Tuesday, July 31, 2012

मोहन भागवत अनशन पर क्यो नही ?



देखिये साहब वैसे तो इस देश में लोकतंत्र है,  न कोई किसी को अनशनियाने से रोक सकता है और न ही जबरदस्ती करवा सकता है। पर इस सवाल का कारण यह है कि सोशल मीडिया में स्वयं को हिंदु धर्म रक्षक मानने वाले वीर,  अन्ना हजारे के अनशन को कोसते घूम रहे हैं।  जाहिर है लोकतंत्र में उनको इसका अधिकार भी है, और ऐसा करने वाले वे अकेले भी नही है।  मीडिया के माध्यम से अनशन के खिलाफ़ राजनैतिक प्रचार निष्फ़ल है।  मीडिया और राजनैतिक दल दोनो अपनी साख खो चुके है। पर सोशल मीडिया में जहां से इस आंदोलन को जान मिलती है,  वहां एक  मुखर समूह संघ समर्थको का है। ये लोग अपने को देश भक्त, भारत मां के सच्चे सपूत और उनसे असहमत लोगो को देशद्रोही, बिकाउ और इन सबसे उपर शेखुलर करार देते है। इनका आरोप है कि अन्ना कांग्रेस के एजेंट हैं,  उनकी टीम चंदा खोर एनजीओ का समूह है। इनके हिसाब से इस आंदोलन में जाने वाला कोई भी व्यक्ति हिंदुत्व का दुश्मन है।

ऐसे मे सवाल यह उठता है कि  इन जैसे परम देशभक्तो के होते हुये क्या जरूरत है,  केजरीवाल और अन्ना को अनशन करने की। ये लोग जिस संघ और उसके प्रमुख आदरणीय मोहन भागवत जी के अनुयायी होने का दावा करते है।  वे क्यों नही भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन खड़ा करते, अनशन करते।  देशभक्त होने के दावे के साथ जुड़ी जिम्मेदारी का पालन भी जरूरी है कि नही। वैसे ये लोग  बाबा  रामदेव के आंदोलन को समर्थन करने का दावा करते है।  ऐसे में यह सवाल भी उठता है कि बाबा के आंदोलन के समर्थन का क्या यह अर्थ है कि दूसरे के आंदोलन को पहले असफ़ल बनाया जाये।  संघ को किसी और को समर्थन करने के बजाये क्या खुद आंदोलन नही करना चाहिये था। आंदोलन भी छोड़िये, क्या भाजपा के भ्रष्टाचार के गर्त में डूबने की राह में संघ को रोड़ा नही बनना चाहिये था।  यह सवाल पूछते ही तड़ से बयान आ जायेगा,  संघ का भाजपा से कोई लेना देना नही, वैचारिक समर्थन है बस।  बाबा रामदेव असफ़ल हो जाये आंदोलन में, या फ़िर फ़रार हो जायें सलवार पहन के।  तब भी इनका यही बयान आ जायेगा कि बाबा को वैचारिक समर्थन मात्र है, उनसे लेना देना नही।


अरे भाई भाजपा से लेना देना नही, बाबा से लेना देना नही।  देश से तो लेना देना है कि उससे भी लेना देना नही। क्या हिंदु राष्ट्र की अवधारणा में इमानदारी, सुशासन नही आता। क्या भ्रष्टाचार से आपके महान हिंदु राष्ट्र के नागरिको का जीवन तबाह नही हुआ जाता। जिन आदिवासियो के ईसाई बनते ही बिलबिला उठते हो, उनके जंगल जमीन के लुटने से बिलबिलाहट क्यो नही उठती। जिन दलितो पिछड़ो को आप हिंदुत्व की मुख्यधारा मे जोड़ने का दावा करते हो उनके कष्ट से आपको सरोकार नही। और तो और जो शहरी मध्यम वर्ग आपका समर्थक वर्ग है उनके घरो मे बिना सब्जी का खाना बनता देख आंखो मे आंसू नही आता। या बड़े वाले हिदु राष्ट्र का नक्शा बनाते बनाते जो राष्ट्र अभी है उसकी तबाह होती अर्थव्य्वस्था दिखना बंद हो गयी है।


