - "भाई अब इसके लिये तो विश्व हिंदु परिषद और जमाते इस्लामी को  कुछ करना पड़ेगा। दिन रात एक दूसरे के साथ साजिश साजिश खेलते रहते है मिल कर विदेशियो की साजिश का सामना करें। वैसे यह मामला पूरे देश मे एकता ला सकता है। लोग धर्म जात भूल कर सामान विशेष के सम्मान की रक्षा के लिये एक जुट हो जायेंगे। मै तो कहता हूं केजरीवाल की ’आम आदमी पार्टी’ को इस मुद्दे को हाईजैक कर लेना चाहिये।"

चिंता राम जी गुस्से से बोले - " यार हर समय मजाक सूझता है आपको। मुद्दे पर आओ इस दुष्प्रचार के खिलाफ़ कुछ राह बताओ।" हमने कहा - ’ मियां यह सब सर्वे मनगढ़ंत होते है, आधे अधूरे तथ्य लेकर बहुत कम सैंपल साईज लेकर मन चाहा नतीजा निकाल लिया जाता है। देखते नहीं अपने चुनाव विष्लेषण को सब सर्वे वाले बाद में  मुंह छुपाते घूमते है।  आप  जिस देश के सामान विशेष की साईज सबसे बड़ी है उनका परफ़ारमेंस टाईम सबसे कम बना और छोटी साईज वालो का परफ़ार्मेंस टाईम सबसे अधिक कर थोड़ा हेर फ़ेर कर  अपना नतीजा घोषित कर दो। साईज से परफ़ामेंस टाईम ज्यादा मैटर करता है।’ इतना सुनते ही चिंताराम जी प्रसन्न होकर घर को लौट गये। और रही बात हमारी तो हमे कोई चिंता है ही नही। हम तो शादीशुदा हो बुढ़ापे की ओर अग्रसर हैं। चिंता कुंवारे करे कि सुंदरियां विदेशियो के प्रलोभन में न आ जायें। वैसे इस मामले में युवाओ को बाबा रामू का स्वदेशी आंदोलन ज्वाईन कर लेना चाहिये। बाबा रामू कोई जड़ी बूटी खोज भी लायेंगे। इस मामले में वे पतंजली रिषी के ताउ हैं। लौकी से गाजर तक नित नया डिस्कवरी करते रहते हैं। इससे पहले कि जापानी तेल वाले इस सर्वे का नतीजा उड़ा ले स्वदेशी बाबा क्या बुरा रहेगा। देश का पैसा और इज्जत दोनो देश में रही आयेगी। 

Sunday, November 25, 2012

कसाब की फ़ांसी गलत




देखिये साहब कसाब  दीन की राह में शहीद हो खुदा से हूरों को पाने के बिजनेस के सिलसिले में अवैध तरीके से भारत आया था। कितने लोग मरें इसका कोई एग्रीमेंट नहीं था, जितने मार सको उतने मारो।  किनारे उतरते ही मरता, कश्ती पलटने से मरता तो भी डील कायम रहती। सो पकड़ा जाने से भी उसके इस एग्रीमेंट में कोई फ़र्क पड़ने वाला नही था। सौदा तभी टूटता जब वो बुढ़ापे में अपनी मौत मरता।  प्रधानमम्मी सोनिया ने सब गुड़ गोबर कर दिया,  अपनी इमेज के लिये  उसको  शहीद बना दिया। अपना दुख  भाजपाई मित्र पर जाहिर किया तो वे भड़क गये- "पहले तो जान लो दवे जी, कसाब फ़ांसी से नही डेंगू से मरा है।   मच्छर भी कांग्रेसियों से देशभक्त  निकले ये तो बिरयानी खिला  रहे थे।" उनको बताया कि भाई फ़ांसी का वीडियो शूटिंग हुआ है, अब तक जन्नत में हूरों की डिलेवरी भी ले चुका होगा।" तो कहते है- "पहले दिन ही लटका देना था चौराहे में।  कोई हूर-वूर,  सब बकवास बात है।" हमने उनसे स्वर्ग और अप्सरा वाला मामला नही पूछा। फ़ोकट देशद्रोही सेकुलर का लेबल मिल जाता।

खैर मुस्लिम मित्र से पूछा तो बोले -" इस्लाम में  निर्दोष की, महिलाओं, बच्चो की जान लेने पर दोजख जाना पड़ता है।" हम कहें कि - "देखो मियां,  बेचारे कसाब को तो पता नही था ना ये।  बाद में कितना पछताया। वह तो बेचारा सच्चे दिल से खुदा की राह पर चलना चाहता था। दोजख तो उस मौलवी और हाफ़िज सईद को मिलेगी जिन्होने इसे बरगलाया था।" तो जवाब मिलता है कि मूर्खो को जन्नत नसीब नही होती। बुरे काम का बुरा नतीजा ही निकलता है।"

 वैसे देश में कसाब की फ़ांसी पर और तरह तरह की प्रतिक्रियाएं भी आ रहीं है। एक सुशील झा लिखते है- "किसी ने ट्विटर पर लिखा कि सोचिए बीस साल के बाद कसाब यरवदा जेल में सूत कात रहा होता और उस सूत से बना कुर्ता पाकिस्तान के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री को भेंट किया गया होता। सोचिए कि कसाब टीवी चैनलों पर सूत कातते हुए कहता कि मैं आज भी पश्चाताप कर रहा हूं अल्लाह मुझे माफ करें।....... सोचिए वो कितनी बड़ी नैतिक जीत होती भारतीय मूल्यों की पूरी दुनिया में."

 यह पढ़ते ही कानो में "रघुपति राघव" भजन बजने लगा। अहिंसा, शांती, प्रेम, दया...... आहाहाहा नारायण नारायण।  ऐसे उत्तम लोग आजकल मिलते ही कहा है। और अपना पड़ोसी पाकिस्तान तो अति उत्तम है। वो कितनो को  सूत कातने भेजेगा पता नहीं।  कसाब की बुनी खादी का कुर्ता पहने जनता के हितैषी नेता बड़े सेक्सी भी नजर आयेंगे।  आखिर जो देश कसाब पर दया कर सकता है वो अपनी जनता पर भी एक न एक दिन दया करेगा न भाई।  खैर बात वैसे बुरी नही आंख के बदले आंख वाली कबीलाई संस्कृती से उपर उठना भी चाहिये ही।  लेकिन इस उत्तम विचार को ट्वीटर पर चपकाने वाले महात्मा ने शायद इस बारे मे विचार नही किया होगा  कि भारत की गरीब जनता के पास खुद खाने को कुछ नही। दिल्ली के प्रेस क्लब मे हाफ़ रेट की महंगी व्हिस्  ी पीने और मुर्गा चबाने के बाद दयालु  हुआ जा सकता है।  पर सूखी रोटी चबाने वाले के मोबाईल मे "यह सुविधा आपको उपलब्ध नही है" का रिंग टोन बजने लगता है।

कई भाई जनता के सामने उन्माद परोसने की रोमन ग्लैडियेटरी संस्कृती का भी हवाला दे रहे है। तो एक सज्जन भारत फ़ांसी पाये लोगो मे नब्बे प्रतिश्त आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यक होने का दावा कर रहे थे। एक दूसरे सज्जन जार्ज ओरवेल के हाथी के शिकार और कसाब की फ़ांसी में उचित संबंध जोड़ रहे थे।  हाथी ने "मस्त" की अवस्था में तोड़ फ़ोड़ की, आदमी को मारा था। कसाब ने "गुमराह" की अवस्था में यह किया था।  दोनो बुरी हरकतो के बाद शांत हो गये थे। सज्जन के हिसाब से उन दोनो को मारे जाने का कोई औचित्य नही था।"  दोनो को तमाशबीन जनता के दबाव में मार दिया गया था। हमने सोचा- ’अपना कसाब तो माफ़ी भी मांग रहा था,  हाथी ने तो माफ़ी भी नही मांगी थी। उसको तो और नही मारना था।"  खैर वो सज्जन मिलें तो हम पूछे- " भाई हाथी तो "मस्त" की अवस्था खत्म होने के बाद काम का, लाखों रूपये का था। कसाब तो "गुमराह" की अवस्था खत्म होने के बाद लाखो रूपया रोज  खर्च करवा रहा था,  दोनो में तुलना कैसी? लेकिन इसके बाद भी हम सहमत हैं कि कसाब और हाथी दोनो को मारना नही था। आखिर साले की डील पूरी हो गयी हूरे जो पा गया।


खैर घूम फ़िर के हम अपने एक अजीज मित्र के पास पहुंचे, अपना दुख बताया। वे ठठाकर हंसते हुये बोले -"यार दवे जी नाहक परेशान मत हो, कसाब जन्नत पहुंच भी जाये, हूरें मिल जाये तो भी टेंशन नही। देखो अगर नाक न हो तो सेंट किस काम का। वैसे ही सामान विशेष न हो तो हूंर किस काम की।" यह बात सुनते ही हमारी बांछे खिल गयी। वाह ये त हमारे भेजे में आया ही नही था अगर पा भी गया होगा तो भी पछताता रहेगा - हाय मै फ़ोकट आतंकवादी बन गया।"

Tuesday, November 20, 2012

मी बाल ठाकरे बोलतो


बाला साहेब ठाकरे को उनके जाने के बाद भी लोग अलग अलग कारणो से याद कर रहे हैं। विरोधी उनकी शव यात्रा में उमड़ी भीड़ का उचित संबंध नफ़रत की राजनीती से जोड़ रहे हैं। आम भारतीय एक ऐसे आदमी की शव यात्रा में उमड़े लाखों लोगो को देखकर अचंभित था। समर्थक तो उनसे अथाह स्नेह करते ही थे। हालांकि इन सभी में बाल ठाकरे को पहचानने वाला कोई नही था। बाल ठाकरे कार्टूनिस्ट थे, एक कार्टूनिस्ट या व्यंग्यकार वही हो सकता है जिसका राजनैतिक आकलन बहुत तगड़ा हो, जो निर्भीक हो और जो अंदर से कम्यूनिस्ट हो। जिसमे विरोधाभास को पहचानने और व्यक्त करने की जबरदस्त क्षमता हो। बाला साहेब  माओ, लेनिन की किताब पकड़े घूमते कम्यूनिस्टो से भी ज्यादा कम्यूनिस्ट थे। यह विरासत उन्हे अपने पिता से मिली थी। वे कामरेड डांगे को शिवसैनिको को भाषण देने और समाजशास्त्र का पाठ पढ़ाने बुलाते थे। बाला साहेब ने कम्युनिस्ट विचारधारा को मुंबई की परिस्थितियो के हिसाब से अपनाया। और मजे की बात सारे कम्युनिस्ट मजदूर संगठनो को मुंबई से बाहर कर दिया। जब कलकत्ता में एक के बाद एक फ़ैक्ट्री बंद कराने में कम्युनिस्ट लगे थे। तब बाला साहेब के संरक्षण मे मुंबई तेजी से औद्योगिक विकास कर रही थी। वह भी लेबर डिस्प्यूट के बिना, मजदूरों के हितो का ध्यान रखते हुये।

 मराठीवाद,गैरमराठियो का विरोध बाला साहेब का प्रमुख मुद्दा था।   दरअसल किसी भी महानगर में प्रवासियो के बड़ी संख्या में आने से स्थानीय लोगो के हितों का नुकसान होता है। प्रवासी चूंकि पिछड़े इलाको से आते हैं,  वे कम दर पर मजदूरी जैसे काम करने को तैयार हो जाते है। साथ ही परिवार के साथ रहते लोगो की अपेक्षा, अकेले रहते प्रवासी आसानी से अपराध में शामिल हो जाते है। ऐसे में प्रवासियो से किसी भी महानगर का राजनैतिक आर्थिक और सामाजिक संतुलन बिगड़ जाता है। राष्ट्रीय दल इस मुद्दे को उठा नही सकती सो स्थानीय दलो को इससे जनाधार बढ़ाने का मौका मिल जाता है। करांची में तो भाषाई आधार पर बने राजनैतिक दलो नें हथियार बंद दस्ते बनाये हुये हैं। जहां दर रोज आपसी झगड़ो में दस से ज्यादा आदमी मारे जाते हैं। इसके मुकाबले मुंबई मे स्थायी तौर पर रहने वाले प्रवासियों को किसी बड़े भेदभाव का अमूमन सामना करना नहीं पड़ता। और बाला साहेब ने विरोध का अत्यधिक मुखर तरीका प्रयोग जरूर अपनाया। लेकिन पिछले चार दशको मे कभी आपसी तनाव भी नही पनपने दिया, करांची के सामने तो मुंबई प्रवासियों का स्वर्ग है।

बाला साहेब पर मुसलमान विरोधी होने और उग्र बयान देने का भी आरोप लगता रहा है और वे देते भी रहे हैं। लेकिन 1992 के दंगो के अलावा उन्होने बंबई में कभी दंगा होने भी नही दिया। मुंबई दंगो के वक्त बाबरी मस्जिद कांड के बाद मुंबई के कतिपय मुल्लाओं ने कट्टरपंथी भावनाओ को बहुत भड़का दिया था। इस्लाम खतरे में है के नारे के साथ उग्र युवाओ के बड़े दल हिंसक वारदाते कर रहे थे। पंदरह दिनो तक वहा हिंदुओ पर लगातार हमले होते रहे और उसके बाद बाला साहेब ने शिवसैनिको को जवाबी कार्यवाही के लिये कहा। उसके बाद जो हुआ वो इतिहास है। मुस्लिम युवाओं को भड़काने वालो का कुछ नही बिगड़ा। मासूम बेगुनाह हिंदु और मुसलमान मारे गये।  यह बात भी कम लोगो को ही पता होगी कि उस दंगे को रोका भी बाला साहेब ने था। शिवसैनिको की कार्यवाही शुरू होने के तीसरे दिन ही बाला साहेब को यह अहसास हो गया था कि बेगुनाह मुसलमान मारे जा रहे है। फ़िर भी दंगा रोकते रोकते हफ़्ता गुजर गया अपराधिक तत्वो ने बेतरह लूट मार मचाई। विडंबना यह थी कि दंगा शुरू करने में प्रवासी मुसलमानो का उपयोग किया गया और लूट मार में शामिल ज्यादातर प्रवासी हिंदु ही थे। उस दंगे के बाद दो दशक से उपर बीत गये बाला साहेब ने मुंबई में दूसरा दंगा होने नही दिया। कितने बम धमाके हुये, आतंकवादी हमला भी हुआ।  भारत में दंगे करवा कर सत्ता चाहने वाले भगवा दल और मुस्लिम परस्त राष्ट्रीय क्षेत्रीय दलो की लिस्ट सभी को पता है।  लेकिन बाला साहेब एक ऐसे शख्स थे जिसके इशारे भर से दंगा हो सकता था। रतन टाटा ने शोक संदेश में कहा "भले वो विवादास्पद बयान देते थे लेकिन उन्होने अपने सिद्धांतो से कभी समझौता नही किया। "

