Tuesday, October 30, 2012

थरूर की बीबी - मोदी का दर्द

देखिये साहब ऐसे हम महिलाओ वाले मामले में कुछ कहते नही। पर मोदी जी ने शशी थरूर की भूतपूर्व प्रेमिका वर्तमान पत्नी को पचास करोड़ की क्या बताया, बवाल मच गया है । महिला आयोग का कहना है कि बयान वापस लो। इस मामले में हम महिला आयोग के साथ हैं। अरे भाई सेक्सी कह देते मोदी जी, सेक्सी कहने का बुरा नही मनाती हैं आयोग की अध्यक्ष ममता जी। हेड लाईन भी करारी बनती "शशी थरूर की सेक्सी प्रेमिका" जो ब्याह के बाद इतनी सेक्सी हो गयी है कि कांग्रेस का कार्यकर्ता अपने को रोक नही पाया, थप्पड़ खा बैठा बेचारा। अनपढ़ रहा होगा, स्लट वाक नहीं देखा होगा। कि हम कम कपड़े पहने या कुछ ना पहने कितनी भी सेक्सी दिखे छूने की नही हो रही। खैर मेरा और शशी थरूर का ज्यादा गुस्सा इस बात पर है कि कीमत कम क्यो लगाई? आखिर कोई भी प्रेमिका या बीबी की कीमत उसका पति ही आंक सकता है। कोई गाड़ी या ज्वेलरी थोड़े है कि कोई कहे इतने की होगी यार।

 शशी थरूर ठीक कहते है कि बेशकीमती होती है। जो नही माने उसको वाड्रा से पूछ लेना चाहिये। उसका बियाह तो स्वयं सत्ता सुंदरी उर्फ़ प्रियंका गांधी से हुआ है। मोदी जी भी बेचारे बैचलर आदमी, यह सब खेला जाने तो कैसे। उनको क्या पता नाजुक क्षणों में पत्नी कितनी बेशकीमती हो जाती है। जो उसके मुख से निकले, आदमी आगे पीछे नही सोचता। डाईरेक्ट "यस माई लव" कहता है भाई। और ये मोदी जी भी न प्यार ही नही किये आज तक। लेकिन "प्यार में आदमी अंधा हो जाता है" यह मुहावरा तो सुने होंगे कि नही। अब देखो सुबोधकांत सहाय को भाई के प्यार में कोयला खदान दिलवा दिये, मंत्रीपद चला गया। संघ के मोहन भागवत से ही सीख लेते। गड़करी से प्यार है तो भाजपा का चाल चेहरा चरित्र सब घिया जाये। पर मजाल है कि इस्तीफ़ा कोई मांग ले। कांग्रेसियो को ही देख लो जीजा का इतना मोह है कि आरोप लगा नही सारे के सारे भिड़ गये बचाव में।। अब ये मोदी जी कहेंगे कि भ्रष्टाचार हो रहा है, देश लुटा जा रहा है। पर भाई प्यार तो प्यार है, उसमे आगा पीछा नही सोचा जाता है। और मोदी जी को भ्रष्टाचार रोकना है तो कानून बनाना होगा कि भ्रष्टाचार करे पति पर सजा हो पत्नी को। फ़ेर देखिये जैसे बीबीया सीबीआई से ज्यादा सतर्क हो जाती। फ़रमाईश करना तो भूल ही जाईये पति को भी गांधी वादी बना कर छोड़ेंगी।


 खैर साहब बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद वाली बात है। मोदी जी त दिन भर विकास, इनवेस्टमेंट, डेवेलपमेंट भजते रहते हैं। ऐसे आदमी के अंदर प्यार का अंकुर फ़ूटे तो भी कैसे। बयान दे दिया फ़ंसा गया देश का हर आदमी, सबकी जान सांसत में। कहीं हमारी प्रमिका या पत्नि अपनी कीमत न पूछ बैठे। कीमत उंची बताई नही कि उतनी उंची फ़रमाईश जड़ दी जायेगी।

