राजनैतिक दल की घोषणा सुनते ही फ़िल्मी गीत याद आ गया- "चल सन्यासी मंदिर में- मेरी चूड़ी, तेरा चिमटा मिल कर गीत गायेंगे"। सत्तासुंदरी ने केजरीवाल एंड कंपनी को राजनीति के मंदिर बोले तो संसद जाने पर मजबूर कर दिया है। केजरीवाल लोकपाल न मिलने पर- "कूद जाउंगा, मिट जाउंगा गांव वालो। लोकपाल न बना तो पब्लिक आईंग, सोनिया मौसी एंड संस चक्की पीसिंग एंड पीसिंग" चिल्ला रहे थे। लेकिन तभी अन्ना ने अधर्म की ओर से युद्ध कर रहे इन राजनेताओ पर चुनावी आक्रमण का बिगुल फ़ूंक दिया। "हम न जायेंगे संसद मदिर में- सारे चोर है बैठे अंदर में" का गाना गाने वाले अब चुनावी युद्ध की ताल ठोक रहे हैं। इस अनशन के शुरू होने के पहले ही यह बात साफ़ थी कि इस बार दोनो पक्षो में कोई समझौते की गुंजाईश नही थी। लोकपाल बिल पर सरकार तभी झुकती जब भारी जन सैलाब उमड़ आता। जाहिर है जनसैलाब नही उमड़ा, जंतर मंतर पर एकत्रित दसियो हजार लोग सरकार के माथे में शिकन लाने के लिये अपर्याप्त थे।
राजनैतिक दलो और उनके अधीन सत्ता ने वह सारे रास्ते बंद कर दिये थे जिसके द्वारा इस आंदोलन को सफ़लता मिल सकती थी। इसके बाद जीत का रास्ता जनता मे स्वयं खीज और उबाल ही था। लेकिन जात पात धर्मो में बटी कौमे बगावत नही लिया करती। इस आंदोलन के टूटने के कई परिणाम सामने आयेंगे। कांग्रेस के खिलाफ़ देश में उमड़े जनाक्रोश का सीधा लाभ भाजपा को जायेगा। लेकि जिस भ्रष्ट व्यवस्था से देश तंग है, भाजपा भी उसका ही हिस्सा है। संघ का जोर भ्रष्टाचार नही हिंदुत्व के मुद्दे पर सत्तासीन होने का है। संघ को कोसने में जो बुद्धीजीवी तन मन धन से लगे रहते है। उन्ही बुद्धीजीवियों ने मीडिया में आकर इस जनलोकपाल आंदोलन को भसकाने में महती भूमिका निभाई है। जाहिर है संप्रदायिकता से जंग ये संप्रदायिक हिंसा होने पर ही लड़ते है। जबकि किसी भी संप्रदायिक विचारधारा को बल सरकार के भ्रष्टाचार, महंगाई और असफ़लता से ही मिलता है। इन बुद्धीजीवियों के भेजे में यह बात नही आयी कि देश में उमड़ते जनाक्रोश के गांधीवादी तरीके से चल रहे जनहित के आंदोलन से इस देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को मजबूती प्रदान की जा सकती हैऔर भ्रष्टाचार पर काफ़ी हद तक लगाम लगाई जा सकती है।
मीडिया ऐसे घोड़े की तरह है, जिसकी लगाम व्यापारिक घरानो के हाथ में है। यह मीडिया पत्रकारिता के आदर्शो का ढोंग रचती है। और सवाल उठाये जाने पर क्रोधित पत्नी की तरह किसी की भी इज्जत तार तार कर् सकती है। जनलोकपाल आंदोलन के साथ इसने जो किया उससे टीम अन्ना की छवी को जितना नुकसान हुआ है उससे दसियो गुना नुकसान मीडिया की छवि को हुआ है। खैर मीडिया को कोई चुनाव नही लड़ना हां राज्यसभा टीवी के मीडिया मंथन के एक एपिसोड का मसाला जरूर तैयार हो चुका है। वैसे कांग्रेस को फ़र्क पड़ता मुसलमानो के इस आंदोलन मे बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने से। लेकिन इस देश के मुसलमान अभी तक "हमको यह चाहिये, हमको वह नही मिला" के मोड में अटके हुये है। देश में उमड़ते बढ़ते किसी भी आंदोलन मे वे अपने लिये असुरक्षा खोजते है। और चुनाव का समय आने पर अपने लिये सबसे कम खतरा नजर आने वाली पार्टी को एक मुश्त वोट डाल आते है।
राजनीति में उतरने का फ़ैसला टीम अन्ना ने लिया जरूर है। लेकिन राह बहुत कठिन है। उनके राजनैतिक दल का सबसे बड़ा नुकसान भारतीय जनता पार्टी को होगा। टीम अन्ना का आधार वही शहरी मध्यमवर्ग ही है, जो भाजपा का ट्रेडिशनल वोट बैंक है। दलितो अल्पसंख्यको का वोट पाने के लिये टीम अन्ना विजयी हो सकने वाले दल के रूप मे उभरना जरूरी होगी, उसके बिना ये वर्ग वोट नही करता। वैसे जब बीस सदस्य वाली ममता, सरकार को तिगनी का नाच नचा सकती है। तो टीम अन्ना का संसद में पहुंचना भी रोचक समीकरणो और घटनाओ को जन्म दे सकता है। देखते है केजरीवाल जी सत्ता सुंदरी की बांहो जाकर देश को किस रंग मे रंगने मे सफ़लता हासिल करते हैं। और बाबा रामदेव भी नौ अगस्त से आने वाले है, सो अभी मामला शांत होने वाला नही है।
माथा भन्नाता विकट, हजम करारी हार |
ReplyDeleteछाया सन्नाटा अटल, तम्बू-टेंट उखार |
तम्बू-टेंट उखार, खार खाए थी सत्ता |
हफ़्तों का उपवास, हिला न कोई पत्ता |
कांगरेस की जीत, निरंकुश और बनाए |
राजनीति की दौड़, अगर अन्ना लगवाये ||
कुलबुलाय कीड़ा-कपट, बेईमान इंसान ।
ReplyDeleteझूठ स्वयं से बोल के, छोड़ हटे मैदान |
छोड़ हटे मैदान, डटे थे बड़े शान से |
बार बार आमरण, निकाले खड्ग म्यान से |
अनशन अब बदनाम, महात्मा गांधी अन्ना |
खड्ग सिंह विश्वास, टूटता मिटी तमन्ना ||
राष्ट्र कार्य करने चले, किन्तु मृत्यु भय साथ |
ReplyDeleteलगा नहीं सकते गले, फिर ओखल क्यूँ माथ ?
फिर ओखल क्यूँ माथ, माथ पर हम बैठाए |
देते पूरा साथ, हाथ हर समय बढाए |
आन्दोलन की मौत, निराशा घर घर छाई |
लोकपाल की करें, आज सब पूर्ण विदाई ||
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (04-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
जो उतारा है रोता है
ReplyDeleteअब देखो क्या होता है।
वैसे अगर केजरीवाल को भावी प्रधानमंत्री के रूप मॆं देखा जाये तो ?
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