वे बयान तो खतरनाक देते थे उसमें कोई शक नही। बाबरी मस्जिद को ढहाने के लिये कई लोग सुबह शाम स्कीम बनाते रहे। भारत भर में रथ घुमाया, ईंट और चंदा लिया आखिर जब कामयाब हो गये तो इतिहास का काला दिन बता दिता। बाला साहेब ने कुछ नही किया, सिर्फ़ कहा "मेरे आदमी थे।" और करोड़ो ऐसे आदमियो का समर्थन प्राप्त कर लिया जिन्हे "सौगंध राम की खाते है" का नारा लगा लगा कर भाई लोगो ने उकसा दिया था। वे बेचारे क्या जानते थे कि अगली लाईन "चंदा हम खायेंगे" होगी। खैर हजारो बातें ऐसी है कि बाला साहेब पर मोहित हुआ जा सकता है या क्रोधित। लेकिन वे ऐसे आदमी तो थे ही जो अपने बयानों और विचारधारा पर अंत तक कायम रहे। यहां तो सुबह गड़करी को क्लीन चिट देकर शाम को "हमारा लेना देना नही है" का बोर्ड लगाने वाले लोग भी है। और जब जाकिर नाईक इस देश में अपने महाविचार बांटते इस्लाम की तथाकथित सेवा करते घूम सकते है। तो बाला साहेब को भी थोड़ा डिस्काउंट दिया ही जा सकता है। आखिर वोट बैंक की राजनीति ही तो इस देश का मूलमंत्र है। और बाला साहेब ही एक ऐसे नेता थे जो राजनितिक चालो और बयानो मे असमानता नही रखते थे

Friday, November 9, 2012

राम नाम सत्य है- जेठमलानी


सुबह सुबह हमारे पड़ोसी चिंताराम जी चिंतित अवस्था में हमारे पास आए- 'दवे जी देखिए, क्या गड़बड़ सड़बड़ हो रहा है। जेठमलानी कहता है कि राम बुरे पति थे। नराधम, खुद का नाम है राम और भगवान को बुरा कहते हैं।' हमने कहा- 'छोड़ो चिंताराम जी जब से दुनिया बनी है, पतियों को बुरा ही बताया जाता है।  जिसकी बीवी से पूछो वही कहेगी, पता नहीं कहां फंस गई। अब इससे बेचारे भगवान भी कहां अछूते रहते।' चिंताराम जी बोले- 'वाह, क्या दुनिया का हर मर्द खराब होता है।' हमने कहा- 'नहीं भाई, दुनिया का केवल हर पति खराब होता है। बाकि तो किसी भी महिला से पूछो उसका भाई कैसा है? तो फट से कहेगी, लाखों में एक। पूछो आपके पिताजी कैसे हैं, तो आंख मे आंसू आ जाएंगे टप-टप करती बोलेगी, उनकी बहुत याद आ रही है मायके जाना है।'

चिंताराम जी मुस्कुराए लेकिन उनकी चिंता कम नही हुई बोले- 'दवे जी लेकिन यह तो हमारे भगवान का अपमान हुआ। संघ, बीजेपी भी चुप है। भगाते काहे नहीं इसको।' हमने कहा -'भगवान का अपमान अगर उसके धर्म को मानने वाला ही करे तो केस नहीं बनता है। हां, कोई मुस्लमान ऐसा कहता तो भिड़ जाते अपने संघी लोग। अब देखो पाकिस्तान में कोई गैर मुस्लिम कुरान का अपमान करदे तो उसकी सजा मौत है, पर कोई मुसलमान करे तो उस पर ईश निंदा का कानून लागू नहीं होता।'

चिंताराम अभी भी चिंतित थे- 'दवे जी बात को मत घुमाओ। ऐसा होता तो काहे प्रवीन तोगड़िया और संघ के बाकि नेता राम जेठमलानी के खिलाफ बयान दे रहे हैं।' हमने कहा, 'अरे भाई ये लोग रामानन्द हैं। राम मंदिर के नाम से खूब माल कमाए हैं। अब राम पर कुछ भी कोई कहे तो कलपेंगे नेई! आदमी जिसका खाता है उसी का गाता है। सीता मंदिर के नाम से चंदा पाए रहते तो समझते कि जेठमलानी पीड़ा व्यक्त कर रहे हैं कि उनकी सीता माता को बिना अपराध इतना कष्ट सहना पड़ा। अब जो सीता जी की पीड़ा समझेगा वह तो राम जी से थोड़ा गुस्सा हो जाएगा कि नहीं। वह तो रामायण में भी लिखा है कि अयोध्या के सारे लोग बहुत रोए थे उस समय।'

चिंताराम जी के भेजे में बात घुसी लेकिन अब उन्हें राजनैतिक चिंता ने घेर लिया बोले- 'दवे जी यह तो सोचो कि बीजेपी की छवि कितनी खराब हो रही है। आखिर मतदाता तो इतना सब नहीं समझता ना।' हमने कहा- 'चिंताराम जी, मामला बहुत टेढ़ा है। जेठमलानी को निकाला तो सारा महिला वोट कट जाएगा। आखिर हर महिला यही सोचती है न कि निर्दोष सीता माता को निकालकर भगवान ने सही नहीं किया था। ऐसे मे जेठमलानी को निकाला तो सब गड़बड़ा जाएगा भाई।' चिंताराम जी को चिंतित होने की पुरानी बीमारी थी। उनकी चिंता कम न हुई- 'जरूर किसी सेकुलर ताकत का हाथ है इस विवाद को पैदा करने में।' हमने कहा- 'गुरु चिंताराम जी अब भाजपाई जेठमलानी राम को बुरे बता रहे हैं और भाजपाई ही कोस रहे हैं। और आप लाते हो बेचारे सेकुलरो को बीच में। आज तो सारे सेकुलर, चाहे वो कांग्रेसी हो या ललुआ यादव, ऐसे रामभक्त बन रहे हैं कि जाने माने सुप्रीम कोर्ट ने रामलला का दावा खारिज कर दिया तो खुद ही मंदिर बनाने पहुंच जाएंगे।'

चिंताराम जी बोले- 'यार दवे जी दाएं-बाएं बात मत घुमाओ। हमको इस जेठमलानी की बलि चाहिए बीजेपी में वो रहेगा या हम।' हमने कहा- 'पगला गए हो क्या? चिंताराम जी, अरे काहे अंदर का बात नहीं समझते। जेठमलानी बड़े रामभक्त आदमी हैं भाई। देखो सुप्रीम कोर्ट में केस चल रहा है राम अयोध्या के मंदिर में पैदा हुए थे कि नहीं। वक्फ़ बोर्ड लगा है कि साहब राम जी तो एक मिथक हैं, वास्तव में हुए ही नहीं थे। चतुर श्रद्धेय जेठमलानी जी ने सारा तर्क खत्म कर दिया। अब देखा कांग्रेस एसपी सारे कह रहे हैं कि राम हमारे भगवान हैं। उनके बारे में बुरा-भला मत कहो जी जेठमलानी। अब सारा बात इस पर आकर टिक गया है कि वे अच्छे पति थे या बुरे पति। बीबीसी सीएनएन तक में आ गया है। पोप ने भी कहा है कि राम ने राजधर्म के खातिर छोड़ा था उन्हें बुरा पति करार नहीं दिया जा सकता। अब देखो बुरे पति थे या अच्छे पति थे। थे यह बात तो पक्की हो गई न। अरे तोगड़ियाओं के चक्कर में मत रहा करो। चिंताराम जी, चंदा लेकर खाली बयान ठोकते रहते हैं। अपने सच्चे रामभक्त तो राम जेठमलानी ही निकले। बिना फीस लिए एक ही बार में सारा मामला निपटा दिए हैं।'

इतना सुनते ही चिंताराम जी की सारी चिंताएं दूर हो गईं। हमसे विदा लेकर निकले तो गली के मोड़ तक राम जेठमलानी जिंदाबाद का नारा लगा रहे थे। हमने भी चैन की सांस ली। बिना उन पर कोई नई चिंता सवार हुए हमारे सिर पर सवार होने तो नहीं आएंगे।

Tuesday, November 6, 2012

मोहन भागवत से अच्छी सोनिया गांधी


एक व्यक्ति के तौर पर मोहन भागवत सोनिया गांधी से कई गुना उंचे पायदान पर है। उन्होने सर्वस्व त्याग जीवन देश की सेवा में लगा दिया।  अपनी काबिलियत के बल पर आज वे आरएसएस के प्रमुख है। वही दूसरी ओर काबिलियत और सर्वस्व त्याग के बिना अपने मुकाम पर पहुंची सोनिया के खाते मे भी कुछ उपलब्धिया जरूर है। पति से विरासत मे मिलें देश के शीर्षस्थ राजनैतिक दल को न केवल उन्होने पुनः अपने पैर पर खड़ा किया बल्कि आठ वर्षो से उस दल को सत्ता की शीर्ष पर बनाये वे अपने बच्चो के लिये उनकी विरासत को बरकरार रखने मे सफ़ल रही हैं।  यह अंतर वास्तव में चकित करने लायक है। एक ओर मोहन भागवत है जिन्होने जीवन के लिये अतिआवश्यक वस्तुओ के अलावा कभी अपने उपर धेला खर्च नही किया। वही सोनिया तमाम सुख सुविधाओ को भोगते हुये राजपाट का आनंद ले रही है। लेकिन दोनो की जो कार्यशैली में फ़र्क है। सोनिया कांग्रेस का चेहरा है तो भागवत भाजपा का दिमाग है। जाहिर है दोनो ही निर्णय अकेले नही लेते। दोनो के पास एक किचन कैबिनेट है जिनके द्वारा हर विषय पर निर्णय लिये जाते है।

और फ़र्क यही आता भी है। सोनिया गांधी के सलाहकार पूर्णतः राजनैतिक लोग है। भागवत के सलाहकार गैरराजनैतिक पृष्ठभूमी के है ।  लेकिन इतने से ही कोई आधारभूत अंतर नही आ जाता है। कोई भी राजनैतिक व्यक्ति या समूह सतत सीखता, अपनी गलतियों से सबक लेता, और अपने निर्णयो के गलत साबित होने पर जनता के क्रोध और तटस्थ आलोचको की आलोचना का शिकार होता रहता है। यही तटस्थ आलोचना आगे होने वाले निर्णयो का आधार भी बनती है।  लेकिन संघ खुद को किसी भी आलोचना से परे रखता है। वह भाजपा से गुप्त दान लेता है, निर्देश देता है और निर्णय गलत होने के बाद  भाजपा का अंदरूनी मामला है का बोर्ड लगा कर कट लेता है।  देश की सामने आती हर राजनैतिक समस्या चुनौती या नीति पर संघ का संघ के तौर पर कभी कोई विचार सामने नही आता। भाजपा के सभी विषयों पर नीतिगत स्टैंड संघ ही तय करता है पर जनता के सामने यह भाजपा के स्टैंड के रूप मे ही सामने आता है।

सोनिया गांधी और भागवत दोनो अपने संगठन (कांग्रेस और भाजपा) के किसी नेता की हैसियत बड़ी होने देना पसंद नही करते।  हालांकि कारण दोनो के अलग है। कांग्रेस को स्वभाविक तौर पर गांधी परिवार के अलावा किसी और का ताकतवर होना मंजूर नही। इसके उलट संघ भाजपा के लोकप्रिय नेता और कार्यकर्ता  और समर्थकों के प्रिय नरेन्द्र मोदी को प्रधान मंत्री पद का उम्मीदवार नहीं बनाना चाहते। कारण बहुत साफ़ है आज मोदी की छवि भाजपा और संघ से बहुत बड़ी हो चुकी है। और प्रधानमंत्री बन जाने के बाद जैसी उनकी कार्यशैली है, वे अकुशल या भ्रष्ट लोगो को बर्दाश्त नहीं करते। इसके अलावा भी गुजरात दंगो के दौरान संघ विहिप और बजरंग दल के लोगो की कारगुजारियो का पूरा दाग उनके ही दामन पर पड़ा था। आज दस सालो बाद भी वे उस कलंक को पूरी तरह धो नही पाये। अब नरेन्द्र मोदी किसी भी प्रकार का कट्टरपंथ अपने राज्य में बर्दाश्त नही करते। प्रधानमंत्री बन जाने के बाद तो वे जिस तरह से राष्ट्र को चलायेंगे वह संघ को किसी कीमत पर मंजूर नही होगा। 

 हालांकि प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बना संघ का अपना निर्णय है लेकिन आश्चर्यजनक रूप से संघ भाजपा राज्यो और दल में छाये भ्रष्टाचार पर कोई स्टैंड नही रखता। भविष्य में चरित्र    िर्माण की दलील आज कोई भी स्वीकार करने को तैयार नही है। निश्चित तौर पर कॊई भी भाजपा समर्थक  इस दिशा में कठोर कदम उठाने की अपेक्षा रखता है। पर भाजपा और उसके नेता तो अपने स्तर पर मुख्यमंत्रियो या मंत्रियो पर किसी प्रकार की नकेल कसने की स्थिती में हैं ही नही। और मोहन भागवत जो उसे नियंत्रित कर रहे है वे किसी भी सूरत मे असफ़लताओ की जिम्मेदारी लेने वाले नही है। वे बंद कमरे मे बैठ कर चीजें तय करते है। परिणाम आने पर पल्ला झाड़ लेते है और भाजपा से वह सारे काम करवा रहे है जो इस भ्रष्टाचार विरूद्ध आंदोलन मे उसकी छवि को कुंद कर रहा है। कल तक कांग्रेस के हर आरोपित मंत्री से पूरी सरकार से आरोप लगने पर नैतिकता के आधार पर इस्तीफ़ा मांगने वाले भाजपाई नेता, अब किस मुंह से जनता और कांग्रेस के सवालो का सामना करेंगे। जब वे खुद अपने अध्यक्ष को आरोप साबित होने के बाद इस्तीफ़ा देने की बात कर रहे हैं। जिस संघ के गुरूमूर्ती द्वारा जांच मे क्लीन चिट का वे दावा कर रहे है क्या वह जांच रिपोर्ट दस्तावेजो के साथ जनता के सामने आना नही चाहिये था ? आज जो दल पहले ही 20 % अल्पसंख्यको का वोट नही पाता किस आधार पर केजरीवाल की आंधी का सामना करेगा।

इस मामले में तो सोनिया गांधी मोहन भागवत से लाख गुना बेहतर हैं। वे और उनका अमूल बेबी अपनी कारकर्तगी के परिणामों और जनता के क्रोध का सामना कर रही हैं। और आलोचनाओ की आंधी के बीच अपनी सरकार और संगठन में फ़ेर बदल कर रही हैं। और चुनाव आते तक वे निश्चित रूप से भाजपा से बेहतर तैयारी कर चुकी होंगी। आखिर वे सत्ता मे है और जनता को लोकलुभावन नीतियो का लालीपाप थमा सकती हैं।

इसके विपरीत मोहन भागवत आठ सालों में भाजपा को  इस स्थिती में लाने के बावजूद श्रद्धेय बने हुये है। अपने द्वारा भाजपा पर थोपे गये अपरिपक्व अध्यक्ष और उनकी व्यवसायिक कारगुजारियो का परिणाम भाजपा पर डाल रहे हैं। और उस पर दबाव भी बनाये हुये है कि उसे अध्यक्ष बने रहने दिया जाये। ऐसे मे मुझे कोई हिचक नही है कि सोनिया गांधी और मोहन भागवत का आई क्यू भले एक समान है। पर सोनिया उसका इस्तेमाल कांग्रेस को मुश्किलो से उभारने में कर रही है, और भागवत भाजपा को बरबाद करने में। आखिर गोलवलकर  गुरूजी का प्रसिद्ध वकतव्य आज भी प्रासंगिक है - "जनसंघ गाजर की पुंगी है जब तक बजेगी ठीक नही तो खा जायेंगे।" लेकिन आज भाजपा देश के सामने वह विकल्प है जिसका व्यापक संगठन है। केजरीवाल के अब तक कोई ठोस ढांचा नजर नही आता। ऐसे में क्या देश भाजपा का "गाजर की पुंगी" बने रहना बर्दाश्त कर सकता है ?

