Thursday, September 13, 2012

हाय हिंदी हाय हाय हिंदी


बार में भाई दीपक भाजपायी बियर का घूंट भरते हुये बोले- " यार हिंदी के गिरते स्तर से मैं बहुत दुखी हूं। " बाजू में बैठे सोहन शर्मा उर्फ़ कांग्रेसी ने भी सहमति में सुर मिलाया।  हमने दाये बायें देख कहा - " मियां गजब करते हो,  कोई सुन लेता तो जान जाता कि आप दोनो एक ही थैली के चट्टॆ बट्टे हो।" दोनो ने एक सुर में जवाब दिया- "देश हित के मामलों में हम एक हैं।" हमने कहा - " वाह, हम तुरंत जाकर तमिलनाडु, केरल, आंध्रा जैसे राज्यों में जाकर सूचना दे देते हैं कि अब से काम हिंदी में ही होगा।  संसद में इस बात पर दो तिहाई बहुमत हो गया है।"  शर्मा कांग्रेसी ने तुरंत विरोध किया- " दवे जी, हमने हिंदी के स्तर को उपर उठाने की बात की है,  राज्यों मे हिंदी में काम करने की बात नही की है।"  हमने कहा - "मियां ये बात तुम्हारे बस में भी नही  है ,सिर्फ़ दीपक भाजपायी की पार्टी यह काम कर सकती है।"  

शर्मा जी भड़क गये -" बोले आप साबित कर के बताओ।" हमने कहा- "साबित कुछ नहीं करना है, ये लोग बोलते हैं कि जो भारत में रहता है वो हिंदू है, इसलिये जो भारत मे बोली जाती है वो हिंदी।  ये लोग मुस्लिम, इसाई, पारसी सब को हिंदू बोल सकते हैं तो कन्नड़, मलयाली और तमिल को भी हिंदी बोल सकते हैं। अब तो ये लोग हिंदू राष्ट्र का बड़ा वाला नक्शा भी बना लिये हैं। अब उर्दू, बर्मीस, थाई, सुमात्रन पता नही कितनी भाषायें हिंदी बन जायेगी। कांग्रेसी ऐसा उत्थान तो सौ जन्मो में भी नही कर सकते।"  दीपक भाजपायी भड़क गये- " दवे जी बात हिंदी  उत्थान की हो रही है और क्या क्या बड़बड़ा रहे हो, मुद्दे पर की बात करो। हमने कहा-  "भाई मेरे, बियर पीकर दुखी होने से तो हिंदी का उद्धार नही न होगा, यह होगा कैसे यह बताओ।"  शर्मा जी बोले - " हमारी सरकार ने राज कार्य में हिंदी भाषा के प्रयोग के लिये बहुत कुछ किया है। हमारी प्यारी मम्मी ने तो इटली की होने के बावजूद हिंदी में भाषण देना सीख लिया है।" हमने कहा- "शर्मा जी साठ साल हो गये भाषण पिलाते। आप तो बस स्विस बैंक में किस किस के खाते हैं यह सूची हिंदी में जारी कर दो ताकि आम आदमी पढ़ सके।" दीपक भाजपायी प्रसन्न हो कर बोले -"सही कहा दवे जी हम लोग हिंदी की शुद्धी को वापस लायेंगे और हिंदी को हिंदुस्तान की शान बनायेंगे।

" हमने कहा- " जाओ हिंद महासागर और अरब सागर के बीच दीवाल बनाओ पहले। दीपक भाजपायी बोले- "वो क्यों।"  हमने कहा- "भाई अरब सागर का पानी  हिंद महासाहर को दूषित कर रहा है कि नही। "  दीपक भाजपायी बोले- "यार आप बियर पीने के बाद बहक जाते हो,  पता नही क्या क्या बोलने लगते हो।" शर्मा जी ने बीच बचाव किया- "दवे जी बहस से क्या फ़ायदा, आप उपाय बताओ।" हमने कहा - "भाई किसी भी भाषा  का स्तर तभी उपर उठता है, जब उसमे नित नयी नयी उतकृष्ठ रचनाओ का निर्माण होता है। जिसे पढ़ने मे आम आदमी की रूचि जागती है। इस रूची से भाषा की मात्राओं और व्याकरण से भी आम आदमी परिचित होता है। दूसरी ओर भाषा तभी संमृद्ध होती है जब उसमें दूसरी भाषाओं के रोचक और वैज्ञानिक शब्दो का समावेश होता है। अब इसको भाषा का असमृद्ध होना बोलेगे तो फ़िर वही,  एक से एक कठिन शब्द जैसे रुद्धोष्म भित्ति, वेफशिकात्वीय तरंगें  का निर्माण करोगे। अव्वल तो विद्यार्थी इसका शब्दार्थ नही निकाल सकेगा सो रटन्तु विद्या का सहारा लेगा। और कालेज पहुंच गया तो फ़िर चारो खाने चित्त फ़िर अंग्रेजी के शब्द को समझो, रटो।"


