Sunday, February 27, 2011

अरूणेश आदिवासी हाजिर हो





कोर्ट मुहर्रिर की इस पुकार को सुनते ही ४ पुलिस वाले मुझे न्यायाधीश के केबिन मे सम्मान पूर्वक धकियाते हुये ले चले सम्मान पूर्वक इसलिये कि सारे विश्व की मीडिया मेरे केस पर ध्यान दे रही थी । धकियाते हुये इसलिये कि मै उन पुलिसियो की नजर मे उनके हमवर्दी भाईयो का कातिल था ।  अंदर पहुचते ही जज  सवाल किया  यह तो ब्राह्मण है फ़िर आदिवासी क्यो कहा जा रहा है सरकारी वकील ने कहा  मुकदमा सुनने के बाद आप समझ जायेंगे । इसके बाद आरोपो की सूची पढ़ी गयी  आरोप लगे राष्ट्रद्रोह के और न जाने क्या क्या तमाम आरोप  और दलीले सुनने के बाद जज ने विदेशो से आये प्रतिनिधियो को देखा जो न्याय की सत्यता परखने आये थे इसके बाद जज ने कक्ष मे सरकारी वकील को बुलाया ।


बूढ़े जज ने मेरी जवानी पर तरस खाते हुये आफ़ द रिकार्ड सरकारी वकील से कहा आरोप तो कोई साबित नही होते । जवाब मिला  माननीय  अपराधी शातिर है इसने बहुत  कम सबूत छोड़े थे  मै हूं कि केस खड़ा कर दिया वरना ये तो पाक साफ़ निकल जाता । जज बोले ये कोई बात नही हुई  सबूत कहां है फ़िर इसने हिंसा तो कोई नही की । वकील ने कहा  यह लेख लिख कर आदिवासियो को उन पर हुये अत्याचार और शोषण  समझाता है उनके जंगलो के राष्ट्रीयकरण और उनको इमारती लकड़ी के बागानो मे बदलने की सच्चाई बताता है । यह जानकर आदिवासी सरकार विरोधी होकर नक्सलवादियो के साथ  पुलिस पर हमला करते हैं ।  हिंसा भड़काने का आरोप तो निश्चित साबित होता है हुजूर । इस पर जज ने कहा देश मे अभिव्यक्ती का अधिकार सभी को है और फ़िर यह झूठ भी तो नही कहता है । अब मुझे तुम नक्सली साहित्य मिलने की कहानी नही बताना वो तो तुम्हारा बस चले तो मेरे पास से भी जप्ती दिखा दोगे ।  नही मै इस बेगुनाह को सजा नही दे सकता यह कह कर जज ने अपनी कलम नीचे रख दी ।


असहाय जज को सरकारी वकील ने करूणामयी आंखो से देखकर कहा  माननीय आपको विचलित होने की जरूरत नही है । अपराधी सिस्टम के विरुद्ध है ब्राह्मण कुल मे जन्म लेने के बाद भी दिन भर आदिवासी आदिवासी भजता रहता है। हमने इससे कहा कि लेख लिखो लेकिन केवल यह पांच लाईने लिखना छोड़ दो पर यह नही माना । इसे अच्छी शिक्षा मिली थी आराम से सरकारी नौकरी कर सकता था  ठेकेदारी या दलाली  कर के भी यह सिस्टम का फ़ायदा उठा सकता था यहां तक कि सरकार ने इसके उद्योग मे किसी भी अफ़सर को जाने से मना कर दिया था कि यह खूब पैसा कमाये और चुपचाप बैठे पर यह आदतन अपराधी है बाज नही आता और लिखना बंद नही करता पर अब यह नही बचेगा । मैं आपको एक संशोधित दोहा सुनाता हूं इससे आपको समझ मे आ जायेगा ।

