Tuesday, August 21, 2012

माननीय कालाधन जी से एक मुलाकात



मित्रो  आईये करते है,  देश की बहुचर्चित शख्सियत माननीय कालेधन जी से तीखे सवाल- "सर आपका नाम कालाधन कैसे पड़ा।"  कालाधन जी -" हमारा नाम  सुनहरा धन होता, आखिर गाढ़ी कमाई हैं।  टैक्सखोर अधिकारियो की काली निगाह से बचाने के लिये हमें कालाधन का नाम दिया गया। वैसे इससे "बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला" भी हो जाता है।" हमने मुस्कुराते हुये पूछा -" बाबा योगानन्द कहते है कि आप चार सौ लाख करोड़ हैं।"

वे बोले - "बाबा नोट गिनने की मशीन ले के आया था क्या मेरे पास। अच्छा हुआ आठ सौ लाख करोड़ नही बोला वरना कालाधन नाम भी मुझे बुरी नजर से नही बचा सकता था।" हमने कहा-  "कुछ भी कहिये सर, जनता उनके आरोपो पर  विश्वास करती है।"  कालाधन जी मुस्कुराये - "मियां  जनता को बाबा पर विश्वास नही, हम पर अविश्वास  है।  हम उस खूबसूरत लड़की की तरह है, जो दूसरे की बाहों में है। हमें देख हर न पाने वाला आहें भरता है और पाने वाले से जलता है। बिना मुझे चंदे में पाये बाबा ग्यारह सौ करोड़ का आसामी बनता क्या रे भाई। इनकम टैक्स पटाने के बाद, वैट, एक्साईज चुसाने के बाद ईमानदार के पास बचता क्या है। खुद खायेगा कि इन बाबाओ को चढ़ायेगा।  पापियो को ही न भगवान के नाम बाबाओ का सिफ़ारिशी लेटर मंगता है। हमारा तो मन होता है कि हम ही इन बाबाओ के खिलाफ़ आंदोलन करें।"


हमने अगला सवाल दागा -  बाबा ने आंदोलन छेड़ने से पहले, क्या आपसे राय ली थी। वे बोले - "प्यारे मै आंदोलन का इशू हूं। इशू से कोई राय नही ली जाती। गौरक्षा वाले कोई गाय से पूछकर थोड़े आंदोलन करते हैं। " हमने कहा - बाबा आपको देश में वापस लाने के बाद, आपका जो प्रयोग करना चाहते है उस बारे मे आपकी क्या राय है। वे बोले- देखिये जिस तरह गौरक्षा वाले गाय को बचाने के बाद उसे भगवान भरोसे छोड़ देते है उसी तरह बाबा को मुझे लाने के बाद सरकार भरोसे छोड़ देना चाहिये।" हमने चिहुंक कर कहा - "ऐसे तो आप फ़िर नेता, अफ़सरों के पास पहुंच जायेंगे, हमको फ़ायदा क्या होगा।" कालाधन जी मुस्कुराये बोले - "बेटा इशू बरकरार रहना चाहिये। इस देश की आम जनता भोली भाली है। उसको जनलोकपाल टाईप का कठिन इशू समझ में नही आता।  जात, धर्म में बटे लोगों की अनेकता में एकता के लिये मेरा होना बहुत जरूरी है।


हमने गुस्से से कहा - " महंगाई से त्रस्त आम आदमी , दो वक्त की रोटी के लिये जूझ रहा है। आपको शर्म नही आती,क्या आप इस देश से प्यार नही करते। क्या आपको खुद ही आत्मसमर्पण नही कर देना चाहिये।" वे बोले -"अरे भाई देश वासियो से प्यार है गरीबो की चिंता है इसलिये त चुपचाप विदेश में बैंको मे पड़ा हूं। वरना कौन अपनी मातृभूमी से दूर रहना चाहता है।" हम चौंक गये, पूछा - "सर प्यार तक तो समझ में आता है पर आपके वापस आ जाने से गरीब को क्या नुकसान।" कालाधन जी गंभीर हो गये बोले -" बाबा को अर्थशास्त्र का ’अ’ नही मालूम। मनमोहन सिंग क्या बेकूफ़ है जो इतना बदनामी झेलने के बावजूद हमको नही ला रहा। अरे भाई देखते नही चिदंबरम पांच लाख करोड़ का नोट छाप के देश में झोंके तो महंगाई आसमान में पहुंच गया। दो लाख करोड़ का मनरेगा ला दिये त देश में लेबर नही मिल रहा काम करने को। शराब की खपत आसमान छूने लगी। हम आ जायेंगे तो हर परिवार को एक करोड़ मिलेगा।कौन करोड़पति खेत मे काम करने जायेगा कहो तो भला। सवा सौ करोड़पति मार्केट पर टूट पड़ेगा, त कीमत नही आसमान छूने लगेगी।