वैसे अंदर खाते की आफ़ द रिकार्ड बात आपको बताउं,  इनको अनशन में गांधी जी का भूत नजर आता है। वैसे गोड़से से तो कोई लेना देना नही है का बोर्ड लगाये रहते है। लेकिन गुप्त दान मे मिले नोट के आलावा जिस भी चीज में गांधी जी की छाया नजर आ जाये, उससे ये दूर छटक जाते है।  हमारी पहुंच इनके हेडक्वाटर तक नही है। वरना समझाये देते कि भाई गांधी का स्वदेशी चुराये कि नही, खादी चुरा लिये, दलित उद्धार चुरा लिये। यहां तक कि "हे राम" में से "राम"  भी चुरा लिये। तो काहे नही अनशन और चश्मा भी  चुरा लेते। चश्मा रहता तो हिंदु राष्ट्र  की हिंदु समस्याएं दिखती भी साफ़ साफ़। अनशन से देश भक्ती का काम करने का अचूक अस्त्र भी मिल जाता। पर नही भाई ये लोग जिद पर अड़े हैं कि  जनता के गुस्से का सहारा न ले अन्ना और केजरीवाल। उस पर सिर्फ़ और सिर्फ़ संघ और बाबा का अधिकार है। इनके लाये  ही देश  मे सुशासन आयेगा, खबरदार कोई और आगे बढ़ा तो।

संघ समर्थक, इस लेख को पढ़ कहेंगे-  मुसलमानो के बारे में कह के दिखाओ फ़िर हमको सीख देना। क्या कहूं भाई मै मुसलमान तो कछुए की तरह खोल के अंदर छिप कर बैठे रहते है। कोई आंदोलन हो  तो यह देखते है कि इससे हमारा क्या नुकसान हो सकता है। अपना फ़ायदा  देश का फ़ायदा तो उनके लिये सेकेंडरी इश्यू है। ठीक वैसे ही जैसे संघियो के लिये हिंदुत्व प्राथमिक और भ्रष्टाचार सेकेंडरी इश्यू है। संघी मुसलमानो का हवाला देंगे तो मुसलमान संघियो का। इनके आपसी रेस टीप के खेल में पिस यह देश रहा है। पिस वो लोग रहे है जो खुद को हिंदु या मुसलमान के पहले इंसान समझते हैं।

Tuesday, July 24, 2012

प्लीऽऽस माई लार्ड आचार्य बालकृष्ण को छोड़ दो


देखिये साहब अमूमन मदद या चंदे के लिये आयी किसी भी पुकार को मै मंझे हुये नेता की तरह आश्वासन के बल्ले से सीमा रेखा के पार पहुंचा देता हूं। लेकिन बाबा रामदेव के चेले चपाटियों की इस मार्मिक गुहार से मै क्लीन बोल्ड हो गया हूं।  बाबा रामदेव भी बड़े सज्जन आदमी है मदद ऐसे मांगते हैं कि मदद करने वालो का धेला खर्चा नही होता। जैसे  आंदोलन का समर्थन कर फ़लां नंबर पर मिस्ड काल करके। आचार्य बालकृष्ण की मदद भी मुफ़्तिया ही करने की है। उपर के चित्र मे दिये पते पर ईमेल भेजना है। इस कदम से सरकार भी खफ़ा नही होगी क्योंकि आपको यह कही नही कहना कि आचार्य बालकृष्ण बेगुनाह है। बस एक मार्मिक सी अपील ठोक दीजिये कि उनके खिलाफ़ कोई पुख्ता सबूत नही है।

वैसे देखा जाये तो आम जनता को इन वकीलो की लूट खसोट से बचाने का यह एक नायाब तरीका साबित हो सकता है। सरकार को कानून बना कर यह तय कर देना चाहिये कि फ़लां धारा के तरह गिरफ़्तार आरोपी को इतनी मार्मिक हृदय विदारक अपीलो के मिलने पर जमानत दे दी जायेगी।  ऐसा करने से लोकतंत्र बहुत मजबूत हो जायेगा। इसमे दबे कुचले, पिछड़ो, पसमंदा मुसलमान जैसे अपराधियो को अपीलों की संख्या में विशेष छूट देकर उन्हे सरकार मुख्य धारा के अपराधियो के साथ ला खड़ी कर सकती है। और देश की बड़ी बड़ी समस्याएं चुटकियो मे सुलझ सकती है। मसलन बाबरी मस्जिद का ही लफ़ड़ा ले लीजिये। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश का नंबर ईमेल सरकार अखबारो मे छपवा देती और वोटिंग लाईन बंद करने का टाईम देती। उस टाईम पर जिस पक्ष मे सबसे  ज्यादा मार्मिक अपीले आती वो केस जीत जाता। अब आप कहेंगे कि कहीं ऐसा होता है भला। तो भाई पाकिस्तान से सरबजीत की रिहाई के लिये मार्मिक अपील हो रहा है कि नही।