Tuesday, October 30, 2012

थरूर की बीबी - मोदी का दर्द

देखिये साहब ऐसे हम महिलाओ वाले मामले में कुछ कहते नही। पर मोदी जी ने शशी थरूर की भूतपूर्व प्रेमिका वर्तमान पत्नी को पचास करोड़ की क्या बताया, बवाल मच गया है । महिला आयोग का कहना है कि बयान वापस लो। इस मामले में हम महिला आयोग के साथ हैं। अरे भाई सेक्सी कह देते मोदी जी, सेक्सी कहने का बुरा नही मनाती हैं आयोग की अध्यक्ष ममता जी। हेड लाईन भी करारी बनती "शशी थरूर की सेक्सी प्रेमिका" जो ब्याह के बाद इतनी सेक्सी हो गयी है कि कांग्रेस का कार्यकर्ता अपने को रोक नही पाया, थप्पड़ खा बैठा बेचारा। अनपढ़ रहा होगा, स्लट वाक नहीं देखा होगा। कि हम कम कपड़े पहने या कुछ ना पहने कितनी भी सेक्सी दिखे छूने की नही हो रही। खैर मेरा और शशी थरूर का ज्यादा गुस्सा इस बात पर है कि कीमत कम क्यो लगाई? आखिर कोई भी प्रेमिका या बीबी की कीमत उसका पति ही आंक सकता है। कोई गाड़ी या ज्वेलरी थोड़े है कि कोई कहे इतने की होगी यार।

 शशी थरूर ठीक कहते है कि बेशकीमती होती है। जो नही माने उसको वाड्रा से पूछ लेना चाहिये। उसका बियाह तो स्वयं सत्ता सुंदरी उर्फ़ प्रियंका गांधी से हुआ है। मोदी जी भी बेचारे बैचलर आदमी, यह सब खेला जाने तो कैसे। उनको क्या पता नाजुक क्षणों में पत्नी कितनी बेशकीमती हो जाती है। जो उसके मुख से निकले, आदमी आगे पीछे नही सोचता। डाईरेक्ट "यस माई लव" कहता है भाई। और ये मोदी जी भी न प्यार ही नही किये आज तक। लेकिन "प्यार में आदमी अंधा हो जाता है" यह मुहावरा तो सुने होंगे कि नही। अब देखो सुबोधकांत सहाय को भाई के प्यार में कोयला खदान दिलवा दिये, मंत्रीपद चला गया। संघ के मोहन भागवत से ही सीख लेते। गड़करी से प्यार है तो भाजपा का चाल चेहरा चरित्र सब घिया जाये। पर मजाल है कि इस्तीफ़ा कोई मांग ले। कांग्रेसियो को ही देख लो जीजा का इतना मोह है कि आरोप लगा नही सारे के सारे भिड़ गये बचाव में।। अब ये मोदी जी कहेंगे कि भ्रष्टाचार हो रहा है, देश लुटा जा रहा है। पर भाई प्यार तो प्यार है, उसमे आगा पीछा नही सोचा जाता है। और मोदी जी को भ्रष्टाचार रोकना है तो कानून बनाना होगा कि भ्रष्टाचार करे पति पर सजा हो पत्नी को। फ़ेर देखिये जैसे बीबीया सीबीआई से ज्यादा सतर्क हो जाती। फ़रमाईश करना तो भूल ही जाईये पति को भी गांधी वादी बना कर छोड़ेंगी।


 खैर साहब बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद वाली बात है। मोदी जी त दिन भर विकास, इनवेस्टमेंट, डेवेलपमेंट भजते रहते हैं। ऐसे आदमी के अंदर प्यार का अंकुर फ़ूटे तो भी कैसे। बयान दे दिया फ़ंसा गया देश का हर आदमी, सबकी जान सांसत में। कहीं हमारी प्रमिका या पत्नि अपनी कीमत न पूछ बैठे। कीमत उंची बताई नही कि उतनी उंची फ़रमाईश जड़ दी जायेगी।

 एक बात पर हम और उद्वेलित है, गड़करी जी बयान दिये हैं कि केजरीवाल डाईरेक्टर का नौकरी मांगने आया था। अयोग्य था, हम नही दिये तो आरोप लगा रहा है। केजरीवाल को पता होना चाहिये था कि गड़करी साहब पहले छोटा पोस्ट में लगाते है। ड्राईवर बनो, चपरासी बनो, धोबी बनो। काम देखा जाता है, आदमी पहचाना जाता है, तब न डाईरेक्टर बनाते है, उसके नाम से करोड़ो का इनवेस्टमेंट करते हैं। चले गये मुंह उठा के डाईरेक्टर बनने। गड़करी जी यह भी कहे कि केजरीवाल को विदेश से संदिग्ध पैसा आ रहा है। कुछ दिन पहले यही बात दिग्विजय सिंग भी कह रहे थे। केजरीवाल कह रहे हैं कि हमारा हिसाब आन लाईन है, चेक कर लो। काहे यह सब कहना भाई केजरीवाल? प्रेस कांफ़्रेस बुलाओ और जनता से कहो -"हां हम सीआईए से पैस ले रहे है, आईएसआई से भी ले रहे है। और देखो ये साले निकम्मे कांग्रेसी और भाजपाई हमको पकड़ नही पा रहे। ये इतना नकारे है कि जब मुझ जैसे वाट लगाने वाले राजनैतिक विरोधी को नही पकड़ सकते। तो किसी आतंकवादी, कालाधन वाले को कैसे पकड़ पायेंगे। देश वासियो हम बिना सत्ता मे आये सबकी पोल खोल रहे है सत्ता मे आयेंगे तो सोचो बेईमानो का क्या हाल कर देंगे। " खैर साहब कलयुग है, पता नही कैसे कैसे बयान सुनने को मिले आगे।

Monday, October 29, 2012

फ़िल्म चक्रव्यूह से नक्सल समस्या तक


प्रकाश झा की फिल्म चक्रव्यूह देखने की इच्छा बहुत दिनों से थी। नक्सल समस्या पर बड़े बैनर की यह पहली फिल्म है और इसे देखने के बाद भारत के नौजवानों के मन में कई सवाल खड़े होंगे। प्रकाश झा का कौशल इस फिल्म में नजर नहीं आया। इसमें बंबईया मसाला भरने की मजबूरी या जिद थी। या हो सकता है कि 'पानसिंग तोमर' देखने के बाद मेरी उम्मीदें इस फिल्म से ज्यादा ही बढ़ गई थी। खैर, इस फिल्म के समाप्त होने के बाद जब मैंने अपने पांच साल के बेटे से पूछा कि वह किसकी तरफ से लड़ेगा? उसने बिना देर के जवाब दिया कि कबीर की तरफ से। कबीर इस फिल्म में नक्सलियों की विचारधारा से प्रभावित हो जाने वाले किरदार का नाम है, जिसे अभय देओल ने अद्वितीय अभिनय से निखार दिया है। सर्वोत्तम अभिनय वह होता है जब अभिनेता किरदार के अभिनय को बिना लाग लपेट के कर दिखाए। ठीक पानसिंग तोमर में इरफान खान की तरह।

जबरदस्ती भरे गए किरदारो और सेक्स दृष्यों के बीच भी फिल्म उस विषय का भेद आम भारतीय के सामने खोलने में बहुत हद तक सफल रही है, जो विषय भारत की मीडिया देश हित के नाम से कवर नहीं करती। इस देश हित की आड़ में आदिवासियों के घर जंगल और पानी उद्योगपतियों को कौड़ियों के दाम बेचती छत्तीसगढ़ सरकार भी बच निकलती है और उड़ीसा की भी। भारत का आम नागरिक भी पुलिस के जवानों की लाशों को देख उन लोगों को बहुत नफरत और क्रोध के साथ देखते हैं जिन्हें नक्सली कहा जाता है।

आम आदमी का एक ही तर्क होता है कि जब लोकतंत्र है चुने हुए जन प्रतिनिधी हैं तब हिंसा का सहारा लेने की जरूरत क्या है। लेकिन भारत का लोकतंत्र उन इलाकों में जाकर खत्म हो जाता है जहां सरकारी विज्ञापनों से पलते पत्रकार नहीं जाते। जहां चुनावों में बकरा शराब बाट जीत जाने के बाद जनप्रतिनिधी नहीं झांकते। वे न इस बाजारवादी तंत्र के ग्राहक हैं और न ही उस महान देश के सम्मानित नागरिक जिसे इंडिया कहा जाता है। वे आदिवासी हैं। वे आदिवासी जिनके प्राकृतिक वनों को काटकर उन्हें इमारती लकड़ी के बंजर बागानों में बदल दिया गया। क्यों बदल दिया गया? क्योंकि उनके फल और फूल देने वाले पौधे न शहरी लोगों के फर्निचर में काम आ सकते थे, न पेड़ से तोड़ कर फल खाते आदिवासी के पास इस देश को देने के लिए कोई रेवेन्यू था। जाहिर है वहां विकास की जरूरत थी। वह विकास जिसमें शासन तंत्र से लेकर उसे वापस देने का सिस्टम बन सके। इसी लेन देन में तो अफसर और नेताओं की कमाई होती है।

वनों में इस बदलाव ने प्राकृतिक धन संपन्न आदिवासियों को कंगाल बना दिया। अपने जंगलों से भोजन ईंधन लेने पर अब वे चोर बन जाते है। और इस चोरी का खामियाजा पुलिस और वनविभाग के अदने कर्मचारियों की खिदमत से चुकाना होता है। यह खिदमत बेटी की इज्जत देकर भी की जाती है और मुर्गा देकर भी। लेकिन इतने से ही विकास कहां होता है भला! अब तो खदान-खदान खेलने को विकास कहते हैं। उन खदानों से नोट निकले तब न विकास टाइप का फील होगा भाई! अब इस विकास के लिए कुछ लाख लोगों को उनके घर से भगा कर उनके गांव नेस्तनाबूद करना पड़े तो कीमत कम ही है। लेकिन ये नक्स्लवादी देशद्रोही भी न पता नहीं कहां से आकर टपक गए। भोले भाले आदिवासियों को पट्टी पढ़ा दी। जल जमीन जंगल तुम्हारा है। मनमोहन सिंह या रमन सिंह के बाप का नहीं। खनिज खोदना है तो रेड्डी बंधु नहीं आदिवासी बंधु खोदेंगे। हथियार भी थमा दिए और विचारधारा भी। आप जंगल में आओ बेटा तब पता चले कि जब गरीब आदिवासी अपने घर को बचाने के लिए लड़ता है, तब कैसा युद्ध होता है। लेकिन अपने गृह मंत्रालय के मोटे-मोटे अफसर भी कोई कम थोड़ी थे। उन्होंने दूसरे आदिवासियों को हथियार थमा दिए बोला सलवा जुड़ुम करो। अब जाओ लड़ो साले आपस में आदिवासी ने आदिवासी को मारा कोई केस नहीं बनता। भला एक दलित दूसरे दलित को चमार कहे तो कौन जज सजा दे सकता है भाई।

अब साहब चल रहा है संग्राम, दिल्ली के सत्ता के गलियारों से हजारों प्रकाश वर्ष की दूरी पर। किसको कौन सी खदान मिलेगी उसका एमओयू पहले हो चुका है। दोनो तरफ के लोगों का स्टेक भी है। सलवा जुड़ुम में नोट और सत्ता की ताकत से लबरेज नेता है, तो नक्सलियों की तरफ भी लेव्ही से अरबों रुपए वसूलते नेता। और सरकार के अधिकारियों के पास भी अरबो का फंड आ रहा है आदिवासियों के विकास के लिए। सबका धंधा चमक रहा है, दिवाली में घर दमक रहा है, अब कुछ लोग तो मरेंगे ही न भाई इसको ही तो कोलेटेरल डैमेज कहते हैं। सिपाही मरे या नक्सल, मरता गरीब का ही बेटा है। कलेक्टर का अपरहरण हो जाए तो देश की सांसे थम जाती हैं, मीडिया खबरदार हो जाती है। पैसा देकर कुछ बंदी एक्सचेंज कर कलेक्टर घर आया नहीं कि फेर शुरू। इंडिया के सिटीजन तो बेचारे हर देश भक्त सिपाही की मौत पर आंसू बहा ही लेते हैं।

रही बात नक्सलवाद की तो अकूत धन कमाते होनहार सपूत की तरह हर नेता चाहता है, काश हमारे इलाके में भी हो जाता तो कितना अच्छा रहता।

Friday, October 19, 2012

नेताओं का सेक्सी फ़ैशन


देखिये साहब देश में पिछले कुछ दिनो से भंडाफ़ोड़ की बहार आयी हुई है।  लोग बाग जिधर देखो मुंह उठाये सरकारी दस्तावेजो और सबूतो के साथ आरोप पर आरोप पेले पड़े हैं। कल शरद पवरा की बिटिया सुप्रिया सुले जी ने अपने उपर लगाये गये आरोपों पर भड़क कर कहा कि आरोप लगाना फ़ैशन हो गया है। अब साहब किसी भी चीज के फ़ैशन बन जाने के लिये दो बाते जरूरी होती है। पहला यह कि लोग पीटे नही, आप ही देखिये सार्वजनिक जगह में पप्पी झप्पी लेना फ़ैशन नहीं बन पाया।  धर्मरक्षक लोग पीटने पहुंच जाते हैं। शादी शुदा भी हो तो क्या, जो करना है कमरे में करो जी,  समाज को मत बिगाड़ॊ। नेताओं पर आरोप लगाना भी पहले पिटाई खाने का इनविटेशन कार्ड ही था।  लेकिन नेता, अफ़सर अब मीडिया के विकास से परिचित हैं। ऐसे में पीटने के अंजाम वे जानते हैं। बस्तर के किसी गांव में निर्दोष आदिवासियो को गोलियो से भूना जा सकता है। लेकिन दिल्ली में केजरीवाल को महज धमकी देना गोरे चिकने आक्सफ़ोर्ड रिटर्न खुर्शीद का मुंह काला करवा सकता है।

दूसरी शर्त है कि आपके देखा देखी सबका उस बात कर करने को ललचाना। तो भाई केजरीवाल ने शुरू किया है,  अब सुनते है बहुत लोग के पर निकल आये है। वैसे बाबा के भी पर निकले थे,  लेकिन उ बेचारे धर्मशास्त्र के उपर अर्थशास्त्र के चढ़ बैठने के कारण थोड़ा बैकफ़ुट में आ गये हैं। पर जो भी हो सुप्रिया सुले की बात सिद्ध तो हो ही जाती है कि आरोप लगाना फ़ैशन बन गया है। कपड़ों का फ़ैशन पेरिस से चालू होता है। फ़ैशन टीवी(FTV) खोल कर हमने कई बार इस फ़ैशन को समझने की कोशिश की। लेकिन हैंडसम मर्दो को हम जलन के मारे देख नहीं पाते,  उनके कपड़े क्या देखें। सुंदरियो को देखने की कोशिश की थी। लेकिन साहब हिंदुस्तानी पत्नियों में फ़ैशन टीवी देखते पाये जाने वाले पति को पीटने का फ़ैशन है। सो एक बार के बुरे अनुभव के बाद हमने प्रयास कभी नही किया।