 एक बात पर हम और उद्वेलित है, गड़करी जी बयान दिये हैं कि केजरीवाल डाईरेक्टर का नौकरी मांगने आया था। अयोग्य था, हम नही दिये तो आरोप लगा रहा है। केजरीवाल को पता होना चाहिये था कि गड़करी साहब पहले छोटा पोस्ट में लगाते है। ड्राईवर बनो, चपरासी बनो, धोबी बनो। काम देखा जाता है, आदमी पहचाना जाता है, तब न डाईरेक्टर बनाते है, उसके नाम से करोड़ो का इनवेस्टमेंट करते हैं। चले गये मुंह उठा के डाईरेक्टर बनने। गड़करी जी यह भी कहे कि केजरीवाल को विदेश से संदिग्ध पैसा आ रहा है। कुछ दिन पहले यही बात दिग्विजय सिंग भी कह रहे थे। केजरीवाल कह रहे हैं कि हमारा हिसाब आन लाईन है, चेक कर लो। काहे यह सब कहना भाई केजरीवाल? प्रेस कांफ़्रेस बुलाओ और जनता से कहो -"हां हम सीआईए से पैस ले रहे है, आईएसआई से भी ले रहे है। और देखो ये साले निकम्मे कांग्रेसी और भाजपाई हमको पकड़ नही पा रहे। ये इतना नकारे है कि जब मुझ जैसे वाट लगाने वाले राजनैतिक विरोधी को नही पकड़ सकते। तो किसी आतंकवादी, कालाधन वाले को कैसे पकड़ पायेंगे। देश वासियो हम बिना सत्ता मे आये सबकी पोल खोल रहे है सत्ता मे आयेंगे तो सोचो बेईमानो का क्या हाल कर देंगे। " खैर साहब कलयुग है, पता नही कैसे कैसे बयान सुनने को मिले आगे।

Monday, October 29, 2012

फ़िल्म चक्रव्यूह से नक्सल समस्या तक


प्रकाश झा की फिल्म चक्रव्यूह देखने की इच्छा बहुत दिनों से थी। नक्सल समस्या पर बड़े बैनर की यह पहली फिल्म है और इसे देखने के बाद भारत के नौजवानों के मन में कई सवाल खड़े होंगे। प्रकाश झा का कौशल इस फिल्म में नजर नहीं आया। इसमें बंबईया मसाला भरने की मजबूरी या जिद थी। या हो सकता है कि 'पानसिंग तोमर' देखने के बाद मेरी उम्मीदें इस फिल्म से ज्यादा ही बढ़ गई थी। खैर, इस फिल्म के समाप्त होने के बाद जब मैंने अपने पांच साल के बेटे से पूछा कि वह किसकी तरफ से लड़ेगा? उसने बिना देर के जवाब दिया कि कबीर की तरफ से। कबीर इस फिल्म में नक्सलियों की विचारधारा से प्रभावित हो जाने वाले किरदार का नाम है, जिसे अभय देओल ने अद्वितीय अभिनय से निखार दिया है। सर्वोत्तम अभिनय वह होता है जब अभिनेता किरदार के अभिनय को बिना लाग लपेट के कर दिखाए। ठीक पानसिंग तोमर में इरफान खान की तरह।

जबरदस्ती भरे गए किरदारो और सेक्स दृष्यों के बीच भी फिल्म उस विषय का भेद आम भारतीय के सामने खोलने में बहुत हद तक सफल रही है, जो विषय भारत की मीडिया देश हित के नाम से कवर नहीं करती। इस देश हित की आड़ में आदिवासियों के घर जंगल और पानी उद्योगपतियों को कौड़ियों के दाम बेचती छत्तीसगढ़ सरकार भी बच निकलती है और उड़ीसा की भी। भारत का आम नागरिक भी पुलिस के जवानों की लाशों को देख उन लोगों को बहुत नफरत और क्रोध के साथ देखते हैं जिन्हें नक्सली कहा जाता है।

आम आदमी का एक ही तर्क होता है कि जब लोकतंत्र है चुने हुए जन प्रतिनिधी हैं तब हिंसा का सहारा लेने की जरूरत क्या है। लेकिन भारत का लोकतंत्र उन इलाकों में जाकर खत्म हो जाता है जहां सरकारी विज्ञापनों से पलते पत्रकार नहीं जाते। जहां चुनावों में बकरा शराब बाट जीत जाने के बाद जनप्रतिनिधी नहीं झांकते। वे न इस बाजारवादी तंत्र के ग्राहक हैं और न ही उस महान देश के सम्मानित नागरिक जिसे इंडिया कहा जाता है। वे आदिवासी हैं। वे आदिवासी जिनके प्राकृतिक वनों को काटकर उन्हें इमारती लकड़ी के बंजर बागानों में बदल दिया गया। क्यों बदल दिया गया? क्योंकि उनके फल और फूल देने वाले पौधे न शहरी लोगों के फर्निचर में काम आ सकते थे, न पेड़ से तोड़ कर फल खाते आदिवासी के पास इस देश को देने के लिए कोई रेवेन्यू था। जाहिर है वहां विकास की जरूरत थी। वह विकास जिसमें शासन तंत्र से लेकर उसे वापस देने का सिस्टम बन सके। इसी लेन देन में तो अफसर और नेताओं की कमाई होती है।