और ये बेचारा आचार्य  बालकृष्ण किया क्या है, कि उसके पीछे पड़ गये। सब डिग्री डिग्री खेल रहे थे,  उसने भी खेल लिया। जब सफ़ाई कर्मचारी टांका लगा सकता है,  चौकीदार आपरेशन कर सकता है। तो क्या बेचारा आचार्य गोली चूरण नहीं बाट सकता। वो भी आयुर्वेदिक,  जिसका कोई साईड ईफ़ेक्ट नही होता। हम तो कहते है कि ये बाबा रामदेव के साईड में न होता, तो बेचारे पर कोई पुलिसिया इफ़ेक्ट ही नही होता। गांधी परिवार के बारे में अनाप शनाप बोला बाबा और फ़िट हो गया बालकृष्ण। यही होता है जब अनुभव हीन लोग इस तरह का जोखिम लेते है।

गलती पर गलती हुआ बालकृष्ण से।  सबसे पहला भगवा चोला नही पहना बुड़बक ने, सफ़ेद चोला इधर शांती का प्रतीक है क्रांती का थोड़े।  अरे बाबा टाईप भगवा पहनता तो तत्काल जनता के मन में 'जी' से प्रमोट होकर 'श्रद्धेय' हो जाता। गिरफ़्तारी की नौबत आते ही हिंदु बचाओ सेनाएं चारो ओर से टूट पड़तीं।  उसके बाद ये डिग्री का जरूरत ही क्या था भाई, भारत में एलोपेथिक दवाई की पुड़िया बिना डिग्री बाटो तो थाने से जमानत हो जाता है। फ़र्जी डिग्री ले लो, तो सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ता है। काम वही करना है, अंतर कुछ नही। और ये तो बेचारा जड़ी बूटी बेचने वाला कौन पकड़ सकता था, इसको खामखा जंजाल मे फ़सा लेने के देने पड़ गये।
इतना भी नही समझे आचार्य बाबू कि जिन लोगो की शह पर बावेला मचा रहा हूं। वो लोग बाद में "हमारा इससे कोई लेना देना नही है" वाला बयान जारी कर देते है। आंदोलन करने से जयजयकार ही होती प्यारे तो नही उ लोग खुद ही कर लिये होते। खैर इस बार मार्मिक अपील कर रहा हूं, अगला बार बवेला किये फ़ेर हमारे पास मत आना।

 माई लार्ड नही पता था बेचारे को, माफ़ कर दीजिये।  कसम खाते है के आज के बाद ये किसी आंदोलन में भाग नही लेगा।  उनके खिलाफ़ कोई पुख्ता सबूत भी नही है। छोड़ दीजिये प्लीऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽज

Wednesday, July 18, 2012

बेटियों को पटने दो गांव वालो

देखिये साहब इस तरक्की शुदा इंडिया के उपर ये पिछड़ी सोच के गांव वाले किसी कलंक से कम नही। आदर्श इंडिया की राह में हिंदुस्तान रोड़े अटका रहा है। अचानक  इंडिया कैसा हो यह नजारा मेरी आंखो के सामने तैर गया। चार पड़ॊसी आपस मे बात कर रहे थे।

शर्मा जी दमकते चेहरे से बोले- " भाई आज मै चिंता मुक्त हो गया।  लड़की को एक लड़के ने आई लव यू कह दिया।  बेचारा पुरानी सोच वाले खानदान का था,  तीन महिने से आगे पीछे हो रहा था।  वो तो मैने  कहा, डरो मत बेटा कह दो, तब कही जा कर उसने कहा।

पीटर साहब बोले- "आज कल आई लव यू कहने वाले लड़के आसानी से मिलते कहा हैं।

खान साहब बोले - " मेरी बेटी को तो हमारी ही जात का लड़के का आई लव यू पसंद आ गया था। वो तो मैने तड़ फ़ड़ दूसरी बिरादरी वाले लड़के को खोज खाज,  दहेज दे आईलवयू कहलवाया। वरना शहर में नाक कट जाती कि देखो ये खान साहब कितना पिछड़ा है अपनी बिरादरी में निकाह करवा दिया।

सतनाम सिंग बोले  - मै तो परेशान हो गया हूं भाई,  बड़ी  बेटी को जो आई लव यू कहे वो उसे पसंद नही आता।  भले अपनी जात का आई लव यू कहे, पर मामला निपटे तो सही।  अरेंज मैरिज करनी पड़ गयी तो मेरी छोटी लड़की को आई लव यू कौन कहेगा। 