लेकिन नेताओं में जरूर फ़ैशन हो गया है कि  आरोप लगाने वाले को खुद भ्रष्ट करार देना।  यह सारे फ़ैशन कांग्रेस से शुरू होते है। भले उस समय कांग्रेस को बाकि नेता भला बुरा कहें हो। अपना नंबर आने पर इसी फ़ैशन को अपना लेते हैं। अब भाजपा को ही ले लीजिये, अंजली दमानिया को कहते है- "खुद सर से लेकर पैर तक जमीन घोटाला करती है और हमारे श्रद्धेय अध्य्यक्ष पर आरोप लगाती है"। सलमान खुर्शीद ने केजरीवाल को सड़क छाप कहा तो तुरंत फ़ैशन को अपना कर नितिन गड़करी ने चिल्लर करार दिया।

 लेटेस्ट ट्रेंड तो केजरीवाल को पागल करार देने का है। और साहब इस आरोप से तो हम अक्षरशः सहमत हैं। आखिर कोई पागल ही अपना काम धाम छोड़ के जान खतरे में डाल के सारे भ्रष्टो का भंडाफ़ोड़ करने मे भिड़ जाये। स्वराज्य और शुचिता के नाम से उस देश में वोट मांगे, जहां लोग धर्म और जात पर वोट देते हैं। एक और लेटेस्ट ट्रेंड भी आ गया है। आज कल सारे राजनैतिक दल स्लट वाक कर रहे हैं। उनका माडर्न लड़कियों की तरह कहना है कि हम कम नैतिकता ओढ़े या चाहे नग्न बेशर्मी दिखाये उसका मतलब हमारी हां नही है। केजरीवाल हमारा चीर हरण ना करे न ही हमारी बेईज्जती खराब करे, बताये देते हैं हां।

Thursday, October 11, 2012

सोलह में शादी की आजादी



देखिये साहब हमारा मुल्क रंगरंगीला परजातंतर है। इस बात को नित साबित करती खबरें हमारी मीडिया पेश करती रहती है। हालिया मामला है खाप पंचायत द्वारा लड़कियों को बलात्कार से बचाने, सोलह साल में उनकी शादी करने का फ़तवा। इस पर चारों ओर बवाला मचा हुआ है , हर कोई ऐसी भूरी भूरी आलोचना कर रहा है कि क्या कहा जाये। लेकिन इस फ़ैसले से कुछ लोगो को सहमत होना चाहिये। सबसे पहले संघ समर्थक जो बेचारे लव जेहाद से बेहद घबराये हुये रहते है कि मुसलमान हिंदु लड़कियो को पटा-पटा कर भारत को मुस्लिम राष्ट्र बनाने में तुले हुये हैं। अब लव जेहाद से हिंदु लड़कियो को बचाने का इससे बढ़िया रास्ता क्या हो सकता है कि उनके हाथ सोलह बरस की उम्र मे पीले कर दिये जाये। न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी।दूसरी ओर मुल्लाओ को भी टीवी में दिखाना चाहिये, आखिर उनके अनुसार भी मुस्लिम लड़किया इस उम्र में ब्याही जा सकती है, कानूनन ब्याही जा भी रही है। लेकिन इन मुल्लाओं को टीवी पर दिखाने का कष्ट हमारी मीडिया नही करती। आखिर धर्मनिरपेक्षता भी तो कोई चीज है कि नहीं।

चलिये अब और आगे चले "तू सोलह बरस की मै सतरह बरस का" बाबी फ़िल्म के इस गाने और ऐसे हजारो फ़िल्मी गानो और फ़िल्मो पर भी बोलना नही चाहिये। आखिर प्रेम संवैधानिक वस्तु है। किसी भी उम्र में प्रेम करना, करने के लिये उकसाना संविधान सम्मत है। अब पढ़ा लिखा समाज किस तरह प्रेम के लिये मना कर सकता है।  लिंग वर्धक यंत्र का इश्तेहार अखबार में छपे या जापानी तेल का विज्ञापन एफ़ एम रेडियो पर।  यह तो पढ़े लिखे लोगो के लिये है। वो थोड़े इतने बेवकूफ़ है कि इन बातो मे आयेंगे। वैसे विज्ञापन तो बहुत ही गजब है।
पहली दूसरी से कहती है - "क्या बात है आशा जी आज बड़ी खिली खिली नजर आती है।"
दूसरी कहती है "क्या बताउं सखी, मेरे पति थके बुझे से रहते थे, राते बोझिल कटती थी। जब से उन्होने जापानी तेल लगाना शुरू किया है तब से मेरी राते रवां दवां हो गयी है।"

जिस वक्त खाप पंचायत के फ़ैसले को चैनल में कोसा जा रहा था। उसी वक्त ब्रेक में मैनफ़ोर्स कंडोम के विज्ञापन में उत्तेजक हाव भाव वाले लड़की लड़का अलग अलग स्वाद वाले कंडोम में जीवन का मजा चखने की दावत दे रहे थे।‘

अब वापस आ जाईये खाप पंचायत के फ़ैसले पर। उसको लेने के पीछे कारण क्या थे? तर्क क्या थे? इसकी जहमत किसी ने नही उठाई। इन बढ़्ती बलात्कार की घटनाओ के पीछे सबसे बड़ी वजह इश्क मुहब्बत का ग्रामीण परिवेश में चढ़ता बुखार है। प्यार में फ़ंसा कर बिगड़ैल लड़के, लड़कियो से संबंध स्थापित कर रहे है। और अतिरेक की घटनाओ में जिसमे कुछ अभी हरियाणा में हुई है। वे अपने मित्रो को भी एश करने की सामूहिक दावत दे रहे हैं। फ़िल्मो विज्ञापनो के बाजारवाद ने सुदूर अंचलो तक अपनी पैठ बना ली है। शिक्षित परिवार के युवक युवती और ग्रामीण अंचल के अनपढ़ या कम पढ़े लिखे युवाओ पर इसके असर में बड़ा अंतर है। इस बाजारवाद के प्रभाव से ग्रामीण अंचलो या शैक्षिक रूप से पिछड़े इलाको मे दूरगामी असर हो रहे है। बलात्कार से भी आगे गरीब लड़कियो को प्रेम के जाल मे फ़सा कर ही वेश्यालयो तक पहुंचाया जाता है। ऐसा नही है कि ऐसी लड़कियो का प्रेम हरदम असफ़ल होता है  लेकिन तुलनात्मक रूप से असफ़लता और बुरी संभावनाओ की दर इनमे बहुत ज्यादा है।

किसी भी संगठित समाज का अपने में आई खामियो और खतरो से निपटने का एक सामाजिक तरीका होता है। खाप इसी का एक उदाहरण है। हम आरामदेह कुर्सियो में बैठ इनके फ़ैसले को जरूर कोस सकते हैं।  सोलह या पंदरह की उम्र मे शादी निश्चित ही एक अनुचित कदम भी होगा। पर हमें खाप पंचायतो के सम्मुख खड़ी समस्याओं और आशंकाओ पर भी तो चर्चा करनी चाहिये। सभ्यता तो लिव इन रिलेशन तक भी ले जाती है, पर एक नौकरीशुदा उच्चशिक्षित जोड़े के लिव इन और खेतों, कारखाने में काम करते अल्पशिक्षित जोड़े लिव-इन रिलेशन में अंतर होगा कि नही। बाजारवाद की शक्तियां ही किसी भी देश के संविधान और व्य्वस्था को निर्धारित करती है। सो इस समस्या का कोई समाधान तो हो ही नही सकता। न खाप का निर्णय माना जा सकता है और न ही फ़िल्मो और विज्ञापनो के बढ़ते असर को रोका जा सकता है। पर कम से कम टीवी में बैठ खाप को सिर्फ़ कोसने के बजाये पूरे हालात पर निष्पक्ष चर्चा करना तो चाहिये। 

Wednesday, October 10, 2012

वाड्रा जीज्जा को बचाओ कांग्रेसियो





साहब हिंदुस्तान एक गजब मुल्क है , घटनाये भी अजब घटती है। हालिया मामला सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा का है। दामाद बाबू दुलरू अपनी ससुराल में बराबर फ़िट हो चुके थे। पिता भाई से भी संबंध इस बात पर ही टूटा कि वे गांधी परिवार के नाम से आसानी से मिलने वाले पैसे का मोह नही छोड़ सके थे। यहां तक तो दामाद बाबू ठीक चले लेकिन 2006 आते आते दामाद बाबू के अंदर महत्वकांक्षाये जाग उठी थी। पैसे उनके पास थे नही और अवसर स्वर्णिम नजर आ रहा था। ऐसे में उन्होने जो तथाकथित खेल किये वैसा खेल राजनीति का ककहरा पढ़ चुका कोई समझदार एमएलए भी नही करता, और दस साल व्यापार चला चुका कोई व्यापारी भी। किसी भी पत्रकार की लाईफ़ टाईम स्टोरी बनने या किसी भी राजनैतिक दल का लांच पैड बनने के लिये इनका शिकार काफ़ी था। मुझे तो लगता है कि पिछले दस साल महामूर्खो के सफ़ल होने का दशक था। फ़र्जी दस्तावेजो के आधार पर भारी कमीशन खिला खदान लेने वाले कोयला चोर हों। या चेक से कमीशन लेने वाली कणिमोझी। ए राजा हो या कलमाड़ी आज सारे पछता रहे हैं। ऐसा ही किस्सा राबर्ट वाड्रा का भी कहा जा सकता है।

2007 में कुल पचास लाख रूपये के साथ बनी कंपनी शुरू की, उसके बाद शुरू हुआ डीएलएफ़ एवं अन्य तीन कंपनियो से मुफ़्त पैसे मिलने का सिलसिला। जिसमे डी एल एफ़ ने 80 करोड़ दिये। इसमें भी केमिकल लोचा है, बोले तो कंपनियो ने इसे अपनी बैलेंस शीट में बिजनेस एडवांस दिखाया है और वाड्रा बाबू ने लोन। इसके बाद वाड्रा ने डीएलएफ़ के पैसो से उसकी ही जमीने फ़्लैट और होटल मे हिस्सेदारी खरीदी।  2007-8 से पचास लाख रूपये में शुरू हुई पांच कंपनियो से वाड्रा जी ने साठ लाख रूपये सालाना तंख्वाह भी प्राप्त की। और लोन के रूप मे मिले हुये पैसो को अज्ञात जगहो मे फ़िक्स डिपाजिट कर ढाई करोड़ ब्याज भी प्राप्त कर लिये। उसके बाद जादुई शक्तियो ने उनकी संपत्तियां 7.95 करोड़ वर्ष 2008, Rs 17.18 करोड़ वर्ष 2009, Rs 60.53 करोड़ वर्ष 2010 में पहुंच गयी। बोले तो 350 गुना की बढ़ोतरी तीन सालो में। लेकिन 2010 में उन्होने अज्ञात स्त्रोत से तीन करोड़ का नुकसान दिखा दिया। अब सोचने वाली बात यह है कि इस तरह तो उनकी लागत पचास लाख और कमाई ढाई करोड़ शून्य हो गयी। और इस पूरे दौरान उनकी किसी कंपनी ने कोई कार्य नही किया उनके पास कोई कर्मचारी भी नही था।

अब सवाल यह उठता है कि राबर्ट वाड्रा जी पर लगे आरोपो क्या जांच होगी, कौन जांच करेगा? क्या उन पर कोई कार्यवाही की जा सकती है? रे कांग्रेस के महारथी उन्हे बचाने के लिये अंग्रेजी के लफ़्जो का प्रयोग कर रहे हैं। जिसमे पहला शब्द है प्राईवेट , बोले तो कांग्रेसियो के हिसाब से वाड्रा एक गैर राजनैतिक शख्स है जो किसी भी सरकारी ओहदे मे भी नही। दूसरा शब्द आ रहा है "क्विड प्रो को-quid pro quo" सरलता से कहा जाये तो फ़ेवर के बदले में फ़ेवर। कांग्रेस का कहना है कि DLF की मेहरबानियो के बदले वाड्रा जी किसी भी तरह की सरकारी मेहरबानी करने की स्थिती मे नही थे या उन्होने नही की। इसलिये उन पर कोई भी अपराध का आरोप नही लगाया जा सकता। और ना ही जांच के दायरे मे आते है। हद से हद उनसे इनकम टैक्स वसूला जा सकता है जिसे चाहे आवेदन दे कर इनकम टैक्स विभाग से जांच करवा ले। पर अंग्रेजी का एक और वाक्य इन दलीलो को धाराशाही कर देता है। वह है "पालिटिकली एक्सपोस्ड पर्सन।" बोले तो राजनितिक परिवार से नजदीकी संबंध रखने वाला आदमी। विश्व के विकसित देश में यह कानून है कि किसी भी नेता अधिकारी का पुत्र आदि यदि संपत्ती या लाभ प्राप्त करते है तो उन्हे भी अपराधी ठराया जा सकता है। हमारे देश मे यह कानून नही है, पर सुप्रीम कोर्ट के विद्वान जज साहेबान दिन भर विश्व भर के कानूनो का हवाला दे कर फ़ैसले सुनाया ही करते है और वे यदि आरोप साबित समझे तो वाड्रा जी को भी मुजरिम ठहराया जा सकता है।
कांग्रेस के महारथी आरोप लगाने वालो को अदालत जाने की नसीहत भी दे रहे है। लेकिन फ़िर तो ऐसे मे दिन भर एक दूसरे पर आरोप लगाने वाले नेतागणॊ को इसे आचरण पर भी उतारना चाहिये क्योंकि भारत की राजनीति तो टिकी ही आरोप लगाने मे है। उससे भी बड़ा तर्क आता है नैतिकता का। लेकिन नैतिकता हमारे देश को त्याग कर जा चुकी है। सो उसकी बात करना ही बेमानी है, वरना यहां मंत्री बनने लायक नेता खोजे नही मिलेंगे। डैमेज कंट्रोल मे जुटी कांग्रेस काफ़ी डैमेज तो हो ही चुका है। राजनैतिक रूप से छिछालेदर झेलने के अलावा भी कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व पर लगा यह धब्बा आसानी से मिटने वाला नही है। उनके लिये राहत की बात यही है कि प्रियंका गांधी इन किसी भी कंपनियो मे किसी भी रुफ मे शामिल नही रही।

इस खुलासे से एक और बहुत बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है कि जब पिछले साल इकानामिक टाईम्स ने इस घोटाले के बारे इशारा करती स्टोरी छापी थी। तब उसके बाद भाजपा और भारत की मीडिया ने इस विषय को क्यों नही उठाया। क्या भाजपा और मीडिया समूहो को अपनी पोल भी खुल जाने का डर था।  पर अब एक ऐसा नया संगठन इस मैदान में आ चुका है, जिसका दामन साफ़ है और वह इन सबकी पोल खोलने में आमदा है। यदि केजरीवाल अपने कार्य में सफ़ल हो जाये, तो इस देश के सामने ऐसे सैकड़ो नग्न सत्य सामने आने वाले हैं। जिसे हर देश वासी जानता तो है पर उसकी बात बोलने वाला आज तक कोई नही था।
शाबास केजरीवाल आगे बढ़ो, हर देशभक्त आपके साथ है। और वाड्रा जी बाकी त सब ठीक है पर आप राजनीति मे मत आना, ऐसा कच्चा खेल करने वाला नेता तो इस देश को डुबा ही देगा प्रभु।