वनों में इस बदलाव ने प्राकृतिक धन संपन्न आदिवासियों को कंगाल बना दिया। अपने जंगलों से भोजन ईंधन लेने पर अब वे चोर बन जाते है। और इस चोरी का खामियाजा पुलिस और वनविभाग के अदने कर्मचारियों की खिदमत से चुकाना होता है। यह खिदमत बेटी की इज्जत देकर भी की जाती है और मुर्गा देकर भी। लेकिन इतने से ही विकास कहां होता है भला! अब तो खदान-खदान खेलने को विकास कहते हैं। उन खदानों से नोट निकले तब न विकास टाइप का फील होगा भाई! अब इस विकास के लिए कुछ लाख लोगों को उनके घर से भगा कर उनके गांव नेस्तनाबूद करना पड़े तो कीमत कम ही है। लेकिन ये नक्स्लवादी देशद्रोही भी न पता नहीं कहां से आकर टपक गए। भोले भाले आदिवासियों को पट्टी पढ़ा दी। जल जमीन जंगल तुम्हारा है। मनमोहन सिंह या रमन सिंह के बाप का नहीं। खनिज खोदना है तो रेड्डी बंधु नहीं आदिवासी बंधु खोदेंगे। हथियार भी थमा दिए और विचारधारा भी। आप जंगल में आओ बेटा तब पता चले कि जब गरीब आदिवासी अपने घर को बचाने के लिए लड़ता है, तब कैसा युद्ध होता है। लेकिन अपने गृह मंत्रालय के मोटे-मोटे अफसर भी कोई कम थोड़ी थे। उन्होंने दूसरे आदिवासियों को हथियार थमा दिए बोला सलवा जुड़ुम करो। अब जाओ लड़ो साले आपस में आदिवासी ने आदिवासी को मारा कोई केस नहीं बनता। भला एक दलित दूसरे दलित को चमार कहे तो कौन जज सजा दे सकता है भाई।

अब साहब चल रहा है संग्राम, दिल्ली के सत्ता के गलियारों से हजारों प्रकाश वर्ष की दूरी पर। किसको कौन सी खदान मिलेगी उसका एमओयू पहले हो चुका है। दोनो तरफ के लोगों का स्टेक भी है। सलवा जुड़ुम में नोट और सत्ता की ताकत से लबरेज नेता है, तो नक्सलियों की तरफ भी लेव्ही से अरबों रुपए वसूलते नेता। और सरकार के अधिकारियों के पास भी अरबो का फंड आ रहा है आदिवासियों के विकास के लिए। सबका धंधा चमक रहा है, दिवाली में घर दमक रहा है, अब कुछ लोग तो मरेंगे ही न भाई इसको ही तो कोलेटेरल डैमेज कहते हैं। सिपाही मरे या नक्सल, मरता गरीब का ही बेटा है। कलेक्टर का अपरहरण हो जाए तो देश की सांसे थम जाती हैं, मीडिया खबरदार हो जाती है। पैसा देकर कुछ बंदी एक्सचेंज कर कलेक्टर घर आया नहीं कि फेर शुरू। इंडिया के सिटीजन तो बेचारे हर देश भक्त सिपाही की मौत पर आंसू बहा ही लेते हैं।

रही बात नक्सलवाद की तो अकूत धन कमाते होनहार सपूत की तरह हर नेता चाहता है, काश हमारे इलाके में भी हो जाता तो कितना अच्छा रहता।

Friday, October 19, 2012

नेताओं का सेक्सी फ़ैशन


देखिये साहब देश में पिछले कुछ दिनो से भंडाफ़ोड़ की बहार आयी हुई है।  लोग बाग जिधर देखो मुंह उठाये सरकारी दस्तावेजो और सबूतो के साथ आरोप पर आरोप पेले पड़े हैं। कल शरद पवरा की बिटिया सुप्रिया सुले जी ने अपने उपर लगाये गये आरोपों पर भड़क कर कहा कि आरोप लगाना फ़ैशन हो गया है। अब साहब किसी भी चीज के फ़ैशन बन जाने के लिये दो बाते जरूरी होती है। पहला यह कि लोग पीटे नही, आप ही देखिये सार्वजनिक जगह में पप्पी झप्पी लेना फ़ैशन नहीं बन पाया।  धर्मरक्षक लोग पीटने पहुंच जाते हैं। शादी शुदा भी हो तो क्या, जो करना है कमरे में करो जी,  समाज को मत बिगाड़ॊ। नेताओं पर आरोप लगाना भी पहले पिटाई खाने का इनविटेशन कार्ड ही था।  लेकिन नेता, अफ़सर अब मीडिया के विकास से परिचित हैं। ऐसे में पीटने के अंजाम वे जानते हैं। बस्तर के किसी गांव में निर्दोष आदिवासियो को गोलियो से भूना जा सकता है। लेकिन दिल्ली में केजरीवाल को महज धमकी देना गोरे चिकने आक्सफ़ोर्ड रिटर्न खुर्शीद का मुंह काला करवा सकता है।