सुनु मनुष्य कहउँ पन रोपी । बिमुख सिस्टम त्राता नहिं कोपी ॥
संकर सहस बिष्नु अज तोही । सकहिं न राखि सिस्टम कर द्रोही ॥



आप इसे आज छोड़ देंगे लेकिन सिस्टम नही छोड़ेगा सच्चे/झूठे सबूत जुटा कर देर सवेर इसे काल कॊठरी मे जाना ही है और नही तो इसकी सुपारी भी दी जा सकती  है । इसलिये हे न्याय शिरोमणी इसे सजा दीजिये । लेकिन जज के कंधे झुके हुये थे उसने कहा नही इसके छोटे छोटे बच्चे हैं मै यह पाप नही कर सकता । अगर जज होने पर मुझे बेगुनाह परिवारो को तकलीफ़ देनी पड़े तो इससे तो अच्छा मैं कोई और काम करके जीवन यापन कर लूंगा । मै अपने ही देशवासी  के साथ अन्याय नही कर सकता ।


अवसाद और शोक से ग्रस्त जज को देखकर वकील ने कहा हे न्यायप्रिय लो मैं तुम्हे दिव्यद्रुष्टी प्रदान करता हूं । देखो मुझे मैं स्वयं सिस्टम हुं । मैं ही कीचड़ के बीच कमल  बना फ़िरता  प्रधानमंत्री भी हू और और फ़ाईल सरकाने वाला चपरासी भी मैं ही  हूं । चापलूसी कर बना राष्ट्रपति भी मैं हूं और मै ही सिस्टम से बाहर जाकर आरोप लगाने पर माफ़ी मांगता विपक्ष का नेता  हूं । घूस खाकर जमीर बेचता नेता मै ही हूं और   जूठन खोजता कार्यकर्ता भी मैं ही हूं ।  मैं ही जमीने बेचता कलेक्टर भी हूं और  जमीने नापता  पटवारी भी ।मै ही घटिया  निर्माण करवाने वाला अभिंयंता भी हूं और मै ही करने वाला ठेकेदार भी । मैं ही सड़क पर खड़ा पैसा खाता हवलदार भी हूं और  स्विस बैंको मे पैसा जमा कराता सेनाध्यक्ष भी । मै ही पेड न्यूज छापते अखबार का मलिक  हूं  और  आफ़िस आफ़िस घूम कर चंदा मांगता पत्रकार भी मैं ही हूं । मैं ही घूस खाने वाला राजा भी हुं और खिलाने वाली प्रजा भी । भ्रष्टाचार करता अधिकारी भी मै हूं और उसकी जांच करने वाला अफ़सर भी मैं हूं । लोकतंत्र , तानाशाही हो या कम्युनिस्म काम मै ही करता हूं । जो मेरी सीमा मे रहता है उसका कॊई  बाल भी बांका नही कर सकता । इस कलिकाल मे मै ही राम हूं और मै ही महादेव भी मैं ही हूं  इसलिये प्रिय सुनो



सर्व धर्मान परित्यज्य मामेकं शरणं जजः ।

अहं त्वा सर्व पापेभ्यो मोक्षिष्यामी मा शुचः ।


भगवान सिस्टम के उस दिव्य रूप को देख और दिव्य वाणी कॊ सुन भय जनित श्रद्धा और अद्वितीय ज्ञान युक्त
जज ने तुरंत मुझे आजीवन कारावास की सजा सुना दी ।


सजा सुनते ही मैं बेहोश होकर  गिर गया आंखे खुली तो देखा बिस्तर के नीचे पड़ा था सामने पत्नी का चेहरा था एक दम अष्टमी की दुर्गा की तरह कपाल खप्पर लिये बोल रही थी दिन मे तो चैन से जीने नही देते रात मे भी आदिवासी जज भगवान वकील बड़बड़ा रहें हैं है जरूर किसी आदिवासी लड़की से टांका फ़िट हो गया है हे भगवान इस आदमी से शादी कर के मेरी जिंदगी झटक गयी है । हालांकि मैं आपसे सहमत हूं कि ऐसा लेखन ठीक नही पर क्या करूं राष्ट्रगान सुनते ही बिना लिखे रुका नही जाता ।