इतना भयानक अंजाम सुन हमारे रोंगटॆ खड़े हो गये। हमने कहा - " तो सर आप ही कोई राह सुझाईये। " कालेधन जी ने मनमोहन सिंग की तरह आश्वासन दिया -" सरकार ठीक कदम उठा रही है, धीरे धीरे एफ़ डी आई के माध्यम से हमे सफ़ेद धन बना उसका  उपयोग रोजगार मूलक इन्फ़्रास्ट्रक्चर में होगा।  हमारे वालमार्ट के माध्यम से देश मे पहुंचते ही किसान, उपभोक्ता खुशहाल और काला बजारिये बदहाल हो जायेंगे। देश अग्नी राकेट की तरह खुशहाली के नये कीर्तीमान स्थापित करेगा। अब विदा लेने का समय आ गया है,  जाते जाते सभी देश वासियो को हमारी तरफ़ से ढेर सारा प्यार, शुभकामनाएं, जय हिंद, वंदे मातरम।"  ,


Tuesday, August 14, 2012

भोलू तू बाबा बन जा प्यारे

साहब, नुक्कड़ में भोलू हमारे पास आया, बोला- "दादा, कोई ऐसा काम बताईये,  जिसमे लागत न के बराबर हो और प्राफ़िट हाई फ़ाई।" हमने कहा- वाह रे बुड़बक, ऐसा धंधा मालूम हो तो हम नही कर लें। बेटा भोलू, मेहनत से ही सफ़लता मिलती है। भोलू बड़ा ज्ञानी था, हमको ही चित कर दिया बोला - "राहुल गांधी एतना मेहनत किये यूपी चुनाव में क्या मिला उनको।"  हमने  कहा- रै भोलू तब तो तेरे लायक एक ही धंधा बाकी बचता है, तू बाबा बन जा।"

भोलू ने बात पर गंभीरता से गौर किया बोला - दादा, हम तो केजरीवाल टाईप सिविल सोसाईटी बनने का सोच रहे हैं। वो लोकपाल के लिये लड़ा, हम ठोक पाल के लिये लड़ेंगे। आम आदमी का पैसा खाने वाले नेता अधिकारियो की पब्लिक ठोकाई के अधिकार का कानून पास करायेंगे।" हमने इनकार में सर हिलाया - मियां,  सरकार से भिड़ने में बहुत लोचा है रे भोलू और तू तो भोला भाला है।" भोलू बोला- टीवी में आयेगा  "भोलू देश के लिये चार दिन से भूखा है, गांधी का अवतार है।"" इतना कह भोलू सपनो में तैरने लगा। हमने तुरंत झटका दिया कहा - अबे ओ शेख चिल्ली, होश में आ। उससे तो अच्छा है, चार न्यूस चैनलो को सेट कर, पानी टंकी में चढ़ जा।  भ्रष्ट मुख्यमंत्री का इस्तीफ़ा मांगना।  कवरेज फ़ुल मिलेगा, टीवी वाले घंटे के हिसाब से रोजी देंगे। मुख्यमंत्री भी उतरने का कुछ न कुछ दे ही देगा।"

 भोलू खिसिया कर बोला- "क्या दादा, आप बात मजाक मे ले ले रहे हो।" हमने समझाया -" देख भाई भोलू ये सिविल सोसाईटी, सब टेम्परेरी है रे भाई। चार दिन की चांदनी फ़िर अंधेरी रात। अब देख अन्ना टीम को, राजनैतिक दल बनाना पड रहा है कि नही। इस देश में जात, पात धर्म के नाम पर आंदोलन करोगे तो धकापेल समर्थन मिलेगा। कानून वानून से देश वासियो को क्या लेना देना प्यारे।  भोलू ने समस्या रखी - "बाबा बन जाउंगा तो क्या चंदे का हिसाब नही मांगेगे।" हमने मुस्कुरा कर कहा- "प्यारे तू बाबा बनते ही भोलू से उपर उठ श्रद्धेय बाबा भोलादेव बन जायेगा। भगवा कपड़ा पहनते ही आदमी जी से प्रमोट होकर श्रद्धेय बन जाता है। उसको मिला कोई भी चंदा दान की श्रेणी प्राप्त कर लेता है। और दान लेना देना इस देश मे पुण्य की श्रेणी में आता है और पुण्य की जांच करना हिंदु धर्म की की आबरू पर किया गया हमला साबित हो जाता है।