दूसरी शर्त है कि आपके देखा देखी सबका उस बात कर करने को ललचाना। तो भाई केजरीवाल ने शुरू किया है,  अब सुनते है बहुत लोग के पर निकल आये है। वैसे बाबा के भी पर निकले थे,  लेकिन उ बेचारे धर्मशास्त्र के उपर अर्थशास्त्र के चढ़ बैठने के कारण थोड़ा बैकफ़ुट में आ गये हैं। पर जो भी हो सुप्रिया सुले की बात सिद्ध तो हो ही जाती है कि आरोप लगाना फ़ैशन बन गया है। कपड़ों का फ़ैशन पेरिस से चालू होता है। फ़ैशन टीवी(FTV) खोल कर हमने कई बार इस फ़ैशन को समझने की कोशिश की। लेकिन हैंडसम मर्दो को हम जलन के मारे देख नहीं पाते,  उनके कपड़े क्या देखें। सुंदरियो को देखने की कोशिश की थी। लेकिन साहब हिंदुस्तानी पत्नियों में फ़ैशन टीवी देखते पाये जाने वाले पति को पीटने का फ़ैशन है। सो एक बार के बुरे अनुभव के बाद हमने प्रयास कभी नही किया।

लेकिन नेताओं में जरूर फ़ैशन हो गया है कि  आरोप लगाने वाले को खुद भ्रष्ट करार देना।  यह सारे फ़ैशन कांग्रेस से शुरू होते है। भले उस समय कांग्रेस को बाकि नेता भला बुरा कहें हो। अपना नंबर आने पर इसी फ़ैशन को अपना लेते हैं। अब भाजपा को ही ले लीजिये, अंजली दमानिया को कहते है- "खुद सर से लेकर पैर तक जमीन घोटाला करती है और हमारे श्रद्धेय अध्य्यक्ष पर आरोप लगाती है"। सलमान खुर्शीद ने केजरीवाल को सड़क छाप कहा तो तुरंत फ़ैशन को अपना कर नितिन गड़करी ने चिल्लर करार दिया।

 लेटेस्ट ट्रेंड तो केजरीवाल को पागल करार देने का है। और साहब इस आरोप से तो हम अक्षरशः सहमत हैं। आखिर कोई पागल ही अपना काम धाम छोड़ के जान खतरे में डाल के सारे भ्रष्टो का भंडाफ़ोड़ करने मे भिड़ जाये। स्वराज्य और शुचिता के नाम से उस देश में वोट मांगे, जहां लोग धर्म और जात पर वोट देते हैं। एक और लेटेस्ट ट्रेंड भी आ गया है। आज कल सारे राजनैतिक दल स्लट वाक कर रहे हैं। उनका माडर्न लड़कियों की तरह कहना है कि हम कम नैतिकता ओढ़े या चाहे नग्न बेशर्मी दिखाये उसका मतलब हमारी हां नही है। केजरीवाल हमारा चीर हरण ना करे न ही हमारी बेईज्जती खराब करे, बताये देते हैं हां।