Wednesday, February 23, 2011

मरता किसान लाचार भगवान









सड़क मार्ग से धरती भ्रमण करते हुये,  माता पार्वती को एक घर से रोने पीटने की आवाज सुनाई दी। उन्होने भगवान शिव से पूछा- "प्रभू इस घर में क्या हुआ है।" पहले तो भोलेनाथ ने बात को टालने का भरसक प्रयत्न किया। पर उपाय न देख बोले - " इस घर के मुखिया ने, फ़सल बरबाद हो जाने के कारण आत्महत्या कर ली है।"  पार्वती जी ने विचलित हो प्रभु से कहा-  "ये तीन मासूम बच्चे अनाथ हो गये। उसकी बूढ़ी मां देखो तो कैसे तड़प रही है। पत्नी को तो होश ही नहीं- "हे कृपा के सागर महादेव,  इस आदमी को फ़ौरन जिंदा कीजिये।" प्रभु ने जवाब दिया- "प्रिये यह नही हो सकता।"  पार्वती जी गुस्से में आकर बोलीं- "क्यों नही हो सकता। आप स्वयं देवाधिदेव महादेव हैं। देखिये वो साधु चला आ रहा है। माया से उसके द्वारा इसे जिन्दा कर दें।"  भगवान ने कहा - "प्रिये बात समझो, ये कपटी साधु है। अगर मैने यह कर दिया, तो वह संत बन जायेगा।  जीवन भर आस पास के गांवो की बहू बेटियों कॊ गर्भवती करता फ़िरेगा। पाखंड करेगा सो अलग, इससे धर्म का नाश होगा।" माता ने कहा - "फ़िर इसे आप ऐसे ही जिंदा कर दें।"  भोलेनाथ बोले- "यह भी नही हो सकता। इसका पोस्टमार्टम हो चुका है।" माता ने कहा- "मुझे कुछ नही पता, आप इसे जिंदा करे बस।"


प्रभू ने गुस्से से माता को डांटना चाहा। लेकिन अचानक सामने महिला थाना के बोर्ड पर उनकी नजर गयी। नंदी ने भी पूछ हिलाकर उनको सतर्क किया कि इस बार माता की बात मानना ही होगा। अब प्रभू ने स्पष्ट जवाब दिया- प्रिये इसे हम  जिंदा कर भी दें तो भी यह बार बार आत्महत्या करेगा।  इसकी फ़सले बर्बाद होना ही हैं । इसकी जमीन उपजाऊ नही रही। इसकी फ़सलो में कीड़े लग जाते हैं। मौसम का समयचक्र बदलने से बेमौसम वर्षा या सूखा पड़ जाता है। इस पर माता ने कहा- "प्रभु ये सब समस्याएं तो आप चुटकी में दूर कर सकते हैं। फ़िर इसे आत्महत्या नही करनी पड़ेगी । प्रभु ने कहा- "प्रिये क्या आपने गीता नही पढ़ी।  अगर ईश्वर बिना कर्म किये ही सब कुछ कर दे। तो महाभारत ही क्यों होती। स्वयं कृष्ण ही पल भर में सारे कौरवों का नाश कर देते। और तो और इससे भीष्म और कर्ण जैसी महापुरूष का वध भी न होता ।