भोलू ने अपना तर्क रखा -  बाबा बनने मे  भी रिस्क है। देखा नही कैसे सलवार पहन मंच कूद भागना पड़ा था बाबा रामदेव को। कम से कम सिविल सोसाईटी में पिटाई तो नही होगा।" हमने भोलू को समझाया- " रे भाई भोलू , तुझे बाबा माल अंदर करने के लिये बनना है कि कालाधन बाहर निकलवाने।  आंदोलन करने का शौक चर्राये तो सरकार से आंदोलन के मुद्दे से लेकर समझौते की रूप रेखा सब एडवांस में तय करके अनशनियाना। और नही त अपने बाबा रामदेव की तरह विपक्षी दल से सेटिग कर लेना। वहा सेटिंग बाबाओ के लिये ज्यादे बेहतर रहती है,

हिंदु तन मन, हिंदु जीवन, हिंदु बाबा की दुकान है।

हिंदु ठगा हिंदु ठगाया सरकार क्यूं परेशान है॥

इस नारे के आगे बेटा भोलू बड़ा से बड़ा जांचकर्ता भी सकपका जाता है। तू बाबा बनेगा, बात फ़ाईनल समझ।"

 बात भोलू के भेजे में  घुस गयी है। आशा है  देश को अब एक नया चमत्कारी बाबा मिल जायेगा। अब ये भोलू टैक्स फ़्री -योगा बाबा बने, जड़ी बूटी बाबा बने, या दुखियारो को सरलतम उपाय प्रदान करने वाले इनकम टैक्स पेयी निर्मल बाबा की तरह क्विक हीलिंग बाबा बनेगा। यह मीडिया कन्सलटेंट से पूछ कर ही तय किया जायेगा।

Tuesday, August 7, 2012

नेता और मुसलमान क्या एक समान ?

देखिये साहब भारत के नेता और  भारत का आम  मुसलमान दोनो में काफ़ी समानताएं  है। इसके पहले कि कोई मुझ पर फ़तवा जारी करे  मै कुछ उदाहरण दे देना चाहता हूं। देखिये जिस तरह  नमाज पढ आम मुसलमान अपने को खरा मुसलमान मान लेता है। ठीक उसी तरह गांव गांव तक बिजली के खंबे पहुंचा कर भारत का नेता अपने आप को विकास पुरूष मान लेता है। जिस तरह नेकी और इमान पर चलने की  शर्त आम मुसलमान वेल लेफ़्ट कर देता है। वैसे ही हर खंबे तक बिजली पहुचाने की शर्त भारत का नेता ओवर लुक कर देता है। दोनो के तर्क भी काफ़ी हद तक मिलते जुलते है। दोनो तमाम तरह की दुश्वारियो का हवाला देते है और यह भी विश्वास दिलाते है कि हम जल्द से जल्द ऐसा करने की कोशिश करेंगे।


आप- अगर अब भी नही मानते तो मै आपको और भी समानताएं बता सकता हूं। मसलन दोनो बहुत दूर की सोचते है। भारत के मुसलमान जब बात करेंगे तब फ़िलीस्तीन अफ़गानिस्तान के मुसलमानो पर ढाये जा रहे सितम का गम उन्हे खाये जायेगा। वैसे ही हमारे नेताओं को दिल्ली से दूर बसे बिजली खंबे से  विहीन गावॊ के रहवासियो का गम सतायेगा। ना मुसलमान को अपने शहर के गरीब बेरोजगार मुसलामानो की चिंता सतायेगी और न ही दिल्ली से सटे फ़रीदाबाद मे बीस घंटे की लोड शेडिंग की चिंता नेताओ को सतायेगी। मुझे पता है कि नेता तो मेरे इस लेख का उतना का बुरा नही मनायेंगे पर मुसलमानो को अब भी बुरा लग रहा होगा। आखिर इस देश मे आज नेताओ से तुलना किसे पसंद आ सकती है। खैर अभी मेरे तर्क खत्म नही हुये हैं।