Thursday, October 11, 2012

सोलह में शादी की आजादी



देखिये साहब हमारा मुल्क रंगरंगीला परजातंतर है। इस बात को नित साबित करती खबरें हमारी मीडिया पेश करती रहती है। हालिया मामला है खाप पंचायत द्वारा लड़कियों को बलात्कार से बचाने, सोलह साल में उनकी शादी करने का फ़तवा। इस पर चारों ओर बवाला मचा हुआ है , हर कोई ऐसी भूरी भूरी आलोचना कर रहा है कि क्या कहा जाये। लेकिन इस फ़ैसले से कुछ लोगो को सहमत होना चाहिये। सबसे पहले संघ समर्थक जो बेचारे लव जेहाद से बेहद घबराये हुये रहते है कि मुसलमान हिंदु लड़कियो को पटा-पटा कर भारत को मुस्लिम राष्ट्र बनाने में तुले हुये हैं। अब लव जेहाद से हिंदु लड़कियो को बचाने का इससे बढ़िया रास्ता क्या हो सकता है कि उनके हाथ सोलह बरस की उम्र मे पीले कर दिये जाये। न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी।दूसरी ओर मुल्लाओ को भी टीवी में दिखाना चाहिये, आखिर उनके अनुसार भी मुस्लिम लड़किया इस उम्र में ब्याही जा सकती है, कानूनन ब्याही जा भी रही है। लेकिन इन मुल्लाओं को टीवी पर दिखाने का कष्ट हमारी मीडिया नही करती। आखिर धर्मनिरपेक्षता भी तो कोई चीज है कि नहीं।

चलिये अब और आगे चले "तू सोलह बरस की मै सतरह बरस का" बाबी फ़िल्म के इस गाने और ऐसे हजारो फ़िल्मी गानो और फ़िल्मो पर भी बोलना नही चाहिये। आखिर प्रेम संवैधानिक वस्तु है। किसी भी उम्र में प्रेम करना, करने के लिये उकसाना संविधान सम्मत है। अब पढ़ा लिखा समाज किस तरह प्रेम के लिये मना कर सकता है।  लिंग वर्धक यंत्र का इश्तेहार अखबार में छपे या जापानी तेल का विज्ञापन एफ़ एम रेडियो पर।  यह तो पढ़े लिखे लोगो के लिये है। वो थोड़े इतने बेवकूफ़ है कि इन बातो मे आयेंगे। वैसे विज्ञापन तो बहुत ही गजब है।
पहली दूसरी से कहती है - "क्या बात है आशा जी आज बड़ी खिली खिली नजर आती है।"
दूसरी कहती है "क्या बताउं सखी, मेरे पति थके बुझे से रहते थे, राते बोझिल कटती थी। जब से उन्होने जापानी तेल लगाना शुरू किया है तब से मेरी राते रवां दवां हो गयी है।"

जिस वक्त खाप पंचायत के फ़ैसले को चैनल में कोसा जा रहा था। उसी वक्त ब्रेक में मैनफ़ोर्स कंडोम के विज्ञापन में उत्तेजक हाव भाव वाले लड़की लड़का अलग अलग स्वाद वाले कंडोम में जीवन का मजा चखने की दावत दे रहे थे।‘

अब वापस आ जाईये खाप पंचायत के फ़ैसले पर। उसको लेने के पीछे कारण क्या थे? तर्क क्या थे? इसकी जहमत किसी ने नही उठाई। इन बढ़्ती बलात्कार की घटनाओ के पीछे सबसे बड़ी वजह इश्क मुहब्बत का ग्रामीण परिवेश में चढ़ता बुखार है। प्यार में फ़ंसा कर बिगड़ैल लड़के, लड़कियो से संबंध स्थापित कर रहे है। और अतिरेक की घटनाओ में जिसमे कुछ अभी हरियाणा में हुई है। वे अपने मित्रो को भी एश करने की सामूहिक दावत दे रहे हैं। फ़िल्मो विज्ञापनो के बाजारवाद ने सुदूर अंचलो तक अपनी पैठ बना ली है। शिक्षित परिवार के युवक युवती और ग्रामीण अंचल के अनपढ़ या कम पढ़े लिखे युवाओ पर इसके असर में बड़ा अंतर है। इस बाजारवाद के प्रभाव से ग्रामीण अंचलो या शैक्षिक रूप से पिछड़े इलाको मे दूरगामी असर हो रहे है। बलात्कार से भी आगे गरीब लड़कियो को प्रेम के जाल मे फ़सा कर ही वेश्यालयो तक पहुंचाया जाता है। ऐसा नही है कि ऐसी लड़कियो का प्रेम हरदम असफ़ल होता है  लेकिन तुलनात्मक रूप से असफ़लता और बुरी संभावनाओ की दर इनमे बहुत ज्यादा है।