पर परम करूणामयी माता कहां मानने वाली थी। उन्होने कहा- "आप भी पांडव जैसे माध्यम से इस किसान की कौरवरूपी पीड़ा का शमन करें। जटाशंकर ने उदास भाव से जवाब दिया- "यही तो समस्या की जड़ है। मानव ने खेतो में कीटनाशक डाल।  बुरे कीटो के साथ साथ फ़सल मित्र कीटो का भी नाश कर दिया। उससे वे केचुए भी मारे गये। जो भूमी को पोला रखकर उसे उपजाउ बनाते थे । इसने मेड़ से सारे पेड़ काट कर उनकी पत्तियो से मिलने वाली प्राकृतिक खाद को खत्म कर दिया। और उन पक्षियो को भी उजाड़ दिया जो कीटो से इसकी फ़सल की रक्षा करते थे। इसने उन सब प्राणियो को मार दिया जो फ़सल से कुछ हिस्सा लेकर अपने मल से जमीन को उर्वर रखते थे। अब तो इन मूर्खो ने खेतो में शौच करना भी बंद कर दिया है। अब जब मल और पत्तियो की खाद नही मिलेगी तो जमीन की उर्वरता बनी रहेगी कैसे। इसने निर्झर बहती नदियो पर बांध बना दिये हैं। जब बाढ़ अपने साथ  नयी मिट्टी लायेगी नही। तो मै इसकी जमीन को उपजाउ बनांउ कैसे । इंसानो ने अंधाधुंध प्रदूषण फ़ैला कर मेरी बनाई हुई इस खूबसूरत धरती के प्राकृतिक संतुलन कॊ बिगाड़ दिया है। ऐसे मे समय पर वर्षा कराउ कैसे और असमय होने वाली बरसात रोकूं कैसे।  पहले अकाल से परेशान किसान जब मेरी अराधना करते थे। तो मै प्रसन्न होकर प्राकृतिक शक्तियों के माध्यम से उनकी पीड़ा दूर कर देता था, अब  मेरे हाथ बंधे हुये हैं । बात को समझिये  देखो यदी ये महिला थाना ही न हो। तो कोई पत्नी क्या अपने पति की पिटाई कर सकेगी ।


लेकिन ममतामयी माता  कहां मानती, बोलीं अच्छा- "आप उसको जिन्दा नही कर सकते। उसके परिवार के लिये तो कुछ कीजिये। किसी नेता मंत्री को इनके घर की राह दिखा सरकारी योजना का लाभ दिलावाईये।" भगवान महादेव ने कहा- "प्रिये, उससे भी कुछ होना जाना नही है। याद नही राहुल गांधी एक कलावती के इसी तरह विधवा होने पर उसके घर गये थे। ढेरो वादे किये गये थे, क्या हुआ?  कुछ समय पहले उसी कलावती के दामाद ने भी इसी तरह फ़सल बरबाद होने पर आत्महत्या कर ली है।" इतना सुनते ही माता ने गुस्से में आकर कहा- "आपको  करना धरना कुछ है नही  बहाने बस बनवा लो आपसे। ठहरिये मैं ही उन बेचारो के यहां हीरे जवाहरात से भरी मटकी रख आती हूं।" भगवान शंकर ने माता को बलपूर्वक रोकते हुये कहा- "क्या कर रही हो,  ऐसा मत करो। इनके घर में ये सब मिलेगा। तो थानेदार पकड़ लेगा। पैसा गया अलग, बेचारी की अस्मत लुट जायेगी सो अलग। माता ने कहा- "ऐसा कुछ नही होगा मैं स्वयं उसकी रक्षा करूंगी।" अब शंकर जी ने बड़े स्नेह पुर्वक समझाया- "प्रिये आपकी करूणा संसार में अद्वितीय है। पर बात को समझो। इनको इतना पैसा मिल जायेगा। तो ये भी बड़े महल बनायेंगे, बड़ी गाड़ियो में घूमेंगे। एसी में रहेंगे,  इससे प्रदूषण और फ़ैलेगा। क्या आप चाहती हैं कि  और २० किसान आत्महत्या करें?"  माता ने संयत होते हुये कहा- "नही नही मै ऐसा नही चाहती।" इस पर शंकर जी ने विजयी मुद्रा मे नंदी की ओर देख  आंख मारी। फ़िर गंभीर होते हुये माता से कहा- "सुनो प्रिये मैं इस किसान के तीनो बच्चो को वरदान देता हूं कि वे तीनो बड़े होकर महापुरुष बनेंगे।  इस धरा पर हो रहे विनाश को रोक, इस धरती पर पुनः प्रकृती की छ्टा बिखेर  मानव जाति का भविष्य सुरक्षित करेंगे। और जब तक इस धरा कि आयु शेष रहेगी। तब तक उनका नाम सदैव आदर से लिया जायेगा। यह सुनते ही हर्षित  माता ने तुरंत भगवान के डिनर के लिये उनके मनपसंद पकवान बनाने के लिये कैलाश का रूख किया और शिवजी ने चैन की लंबी सांस ली ।