ऐसा स्वर्णिम सपना देख आंखे खोली ही थी कि सामने टीवी पर प्राईम टाईम नजर आया। सब पानी पी पी कर कोस रहे थे - "सरकार सो रही है नेताओ को डूब मरना चाहिये।" एक बेचारा खाप पंचायत वाला गिड़ गिड़ा रहा था- "हमारा रिवाज है, एक गोत्र में शादी करने की इजाजत नही है। तभी एक मोटी ताजी महिला नेता ने टोका- " पांच सौ साल पहले रह रहे हो क्या साहब, मेरा बस चले तो इन घटिया लोगो को एक दिन मे ठीक कर दूं।" फ़िर सारे के सारे एक साथ बोलने लगे। शोर गुल से घबरा हमने टीवी ही बंद कर दिया।



ये जो काल्पनिक सीन मैने बताया वह आज का सच है।  ये पढ़ लिख खा पी कर मोटाये,  मानवाधिकार वाले ऐसी आदर्श परिस्थिती की बाते करते है कि जाने माने लड़का, लड़की गैजुयेट है। लड़का खा कमा रहा है लड़की को रानी बना कर रखेगा। अरे भाई गांव मे झांक कर तो देखो, शहर की गरीब बस्तियों में ही झांक कर देखो। लड़का लड़की कितने पढ़े लिखे होते हैं। विवाह के बाद कैसी कैसी समस्याएं आती है। खुद इनके घरो का आंकड़ा पूछिये, कितनो के बच्चो ने प्रेम विवाह किया है।

 ये खाप वाले भी कोई अलगू चौधरी, जुम्मन शेख की औलाद नही है। इनका हुक्म और फ़जीहत  गरीबो को ही झेलनी पड़ती है। प्रेमी जोड़े बर्बरता का शिकार होते है। आनर किलिंग के नाम पर सैकड़ो हत्याये होती ही हैं। गांव की औरतो को अकेले बाजार न जाने देने की घोषणा करने वाले को जेल होना ही चाहिये। पर सामाजिक परंपराओ का सम्मान भी होना चाहिये, हर समाज सैकड़ो सालो मे विकसित हुआ है उनकी मान्यताये विकसित हुई है। जातीवाद को ही देख लीजिये हिंदुओ से शुरू हुआ, मुसलमान तो भी जातीवाद बरकरार है। यह धर्म की नही समाज की देन है।

मुद्दे पर संतुलित चर्चा होनी चाहिये, परंपराओ का सम्मान करते हुये चर्चा होनी चाहिये। कोई समाज अपने नियमो का उल्लघंन करने वाले को समाज से बाहर कर दे तो किसी के सवाल उठाने का प्रश्न नही। क्या लड़का लड़की को प्यार के पहले नही पता था कि समाज इसे स्वीकार नही करता। गांव से, संपत्ती से बेदखल करने का विरोध होना चाहिये, सुरक्षा, कानूनी सहायता मिलनी चाहिये । चर्चा ऐस     हो जिस पर चर्चा हो रही हो वह उससे कुछ सीखे, समझे सोच विकसित करें। टीवी पर गला फ़ाड़ कोसने उस पर उल्टा ही असर होगा।

खैर साहब इन मोमबत्ती ब्रिगेड वालो का धंधा कभी मंदा नही होगा, हिंदुस्तान इंडिया भी बन जाये, खाप पंचायत वाले कन्या बचाओ की तरह प्रेम विवाह बचाओ का नारा भी लगाने लगे। तो ये समलैंगिकता का नया बवाला खड़ा होने ही वाला है। फ़िर इनका दाल रोटी चल निकलेगा।

Monday, July 16, 2012

प्यारे दलितो, टायलेट साफ़ कर दो न प्लीज

साहब अमूमन हमारा मुंह काला होता नही। कारण कि यह शर्म की तरह है, आये तो ठीक, न आये तो ठीक। लेकिन आमिर खान के दलित समस्या के उपर किये कार्यक्रम में जो नंगी सच्चाई सामने आई। उससे मैं नही समझता कि मुंह काला होने में कोई कसर बाकी थी। वैसे अपने देश में भी एक गजब जुगाड़ है, कोई कुरीति सामने आये तो बाकी धर्म के लोग पेट पकड़ पकड़ के हंसते है।  जिस धर्म की कुरीति हो, वो अपने धर्म का बचाव और दूसरे धर्म की कुरीतिया गिना अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेता है। लेकिन आमिर खान ने सारे धर्मो को नंगा कर दिया, एक साथ एक ही मंच पर।  आखिर मल उठाने वाला, मल का जात पात तो नहीं ही पूछता। और मल करने वाला भी यह कभी नही सोचता कि इसको उठायेगा किस धर्म का आदमी।