किसी भी संगठित समाज का अपने में आई खामियो और खतरो से निपटने का एक सामाजिक तरीका होता है। खाप इसी का एक उदाहरण है। हम आरामदेह कुर्सियो में बैठ इनके फ़ैसले को जरूर कोस सकते हैं।  सोलह या पंदरह की उम्र मे शादी निश्चित ही एक अनुचित कदम भी होगा। पर हमें खाप पंचायतो के सम्मुख खड़ी समस्याओं और आशंकाओ पर भी तो चर्चा करनी चाहिये। सभ्यता तो लिव इन रिलेशन तक भी ले जाती है, पर एक नौकरीशुदा उच्चशिक्षित जोड़े के लिव इन और खेतों, कारखाने में काम करते अल्पशिक्षित जोड़े लिव-इन रिलेशन में अंतर होगा कि नही। बाजारवाद की शक्तियां ही किसी भी देश के संविधान और व्य्वस्था को निर्धारित करती है। सो इस समस्या का कोई समाधान तो हो ही नही सकता। न खाप का निर्णय माना जा सकता है और न ही फ़िल्मो और विज्ञापनो के बढ़ते असर को रोका जा सकता है। पर कम से कम टीवी में बैठ खाप को सिर्फ़ कोसने के बजाये पूरे हालात पर निष्पक्ष चर्चा करना तो चाहिये। 

Wednesday, October 10, 2012

वाड्रा जीज्जा को बचाओ कांग्रेसियो





साहब हिंदुस्तान एक गजब मुल्क है , घटनाये भी अजब घटती है। हालिया मामला सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा का है। दामाद बाबू दुलरू अपनी ससुराल में बराबर फ़िट हो चुके थे। पिता भाई से भी संबंध इस बात पर ही टूटा कि वे गांधी परिवार के नाम से आसानी से मिलने वाले पैसे का मोह नही छोड़ सके थे। यहां तक तो दामाद बाबू ठीक चले लेकिन 2006 आते आते दामाद बाबू के अंदर महत्वकांक्षाये जाग उठी थी। पैसे उनके पास थे नही और अवसर स्वर्णिम नजर आ रहा था। ऐसे में उन्होने जो तथाकथित खेल किये वैसा खेल राजनीति का ककहरा पढ़ चुका कोई समझदार एमएलए भी नही करता, और दस साल व्यापार चला चुका कोई व्यापारी भी। किसी भी पत्रकार की लाईफ़ टाईम स्टोरी बनने या किसी भी राजनैतिक दल का लांच पैड बनने के लिये इनका शिकार काफ़ी था। मुझे तो लगता है कि पिछले दस साल महामूर्खो के सफ़ल होने का दशक था। फ़र्जी दस्तावेजो के आधार पर भारी कमीशन खिला खदान लेने वाले कोयला चोर हों। या चेक से कमीशन लेने वाली कणिमोझी। ए राजा हो या कलमाड़ी आज सारे पछता रहे हैं। ऐसा ही किस्सा राबर्ट वाड्रा का भी कहा जा सकता है।

2007 में कुल पचास लाख रूपये के साथ बनी कंपनी शुरू की, उसके बाद शुरू हुआ डीएलएफ़ एवं अन्य तीन कंपनियो से मुफ़्त पैसे मिलने का सिलसिला। जिसमे डी एल एफ़ ने 80 करोड़ दिये। इसमें भी केमिकल लोचा है, बोले तो कंपनियो ने इसे अपनी बैलेंस शीट में बिजनेस एडवांस दिखाया है और वाड्रा बाबू ने लोन। इसके बाद वाड्रा ने डीएलएफ़ के पैसो से उसकी ही जमीने फ़्लैट और होटल मे हिस्सेदारी खरीदी।  2007-8 से पचास लाख रूपये में शुरू हुई पांच कंपनियो से वाड्रा जी ने साठ लाख रूपये सालाना तंख्वाह भी प्राप्त की। और लोन के रूप मे मिले हुये पैसो को अज्ञात जगहो मे फ़िक्स डिपाजिट कर ढाई करोड़ ब्याज भी प्राप्त कर लिये। उसके बाद जादुई शक्तियो ने उनकी संपत्तियां 7.95 करोड़ वर्ष 2008, Rs 17.18 करोड़ वर्ष 2009, Rs 60.53 करोड़ वर्ष 2010 में पहुंच गयी। बोले तो 350 गुना की बढ़ोतरी तीन सालो में। लेकिन 2010 में उन्होने अज्ञात स्त्रोत से तीन करोड़ का नुकसान दिखा दिया। अब सोचने वाली बात यह है कि इस तरह तो उनकी लागत पचास लाख और कमाई ढाई करोड़ शून्य हो गयी। और इस पूरे दौरान उनकी किसी कंपनी ने कोई कार्य नही किया उनके पास कोई कर्मचारी भी नही था।