Saturday, February 12, 2011

और अमीर आदिवासी गरीब हो गया --- राजा से रंक बनने का दुखद सफ़र

                     TRIBAL PROTESTING AGAINST  DEFORESTATION FOR DAM                          
आदिवासी के साथ अमीर शब्द शायद फ़िट नही होता और हो भी कैसे खामखां सरकारें अमीर आदमी के हितो को ध्यान मे रखते हुये योजनाएं तो नही बनाती नौकरी मे आरक्षण ,खेती के लिये कम ब्याज पर पैसे, घर बनाने मे मदद, मुफ़्त शिक्षा , मुफ़्त शौचालय शादी पता नही क्या क्या ।  नौबत यहां तक है कि पहले बच्चे बाप से पूछते थे कि आप अमीर क्यों नही हो अब पूछते हैं कि आप आदिवासी क्यों नही हो ।

आज हद तब हो गयी जब मेरे बड़े लड़के ने स्कूल से घर आते ही डेटाल की मांग की मेरे पूछने पर जवाब मिला कि कुछ unhygienic आदिवासी बच्चे कक्षा मे भरती हो गये हैं और मैडम ने कहा है कि अब हमे इनके साथ जीना सीखना होगा और रोज घर जा के डेटाल से बाडी वाश करना होगा यह सुनते ही मेरा माथा ठनका अरे महिने के ३ हजार रूपये जमा करने के बाद रोज डेटाल का नया खर्चा । खैर बाद मे  मामला समझ मे आया कि उच्चतम न्यायालय के निर्देशो के अनुसार हर स्कूल मे गरीबो को भी जगह देना होगा हांलाकी नियम पहले से था पर लागू अभी हो रहा है ।



बेटे ने पूछा कि पापा ये आदिवासी क्या होता है उनके बच्चो की फ़ीस सरकार क्यो भरेगी और ये गरीब क्यों है । ये सुनते ही मेरे मन मे वो पल घूमने लगे जो मैने  आदिवासियों के साथ बिताये थे क्या सुखमय जीवन था उनका सुबह जंगल मे पहुचते ही पेड़ की डाली पकड़ी और पहुच गये पेड़ के उपर फ़टाफ़ट लाल चीटे का छता तोड़ा चिड़ियाओ के अंडे एकत्रित किये य फ़ंदा लगाकर चिड़िया या मछली पकड़ ली इसके अलावा जंगल मे फ़ल और कंदमूल एकत्र किया ११ बजे तक घर फ़िर क्या महुआ या सल्फ़ी की मदिरा का सेवन चालू कोदो *  और जंगल से लायी हुई  सामग्री का भोजन । कपड़े नमक आदि की आवश्यकता हुई तो वनोपज एकत्र किया और उसके बदले मे सामान ले लिया ।