इस शो को देखने वाले और उसमें मौजूद नब्बे प्रतिशत लोग,  मध्यमवर्ग और उससे उपर के ही रहे होंगे। भारत का बाजार भी यही है। हर समस्या पर राय रखने वाले कर्णधार भी वही। ये वही लोग है जो गरीबो को गाली बकते है कि- "साहब ये दारू पैसा लेकर, अपना वोट नकारो को दे आते हैं।" इनको लगता है कि ये दलित समस्या गांव का ’इशू’ है। और हम लोग कभी ऐसा नहीं करते। यह वर्ग दलितो से एक बैर भी पाले बैठा है कि ये लोग फ़ोकट में बिना नंबर पाये एडमिशन और नौकरी ले जाते हैं। पर इनके नजर में न आने वाले इस घृणित परंपरा को ये क्या कोई खत्म नही कर सकता। अपना मल खुद न उठाने और साफ़ करने की राजशाही अकड़ जब तक खत्म न होगी। तब तक उसे किसी न किसी को तो उठाना ही होगा कि नही।

अब आ जाईये  खुद को दलित परंपरा से अछूते मानने वाले लोगो की गलियों में। कौन हमारे घर के सामने की नाली साफ़ करता है? क्या घरों का ’मल’ और उसका पानी सीधे नालियो में नही छोड़ा जाता ?  हमारे सेप्टिक टैंक और ड्रेनेज सिस्टम के जाम होने पर कौन इसे साफ़ करने आता है? शहर के गटर जाम होने पर कौन उन्हें साफ़ करता है। यह वही समाज है, जिन्हे गांव मे "दलित" कहा जाता है और शहर मे प्यार से "स्वीपर"। अब तो सरकार फ़िर गांव गांव में अरबो रूपये हर घर में शौचालय योजना में लगा रही है। कारण यह है कि भाई खेतो में कोई हगने जाये तो वह मोटेंक सिंग आहलूवालिया को राष्ट्रीय शर्म की बात नजर आती है। तथाकथिक शुष्क शौचालय, जिसकी डिजाईन हम सुने है कि डीआरडीओ ने बनाई है।

राकेट का माल तो अतंरिक्ष में छोड़ा जा सकता है। धरती में आकर दस जनपथ में भी नही गिरेगा, आसमान में ही खाक हो जायेगा। लेकिन गांव की सीमित जगह में नया गढढा कैसे बने? साफ़ तो उसे भी करना ही होगा, करेगा कौन यह बात भी जाहिर ही है। हां ’अग्नी’ टाईप की कोई मिसाईल बन जाये कि शुष्क शौचालय को अंतरिक्ष मे ले जाकर फ़ेंक आये तब की बात अलग है।
अपने नेता लोग भी बहुते दूर दृष्टी तो छोड़िये, नजदीक की दृष्टि वाले भी नही हैं। वरना सोनिया जी, मनमोहन जी, आडवानी जी, और हमारी राष्ट्रपती महा माननीय प्रतिभा पाटिल जी भी अपने सरकारी बंगलो में ही देख लेते,  शौचालय और मल की सफ़ाई कौन कर रहा है। ऐसे में मुंह काला हो गया,  ऐसी भावना मन में न आये तो ही ठीक।

और हां खेतो मे हगने कोई न जाये, आखिर किसी इज्जतदार देश में कोई खेतो मे हगने जाता है क्या भला? फ़िर बेचारे दलित बेरोजगार न हो जायेंगे। जब मल ही न होगा तो उठायेंगे क्या,  करेंगे क्या ? वैसे भी राष्ट्रीय शर्म का विषय वह होता है जिसे दूर भले न किया जा सके। पर दूर करने का ढोंग जरूर किया जा सकना चाहिये। अब मैला साफ़ करने को बंद करने का ढोंग भी करना हो तो मोंटेक सिंग करवाये किससे। बाकी लोग तो करने से रहे जिनसे अपना साफ़ नही किया जाता वो भला दूसरो का कैसे करे? मजे की बात देखिये यह बात मेरे भी दिमाग में तभी आयी जब मै आमिर का शो देख रहा था। वरना आज के पहले मेरे घर का भी मैला साफ़ करने कोई विदेश से तो नहीं ही आ रहा था।