अब सवाल यह उठता है कि राबर्ट वाड्रा जी पर लगे आरोपो क्या जांच होगी, कौन जांच करेगा? क्या उन पर कोई कार्यवाही की जा सकती है? रे कांग्रेस के महारथी उन्हे बचाने के लिये अंग्रेजी के लफ़्जो का प्रयोग कर रहे हैं। जिसमे पहला शब्द है प्राईवेट , बोले तो कांग्रेसियो के हिसाब से वाड्रा एक गैर राजनैतिक शख्स है जो किसी भी सरकारी ओहदे मे भी नही। दूसरा शब्द आ रहा है "क्विड प्रो को-quid pro quo" सरलता से कहा जाये तो फ़ेवर के बदले में फ़ेवर। कांग्रेस का कहना है कि DLF की मेहरबानियो के बदले वाड्रा जी किसी भी तरह की सरकारी मेहरबानी करने की स्थिती मे नही थे या उन्होने नही की। इसलिये उन पर कोई भी अपराध का आरोप नही लगाया जा सकता। और ना ही जांच के दायरे मे आते है। हद से हद उनसे इनकम टैक्स वसूला जा सकता है जिसे चाहे आवेदन दे कर इनकम टैक्स विभाग से जांच करवा ले। पर अंग्रेजी का एक और वाक्य इन दलीलो को धाराशाही कर देता है। वह है "पालिटिकली एक्सपोस्ड पर्सन।" बोले तो राजनितिक परिवार से नजदीकी संबंध रखने वाला आदमी। विश्व के विकसित देश में यह कानून है कि किसी भी नेता अधिकारी का पुत्र आदि यदि संपत्ती या लाभ प्राप्त करते है तो उन्हे भी अपराधी ठराया जा सकता है। हमारे देश मे यह कानून नही है, पर सुप्रीम कोर्ट के विद्वान जज साहेबान दिन भर विश्व भर के कानूनो का हवाला दे कर फ़ैसले सुनाया ही करते है और वे यदि आरोप साबित समझे तो वाड्रा जी को भी मुजरिम ठहराया जा सकता है।
कांग्रेस के महारथी आरोप लगाने वालो को अदालत जाने की नसीहत भी दे रहे है। लेकिन फ़िर तो ऐसे मे दिन भर एक दूसरे पर आरोप लगाने वाले नेतागणॊ को इसे आचरण पर भी उतारना चाहिये क्योंकि भारत की राजनीति तो टिकी ही आरोप लगाने मे है। उससे भी बड़ा तर्क आता है नैतिकता का। लेकिन नैतिकता हमारे देश को त्याग कर जा चुकी है। सो उसकी बात करना ही बेमानी है, वरना यहां मंत्री बनने लायक नेता खोजे नही मिलेंगे। डैमेज कंट्रोल मे जुटी कांग्रेस काफ़ी डैमेज तो हो ही चुका है। राजनैतिक रूप से छिछालेदर झेलने के अलावा भी कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व पर लगा यह धब्बा आसानी से मिटने वाला नही है। उनके लिये राहत की बात यही है कि प्रियंका गांधी इन किसी भी कंपनियो मे किसी भी रुफ मे शामिल नही रही।

इस खुलासे से एक और बहुत बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है कि जब पिछले साल इकानामिक टाईम्स ने इस घोटाले के बारे इशारा करती स्टोरी छापी थी। तब उसके बाद भाजपा और भारत की मीडिया ने इस विषय को क्यों नही उठाया। क्या भाजपा और मीडिया समूहो को अपनी पोल भी खुल जाने का डर था।  पर अब एक ऐसा नया संगठन इस मैदान में आ चुका है, जिसका दामन साफ़ है और वह इन सबकी पोल खोलने में आमदा है। यदि केजरीवाल अपने कार्य में सफ़ल हो जाये, तो इस देश के सामने ऐसे सैकड़ो नग्न सत्य सामने आने वाले हैं। जिसे हर देश वासी जानता तो है पर उसकी बात बोलने वाला आज तक कोई नही था।
शाबास केजरीवाल आगे बढ़ो, हर देशभक्त आपके साथ है। और वाड्रा जी बाकी त सब ठीक है पर आप राजनीति मे मत आना, ऐसा कच्चा खेल करने वाला नेता तो इस देश को डुबा ही देगा प्रभु।