जंगल से उनके भोजन लेने का अर्थ यह नही था कि पर्यावरणतंत्र को नुकसान पहुचाना बल्की हजारो सालो से वे उतना ही लेते थे जिससे जंगल बांझ न हो जाये । उन आदिवासियो के स्निग्ध सुंदर कांतिमान त्वचा  शुद्ध मन और सीधे बोल यह उन जन जातियो का व्यह्वार था जिन्हे हम आज आदिवासी कहते हैं । Tribes and cast of central India के लेखक ने लिखा है कि मंडला जिला न्यायालय मे जब एक बैगा की गवाही की सत्यता पर जब सवाल उठा तो तत्कालीन जिलाधीश ने खड़े होकर कहा कि यह गवाह बैगा है और बैगा कभी झूठ नही बोलता ।  झूठ  बोलना भी क्यों जो एक को उपलब्ध है वो हर किसी  का है । हर कोई जंगल मे जाकर अपना पेट भर सकता है  घर भी ऐसे जो पूर्ण प्राक्रुतिक चीजो से महज तीन दिनो मे बन जाये और छोड़ दिये जाने पर कुछ ही समय मे प्रक्रुती मे समाविष्ट हो जाये बड़े इतने जितना रहने के लिये आवश्यक हो दिखावे के लिये नही और कोई ऐसा बन्धन भी नही है जो एक को बड़ा और दूसरे को छोटा बनाये ।


मेरी नजर मे इन आदिवासियों से अमीर कोई नही था और आज इनसे गरीब भी कोई नही है । जब तक ये अपने मूल पर्यावास मे थे तब तक ये अमीर थे और आज हमारे द्वारा तबाह किये पर्यावास मे ये भिखारी से कम नही । कारण है वो अर्थतंत्र जिसके डा मनमोहन सिंग आज प्रवर्तक हैं और जो अंग्रेजो के समय से लागू है । इस अर्थतंत्र का जन्म ही उच्चवर्ग के भोगविलास के लिये बना था अमीरो के बड़े महलो के लिये उच्च गुणवत्ता की इमारती लकड़ी चाहिये थी वही रेलवे स्लीपर के लिये और फ़र्नीचर के लिये भी । पर अमीरो की जमीनो पर तो कारखाने खदान और खेत थे और वनवासियों के जंगल मे फ़ल और फ़ूलदार पेड़ । आदिवासी तो छल कपट जानते नही थे और वे यह भी नही जानते थे कि उनके जिन जंगलो को इमारती लकड़ी के बागानो मे बदला जा रहा है वे  उसकी जीवन रेखा हैं आखिर जिस बच्चे का पेट भरा हो वो भोजन की अहमियत क्या जाने । बस क्या था शासको ने इनके जंगल काट दिये लगा दिये मनचाहे इमारती लकड़ी के पेड़ जिस दिन से ये जंगल बदल गये उसी दिन से आदिवासियो और वन्यप्राणियो का बुरा समय शुरू हो गया । हालांकि जंगल अब भी थे चाहे इमारती लकड़ियो के पर अब उनमे भोजन नही था साधन थे साल के पत्तो से थाल और दोने बनाओ या बांस से टोकरी बेचना बाजार मे ही है और मिलना उसके बदले पैसा ही है यही पैसा इस अर्थतंत्र का पहला चारा है विवेकानंद के शब्दो मे कहें तो माया का पहला पासा इस पासे के बाद आदिवासी आदिवासी न रह कर इस आर्थिक पिरामिड के निम्नतम स्तर का प्यादा बन जाता है  बाजार मे बेचना और बाजार से लेना और यहीं राज्य सत्ता आदिवासी जीवन मे प्रवेश करती है याने सीधे सीधे भोजन न पाओ बल्की अर्थव्यवस्था के अंदर आओ माल बेचो पैसा लो और उसी पैसे का भुगतान कर खाना दवाई  तेल विटामिन ये सब आयेगा पर सीधे पेड़ से नही अर्थतंत्र से और इसी अर्थतंत्र से ये अछूते थे और इस अर्थतंत्र मे सफ़ल होने के लिये बेहद जरूरी मक्कारी की इनमे वंशानुगत कमी थी । इस खेल मे पारंगत होने मे इनकी दसियो  पीढ़िया गुजर जायेंगी । आखिर ये खेल सदियो पुराना है इसके नियम भी तेढ़े मेढ़े है इसने पसीने से नही कलम चलाने से तरक्की होती है धोखा देना झूठ बोलना बेईमानी चापलूसी ये सब न केवल सीखना है बल्की इनमे पारंगत होना है और उनको उदाहरण भी दिये जाते हैं कि भाई आखिर प्रतिभा देवी पाटिल बर्तन मांज कर और खाना बनाकर  राष्ट्रपती बनी ना ।