Sunday, July 8, 2012

’गॉड पार्टिकल ’ और दलित

नुक्कड़ पर, गॉड पार्टिकल पर चर्चा में कालू गरीब ने दखल दिया - 'इसको हिंदी में क्या बोलते हैं, गुरू।'  हमने कहा - 'यार जब तक हिंदी भवन के बड़ी बुद्धि वाले अफ़सर, इसके लिए कठिन, भारी भरकम हिंदी शब्द न खोज लें, तब तक बताया नही जा सकता। अभी हम सरल सा कुछ नाम दे देंगे,  तो उ लोग बौरायेंगे कि देखो दवे जी ने हिंदी को पतित कर दिया।' कालू गरीब ने राय दी - 'गुरू कुछ सुझाव टाइप नाम दे दो, बहुत कुलबुलाहट हो रहा है।  हमने कहा- 'देख भाई,  ऐसे तो इसका नाम 'भगवान कण’ होना चाहिये।'  इतना सुनते ही कालू हंस हंस के लोट-पोट हो गया,  बोला-  'तुमाये जैसे बामन,  यहां वहां की फ़ेंकते थे। मेरे जैसे  दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक फ़ोकट अपना शोषण करवाये इत्ते साल।'

    हमारा माथा घूमा, हमने पूछा- 'क्यों बे, इसमें बामन किधर से बीच में आ गया?'  कालू लरज कर बोला - 'कहते नहीं थे  'कण-कण में भगवान होता है’ अब बताओ, ये भगवान कण अलग किधर से आया गुरू।'  हमने माथा ठोका- 'रै बुड़बक, अब हम समझे काहे तुम लोगों का इत्ते साल शोषण हुआ। अरे बात समझते हो नहीं,  लगते हो उछलने।  उल्टा ये वैज्ञानिक लोग पुष्टी किये हैं। पहले जब बामन लोग कहते थे कि कण-कण में भगवान होता है,  तो दूसरे हंसी उड़ाते थे। अब बता हर कण के अंदर ये 'गॉड पार्टिकल’ मौजूद है तो उसमें भगवान हुआ कि नहीं।' अब कालू बैकफ़ुट में था,  लेकिन फिर भी उसने तर्क ठोका- इसका मतलब गॉड पार्टिकल हम लोगो के अंदर भी है। कितना शोषण किये हमारा,  सोचो हमारे अंदर का गॉड पार्टिकल कितना तकलीफ़ सहा होगा।

हमने कहा - रै कालू,  अपना गलती महसूस कर न आरक्षण दिये हैं।  पर एक बात जान जाओ,  तुम्हारे अंदर का गॉड पार्टिकल तुम लोगो से बड़ा नाराज है। काहे कि तुम लोग उसका पूजा पाठ नहीं करवाते हो हम लोगो से। कालू पहले तो ठठाकर हंसा, फिर बोला- गुरू हंसी मजाक छोड़ो,  ई गॉड पार्टिकल क्या बला है उ बताओ। बहुते कुलबुलाहट हो रहा है सच्ची।  हमने कहा- देख भाई कालू जिस मूल तत्व से पूरा संसार बना है उसकी खोज हो गयी है। हिग्स बोसान नाम दिया गया है उसको।  कालू ने मुंडी झटकी बोला-  गुरू त इस खोज का फ़ायदा क्या।  हम हड़बड़ा गये,  बामन सब जानता है कि यह सिद्धांत खतरे में था। जो हम ही नही जानते इस कालू को कैसे बतायें। सो हम भड़क गये - तू जान जायेगा गॉड पार्टिकल के बारे में तो क्या फ़ायदा होगा?  अरे बुड़बक हर काम फ़ायदा नुकसान से नही होता है। वैज्ञानिक लोग को तेरे जैसे कुलबुलाहट हुआ त खोज किये। लगा है दिमाग खाने सुबह सुबह। कालू ने आहत नजरों से हमको देखा बोला - क्या गुरू, सदियों आप के पुरखों ने हमारे पुरखों का शोषण किये थे कि नहीं! आज हम लोगो को ज्ञानी बना,  अपने पुरखों का पाप काटने का आपको मौका मिल रहा है, तो भड़क रहे हो।