Sunday, October 7, 2012

माफ़ कर दो वाड्रा जीज्जा


हा केजरीवाल, ये क्या कर डाला भाई, युगो युगो से इस धरा पर जीजाओं को सर माथे पर बैठाया जाता है। आज आपसे वाड्रा जीजा  का फ़लना फ़ूलना ही न देखा गया।  अरे जीजा कमाता है, त दीदी और भांजा भांजी को ही न खुश रखता है।  उनको तमाम सुख सुविधाये प्रदान करता है।  खुद तो जीजा के लिये कभी कुछ किये नही,  डीएलएफ़ वाले बेचारे जीजा को काम धंधे से लगा दिये त आपका पेट दुख रहा है।  भाजपाई बोलते हैं कि  जीजा होगा कांग्रेसियो का हमारा नही है। पर ये हिंदुत्व की अवधारंणा वसुदैव कुटुंबकम को भूल रहे हैं। अरे जब पूरा विश्व कुटुंब है त कांग्रेसी भी न इसी कुटुंब मे आते है। और उनका जीजा भी त आपका जीजा हुआ कि नही। ऐसे शाखा में गला फ़ाड़ के गायेंगे  "सर्वे भवन्तु सुखिनः" और कांग्रेसियों का जीजा सुखी हो रहा है तो देखिये साहब ये दुखी हो रहे हैं।

और बाबा रामदेव भी लगे हैं आरोप लगाने,  ऐसे तो स्वदेशी, स्वदेशी गाते हैं। जीजा स्वदेशी कंपनी से स्वदेशी लोन लिया, जमीन भी स्वदेश में ही लिया,  फ़्लैट भी। कालाधन  छुआ भी नही, जिससे लिये लौटती डाक से वापस दे दिया। अब काली जमीन काला फ़्लैट का बात आज तक बाबा बोले हों त कोई कहे।   चलो ये केजरीवाल और बाबा रामदेव तो नये लोग है राजनीती में।  ये वामपंथी तो पुराने है इनको समझ नही आता कि जीजा ने कितना मासूम सा खेल किया है।  स्व. नरसिम्हा राव के लडके कि तरह  पांच % कमीशन लेकर अमेरिकियो को यूरिया की पेमेंट एडवांस में करवा देते।  वे पईसा लेकर रफ़ू चक्कर हो जाते तब क्या करते ?  जब श्रीकांत वर्मा का लड़का देश की खुफ़िया जानकारी बेच सकता है, तो जीजा जी तो क्या से क्या कर सकते थे।  हवाई जहाज से लेकर टैंक तक, जिधर हाथ रख देते वही माल खरीद लिया जाता।  फ़ेर रहते एड़ी अलगा अलगा के भाषण देने में। ऐसे भी आज कल वामपंथियो की सुनता कौन है साहब।

और मै देश वासियो से भी पूछना चाहता हूं  कि बेटी जब विदा होती है तो गाना गाते हो  कि नही "बाबुल की दुआएं लेती जा"। लोग चिंतित रहते है कि पता नही ससुराल वाले कैसे रखेंगे। वाड्रा जीजा ने त अपना मायका, बाप, भाई सब त्याग दिया। ऐसे त्याग शील दामाद के लिये तो जो किया जाये सो कम है। ऐसा हीरा घरजमांई किस्मत वालो को ही मिलता है भाई। और जीजा तो शराबी, जुआंरी भी निकल जाये तो लोग दीदी और बच्चो के भविष्य की खातिर बर्दाश्त करते है।  ये जीजा तो देश को राजकुमार राजकुमारी देने वाला है भाई।  आखिर अपना अमूल बेबी तो कुवांरा बाप बनने से रहा।

आखिर में चलते चलते-  "हे वाड्रा जीजा,  जो हुआ उस पर मिट्टी डालो।  कहा सुना माफ़ कर दो, आप तो जानते ही हो बदमाशो का गांव अलग से नही होता, हर गांव मे रहते है। ऐसे ही आपके कुछ बुरे साले भी है इस देश में।  ऐसे दुष्टो की बातो का क्या बुरा मनाना, आपके सलमान खुर्शीद टाईम कितने जीजा भक्त साले भी तो इसी देश में हैं। जो आपके लिये जान, आन- बान देने को सदा तैयार रहते है। आप पर इन बेशर्मो ने जो आरोप लगाये है उसके बचाव मे देखिये तो कैसे सब कूद पड़े है। मै आपका दर्द समझ सकता हूं आपने जो अपने को बनाना ससुराल मे मैगो दामाद बताया है उससे आपकी पीड़ा जाहिर है। पर आप भी बात समझ ही गये होंगे आखिर ससुराल गेंदा फ़ूल जो ठहरा।



नोट - वाड्रा को जीजा मानने से इंकार करने वाले दुष्टो , तुम्हारे न मानने से का होता है?  आखिर शोएब मलिक भी तो सानिया मिर्जा को उड़ा ले जाने के बाद जीजा बन ही गया था कि नही।

Thursday, September 13, 2012

हाय हिंदी हाय हाय हिंदी


बार में भाई दीपक भाजपायी बियर का घूंट भरते हुये बोले- " यार हिंदी के गिरते स्तर से मैं बहुत दुखी हूं। " बाजू में बैठे सोहन शर्मा उर्फ़ कांग्रेसी ने भी सहमति में सुर मिलाया।  हमने दाये बायें देख कहा - " मियां गजब करते हो,  कोई सुन लेता तो जान जाता कि आप दोनो एक ही थैली के चट्टॆ बट्टे हो।" दोनो ने एक सुर में जवाब दिया- "देश हित के मामलों में हम एक हैं।" हमने कहा - " वाह, हम तुरंत जाकर तमिलनाडु, केरल, आंध्रा जैसे राज्यों में जाकर सूचना दे देते हैं कि अब से काम हिंदी में ही होगा।  संसद में इस बात पर दो तिहाई बहुमत हो गया है।"  शर्मा कांग्रेसी ने तुरंत विरोध किया- " दवे जी, हमने हिंदी के स्तर को उपर उठाने की बात की है,  राज्यों मे हिंदी में काम करने की बात नही की है।"  हमने कहा - "मियां ये बात तुम्हारे बस में भी नही  है ,सिर्फ़ दीपक भाजपायी की पार्टी यह काम कर सकती है।"  

शर्मा जी भड़क गये -" बोले आप साबित कर के बताओ।" हमने कहा- "साबित कुछ नहीं करना है, ये लोग बोलते हैं कि जो भारत में रहता है वो हिंदू है, इसलिये जो भारत मे बोली जाती है वो हिंदी।  ये लोग मुस्लिम, इसाई, पारसी सब को हिंदू बोल सकते हैं तो कन्नड़, मलयाली और तमिल को भी हिंदी बोल सकते हैं। अब तो ये लोग हिंदू राष्ट्र का बड़ा वाला नक्शा भी बना लिये हैं। अब उर्दू, बर्मीस, थाई, सुमात्रन पता नही कितनी भाषायें हिंदी बन जायेगी। कांग्रेसी ऐसा उत्थान तो सौ जन्मो में भी नही कर सकते।"  दीपक भाजपायी भड़क गये- " दवे जी बात हिंदी  उत्थान की हो रही है और क्या क्या बड़बड़ा रहे हो, मुद्दे पर की बात करो। हमने कहा-  "भाई मेरे, बियर पीकर दुखी होने से तो हिंदी का उद्धार नही न होगा, यह होगा कैसे यह बताओ।"  शर्मा जी बोले - " हमारी सरकार ने राज कार्य में हिंदी भाषा के प्रयोग के लिये बहुत कुछ किया है। हमारी प्यारी मम्मी ने तो इटली की होने के बावजूद हिंदी में भाषण देना सीख लिया है।" हमने कहा- "शर्मा जी साठ साल हो गये भाषण पिलाते। आप तो बस स्विस बैंक में किस किस के खाते हैं यह सूची हिंदी में जारी कर दो ताकि आम आदमी पढ़ सके।" दीपक भाजपायी प्रसन्न हो कर बोले -"सही कहा दवे जी हम लोग हिंदी की शुद्धी को वापस लायेंगे और हिंदी को हिंदुस्तान की शान बनायेंगे।

" हमने कहा- " जाओ हिंद महासागर और अरब सागर के बीच दीवाल बनाओ पहले। दीपक भाजपायी बोले- "वो क्यों।"  हमने कहा- "भाई अरब सागर का पानी  हिंद महासाहर को दूषित कर रहा है कि नही। "  दीपक भाजपायी बोले- "यार आप बियर पीने के बाद बहक जाते हो,  पता नही क्या क्या बोलने लगते हो।" शर्मा जी ने बीच बचाव किया- "दवे जी बहस से क्या फ़ायदा, आप उपाय बताओ।" हमने कहा - "भाई किसी भी भाषा  का स्तर तभी उपर उठता है, जब उसमे नित नयी नयी उतकृष्ठ रचनाओ का निर्माण होता है। जिसे पढ़ने मे आम आदमी की रूचि जागती है। इस रूची से भाषा की मात्राओं और व्याकरण से भी आम आदमी परिचित होता है। दूसरी ओर भाषा तभी संमृद्ध होती है जब उसमें दूसरी भाषाओं के रोचक और वैज्ञानिक शब्दो का समावेश होता है। अब इसको भाषा का असमृद्ध होना बोलेगे तो फ़िर वही,  एक से एक कठिन शब्द जैसे रुद्धोष्म भित्ति, वेफशिकात्वीय तरंगें  का निर्माण करोगे। अव्वल तो विद्यार्थी इसका शब्दार्थ नही निकाल सकेगा सो रटन्तु विद्या का सहारा लेगा। और कालेज पहुंच गया तो फ़िर चारो खाने चित्त फ़िर अंग्रेजी के शब्द को समझो, रटो।"


   दीपक भाजपायी ने टांग अड़ाई - "दवे जी, अब आप तो यह भी कह दोगे कि उर्दू के शब्द भी मिला दो, आप तो हो ही क्षद्म  धर्मनिर्पेक्ष।  मौका मिला नही और पहुंच गये मुसलमानो को खुश करने।" हमने कहा- क्यों मिया उर्दू पैगंबर साहब ने बनाई थी कि मदीने में बैठ कर किसी ने लिखी थी।  भाई भाषा तो वही है, उसको पाकिस्तान में उर्दू बोले या हिंदुस्तान में हिंदी। पाकिस्तान के चैनल देखे होते तो पता चलता कि वहां प्रयोग होने वाले अधिकांश शब्द, मुहावरे  और व्याकरण तो पूरा हिंदी का हैं। भाषा बनाई नही जाती जनमानस जो बोलता है वह बन जाती है। उसमे सुधार साहित्यिक कृतियों से ही होता है, गायन से होता है। जगजीत सिंग को हिंदी सुर सम्राट कहते है कि उर्दू सुर सम्राट।  हिंदी फ़िल्में नही होती तो आज भी आधा देश हिंदी का ह नही जानता।" बात रिश्वत की तरह दीपक भाजपायी और सोहन कांग्रेसी के दिल में प्रवेश कर गयी। "


दोनो फ़िर एक सुर में बोले - "दवे जी आपका कहना सही है। हम दोनो मिल कर इस दिशा में प्रयास करेंगे।" हमने कहा- " वाह रे कलयुग के कालिदासों, जिस  डंगाल में खड़े हो उसे ही काट दोगे।" दोनो चट्टे बट्टॆ हैरानी से हमारी ओर देखने लगे, हमने समझाया- "भाई लेखकों का पेट भर जायेगा तो  सामाजिक विषमता, भ्रष्टाचार, धर्म के नाम पर राजनीति, देश के संसाधनो की लूट इन पर लेखो की बाढ़ आ जायेगी, लोग पढ़ेंगे तो जाग जायेंगे। मियां फ़िर देश की जनता आप लोगो को पीटेगी,  होश ठिकाने ले आयेगी,  सारी नेतागिरी उड़न छू हो जायेगी।"दोनो भाई सतर्क हो गये- "बात तो आप सही कह रहे हो दवे जी, तो किया क्या जाये।"  हमने कहा- करना क्या है भाई, सोहन बाबू आप बाबा ठग, अन्ना के साथी भ्रष्ट छपवाते रहो और दीपक बाबू तो लगे ही है नेहरू का दादा मुसलमान था,  लव जिहाद चल रहा है, हिंदू धर्म पर मंडराते खतरे। बस चैन की बंसी बजाते रहो और हाय हिंदी हाय हिंदी गाते रहो। जब मन ज्यादा दुखी हो जाये तो हमारे जैसे गरीब लेखको को कुछ खिला पिला दिया करो मन का बोझ भी हल्का हो जायेगा।" 

Wednesday, September 5, 2012

ओये मनमोहन वाशिंगटन पोस्ट ओये


साहब, इस दो कौड़ी के अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट द्वारा,  मनमोहन जी को मौनी बाबा करार दिये जाने से,  हमारा दिल को बहुत ठेस लग गया है।  इनका हिम्मत कैसे हुआ हमारे परम आदरणीय और घोटालों द्वारा नित्य स्मरणीय करा दिये जाने वाले मनमोहन सिंग जी के बारे मे उल्टा सीधा लिखने का।  मै पूछता हूं ये होते कौन हैं हमारे आंतरिक मामलो में दखल देने वाले। हिंदू धर्म का बड़ा शुभचिंतक बनने वाली भाजपा से भी मै पूछता हूं। कैसे हिंदू हो रे भाई,  क्या नहीं पढ़ी महाभारत? घर में भले हम सौ और पांच है, आपस में लड़ते हैं पर किसी भी बाहरी के लिये पूरे 105।  एक बार कड़क आवाज में अखबार वालों को कह देते - "हमारे मामलों में दखल मत दो जी।" फ़िर देखते मनीष तिवारी, दिग्विजय सिंग तक आपकी भूरि-भूरि प्रशंसा किये बिना रह पाते तो।  ये कम्यूनिस्ट पार्टी भी, ऐसे अमेरिका का ’अ’ भी कान मे पड़ जाये तो एड़ी अलगा-अलगा के हाय-तौबा मचायेंगे। और इस अखबार को महत्व दे रहे हैं। अरे लाल सलामो, काहे नहीं बचपन में उचित संबंध जोड़ो ठीक से पढ़े थे?  डील परमाणु किये थे मनमोहन जी, तब कैसा उछल रहा था यही अखबार - "मनमोहन सिंग विश्व के सर्वश्रेष्ठ नेताओं में से एक हैं।" आज मनमोहन जी लड़ाकू हवाई जहाज नहीं लिये तो हाय-तौबा मचा रहे हैं,  चुप्पा बता रहे हैं।

कुछ दिन पहले टाईम मैग्जीन ने भी मनमोहन जी को अंडर अचीवर बता दिया था। अरे भाई, वर्ल्ड बैंक के नौकरी से शुरू कर बिना चुनाव जीते, बिना राजनीति में आये प्रधानमंत्री बन गये। इससे बड़ा अचीवमेंट किसी अमेरिकी का हो तो बताना जरा। ऐसे ही ब्रिटेन के अखबार ने उनको सोनिया जी का गुड्डा बता दिया था। इनकी क्वीन विक्टोरिया का जो विश्वासपात्र रहता था, उसको रायबहादुर का खिताब देते थे।  हमारी जनता की मलिका आदरणीय़ प्रधानमम्मी जी के विश्वासपात्र को गुड्डा पपेट बता रहे हैं। अपने बाला साहेब ठाकरे भी जब देखो तब कुछ न कुछ सनसनीखेज लिख देते हैं। बीच में माननीय मनमोहन जी को राजनैतिक नपुंसक करार दिये थे। कौन राजनैतिक नपुंसक है रे भाई, जो आठ साल से देश में अभूतपूर्व घोटाले, इतनी महंगाई के बाद भी प्रधानमंत्री है, वो राजनैतिक नपुंसक है, या सत्ता से बाहर बैठ के कोसने वाले राजनैतिक नपुंसक हैं।?