अब सवाल यह है कि इस अर्थतंत्र को इनके आरक्षण और अन्य सुविधावो की सूझी कैसे इसका जवाब आसान है कभी इतना अत्याचार न करो कि विद्रोह हो जाये गुलामो का पेट भरा हुआ होना चाहिये और अगली पीढ़ी के गुलामो को प्रोटीन विटामिन न मिलेगा तो वे स्वस्थ सेवक बनेंगे कैसे और जैसे जैसे नक्सलवाद बढ़ता जा रहा है वैसे वैसे लुभावने वादे भी बढ़ते जा रहे हैं कुछ को पूरा भी किया जा रहा है पर इनके जंगलो को मूल रूप मे वापस लाने की बात कोई नही कहेगा क्यों  भई जब सीधे पेड़ से खाना मिलेगा तो कौन बेवकूफ़ हमारे यहां मजदूर बनने आयेगा । इसलिये हे आदिवासी तुझे आरक्षण से लेकर सब सुविधाये मिलेंगी  ताकि झुनझुना भी रहे और आदिवासी जहां हमने पहुचाये हैं वही रहे निचले पायदान पर । वैसे भी जब आरक्षण का जिन्न पैदा हुआ था तब ही इस शासनतंत्र ने कुछ मुहलगी  जातियो को आदिवासियो मे शामिल कर लिया था ।



* कोदो वही अनाज है जो आज बासमती से ३ गुना दाम मे बिक रहा है  कभी इसे गरीबो का निक्र्ष्ट भोजन समझा जाता था पर ताजा शोध परिणामो के अनुसार यह ह्रुदय और स्वास्थ्य के लिये सर्वोत्तम अनाज है ।

Thursday, February 3, 2011

Trans-location of tigers

                             






Trans-location is the most controversial issue  in tiger conservation today . After death of a trans-located tiger in Sariska wildlife activist are not only agitated but they want to to stop it for ever . Few with more liberal approach towards it are saying it should be stopped until proper studies are conducted . Forest department of various states are eager to continue doing so but they are not saying why this should be done . Let us analyze process of Trans location and its need and methods required .



First of all we must see why trans-location is required . As a simple wildlife lover i have visited lots of forest without being involved in any n g o  or govt organization  I also can not claim to be an expert of the subject as i have no academic background . But even as a layman i can correlate number of tigers with quantity of food available and as no efforts are being made to improve the quality of habitat number of tigers which any forest can sustain will remain the same or will reduce as much  as the habitat deteriorates .New born tigers will have only two options either move the existing tiger out or go out of protected area . Chance of first option is few and far between and in second option death is almost certain except highest luck involved tigers won't survive outside .



This process is continuous and is operating from evolution of life on earth but in the context of tigers this has become complex  as tigers are on the  top of our pyramid we can not let tigers to become  extinct . If we lose tigers our own existence will come under threat . But in some part of protected areas tiger has became extinct so modern people like us have discovered an idea to translated the tigers from tiger rich grounds to tiger less areas . In first thought it looks great and correct but there are flaws in it too .Flaws are not in idea of trans-location but flaws can occur when this idea is implemented .