 हमने नर्म स्वर में कहा - यार तू हर बात में हमारे पुरखों के पाप को बीच में ले आता है। हम तो मजाक कर रहे थे यार,   अब खोज अभी हुई है। अब उस खोज के फ़ायदे खोजने में भी समय लगेगा कि नहीं। वैसे हम सुने हैं कि इस खोज के बाद जो चीजें गड़बड़ बन गई है, उनमे सुधार किया जा सकता है। कालू ने सर खुजाया, बोला- "गुरू इससे अपने देश का क्या फ़ायदा।" हमने कहा-  "देख भाई,  सबसे बड़ा फ़ायदा तो यह होगा कि गांधी जी अपने लोकतंत्र को राबिनहुड की तर्ज पर अमीरों से छीन गरीबों को देने वाला बनाना चाहते थे, वो  बन गया गाबिनहुड,  गरीबों से छीन अमीरों को दे देता है। अब गलती सुधारने का मौका मिले मियां, तो सबसे पहले उसको सुधारना चाहिये। तभी कालू ने हमें टोका - गुरू तब तो इस ’गॉड पार्टिकल’ से आप जैसे सवर्णों को दलित और मुझ जैसे दलितों को सवर्ण भी बनाया जा सकता है कि नहीं। इतना कह कालू सरपट भाग लिया,  हम पीछे पीछे थे छड़ी  उठाये - ठहर,  अहसान फ़रामोश कालू आज छोड़ने वाले नहीं तुझे।

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Tuesday, July 3, 2012

बेड़ा गर्क हो आमिर खान का




प्रिय आमिर"-  ऐसे मै लिखता अपने पत्र में। लेकिन  अल्कोहल वाले आपके शो ने,  आप के और मेरे संबधो मे खटास ला दी है। अब तो "क्यों बे आमिर" से पत्र शुरू करने का मन हो रहा था,  पर सभ्यता के तकाजे ने रोक लिया। क्या बिगाड़ा था हमने तुम्हारा।  कभी कभार जिंदगी के गम गलत करने के लिये दो पैग का ही सहारा था, वो भी छीन लिया।  अरे बेदर्द सोचते तो कि पहले ही पत्नियो को अपने दबे कुचले पति का कोई सुख देखा नही जाता। एक बार पैग लगाओ तो हफ़्तो सुनना पड़ता है।  ऎ जालिम इतना तो सोचा होता कि भाई अच्छे शराबियो के लिये कोई बहाना छोड़ दूं।  एक ही वाक्य कह देते कि जो चैन से दो पैग लगा बीस की स्पीड में आराम से घर आ जाता है, उस पर यह शो लागू नही होता।

पर आपने तो कभी कभार पीने वालो को भी एक्सीडेंट का खतरा बता दिया है। कल श्रीमती ने पांच बार शो दिखाया है।  भगवान को धन्यवाद दे रहीं थी कि  आज तक मेरे पियक्कड़  पति सुरक्षित रहे। हम बहुत कहे कि भाई इसमे भगवान का कोई काम नही है।  हम पीकर गाड़ी बहुत संभाल के चलाते है।  लेकिन अब वे कहां मानने वाली  हमारी बातें।  जावेद अख्तर साहब, शराब पीने वालो को घिनौना और गधा बता दिये। अरे भाई खुद तो मारे पूरी बोटल वो भी 27 साल।  मैं गरीब तो साल में सत्ताईस बार नही पी पाता।  वो भी बहुत हुआ तो चेपटी।  खुद ही हमारे जैसे चेपटी पर टिके रहते तो छोड़ने की नौबत तो नही आती। खुद लिये मजा और हमारे लिये सजा का जुगाड़ पेल दिये, उनसे ये उम्मीद न थी।

और ये क्या किये भाई नंबर भी दे दिये "Alcohal Abuse" संस्था का।  हमारी श्रीमती ने नोट कर लिया है,  धमकी दी है के जो कभी पी।  तो फ़ोन करके बुलवा लूंगी और फ़िट करवा दूंगी।  जो इंकार किया तो फ़िर सोच लेना महिला थाना दूर नही है। बेमुरव्वत कुछ तो रहम करते, अरे इतन ही कह देते भाई कि जो पति बीबी की सब बात मानते हों। उनको साल में छह बार घर में चैन से पैग लगाने देना चाहिये। और साथ मे अच्छा तला भुना स्नैक्स भी देना चाहिये।  इससे बेचारे का शराब के लिये मन नही ललचायेगा।  घर में पीने से एक्सीडॆंट भी नही होगा, पत्नि भक्त बना रहेगा उ अलग।