Sunday, October 7, 2012

माफ़ कर दो वाड्रा जीज्जा


हा केजरीवाल, ये क्या कर डाला भाई, युगो युगो से इस धरा पर जीजाओं को सर माथे पर बैठाया जाता है। आज आपसे वाड्रा जीजा  का फ़लना फ़ूलना ही न देखा गया।  अरे जीजा कमाता है, त दीदी और भांजा भांजी को ही न खुश रखता है।  उनको तमाम सुख सुविधाये प्रदान करता है।  खुद तो जीजा के लिये कभी कुछ किये नही,  डीएलएफ़ वाले बेचारे जीजा को काम धंधे से लगा दिये त आपका पेट दुख रहा है।  भाजपाई बोलते हैं कि  जीजा होगा कांग्रेसियो का हमारा नही है। पर ये हिंदुत्व की अवधारंणा वसुदैव कुटुंबकम को भूल रहे हैं। अरे जब पूरा विश्व कुटुंब है त कांग्रेसी भी न इसी कुटुंब मे आते है। और उनका जीजा भी त आपका जीजा हुआ कि नही। ऐसे शाखा में गला फ़ाड़ के गायेंगे  "सर्वे भवन्तु सुखिनः" और कांग्रेसियों का जीजा सुखी हो रहा है तो देखिये साहब ये दुखी हो रहे हैं।

और बाबा रामदेव भी लगे हैं आरोप लगाने,  ऐसे तो स्वदेशी, स्वदेशी गाते हैं। जीजा स्वदेशी कंपनी से स्वदेशी लोन लिया, जमीन भी स्वदेश में ही लिया,  फ़्लैट भी। कालाधन  छुआ भी नही, जिससे लिये लौटती डाक से वापस दे दिया। अब काली जमीन काला फ़्लैट का बात आज तक बाबा बोले हों त कोई कहे।   चलो ये केजरीवाल और बाबा रामदेव तो नये लोग है राजनीती में।  ये वामपंथी तो पुराने है इनको समझ नही आता कि जीजा ने कितना मासूम सा खेल किया है।  स्व. नरसिम्हा राव के लडके कि तरह  पांच % कमीशन लेकर अमेरिकियो को यूरिया की पेमेंट एडवांस में करवा देते।  वे पईसा लेकर रफ़ू चक्कर हो जाते तब क्या करते ?  जब श्रीकांत वर्मा का लड़का देश की खुफ़िया जानकारी बेच सकता है, तो जीजा जी तो क्या से क्या कर सकते थे।  हवाई जहाज से लेकर टैंक तक, जिधर हाथ रख देते वही माल खरीद लिया जाता।  फ़ेर रहते एड़ी अलगा अलगा के भाषण देने में। ऐसे भी आज कल वामपंथियो की सुनता कौन है साहब।

और मै देश वासियो से भी पूछना चाहता हूं  कि बेटी जब विदा होती है तो गाना गाते हो  कि नही "बाबुल की दुआएं लेती जा"। लोग चिंतित रहते है कि पता नही ससुराल वाले कैसे रखेंगे। वाड्रा जीजा ने त अपना मायका, बाप, भाई सब त्याग दिया। ऐसे त्याग शील दामाद के लिये तो जो किया जाये सो कम है। ऐसा हीरा घरजमांई किस्मत वालो को ही मिलता है भाई। और जीजा तो शराबी, जुआंरी भी निकल जाये तो लोग दीदी और बच्चो के भविष्य की खातिर बर्दाश्त करते है।  ये जीजा तो देश को राजकुमार राजकुमारी देने वाला है भाई।  आखिर अपना अमूल बेबी तो कुवांरा बाप बनने से रहा।

आखिर में चलते चलते-  "हे वाड्रा जीजा,  जो हुआ उस पर मिट्टी डालो।  कहा सुना माफ़ कर दो, आप तो जानते ही हो बदमाशो का गांव अलग से नही होता, हर गांव मे रहते है। ऐसे ही आपके कुछ बुरे साले भी है इस देश में।  ऐसे दुष्टो की बातो का क्या बुरा मनाना, आपके सलमान खुर्शीद टाईम कितने जीजा भक्त साले भी तो इसी देश में हैं। जो आपके लिये जान, आन- बान देने को सदा तैयार रहते है। आप पर इन बेशर्मो ने जो आरोप लगाये है उसके बचाव मे देखिये तो कैसे सब कूद पड़े है। मै आपका दर्द समझ सकता हूं आपने जो अपने को बनाना ससुराल मे मैगो दामाद बताया है उससे आपकी पीड़ा जाहिर है। पर आप भी बात समझ ही गये होंगे आखिर ससुराल गेंदा फ़ूल जो ठहरा।



नोट - वाड्रा को जीजा मानने से इंकार करने वाले दुष्टो , तुम्हारे न मानने से का होता है?  आखिर शोएब मलिक भी तो सानिया मिर्जा को उड़ा ले जाने के बाद जीजा बन ही गया था कि नही।