   दीपक भाजपायी ने टांग अड़ाई - "दवे जी, अब आप तो यह भी कह दोगे कि उर्दू के शब्द भी मिला दो, आप तो हो ही क्षद्म  धर्मनिर्पेक्ष।  मौका मिला नही और पहुंच गये मुसलमानो को खुश करने।" हमने कहा- क्यों मिया उर्दू पैगंबर साहब ने बनाई थी कि मदीने में बैठ कर किसी ने लिखी थी।  भाई भाषा तो वही है, उसको पाकिस्तान में उर्दू बोले या हिंदुस्तान में हिंदी। पाकिस्तान के चैनल देखे होते तो पता चलता कि वहां प्रयोग होने वाले अधिकांश शब्द, मुहावरे  और व्याकरण तो पूरा हिंदी का हैं। भाषा बनाई नही जाती जनमानस जो बोलता है वह बन जाती है। उसमे सुधार साहित्यिक कृतियों से ही होता है, गायन से होता है। जगजीत सिंग को हिंदी सुर सम्राट कहते है कि उर्दू सुर सम्राट।  हिंदी फ़िल्में नही होती तो आज भी आधा देश हिंदी का ह नही जानता।" बात रिश्वत की तरह दीपक भाजपायी और सोहन कांग्रेसी के दिल में प्रवेश कर गयी। "


दोनो फ़िर एक सुर में बोले - "दवे जी आपका कहना सही है। हम दोनो मिल कर इस दिशा में प्रयास करेंगे।" हमने कहा- " वाह रे कलयुग के कालिदासों, जिस  डंगाल में खड़े हो उसे ही काट दोगे।" दोनो चट्टे बट्टॆ हैरानी से हमारी ओर देखने लगे, हमने समझाया- "भाई लेखकों का पेट भर जायेगा तो  सामाजिक विषमता, भ्रष्टाचार, धर्म के नाम पर राजनीति, देश के संसाधनो की लूट इन पर लेखो की बाढ़ आ जायेगी, लोग पढ़ेंगे तो जाग जायेंगे। मियां फ़िर देश की जनता आप लोगो को पीटेगी,  होश ठिकाने ले आयेगी,  सारी नेतागिरी उड़न छू हो जायेगी।"दोनो भाई सतर्क हो गये- "बात तो आप सही कह रहे हो दवे जी, तो किया क्या जाये।"  हमने कहा- करना क्या है भाई, सोहन बाबू आप बाबा ठग, अन्ना के साथी भ्रष्ट छपवाते रहो और दीपक बाबू तो लगे ही है नेहरू का दादा मुसलमान था,  लव जिहाद चल रहा है, हिंदू धर्म पर मंडराते खतरे। बस चैन की बंसी बजाते रहो और हाय हिंदी हाय हिंदी गाते रहो। जब मन ज्यादा दुखी हो जाये तो हमारे जैसे गरीब लेखको को कुछ खिला पिला दिया करो मन का बोझ भी हल्का हो जायेगा।" 