Trans-location is not new for carnivores as they required an independent area to sustain and they do not tolerate others in the area so  the new born and some times adults have to relocate to other areas . So for selecting the tiger for trans-location is very important this is where first mistake was done . By choosing the tigress of Indri ghati in Kanha they relocated a established female which had successfully raised her litters when her 2 year old female cubs were available (the new cubs had to move away in any case and cubs have better adaptability then grown ups in any specie )  F.D. was not looking for her but when they failed to locate desired tigress the took her but in the end  another female from Nakati ghati has taken over her area so established female is gone and gone with  her  life of her cubs too (this information is unverified )
. In another case a male tiger which had an established territory was moved out from Ranthamabore females which were sired  by him had only one option i e to move out of area and it  is because of few guys like Dharmendra khandal and Aditya (dicky) singh she and her cubs have survived yet .  But we are not discussing real problem yet real problems lies in areas which became tiger-less

When we talk about Panaa and Sariska  first thing we feel is pain second thing we feel is anger which is directed upon those who were in charge of the project .  But like every govt servant they have an excuse I took charge this year only , we do not know how many tigers were left by previous director but question is not simple and answer is not simple either whoever is involved in tiger conservation  simply knows that to have a tiger in any area  the area needs a self sustaining herbivorous  population . When ever habitat is degraded number of herbivores declines and with it increases the number of human tiger conflict . In absence of normal pray tigers tend to rely on cattle's and there is another point involved whenever a tiger kills a cattle villager act wrongly they disturb the tiger and deprive it of its food in turn tiger kills another and matter worsens . There is a natural aspect too Indian cattle's like their wild kin's have tendency to group together against tiger attack and tiger in turn kills more then 1 cattle at a time . In Chaparawa Achanakmar national park  i have seen tiger killing 7 buffalo's in single attack and have heard same thing happened in Panna  . This kind of killing changes attitude of villagers towards tiger . It dose not matter what previous perception was but after this hole village and some times community turns hostile against tiger and no 1 informs the F.D, about poaching  or tiger deaths lower level forest staff too is part of the community and will not willingly oppose the sentiments .


Forest officials in charge of Panna and Sariska were not simply guilty of hiding tiger deaths they overlooked the destruction of habitat they overlooked the grazing of cattle's which depleted the grass and shrubs . Even when tiger numbers were going down they ignored the warning calls given by conservationist s and stopped them from entering  into park . Why this happened it happened as they are trained to think of conservation as stopping of poaching and tree failing is their work they are  not aware of habitat and ecological balance  and its importance they simply assume if we have this much land we can have this much tigers they do not correlate tiger numbers with availability of food  . Improvement of habitat is beyond there imagination why as it is moneyless and thankless job  .They also form tendency to assume  that opinion of those  is nuisance which talk against them or their wishes they simply take them for people who want money from them and treat them like mosquitoes


So when we  want to  shift some tigers in tiger-less area's  like Sariska what we must look for ?  Has any thing changed before they are to be transferred no situation remains the same habitat is poor as before claims are unpaid even if they are paid amount is very low and requires bribe  to get it . I was not surprised when i heard villagers of the village near which st1 was poisoned distributed sweets to celebrate its death . I also agree these guys are not so simple and there are bad ones too but what would you do if a tiger has became dependent solely on your village cattle's and you are not getting any compensation u would do the same thing which they did



So whenever we plan for relocation we must know only young tigers should be relocated as it is natural for them and it will not effect the natural balance . We must prepare the area first we must form  a mechanism to compensate for tiger kills and this process should be such that not  even a single true claim  remains unpaid . habitat must be improved before the shifting only grass lands are not good enough we must change trees in to fruit and flower bearing tree's  .And there is work to do after the trans-location too the enclosure for acclimatisation  should not be less then 1 sq km it may look very big expenditure to some but if Raja can have that much money tigers too deserve a few . To give this much area means tiger will certainly scent mark it and when ever a tiger claims an area it will not leave it until pushed . Being a lay man i have written a lot and beyond my knowledge but this is how i feel . Thanks and spread this message to others if u agree with me no matter under what name you publish the message but perception must change