और मौन रहना कम बड़ी बात है? आदमी को महान बना देता है। महात्मा गांधी मौन व्रत पकड़ अनशनिया गये थे तो बंगाल मे कत्लेआम थम गया था। मौन व्रत लेना हमारे देश की परंपरा है। इंदिरा जी के आपातकाल में एक संत विनोबा भावे ने मौन व्रत रखा था। आर्थिक आपातकाल में संत मनमोहन मौन व्रत रखे हुए हैं।  एक बात मै इस वॉशिंगटन पोस्ट और बाकी अनाप-शनाप कहने वालों को बता देना चाहता हूं। जो हमारे मनमोहन जी के बारे मे बुरा कहता है, उसका हाल बहुत खराब होता है। ऐसे ही भाजपा के एक प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार ने मनमोहन जी को ’कमजोर’ कह दिया था। आज तक पाइपलाइन मे हैं बेचारे। प्रधानमंत्री बनने का सपना चूर-चूर हो गया। अब तो सुने हैं कि पाइप से भी निकाल दिये गए हैं तो ब्लॉग लिख-लिख कर भाजपाइयों के लिये सरदर्द बने रहते हैं। 

Tuesday, August 21, 2012

माननीय कालाधन जी से एक मुलाकात



मित्रो  आईये करते है,  देश की बहुचर्चित शख्सियत माननीय कालेधन जी से तीखे सवाल- "सर आपका नाम कालाधन कैसे पड़ा।"  कालाधन जी -" हमारा नाम  सुनहरा धन होता, आखिर गाढ़ी कमाई हैं।  टैक्सखोर अधिकारियो की काली निगाह से बचाने के लिये हमें कालाधन का नाम दिया गया। वैसे इससे "बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला" भी हो जाता है।" हमने मुस्कुराते हुये पूछा -" बाबा योगानन्द कहते है कि आप चार सौ लाख करोड़ हैं।"

वे बोले - "बाबा नोट गिनने की मशीन ले के आया था क्या मेरे पास। अच्छा हुआ आठ सौ लाख करोड़ नही बोला वरना कालाधन नाम भी मुझे बुरी नजर से नही बचा सकता था।" हमने कहा-  "कुछ भी कहिये सर, जनता उनके आरोपो पर  विश्वास करती है।"  कालाधन जी मुस्कुराये - "मियां  जनता को बाबा पर विश्वास नही, हम पर अविश्वास  है।  हम उस खूबसूरत लड़की की तरह है, जो दूसरे की बाहों में है। हमें देख हर न पाने वाला आहें भरता है और पाने वाले से जलता है। बिना मुझे चंदे में पाये बाबा ग्यारह सौ करोड़ का आसामी बनता क्या रे भाई। इनकम टैक्स पटाने के बाद, वैट, एक्साईज चुसाने के बाद ईमानदार के पास बचता क्या है। खुद खायेगा कि इन बाबाओ को चढ़ायेगा।  पापियो को ही न भगवान के नाम बाबाओ का सिफ़ारिशी लेटर मंगता है। हमारा तो मन होता है कि हम ही इन बाबाओ के खिलाफ़ आंदोलन करें।"


हमने अगला सवाल दागा -  बाबा ने आंदोलन छेड़ने से पहले, क्या आपसे राय ली थी। वे बोले - "प्यारे मै आंदोलन का इशू हूं। इशू से कोई राय नही ली जाती। गौरक्षा वाले कोई गाय से पूछकर थोड़े आंदोलन करते हैं। " हमने कहा - बाबा आपको देश में वापस लाने के बाद, आपका जो प्रयोग करना चाहते है उस बारे मे आपकी क्या राय है। वे बोले- देखिये जिस तरह गौरक्षा वाले गाय को बचाने के बाद उसे भगवान भरोसे छोड़ देते है उसी तरह बाबा को मुझे लाने के बाद सरकार भरोसे छोड़ देना चाहिये।" हमने चिहुंक कर कहा - "ऐसे तो आप फ़िर नेता, अफ़सरों के पास पहुंच जायेंगे, हमको फ़ायदा क्या होगा।" कालाधन जी मुस्कुराये बोले - "बेटा इशू बरकरार रहना चाहिये। इस देश की आम जनता भोली भाली है। उसको जनलोकपाल टाईप का कठिन इशू समझ में नही आता।  जात, धर्म में बटे लोगों की अनेकता में एकता के लिये मेरा होना बहुत जरूरी है।


हमने गुस्से से कहा - " महंगाई से त्रस्त आम आदमी , दो वक्त की रोटी के लिये जूझ रहा है। आपको शर्म नही आती,क्या आप इस देश से प्यार नही करते। क्या आपको खुद ही आत्मसमर्पण नही कर देना चाहिये।" वे बोले -"अरे भाई देश वासियो से प्यार है गरीबो की चिंता है इसलिये त चुपचाप विदेश में बैंको मे पड़ा हूं। वरना कौन अपनी मातृभूमी से दूर रहना चाहता है।" हम चौंक गये, पूछा - "सर प्यार तक तो समझ में आता है पर आपके वापस आ जाने से गरीब को क्या नुकसान।" कालाधन जी गंभीर हो गये बोले -" बाबा को अर्थशास्त्र का ’अ’ नही मालूम। मनमोहन सिंग क्या बेकूफ़ है जो इतना बदनामी झेलने के बावजूद हमको नही ला रहा। अरे भाई देखते नही चिदंबरम पांच लाख करोड़ का नोट छाप के देश में झोंके तो महंगाई आसमान में पहुंच गया। दो लाख करोड़ का मनरेगा ला दिये त देश में लेबर नही मिल रहा काम करने को। शराब की खपत आसमान छूने लगी। हम आ जायेंगे तो हर परिवार को एक करोड़ मिलेगा।कौन करोड़पति खेत मे काम करने जायेगा कहो तो भला। सवा सौ करोड़पति मार्केट पर टूट पड़ेगा, त कीमत नही आसमान छूने लगेगी।

इतना भयानक अंजाम सुन हमारे रोंगटॆ खड़े हो गये। हमने कहा - " तो सर आप ही कोई राह सुझाईये। " कालेधन जी ने मनमोहन सिंग की तरह आश्वासन दिया -" सरकार ठीक कदम उठा रही है, धीरे धीरे एफ़ डी आई के माध्यम से हमे सफ़ेद धन बना उसका  उपयोग रोजगार मूलक इन्फ़्रास्ट्रक्चर में होगा।  हमारे वालमार्ट के माध्यम से देश मे पहुंचते ही किसान, उपभोक्ता खुशहाल और काला बजारिये बदहाल हो जायेंगे। देश अग्नी राकेट की तरह खुशहाली के नये कीर्तीमान स्थापित करेगा। अब विदा लेने का समय आ गया है,  जाते जाते सभी देश वासियो को हमारी तरफ़ से ढेर सारा प्यार, शुभकामनाएं, जय हिंद, वंदे मातरम।"  ,


Tuesday, August 14, 2012

भोलू तू बाबा बन जा प्यारे

साहब, नुक्कड़ में भोलू हमारे पास आया, बोला- "दादा, कोई ऐसा काम बताईये,  जिसमे लागत न के बराबर हो और प्राफ़िट हाई फ़ाई।" हमने कहा- वाह रे बुड़बक, ऐसा धंधा मालूम हो तो हम नही कर लें। बेटा भोलू, मेहनत से ही सफ़लता मिलती है। भोलू बड़ा ज्ञानी था, हमको ही चित कर दिया बोला - "राहुल गांधी एतना मेहनत किये यूपी चुनाव में क्या मिला उनको।"  हमने  कहा- रै भोलू तब तो तेरे लायक एक ही धंधा बाकी बचता है, तू बाबा बन जा।"

भोलू ने बात पर गंभीरता से गौर किया बोला - दादा, हम तो केजरीवाल टाईप सिविल सोसाईटी बनने का सोच रहे हैं। वो लोकपाल के लिये लड़ा, हम ठोक पाल के लिये लड़ेंगे। आम आदमी का पैसा खाने वाले नेता अधिकारियो की पब्लिक ठोकाई के अधिकार का कानून पास करायेंगे।" हमने इनकार में सर हिलाया - मियां,  सरकार से भिड़ने में बहुत लोचा है रे भोलू और तू तो भोला भाला है।" भोलू बोला- टीवी में आयेगा  "भोलू देश के लिये चार दिन से भूखा है, गांधी का अवतार है।"" इतना कह भोलू सपनो में तैरने लगा। हमने तुरंत झटका दिया कहा - अबे ओ शेख चिल्ली, होश में आ। उससे तो अच्छा है, चार न्यूस चैनलो को सेट कर, पानी टंकी में चढ़ जा।  भ्रष्ट मुख्यमंत्री का इस्तीफ़ा मांगना।  कवरेज फ़ुल मिलेगा, टीवी वाले घंटे के हिसाब से रोजी देंगे। मुख्यमंत्री भी उतरने का कुछ न कुछ दे ही देगा।"

 भोलू खिसिया कर बोला- "क्या दादा, आप बात मजाक मे ले ले रहे हो।" हमने समझाया -" देख भाई भोलू ये सिविल सोसाईटी, सब टेम्परेरी है रे भाई। चार दिन की चांदनी फ़िर अंधेरी रात। अब देख अन्ना टीम को, राजनैतिक दल बनाना पड रहा है कि नही। इस देश में जात, पात धर्म के नाम पर आंदोलन करोगे तो धकापेल समर्थन मिलेगा। कानून वानून से देश वासियो को क्या लेना देना प्यारे।  भोलू ने समस्या रखी - "बाबा बन जाउंगा तो क्या चंदे का हिसाब नही मांगेगे।" हमने मुस्कुरा कर कहा- "प्यारे तू बाबा बनते ही भोलू से उपर उठ श्रद्धेय बाबा भोलादेव बन जायेगा। भगवा कपड़ा पहनते ही आदमी जी से प्रमोट होकर श्रद्धेय बन जाता है। उसको मिला कोई भी चंदा दान की श्रेणी प्राप्त कर लेता है। और दान लेना देना इस देश मे पुण्य की श्रेणी में आता है और पुण्य की जांच करना हिंदु धर्म की की आबरू पर किया गया हमला साबित हो जाता है।

भोलू ने अपना तर्क रखा -  बाबा बनने मे  भी रिस्क है। देखा नही कैसे सलवार पहन मंच कूद भागना पड़ा था बाबा रामदेव को। कम से कम सिविल सोसाईटी में पिटाई तो नही होगा।" हमने भोलू को समझाया- " रे भाई भोलू , तुझे बाबा माल अंदर करने के लिये बनना है कि कालाधन बाहर निकलवाने।  आंदोलन करने का शौक चर्राये तो सरकार से आंदोलन के मुद्दे से लेकर समझौते की रूप रेखा सब एडवांस में तय करके अनशनियाना। और नही त अपने बाबा रामदेव की तरह विपक्षी दल से सेटिग कर लेना। वहा सेटिंग बाबाओ के लिये ज्यादे बेहतर रहती है,

हिंदु तन मन, हिंदु जीवन, हिंदु बाबा की दुकान है।

हिंदु ठगा हिंदु ठगाया सरकार क्यूं परेशान है॥

इस नारे के आगे बेटा भोलू बड़ा से बड़ा जांचकर्ता भी सकपका जाता है। तू बाबा बनेगा, बात फ़ाईनल समझ।"

 बात भोलू के भेजे में  घुस गयी है। आशा है  देश को अब एक नया चमत्कारी बाबा मिल जायेगा। अब ये भोलू टैक्स फ़्री -योगा बाबा बने, जड़ी बूटी बाबा बने, या दुखियारो को सरलतम उपाय प्रदान करने वाले इनकम टैक्स पेयी निर्मल बाबा की तरह क्विक हीलिंग बाबा बनेगा। यह मीडिया कन्सलटेंट से पूछ कर ही तय किया जायेगा।

Tuesday, August 7, 2012

नेता और मुसलमान क्या एक समान ?

