सड़क मार्ग से धरती भ्रमण करते हुये, माता पार्वती को एक घर से रोने पीटने की आवाज सुनाई दी। उन्होने भगवान शिव से पूछा- "प्रभू इस घर में क्या हुआ है।" पहले तो भोलेनाथ ने बात को टालने का भरसक प्रयत्न किया। पर उपाय न देख बोले - " इस घर के मुखिया ने, फ़सल बरबाद हो जाने के कारण आत्महत्या कर ली है।" पार्वती जी ने विचलित हो प्रभु से कहा- "ये तीन मासूम बच्चे अनाथ हो गये। उसकी बूढ़ी मां देखो तो कैसे तड़प रही है। पत्नी को तो होश ही नहीं- "हे कृपा के सागर महादेव, इस आदमी को फ़ौरन जिंदा कीजिये।" प्रभु ने जवाब दिया- "प्रिये यह नही हो सकता।" पार्वती जी गुस्से में आकर बोलीं- "क्यों नही हो सकता। आप स्वयं देवाधिदेव महादेव हैं। देखिये वो साधु चला आ रहा है। माया से उसके द्वारा इसे जिन्दा कर दें।" भगवान ने कहा - "प्रिये बात समझो, ये कपटी साधु है। अगर मैने यह कर दिया, तो वह संत बन जायेगा। जीवन भर आस पास के गांवो की बहू बेटियों कॊ गर्भवती करता फ़िरेगा। पाखंड करेगा सो अलग, इससे धर्म का नाश होगा।" माता ने कहा - "फ़िर इसे आप ऐसे ही जिंदा कर दें।" भोलेनाथ बोले- "यह भी नही हो सकता। इसका पोस्टमार्टम हो चुका है।" माता ने कहा- "मुझे कुछ नही पता, आप इसे जिंदा करे बस।"
प्रभू ने गुस्से से माता को डांटना चाहा। लेकिन अचानक सामने महिला थाना के बोर्ड पर उनकी नजर गयी। नंदी ने भी पूछ हिलाकर उनको सतर्क किया कि इस बार माता की बात मानना ही होगा। अब प्रभू ने स्पष्ट जवाब दिया- प्रिये इसे हम जिंदा कर भी दें तो भी यह बार बार आत्महत्या करेगा। इसकी फ़सले बर्बाद होना ही हैं । इसकी जमीन उपजाऊ नही रही। इसकी फ़सलो में कीड़े लग जाते हैं। मौसम का समयचक्र बदलने से बेमौसम वर्षा या सूखा पड़ जाता है। इस पर माता ने कहा- "प्रभु ये सब समस्याएं तो आप चुटकी में दूर कर सकते हैं। फ़िर इसे आत्महत्या नही करनी पड़ेगी । प्रभु ने कहा- "प्रिये क्या आपने गीता नही पढ़ी। अगर ईश्वर बिना कर्म किये ही सब कुछ कर दे। तो महाभारत ही क्यों होती। स्वयं कृष्ण ही पल भर में सारे कौरवों का नाश कर देते। और तो और इससे भीष्म और कर्ण जैसी महापुरूष का वध भी न होता ।
पर परम करूणामयी माता कहां मानने वाली थी। उन्होने कहा- "आप भी पांडव जैसे माध्यम से इस किसान की कौरवरूपी पीड़ा का शमन करें। जटाशंकर ने उदास भाव से जवाब दिया- "यही तो समस्या की जड़ है। मानव ने खेतो में कीटनाशक डाल। बुरे कीटो के साथ साथ फ़सल मित्र कीटो का भी नाश कर दिया। उससे वे केचुए भी मारे गये। जो भूमी को पोला रखकर उसे उपजाउ बनाते थे । इसने मेड़ से सारे पेड़ काट कर उनकी पत्तियो से मिलने वाली प्राकृतिक खाद को खत्म कर दिया। और उन पक्षियो को भी उजाड़ दिया जो कीटो से इसकी फ़सल की रक्षा करते थे। इसने उन सब प्राणियो को मार दिया जो फ़सल से कुछ हिस्सा लेकर अपने मल से जमीन को उर्वर रखते थे। अब तो इन मूर्खो ने खेतो में शौच करना भी बंद कर दिया है। अब जब मल और पत्तियो की खाद नही मिलेगी तो जमीन की उर्वरता बनी रहेगी कैसे। इसने निर्झर बहती नदियो पर बांध बना दिये हैं। जब बाढ़ अपने साथ नयी मिट्टी लायेगी नही। तो मै इसकी जमीन को उपजाउ बनांउ कैसे । इंसानो ने अंधाधुंध प्रदूषण फ़ैला कर मेरी बनाई हुई इस खूबसूरत धरती के प्राकृतिक संतुलन कॊ बिगाड़ दिया है। ऐसे मे समय पर वर्षा कराउ कैसे और असमय होने वाली बरसात रोकूं कैसे। पहले अकाल से परेशान किसान जब मेरी अराधना करते थे। तो मै प्रसन्न होकर प्राकृतिक शक्तियों के माध्यम से उनकी पीड़ा दूर कर देता था, अब मेरे हाथ बंधे हुये हैं । बात को समझिये देखो यदी ये महिला थाना ही न हो। तो कोई पत्नी क्या अपने पति की पिटाई कर सकेगी ।