देखिये जिस तरह नेता अराजनैतिक आंदोलनकारियों को हिकारत की नजर से देखते है। ठीक वैसे ही मुसलमान भी दूसरे धर्म को लोगो को मूर्ख समझते है।  दोनो के हिसाब से कोई और तरीके से  लक्ष्य को प्राप्त करना संभव नही।  दोनो ही बड़े दयालु भी है। मुसलमान हर किसी को मुसलमान बनने की सलाह देते है। उनको इतनी परवाह भी नही कि भाई जन्नत का कंपीटीशन कितना तगड़ा हो जायेगा। वैसे ही नेता भी हर किसी को चुनाव लड़ने की सलाह देते है। उन्हे भी  अपनी परवाह नही कि भाई हमारे लिये कंपीटीशन तगड़ा हो जायेगा।  अब आपको लग रहा होगा कि ऐसे रहमदिल लोग आज कल के जमाने मे कैसे हो गये।  तो भाई मैं अंदरे खाते की बात बता दूं।   नेता जानते हैं चुनाव जीतने मे कितना प्रपंच, खर्चा लगता है। वैसे ही मुसलमान भी जानते है। के भाई मुसलमान बनना तेढ़ी खीर है,  नेकी और इमान पर चलना होता है। जब हम ही न बन पाये तो ये क्या खाक बनेंगे।  बात इतने पर ही खत्म नही होती जिस तरह नेता दूसरे राजनैतिक दलो के नेताओ को भी मूर्ख करार देने में कॊइ गुरेज नही करते। वैसे ही मुसलमान दूसरे तरीके से इबादत करने वालो मुसलमानो को मूर्ख करार देने में कॊई परहेज नही करते। 


और मजेदार समानताये बताये दिये देता हूं। जिस तरह नेता संविधान की धाराओ पर काम करने पर अटके रहते है। ठीक उसी तरह मुसलमान कुरान की आयतो पर अड़े रहते है। अगर नेता संविधान की रूह को समझ हिसाब से काम करने लगे और मुसलमान कुरान की रूह को समझ कुरान का पालन करने तो इस देश को जन्नत बनने मे कोई  नही रोक सकता।  नेता गांधी की खादी पहन अपने को जनता का सेवक मान लेते है और मुसलमान दाढ़ी रख अपने को मुसलमान मान लेते है। न मुसलमान नबी ए करीम के जीवन चरित्र का पालन करते है और न नेता महात्मा गांधी के जीवन चरित्र का अनुसरण करते हैं।

लेकिन साहब मेरे सारे तर्क एक जगह आकर खत्म हो जाते हैं। हमारे नेताओं की तुलना किसी से नही हो सकती। ऐसे जंतु जो बिजली का कारखाना पहले लगाते है। बिजली का खंबा उसके बाद बिछाते है, और उत्पादन शुरू होने के बाद कोयला का पता करते है तो मालूम चलता है कि अंडर वियर बनाने वाली कंपनी को पैसा लेकर खदान आबंटित कर दिये हैं। उनकी तुलना किसी से नही हो सकती। और मुसलमान कुछ भी कर ले हराम की तो नही ही खायेगा और नेता  खायेंगे तो -----।

Friday, August 3, 2012

चल प्यारे केजरीवाल संसद में



 राजनैतिक दल की घोषणा सुनते ही फ़िल्मी गीत याद आ गया- "चल सन्यासी मंदिर में- मेरी चूड़ी, तेरा चिमटा मिल कर गीत गायेंगे"।  सत्तासुंदरी ने  केजरीवाल एंड कंपनी को राजनीति के मंदिर बोले तो संसद जाने पर मजबूर कर दिया है।  केजरीवाल लोकपाल न मिलने पर- "कूद जाउंगा, मिट जाउंगा गांव वालो।   लोकपाल न बना तो  पब्लिक आईंग,  सोनिया मौसी एंड संस चक्की पीसिंग एंड पीसिंग"  चिल्ला रहे  थे। लेकिन तभी अन्ना ने अधर्म की ओर से युद्ध कर रहे इन राजनेताओ पर चुनावी आक्रमण का बिगुल फ़ूंक दिया। "हम न जायेंगे संसद मदिर में- सारे चोर है बैठे अंदर में" का गाना गाने वाले  अब चुनावी युद्ध की ताल ठोक रहे हैं। इस अनशन के शुरू होने के पहले ही यह बात साफ़ थी कि इस बार दोनो पक्षो में कोई समझौते की गुंजाईश नही थी। लोकपाल बिल पर सरकार तभी झुकती जब भारी जन सैलाब उमड़ आता। जाहिर है जनसैलाब नही उमड़ा, जंतर मंतर पर एकत्रित दसियो हजार लोग सरकार के माथे में शिकन लाने के लिये अपर्याप्त थे।