देखिये साहब भारत के नेता और  भारत का आम  मुसलमान दोनो में काफ़ी समानताएं  है। इसके पहले कि कोई मुझ पर फ़तवा जारी करे  मै कुछ उदाहरण दे देना चाहता हूं। देखिये जिस तरह  नमाज पढ आम मुसलमान अपने को खरा मुसलमान मान लेता है। ठीक उसी तरह गांव गांव तक बिजली के खंबे पहुंचा कर भारत का नेता अपने आप को विकास पुरूष मान लेता है। जिस तरह नेकी और इमान पर चलने की  शर्त आम मुसलमान वेल लेफ़्ट कर देता है। वैसे ही हर खंबे तक बिजली पहुचाने की शर्त भारत का नेता ओवर लुक कर देता है। दोनो के तर्क भी काफ़ी हद तक मिलते जुलते है। दोनो तमाम तरह की दुश्वारियो का हवाला देते है और यह भी विश्वास दिलाते है कि हम जल्द से जल्द ऐसा करने की कोशिश करेंगे।


आप- अगर अब भी नही मानते तो मै आपको और भी समानताएं बता सकता हूं। मसलन दोनो बहुत दूर की सोचते है। भारत के मुसलमान जब बात करेंगे तब फ़िलीस्तीन अफ़गानिस्तान के मुसलमानो पर ढाये जा रहे सितम का गम उन्हे खाये जायेगा। वैसे ही हमारे नेताओं को दिल्ली से दूर बसे बिजली खंबे से  विहीन गावॊ के रहवासियो का गम सतायेगा। ना मुसलमान को अपने शहर के गरीब बेरोजगार मुसलामानो की चिंता सतायेगी और न ही दिल्ली से सटे फ़रीदाबाद मे बीस घंटे की लोड शेडिंग की चिंता नेताओ को सतायेगी। मुझे पता है कि नेता तो मेरे इस लेख का उतना का बुरा नही मनायेंगे पर मुसलमानो को अब भी बुरा लग रहा होगा। आखिर इस देश मे आज नेताओ से तुलना किसे पसंद आ सकती है। खैर अभी मेरे तर्क खत्म नही हुये हैं।

देखिये जिस तरह नेता अराजनैतिक आंदोलनकारियों को हिकारत की नजर से देखते है। ठीक वैसे ही मुसलमान भी दूसरे धर्म को लोगो को मूर्ख समझते है।  दोनो के हिसाब से कोई और तरीके से  लक्ष्य को प्राप्त करना संभव नही।  दोनो ही बड़े दयालु भी है। मुसलमान हर किसी को मुसलमान बनने की सलाह देते है। उनको इतनी परवाह भी नही कि भाई जन्नत का कंपीटीशन कितना तगड़ा हो जायेगा। वैसे ही नेता भी हर किसी को चुनाव लड़ने की सलाह देते है। उन्हे भी  अपनी परवाह नही कि भाई हमारे लिये कंपीटीशन तगड़ा हो जायेगा।  अब आपको लग रहा होगा कि ऐसे रहमदिल लोग आज कल के जमाने मे कैसे हो गये।  तो भाई मैं अंदरे खाते की बात बता दूं।   नेता जानते हैं चुनाव जीतने मे कितना प्रपंच, खर्चा लगता है। वैसे ही मुसलमान भी जानते है। के भाई मुसलमान बनना तेढ़ी खीर है,  नेकी और इमान पर चलना होता है। जब हम ही न बन पाये तो ये क्या खाक बनेंगे।  बात इतने पर ही खत्म नही होती जिस तरह नेता दूसरे राजनैतिक दलो के नेताओ को भी मूर्ख करार देने में कॊइ गुरेज नही करते। वैसे ही मुसलमान दूसरे तरीके से इबादत करने वालो मुसलमानो को मूर्ख करार देने में कॊई परहेज नही करते। 


और मजेदार समानताये बताये दिये देता हूं। जिस तरह नेता संविधान की धाराओ पर काम करने पर अटके रहते है। ठीक उसी तरह मुसलमान कुरान की आयतो पर अड़े रहते है। अगर नेता संविधान की रूह को समझ हिसाब से काम करने लगे और मुसलमान कुरान की रूह को समझ कुरान का पालन करने तो इस देश को जन्नत बनने मे कोई  नही रोक सकता।  नेता गांधी की खादी पहन अपने को जनता का सेवक मान लेते है और मुसलमान दाढ़ी रख अपने को मुसलमान मान लेते है। न मुसलमान नबी ए करीम के जीवन चरित्र का पालन करते है और न नेता महात्मा गांधी के जीवन चरित्र का अनुसरण करते हैं।

लेकिन साहब मेरे सारे तर्क एक जगह आकर खत्म हो जाते हैं। हमारे नेताओं की तुलना किसी से नही हो सकती। ऐसे जंतु जो बिजली का कारखाना पहले लगाते है। बिजली का खंबा उसके बाद बिछाते है, और उत्पादन शुरू होने के बाद कोयला का पता करते है तो मालूम चलता है कि अंडर वियर बनाने वाली कंपनी को पैसा लेकर खदान आबंटित कर दिये हैं। उनकी तुलना किसी से नही हो सकती। और मुसलमान कुछ भी कर ले हराम की तो नही ही खायेगा और नेता  खायेंगे तो -----।

Friday, August 3, 2012

चल प्यारे केजरीवाल संसद में



 राजनैतिक दल की घोषणा सुनते ही फ़िल्मी गीत याद आ गया- "चल सन्यासी मंदिर में- मेरी चूड़ी, तेरा चिमटा मिल कर गीत गायेंगे"।  सत्तासुंदरी ने  केजरीवाल एंड कंपनी को राजनीति के मंदिर बोले तो संसद जाने पर मजबूर कर दिया है।  केजरीवाल लोकपाल न मिलने पर- "कूद जाउंगा, मिट जाउंगा गांव वालो।   लोकपाल न बना तो  पब्लिक आईंग,  सोनिया मौसी एंड संस चक्की पीसिंग एंड पीसिंग"  चिल्ला रहे  थे। लेकिन तभी अन्ना ने अधर्म की ओर से युद्ध कर रहे इन राजनेताओ पर चुनावी आक्रमण का बिगुल फ़ूंक दिया। "हम न जायेंगे संसद मदिर में- सारे चोर है बैठे अंदर में" का गाना गाने वाले  अब चुनावी युद्ध की ताल ठोक रहे हैं। इस अनशन के शुरू होने के पहले ही यह बात साफ़ थी कि इस बार दोनो पक्षो में कोई समझौते की गुंजाईश नही थी। लोकपाल बिल पर सरकार तभी झुकती जब भारी जन सैलाब उमड़ आता। जाहिर है जनसैलाब नही उमड़ा, जंतर मंतर पर एकत्रित दसियो हजार लोग सरकार के माथे में शिकन लाने के लिये अपर्याप्त थे।

 राजनैतिक दलो और उनके अधीन सत्ता ने वह सारे रास्ते बंद कर दिये थे जिसके द्वारा इस आंदोलन को सफ़लता मिल सकती थी। इसके बाद जीत का रास्ता जनता मे स्वयं खीज और उबाल ही था। लेकिन जात पात धर्मो में बटी कौमे बगावत नही लिया करती। इस आंदोलन के टूटने के कई परिणाम सामने आयेंगे। कांग्रेस के खिलाफ़ देश में उमड़े जनाक्रोश का सीधा लाभ भाजपा को जायेगा। लेकि जिस भ्रष्ट व्यवस्था से देश तंग है,  भाजपा भी उसका ही  हिस्सा है। संघ का जोर भ्रष्टाचार नही हिंदुत्व के मुद्दे पर सत्तासीन होने का है। संघ को कोसने में जो बुद्धीजीवी तन मन धन से लगे रहते है। उन्ही बुद्धीजीवियों ने  मीडिया में आकर इस जनलोकपाल आंदोलन को भसकाने में महती भूमिका निभाई है। जाहिर है संप्रदायिकता से जंग ये संप्रदायिक हिंसा होने पर ही लड़ते है। जबकि किसी भी संप्रदायिक विचारधारा को बल सरकार के भ्रष्टाचार, महंगाई  और असफ़लता से ही मिलता है। इन बुद्धीजीवियों के भेजे में यह बात नही आयी कि देश में उमड़ते जनाक्रोश के गांधीवादी तरीके से चल रहे जनहित के आंदोलन से इस देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को मजबूती प्रदान की जा सकती हैऔर भ्रष्टाचार पर काफ़ी हद तक लगाम लगाई जा सकती है।

मीडिया ऐसे घोड़े की तरह है, जिसकी लगाम व्यापारिक घरानो के हाथ में है। यह मीडिया पत्रकारिता के आदर्शो का ढोंग रचती है। और सवाल उठाये जाने पर क्रोधित पत्नी की तरह किसी की भी इज्जत तार तार कर् सकती है। जनलोकपाल आंदोलन के साथ इसने जो किया उससे टीम अन्ना की छवी को जितना नुकसान हुआ है उससे दसियो गुना नुकसान मीडिया की छवि को हुआ है। खैर मीडिया को कोई चुनाव नही लड़ना हां राज्यसभा टीवी के मीडिया मंथन के एक एपिसोड का मसाला जरूर तैयार हो चुका है। वैसे  कांग्रेस को फ़र्क पड़ता मुसलमानो के इस आंदोलन मे बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने से। लेकिन इस देश के मुसलमान अभी तक "हमको यह चाहिये, हमको वह नही मिला" के मोड में अटके हुये है। देश में उमड़ते बढ़ते किसी भी आंदोलन मे वे अपने लिये असुरक्षा खोजते है। और चुनाव का समय आने पर अपने लिये सबसे कम खतरा नजर आने वाली पार्टी को एक मुश्त वोट डाल आते है।

राजनीति में उतरने का फ़ैसला टीम अन्ना ने लिया जरूर है। लेकिन राह बहुत कठिन है। उनके राजनैतिक दल का सबसे बड़ा नुकसान भारतीय जनता पार्टी को होगा। टीम अन्ना का आधार वही शहरी मध्यमवर्ग ही है, जो भाजपा का ट्रेडिशनल वोट बैंक है। दलितो अल्पसंख्यको का वोट पाने के लिये टीम अन्ना विजयी हो सकने वाले दल के रूप मे उभरना जरूरी होगी, उसके बिना ये वर्ग वोट नही करता। वैसे जब बीस सदस्य वाली ममता, सरकार को तिगनी का नाच नचा सकती है। तो टीम अन्ना का संसद में पहुंचना भी रोचक समीकरणो और घटनाओ को जन्म दे सकता है। देखते है केजरीवाल जी सत्ता सुंदरी की बांहो जाकर देश को किस रंग मे रंगने मे सफ़लता हासिल करते हैं। और बाबा रामदेव भी नौ अगस्त से आने वाले है, सो अभी मामला शांत होने वाला नही है।

Tuesday, July 31, 2012

मोहन भागवत अनशन पर क्यो नही ?



देखिये साहब वैसे तो इस देश में लोकतंत्र है,  न कोई किसी को अनशनियाने से रोक सकता है और न ही जबरदस्ती करवा सकता है। पर इस सवाल का कारण यह है कि सोशल मीडिया में स्वयं को हिंदु धर्म रक्षक मानने वाले वीर,  अन्ना हजारे के अनशन को कोसते घूम रहे हैं।  जाहिर है लोकतंत्र में उनको इसका अधिकार भी है, और ऐसा करने वाले वे अकेले भी नही है।  मीडिया के माध्यम से अनशन के खिलाफ़ राजनैतिक प्रचार निष्फ़ल है।  मीडिया और राजनैतिक दल दोनो अपनी साख खो चुके है। पर सोशल मीडिया में जहां से इस आंदोलन को जान मिलती है,  वहां एक  मुखर समूह संघ समर्थको का है। ये लोग अपने को देश भक्त, भारत मां के सच्चे सपूत और उनसे असहमत लोगो को देशद्रोही, बिकाउ और इन सबसे उपर शेखुलर करार देते है। इनका आरोप है कि अन्ना कांग्रेस के एजेंट हैं,  उनकी टीम चंदा खोर एनजीओ का समूह है। इनके हिसाब से इस आंदोलन में जाने वाला कोई भी व्यक्ति हिंदुत्व का दुश्मन है।

ऐसे मे सवाल यह उठता है कि  इन जैसे परम देशभक्तो के होते हुये क्या जरूरत है,  केजरीवाल और अन्ना को अनशन करने की। ये लोग जिस संघ और उसके प्रमुख आदरणीय मोहन भागवत जी के अनुयायी होने का दावा करते है।  वे क्यों नही भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन खड़ा करते, अनशन करते।  देशभक्त होने के दावे के साथ जुड़ी जिम्मेदारी का पालन भी जरूरी है कि नही। वैसे ये लोग  बाबा  रामदेव के आंदोलन को समर्थन करने का दावा करते है।  ऐसे में यह सवाल भी उठता है कि बाबा के आंदोलन के समर्थन का क्या यह अर्थ है कि दूसरे के आंदोलन को पहले असफ़ल बनाया जाये।  संघ को किसी और को समर्थन करने के बजाये क्या खुद आंदोलन नही करना चाहिये था। आंदोलन भी छोड़िये, क्या भाजपा के भ्रष्टाचार के गर्त में डूबने की राह में संघ को रोड़ा नही बनना चाहिये था।  यह सवाल पूछते ही तड़ से बयान आ जायेगा,  संघ का भाजपा से कोई लेना देना नही, वैचारिक समर्थन है बस।  बाबा रामदेव असफ़ल हो जाये आंदोलन में, या फ़िर फ़रार हो जायें सलवार पहन के।  तब भी इनका यही बयान आ जायेगा कि बाबा को वैचारिक समर्थन मात्र है, उनसे लेना देना नही।


अरे भाई भाजपा से लेना देना नही, बाबा से लेना देना नही।  देश से तो लेना देना है कि उससे भी लेना देना नही। क्या हिंदु राष्ट्र की अवधारणा में इमानदारी, सुशासन नही आता। क्या भ्रष्टाचार से आपके महान हिंदु राष्ट्र के नागरिको का जीवन तबाह नही हुआ जाता। जिन आदिवासियो के ईसाई बनते ही बिलबिला उठते हो, उनके जंगल जमीन के लुटने से बिलबिलाहट क्यो नही उठती। जिन दलितो पिछड़ो को आप हिंदुत्व की मुख्यधारा मे जोड़ने का दावा करते हो उनके कष्ट से आपको सरोकार नही। और तो और जो शहरी मध्यम वर्ग आपका समर्थक वर्ग है उनके घरो मे बिना सब्जी का खाना बनता देख आंखो मे आंसू नही आता। या बड़े वाले हिदु राष्ट्र का नक्शा बनाते बनाते जो राष्ट्र अभी है उसकी तबाह होती अर्थव्य्वस्था दिखना बंद हो गयी है।


वैसे अंदर खाते की आफ़ द रिकार्ड बात आपको बताउं,  इनको अनशन में गांधी जी का भूत नजर आता है। वैसे गोड़से से तो कोई लेना देना नही है का बोर्ड लगाये रहते है। लेकिन गुप्त दान मे मिले नोट के आलावा जिस भी चीज में गांधी जी की छाया नजर आ जाये, उससे ये दूर छटक जाते है।  हमारी पहुंच इनके हेडक्वाटर तक नही है। वरना समझाये देते कि भाई गांधी का स्वदेशी चुराये कि नही, खादी चुरा लिये, दलित उद्धार चुरा लिये। यहां तक कि "हे राम" में से "राम"  भी चुरा लिये। तो काहे नही अनशन और चश्मा भी  चुरा लेते। चश्मा रहता तो हिंदु राष्ट्र  की हिंदु समस्याएं दिखती भी साफ़ साफ़। अनशन से देश भक्ती का काम करने का अचूक अस्त्र भी मिल जाता। पर नही भाई ये लोग जिद पर अड़े हैं कि  जनता के गुस्से का सहारा न ले अन्ना और केजरीवाल। उस पर सिर्फ़ और सिर्फ़ संघ और बाबा का अधिकार है। इनके लाये  ही देश  मे सुशासन आयेगा, खबरदार कोई और आगे बढ़ा तो।

संघ समर्थक, इस लेख को पढ़ कहेंगे-  मुसलमानो के बारे में कह के दिखाओ फ़िर हमको सीख देना। क्या कहूं भाई मै मुसलमान तो कछुए की तरह खोल के अंदर छिप कर बैठे रहते है। कोई आंदोलन हो  तो यह देखते है कि इससे हमारा क्या नुकसान हो सकता है। अपना फ़ायदा  देश का फ़ायदा तो उनके लिये सेकेंडरी इश्यू है। ठीक वैसे ही जैसे संघियो के लिये हिंदुत्व प्राथमिक और भ्रष्टाचार सेकेंडरी इश्यू है। संघी मुसलमानो का हवाला देंगे तो मुसलमान संघियो का। इनके आपसी रेस टीप के खेल में पिस यह देश रहा है। पिस वो लोग रहे है जो खुद को हिंदु या मुसलमान के पहले इंसान समझते हैं।