Wednesday, September 5, 2012

ओये मनमोहन वाशिंगटन पोस्ट ओये


साहब, इस दो कौड़ी के अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट द्वारा,  मनमोहन जी को मौनी बाबा करार दिये जाने से,  हमारा दिल को बहुत ठेस लग गया है।  इनका हिम्मत कैसे हुआ हमारे परम आदरणीय और घोटालों द्वारा नित्य स्मरणीय करा दिये जाने वाले मनमोहन सिंग जी के बारे मे उल्टा सीधा लिखने का।  मै पूछता हूं ये होते कौन हैं हमारे आंतरिक मामलो में दखल देने वाले। हिंदू धर्म का बड़ा शुभचिंतक बनने वाली भाजपा से भी मै पूछता हूं। कैसे हिंदू हो रे भाई,  क्या नहीं पढ़ी महाभारत? घर में भले हम सौ और पांच है, आपस में लड़ते हैं पर किसी भी बाहरी के लिये पूरे 105।  एक बार कड़क आवाज में अखबार वालों को कह देते - "हमारे मामलों में दखल मत दो जी।" फ़िर देखते मनीष तिवारी, दिग्विजय सिंग तक आपकी भूरि-भूरि प्रशंसा किये बिना रह पाते तो।  ये कम्यूनिस्ट पार्टी भी, ऐसे अमेरिका का ’अ’ भी कान मे पड़ जाये तो एड़ी अलगा-अलगा के हाय-तौबा मचायेंगे। और इस अखबार को महत्व दे रहे हैं। अरे लाल सलामो, काहे नहीं बचपन में उचित संबंध जोड़ो ठीक से पढ़े थे?  डील परमाणु किये थे मनमोहन जी, तब कैसा उछल रहा था यही अखबार - "मनमोहन सिंग विश्व के सर्वश्रेष्ठ नेताओं में से एक हैं।" आज मनमोहन जी लड़ाकू हवाई जहाज नहीं लिये तो हाय-तौबा मचा रहे हैं,  चुप्पा बता रहे हैं।

कुछ दिन पहले टाईम मैग्जीन ने भी मनमोहन जी को अंडर अचीवर बता दिया था। अरे भाई, वर्ल्ड बैंक के नौकरी से शुरू कर बिना चुनाव जीते, बिना राजनीति में आये प्रधानमंत्री बन गये। इससे बड़ा अचीवमेंट किसी अमेरिकी का हो तो बताना जरा। ऐसे ही ब्रिटेन के अखबार ने उनको सोनिया जी का गुड्डा बता दिया था। इनकी क्वीन विक्टोरिया का जो विश्वासपात्र रहता था, उसको रायबहादुर का खिताब देते थे।  हमारी जनता की मलिका आदरणीय़ प्रधानमम्मी जी के विश्वासपात्र को गुड्डा पपेट बता रहे हैं। अपने बाला साहेब ठाकरे भी जब देखो तब कुछ न कुछ सनसनीखेज लिख देते हैं। बीच में माननीय मनमोहन जी को राजनैतिक नपुंसक करार दिये थे। कौन राजनैतिक नपुंसक है रे भाई, जो आठ साल से देश में अभूतपूर्व घोटाले, इतनी महंगाई के बाद भी प्रधानमंत्री है, वो राजनैतिक नपुंसक है, या सत्ता से बाहर बैठ के कोसने वाले राजनैतिक नपुंसक हैं।?

और मौन रहना कम बड़ी बात है? आदमी को महान बना देता है। महात्मा गांधी मौन व्रत पकड़ अनशनिया गये थे तो बंगाल मे कत्लेआम थम गया था। मौन व्रत लेना हमारे देश की परंपरा है। इंदिरा जी के आपातकाल में एक संत विनोबा भावे ने मौन व्रत रखा था। आर्थिक आपातकाल में संत मनमोहन मौन व्रत रखे हुए हैं।  एक बात मै इस वॉशिंगटन पोस्ट और बाकी अनाप-शनाप कहने वालों को बता देना चाहता हूं। जो हमारे मनमोहन जी के बारे मे बुरा कहता है, उसका हाल बहुत खराब होता है। ऐसे ही भाजपा के एक प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार ने मनमोहन जी को ’कमजोर’ कह दिया था। आज तक पाइपलाइन मे हैं बेचारे। प्रधानमंत्री बनने का सपना चूर-चूर हो गया। अब तो सुने हैं कि पाइप से भी निकाल दिये गए हैं तो ब्लॉग लिख-लिख कर भाजपाइयों के लिये सरदर्द बने रहते हैं।