 राजनैतिक दलो और उनके अधीन सत्ता ने वह सारे रास्ते बंद कर दिये थे जिसके द्वारा इस आंदोलन को सफ़लता मिल सकती थी। इसके बाद जीत का रास्ता जनता मे स्वयं खीज और उबाल ही था। लेकिन जात पात धर्मो में बटी कौमे बगावत नही लिया करती। इस आंदोलन के टूटने के कई परिणाम सामने आयेंगे। कांग्रेस के खिलाफ़ देश में उमड़े जनाक्रोश का सीधा लाभ भाजपा को जायेगा। लेकि जिस भ्रष्ट व्यवस्था से देश तंग है,  भाजपा भी उसका ही  हिस्सा है। संघ का जोर भ्रष्टाचार नही हिंदुत्व के मुद्दे पर सत्तासीन होने का है। संघ को कोसने में जो बुद्धीजीवी तन मन धन से लगे रहते है। उन्ही बुद्धीजीवियों ने  मीडिया में आकर इस जनलोकपाल आंदोलन को भसकाने में महती भूमिका निभाई है। जाहिर है संप्रदायिकता से जंग ये संप्रदायिक हिंसा होने पर ही लड़ते है। जबकि किसी भी संप्रदायिक विचारधारा को बल सरकार के भ्रष्टाचार, महंगाई  और असफ़लता से ही मिलता है। इन बुद्धीजीवियों के भेजे में यह बात नही आयी कि देश में उमड़ते जनाक्रोश के गांधीवादी तरीके से चल रहे जनहित के आंदोलन से इस देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को मजबूती प्रदान की जा सकती हैऔर भ्रष्टाचार पर काफ़ी हद तक लगाम लगाई जा सकती है।

मीडिया ऐसे घोड़े की तरह है, जिसकी लगाम व्यापारिक घरानो के हाथ में है। यह मीडिया पत्रकारिता के आदर्शो का ढोंग रचती है। और सवाल उठाये जाने पर क्रोधित पत्नी की तरह किसी की भी इज्जत तार तार कर् सकती है। जनलोकपाल आंदोलन के साथ इसने जो किया उससे टीम अन्ना की छवी को जितना नुकसान हुआ है उससे दसियो गुना नुकसान मीडिया की छवि को हुआ है। खैर मीडिया को कोई चुनाव नही लड़ना हां राज्यसभा टीवी के मीडिया मंथन के एक एपिसोड का मसाला जरूर तैयार हो चुका है। वैसे  कांग्रेस को फ़र्क पड़ता मुसलमानो के इस आंदोलन मे बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने से। लेकिन इस देश के मुसलमान अभी तक "हमको यह चाहिये, हमको वह नही मिला" के मोड में अटके हुये है। देश में उमड़ते बढ़ते किसी भी आंदोलन मे वे अपने लिये असुरक्षा खोजते है। और चुनाव का समय आने पर अपने लिये सबसे कम खतरा नजर आने वाली पार्टी को एक मुश्त वोट डाल आते है।

राजनीति में उतरने का फ़ैसला टीम अन्ना ने लिया जरूर है। लेकिन राह बहुत कठिन है। उनके राजनैतिक दल का सबसे बड़ा नुकसान भारतीय जनता पार्टी को होगा। टीम अन्ना का आधार वही शहरी मध्यमवर्ग ही है, जो भाजपा का ट्रेडिशनल वोट बैंक है। दलितो अल्पसंख्यको का वोट पाने के लिये टीम अन्ना विजयी हो सकने वाले दल के रूप मे उभरना जरूरी होगी, उसके बिना ये वर्ग वोट नही करता। वैसे जब बीस सदस्य वाली ममता, सरकार को तिगनी का नाच नचा सकती है। तो टीम अन्ना का संसद में पहुंचना भी रोचक समीकरणो और घटनाओ को जन्म दे सकता है। देखते है केजरीवाल जी सत्ता सुंदरी की बांहो जाकर देश को किस रंग मे रंगने मे सफ़लता हासिल करते हैं। और बाबा रामदेव भी नौ अगस्त से आने वाले है, सो अभी मामला शांत होने वाला नही है।