Tuesday, July 24, 2012

प्लीऽऽस माई लार्ड आचार्य बालकृष्ण को छोड़ दो


देखिये साहब अमूमन मदद या चंदे के लिये आयी किसी भी पुकार को मै मंझे हुये नेता की तरह आश्वासन के बल्ले से सीमा रेखा के पार पहुंचा देता हूं। लेकिन बाबा रामदेव के चेले चपाटियों की इस मार्मिक गुहार से मै क्लीन बोल्ड हो गया हूं।  बाबा रामदेव भी बड़े सज्जन आदमी है मदद ऐसे मांगते हैं कि मदद करने वालो का धेला खर्चा नही होता। जैसे  आंदोलन का समर्थन कर फ़लां नंबर पर मिस्ड काल करके। आचार्य बालकृष्ण की मदद भी मुफ़्तिया ही करने की है। उपर के चित्र मे दिये पते पर ईमेल भेजना है। इस कदम से सरकार भी खफ़ा नही होगी क्योंकि आपको यह कही नही कहना कि आचार्य बालकृष्ण बेगुनाह है। बस एक मार्मिक सी अपील ठोक दीजिये कि उनके खिलाफ़ कोई पुख्ता सबूत नही है।

वैसे देखा जाये तो आम जनता को इन वकीलो की लूट खसोट से बचाने का यह एक नायाब तरीका साबित हो सकता है। सरकार को कानून बना कर यह तय कर देना चाहिये कि फ़लां धारा के तरह गिरफ़्तार आरोपी को इतनी मार्मिक हृदय विदारक अपीलो के मिलने पर जमानत दे दी जायेगी।  ऐसा करने से लोकतंत्र बहुत मजबूत हो जायेगा। इसमे दबे कुचले, पिछड़ो, पसमंदा मुसलमान जैसे अपराधियो को अपीलों की संख्या में विशेष छूट देकर उन्हे सरकार मुख्य धारा के अपराधियो के साथ ला खड़ी कर सकती है। और देश की बड़ी बड़ी समस्याएं चुटकियो मे सुलझ सकती है। मसलन बाबरी मस्जिद का ही लफ़ड़ा ले लीजिये। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश का नंबर ईमेल सरकार अखबारो मे छपवा देती और वोटिंग लाईन बंद करने का टाईम देती। उस टाईम पर जिस पक्ष मे सबसे  ज्यादा मार्मिक अपीले आती वो केस जीत जाता। अब आप कहेंगे कि कहीं ऐसा होता है भला। तो भाई पाकिस्तान से सरबजीत की रिहाई के लिये मार्मिक अपील हो रहा है कि नही।

और ये बेचारा आचार्य  बालकृष्ण किया क्या है, कि उसके पीछे पड़ गये। सब डिग्री डिग्री खेल रहे थे,  उसने भी खेल लिया। जब सफ़ाई कर्मचारी टांका लगा सकता है,  चौकीदार आपरेशन कर सकता है। तो क्या बेचारा आचार्य गोली चूरण नहीं बाट सकता। वो भी आयुर्वेदिक,  जिसका कोई साईड ईफ़ेक्ट नही होता। हम तो कहते है कि ये बाबा रामदेव के साईड में न होता, तो बेचारे पर कोई पुलिसिया इफ़ेक्ट ही नही होता। गांधी परिवार के बारे में अनाप शनाप बोला बाबा और फ़िट हो गया बालकृष्ण। यही होता है जब अनुभव हीन लोग इस तरह का जोखिम लेते है।

गलती पर गलती हुआ बालकृष्ण से।  सबसे पहला भगवा चोला नही पहना बुड़बक ने, सफ़ेद चोला इधर शांती का प्रतीक है क्रांती का थोड़े।  अरे बाबा टाईप भगवा पहनता तो तत्काल जनता के मन में 'जी' से प्रमोट होकर 'श्रद्धेय' हो जाता। गिरफ़्तारी की नौबत आते ही हिंदु बचाओ सेनाएं चारो ओर से टूट पड़तीं।  उसके बाद ये डिग्री का जरूरत ही क्या था भाई, भारत में एलोपेथिक दवाई की पुड़िया बिना डिग्री बाटो तो थाने से जमानत हो जाता है। फ़र्जी डिग्री ले लो, तो सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ता है। काम वही करना है, अंतर कुछ नही। और ये तो बेचारा जड़ी बूटी बेचने वाला कौन पकड़ सकता था, इसको खामखा जंजाल मे फ़सा लेने के देने पड़ गये।
इतना भी नही समझे आचार्य बाबू कि जिन लोगो की शह पर बावेला मचा रहा हूं। वो लोग बाद में "हमारा इससे कोई लेना देना नही है" वाला बयान जारी कर देते है। आंदोलन करने से जयजयकार ही होती प्यारे तो नही उ लोग खुद ही कर लिये होते। खैर इस बार मार्मिक अपील कर रहा हूं, अगला बार बवेला किये फ़ेर हमारे पास मत आना।

 माई लार्ड नही पता था बेचारे को, माफ़ कर दीजिये।  कसम खाते है के आज के बाद ये किसी आंदोलन में भाग नही लेगा।  उनके खिलाफ़ कोई पुख्ता सबूत भी नही है। छोड़ दीजिये प्लीऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽज

Wednesday, July 18, 2012

बेटियों को पटने दो गांव वालो

देखिये साहब इस तरक्की शुदा इंडिया के उपर ये पिछड़ी सोच के गांव वाले किसी कलंक से कम नही। आदर्श इंडिया की राह में हिंदुस्तान रोड़े अटका रहा है। अचानक  इंडिया कैसा हो यह नजारा मेरी आंखो के सामने तैर गया। चार पड़ॊसी आपस मे बात कर रहे थे।

शर्मा जी दमकते चेहरे से बोले- " भाई आज मै चिंता मुक्त हो गया।  लड़की को एक लड़के ने आई लव यू कह दिया।  बेचारा पुरानी सोच वाले खानदान का था,  तीन महिने से आगे पीछे हो रहा था।  वो तो मैने  कहा, डरो मत बेटा कह दो, तब कही जा कर उसने कहा।

पीटर साहब बोले- "आज कल आई लव यू कहने वाले लड़के आसानी से मिलते कहा हैं।

खान साहब बोले - " मेरी बेटी को तो हमारी ही जात का लड़के का आई लव यू पसंद आ गया था। वो तो मैने तड़ फ़ड़ दूसरी बिरादरी वाले लड़के को खोज खाज,  दहेज दे आईलवयू कहलवाया। वरना शहर में नाक कट जाती कि देखो ये खान साहब कितना पिछड़ा है अपनी बिरादरी में निकाह करवा दिया।

सतनाम सिंग बोले  - मै तो परेशान हो गया हूं भाई,  बड़ी  बेटी को जो आई लव यू कहे वो उसे पसंद नही आता।  भले अपनी जात का आई लव यू कहे, पर मामला निपटे तो सही।  अरेंज मैरिज करनी पड़ गयी तो मेरी छोटी लड़की को आई लव यू कौन कहेगा। 


ऐसा स्वर्णिम सपना देख आंखे खोली ही थी कि सामने टीवी पर प्राईम टाईम नजर आया। सब पानी पी पी कर कोस रहे थे - "सरकार सो रही है नेताओ को डूब मरना चाहिये।" एक बेचारा खाप पंचायत वाला गिड़ गिड़ा रहा था- "हमारा रिवाज है, एक गोत्र में शादी करने की इजाजत नही है। तभी एक मोटी ताजी महिला नेता ने टोका- " पांच सौ साल पहले रह रहे हो क्या साहब, मेरा बस चले तो इन घटिया लोगो को एक दिन मे ठीक कर दूं।" फ़िर सारे के सारे एक साथ बोलने लगे। शोर गुल से घबरा हमने टीवी ही बंद कर दिया।



ये जो काल्पनिक सीन मैने बताया वह आज का सच है।  ये पढ़ लिख खा पी कर मोटाये,  मानवाधिकार वाले ऐसी आदर्श परिस्थिती की बाते करते है कि जाने माने लड़का, लड़की गैजुयेट है। लड़का खा कमा रहा है लड़की को रानी बना कर रखेगा। अरे भाई गांव मे झांक कर तो देखो, शहर की गरीब बस्तियों में ही झांक कर देखो। लड़का लड़की कितने पढ़े लिखे होते हैं। विवाह के बाद कैसी कैसी समस्याएं आती है। खुद इनके घरो का आंकड़ा पूछिये, कितनो के बच्चो ने प्रेम विवाह किया है।

 ये खाप वाले भी कोई अलगू चौधरी, जुम्मन शेख की औलाद नही है। इनका हुक्म और फ़जीहत  गरीबो को ही झेलनी पड़ती है। प्रेमी जोड़े बर्बरता का शिकार होते है। आनर किलिंग के नाम पर सैकड़ो हत्याये होती ही हैं। गांव की औरतो को अकेले बाजार न जाने देने की घोषणा करने वाले को जेल होना ही चाहिये। पर सामाजिक परंपराओ का सम्मान भी होना चाहिये, हर समाज सैकड़ो सालो मे विकसित हुआ है उनकी मान्यताये विकसित हुई है। जातीवाद को ही देख लीजिये हिंदुओ से शुरू हुआ, मुसलमान तो भी जातीवाद बरकरार है। यह धर्म की नही समाज की देन है।

मुद्दे पर संतुलित चर्चा होनी चाहिये, परंपराओ का सम्मान करते हुये चर्चा होनी चाहिये। कोई समाज अपने नियमो का उल्लघंन करने वाले को समाज से बाहर कर दे तो किसी के सवाल उठाने का प्रश्न नही। क्या लड़का लड़की को प्यार के पहले नही पता था कि समाज इसे स्वीकार नही करता। गांव से, संपत्ती से बेदखल करने का विरोध होना चाहिये, सुरक्षा, कानूनी सहायता मिलनी चाहिये । चर्चा ऐस     हो जिस पर चर्चा हो रही हो वह उससे कुछ सीखे, समझे सोच विकसित करें। टीवी पर गला फ़ाड़ कोसने उस पर उल्टा ही असर होगा।

खैर साहब इन मोमबत्ती ब्रिगेड वालो का धंधा कभी मंदा नही होगा, हिंदुस्तान इंडिया भी बन जाये, खाप पंचायत वाले कन्या बचाओ की तरह प्रेम विवाह बचाओ का नारा भी लगाने लगे। तो ये समलैंगिकता का नया बवाला खड़ा होने ही वाला है। फ़िर इनका दाल रोटी चल निकलेगा।

Monday, July 16, 2012

प्यारे दलितो, टायलेट साफ़ कर दो न प्लीज

साहब अमूमन हमारा मुंह काला होता नही। कारण कि यह शर्म की तरह है, आये तो ठीक, न आये तो ठीक। लेकिन आमिर खान के दलित समस्या के उपर किये कार्यक्रम में जो नंगी सच्चाई सामने आई। उससे मैं नही समझता कि मुंह काला होने में कोई कसर बाकी थी। वैसे अपने देश में भी एक गजब जुगाड़ है, कोई कुरीति सामने आये तो बाकी धर्म के लोग पेट पकड़ पकड़ के हंसते है।  जिस धर्म की कुरीति हो, वो अपने धर्म का बचाव और दूसरे धर्म की कुरीतिया गिना अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेता है। लेकिन आमिर खान ने सारे धर्मो को नंगा कर दिया, एक साथ एक ही मंच पर।  आखिर मल उठाने वाला, मल का जात पात तो नहीं ही पूछता। और मल करने वाला भी यह कभी नही सोचता कि इसको उठायेगा किस धर्म का आदमी।

इस शो को देखने वाले और उसमें मौजूद नब्बे प्रतिशत लोग,  मध्यमवर्ग और उससे उपर के ही रहे होंगे। भारत का बाजार भी यही है। हर समस्या पर राय रखने वाले कर्णधार भी वही। ये वही लोग है जो गरीबो को गाली बकते है कि- "साहब ये दारू पैसा लेकर, अपना वोट नकारो को दे आते हैं।" इनको लगता है कि ये दलित समस्या गांव का ’इशू’ है। और हम लोग कभी ऐसा नहीं करते। यह वर्ग दलितो से एक बैर भी पाले बैठा है कि ये लोग फ़ोकट में बिना नंबर पाये एडमिशन और नौकरी ले जाते हैं। पर इनके नजर में न आने वाले इस घृणित परंपरा को ये क्या कोई खत्म नही कर सकता। अपना मल खुद न उठाने और साफ़ करने की राजशाही अकड़ जब तक खत्म न होगी। तब तक उसे किसी न किसी को तो उठाना ही होगा कि नही।

अब आ जाईये  खुद को दलित परंपरा से अछूते मानने वाले लोगो की गलियों में। कौन हमारे घर के सामने की नाली साफ़ करता है? क्या घरों का ’मल’ और उसका पानी सीधे नालियो में नही छोड़ा जाता ?  हमारे सेप्टिक टैंक और ड्रेनेज सिस्टम के जाम होने पर कौन इसे साफ़ करने आता है? शहर के गटर जाम होने पर कौन उन्हें साफ़ करता है। यह वही समाज है, जिन्हे गांव मे "दलित" कहा जाता है और शहर मे प्यार से "स्वीपर"। अब तो सरकार फ़िर गांव गांव में अरबो रूपये हर घर में शौचालय योजना में लगा रही है। कारण यह है कि भाई खेतो में कोई हगने जाये तो वह मोटेंक सिंग आहलूवालिया को राष्ट्रीय शर्म की बात नजर आती है। तथाकथिक शुष्क शौचालय, जिसकी डिजाईन हम सुने है कि डीआरडीओ ने बनाई है।

राकेट का माल तो अतंरिक्ष में छोड़ा जा सकता है। धरती में आकर दस जनपथ में भी नही गिरेगा, आसमान में ही खाक हो जायेगा। लेकिन गांव की सीमित जगह में नया गढढा कैसे बने? साफ़ तो उसे भी करना ही होगा, करेगा कौन यह बात भी जाहिर ही है। हां ’अग्नी’ टाईप की कोई मिसाईल बन जाये कि शुष्क शौचालय को अंतरिक्ष मे ले जाकर फ़ेंक आये तब की बात अलग है।
अपने नेता लोग भी बहुते दूर दृष्टी तो छोड़िये, नजदीक की दृष्टि वाले भी नही हैं। वरना सोनिया जी, मनमोहन जी, आडवानी जी, और हमारी राष्ट्रपती महा माननीय प्रतिभा पाटिल जी भी अपने सरकारी बंगलो में ही देख लेते,  शौचालय और मल की सफ़ाई कौन कर रहा है। ऐसे में मुंह काला हो गया,  ऐसी भावना मन में न आये तो ही ठीक।

और हां खेतो मे हगने कोई न जाये, आखिर किसी इज्जतदार देश में कोई खेतो मे हगने जाता है क्या भला? फ़िर बेचारे दलित बेरोजगार न हो जायेंगे। जब मल ही न होगा तो उठायेंगे क्या,  करेंगे क्या ? वैसे भी राष्ट्रीय शर्म का विषय वह होता है जिसे दूर भले न किया जा सके। पर दूर करने का ढोंग जरूर किया जा सकना चाहिये। अब मैला साफ़ करने को बंद करने का ढोंग भी करना हो तो मोंटेक सिंग करवाये किससे। बाकी लोग तो करने से रहे जिनसे अपना साफ़ नही किया जाता वो भला दूसरो का कैसे करे? मजे की बात देखिये यह बात मेरे भी दिमाग में तभी आयी जब मै आमिर का शो देख रहा था। वरना आज के पहले मेरे घर का भी मैला साफ़ करने कोई विदेश से तो नहीं ही आ रहा था।