लेकिन ममतामयी माता कहां मानती, बोलीं अच्छा- "आप उसको जिन्दा नही कर सकते। उसके परिवार के लिये तो कुछ कीजिये। किसी नेता मंत्री को इनके घर की राह दिखा सरकारी योजना का लाभ दिलावाईये।" भगवान महादेव ने कहा- "प्रिये, उससे भी कुछ होना जाना नही है। याद नही राहुल गांधी एक कलावती के इसी तरह विधवा होने पर उसके घर गये थे। ढेरो वादे किये गये थे, क्या हुआ? कुछ समय पहले उसी कलावती के दामाद ने भी इसी तरह फ़सल बरबाद होने पर आत्महत्या कर ली है।" इतना सुनते ही माता ने गुस्से में आकर कहा- "आपको करना धरना कुछ है नही बहाने बस बनवा लो आपसे। ठहरिये मैं ही उन बेचारो के यहां हीरे जवाहरात से भरी मटकी रख आती हूं।" भगवान शंकर ने माता को बलपूर्वक रोकते हुये कहा- "क्या कर रही हो, ऐसा मत करो। इनके घर में ये सब मिलेगा। तो थानेदार पकड़ लेगा। पैसा गया अलग, बेचारी की अस्मत लुट जायेगी सो अलग। माता ने कहा- "ऐसा कुछ नही होगा मैं स्वयं उसकी रक्षा करूंगी।" अब शंकर जी ने बड़े स्नेह पुर्वक समझाया- "प्रिये आपकी करूणा संसार में अद्वितीय है। पर बात को समझो। इनको इतना पैसा मिल जायेगा। तो ये भी बड़े महल बनायेंगे, बड़ी गाड़ियो में घूमेंगे। एसी में रहेंगे, इससे प्रदूषण और फ़ैलेगा। क्या आप चाहती हैं कि और २० किसान आत्महत्या करें?" माता ने संयत होते हुये कहा- "नही नही मै ऐसा नही चाहती।" इस पर शंकर जी ने विजयी मुद्रा मे नंदी की ओर देख आंख मारी। फ़िर गंभीर होते हुये माता से कहा- "सुनो प्रिये मैं इस किसान के तीनो बच्चो को वरदान देता हूं कि वे तीनो बड़े होकर महापुरुष बनेंगे। इस धरा पर हो रहे विनाश को रोक, इस धरती पर पुनः प्रकृती की छ्टा बिखेर मानव जाति का भविष्य सुरक्षित करेंगे। और जब तक इस धरा कि आयु शेष रहेगी। तब तक उनका नाम सदैव आदर से लिया जायेगा। यह सुनते ही हर्षित माता ने तुरंत भगवान के डिनर के लिये उनके मनपसंद पकवान बनाने के लिये कैलाश का रूख किया और शिवजी ने चैन की लंबी सांस ली ।
badhiya
ReplyDeletemaja aa gai:-) superb!!!! un comparable!!!! this writing has touched the feelongs of reader!!keep it up Dave ji...please create more n more such type of writings!!
ReplyDeleteसचमुच मज़ा आ गया. बहुत अच्छी कहानी है.
ReplyDeleteजो भी प्रकृति को छेड़ेगा उसका नाश निश्चित ही होगा, इंसान कब समझेगा इस बात को. लेकिन ये कहावतें एकदम सही है " जो बोया है वही काटोगे, गेंहू के साथ घुन पिसता है" आदि आदि ना जाने कितनी.
arunesh ji vakai samvedanshilta aur satya se ukt ye lekh hai kash log ise samajh sake.
ReplyDeletegood one.. :)
ReplyDeleteकथा का बेहतरीन ताना-बाना. शुभागमन...!
ReplyDeleteहिन्दी ब्लाग जगत में आपका स्वागत है, कामना है कि आप इस क्षेत्र में सर्वोच्च बुलन्दियों तक पहुंचें । आप हिन्दी के दूसरे ब्लाग्स भी देखें और अच्छा लगने पर उन्हें फालो भी करें । आप जितने अधिक ब्लाग्स को फालो करेंगे आपके अपने ब्लाग्स पर भी फालोअर्स की संख्या बढती जा सकेगी । प्राथमिक तौर पर मैं आपको मेरे ब्लाग 'नजरिया' की लिंक नीचे दे रहा हूँ आप इसके दि. 18-2-2011 को प्रकाशित आलेख "नये ब्लाग लेखकों के लिये उपयोगी सुझाव" का अवलोकन करें और इसे फालो भी करें । आपको निश्चित रुप से अच्छे परिणाम मिलेंगे । शुभकामनाओं सहित...
http://najariya.blogspot.com
kya baat hai dost maza aa gaya. kahani parh kar aur likhne ki shaili to kamaaal. bahut khoob. aur msg bhi bahut sahi dhang se pesh hua hai.
ReplyDeletesir ,how i can thx 2 u,shaayad ye aaj tak ka sabse badhiya samsamayik bolg hai,jo maine padhe hai uname,plz b cont.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति, आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा. कृपया संयुक्त परिवार में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे.
ReplyDeletehaish singh 07860754250
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अरुणेश जी आपने इस जीवंत चित्रण में बखियां उधेड़ दी हैं . आपने जिस मर्म को टटोल कर लिखा है, उसमें कोई भी पाठक गोता लगा सकता है . जरा संभलर लिखें . हा हा हा............ http://www.pcroy.blogspot.com/
ReplyDeleteहर हर महादेव
ReplyDeleteadwitiy....excellent writting keep it up ....
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