पर नही हमारा  सुख नही देखा गया आपसे। जिंदगी भर का बैन लगवा दिये। अब हम भारत की गरीब जनता, किसी का कुछ बिगाड़ ही पाते। तो इन नेताओ को नही सीधा कर लिये रहते आज तक।  इसलिये आज आपको हम वही दे रहे है। जो भारत का गरीब आदमी नेताओं को दे सकता है, बोले तो श्राप।  " हे आमिर, जा आज के बाद तेरे पूरे खानदान में किसी को शराब का दो बूंद नसीब नही होगी।"  कोई कितनी भी दुआ मांगे, कितनी मन्नते  करे, माथा रगड़े पर जान लीजिये हमारा श्राप नही छूटने वाला है। रही बात जावेद अख्तर साहब की तो उनका  काम तो अपने आप हो जायेगा। अरे भाई आदमी दो पैग लगा न शेरो शायरी सुनता है।  नहीं बैठ गया उनका शेरो शायरी का धंधा तो हमारा नाम भी दवे जी नही।

Monday, July 2, 2012

हिंदुत्ववादी जादूगर या सेक्यूलर जादूगर


हिंदुत्ववादी जादूगर या सेकुलर जादूगर

अरूणेश सी दवे


हिंदुस्तान का पैसठ साल के सफ़र में खूब विकास हुआ है। गरीब की रोजी सौ रूपया हो गयी, अंबानी का बंगला सौ करोड़ का हो गया। ऐसा तुलनात्मक विकास किसी नेता का ताउ भी नही कर पाता, रोजी अस्सी रह जाती या बंगला अस्सी करोड़ का। दरअसल  ये काम जादूगरों का है। आखिर किसी भी महान लोकतंत्र में सभी का  एक गति से विकास होना चाहिये इस आदिकालीन सिद्धांत को न समझने के  कारण ही न इन कम्यनिस्टों का बेड़ा गर्क है। एड़ी अलगा अलगा के चीखेंगे- "भाईयो देखो कितना शोषण हो रहा है!" अरे भाई उस आदमी को खोजो  जिसने इंसान के बापू के हाथ में लिख दिया था- "तुम्हारे दो बच्चे एक से कभी नही होंगे।" मान लो सबकी कमाई एक बराबर हो भी जाये तो कहेंगे - "देखो कितना असंतुलन है। अभिताभ बच्चन छह फ़ुट का, तो मंगलू आदिवासी पांच फ़ुट का।"
वैसे इस देश में कोई समाजवाद का जादू दिखा, जी से श्रद्धेय में प्रमोट हो गया, तो कोई गरीबी हटाओ में। आधी रात में स्वाधीनता का सूरज उगा, नेहरूजी  ने जिस जादुई खानदान की स्थापना की, वो हैरी पॉटर के जादुई विश्वविद्यालय के कुलपति का बाप भी नही कर पाता। कम्यनिस्टो से लेकर लोहिया, जे.पी. सब  एड़ी-चोटी का जोर लगाकर कोस लिये, खूब ताली बटोर लिये, लेकिन जब हराकर अपना जादू दिखाने का मौका आयानतीजा टांय-टांय-फ़िस्स। भाजपाई ठीक-ठाक  जादू का खेल दिखा ही दिये थे, लेकिन चुनाव के समय "इंडिया शानिंग" चिल्ला दिये। अमीर सोचे- "गरीब लोग शाईनिंग हो गये, हम छूट गये। गरीब सोचे कि  अमीरो को शाईन कर दिये, हम छूट गये। दोनो ने वोट नही दिया। नतीजा वही अब आठ साल से बैठे हैं बाहर।
आज  कांग्रेस का जादू फ़ेल हो चुका है, और देश को नये जादूगर की जरूरत है। जादूगर ऐसा होना चहिये कि जनता के आखो में जादुई सपने तैरते रहें। देश मे संतुलित विकास के जरिये अमीरो गरीबो और महंगाई के बीच का जादुई संतुलन बरकरार रहे, पर जनता का ध्यान जादू से हट जादूगर की ओर मोड़ा  जा रहा है।  बाबा योगानन्द  चार सौ लाख करोड़ का काला जादू दिखा रहें है। उनके मुताबिक देश को फ़िर किसी जादू और जादूगर की ज़रुरत नही पड़ेगी।  पर बाबा  रामलीला की लीला के बाद ढीले हो चुके है।  देश में नयी बहस छिड़ चुकी है कि अगला जादूगर सेक्यूलर होना चाहिये कि हिंदुत्ववादी। याने देश में छाये भ्रष्टाचार, नक्सलवाद, महंगाई, आर्थिक मंदी  पर भले जादू काम करे या न करे, पर जादूगर कैसा हो, यह ज्यादा बड़ी प्राथमिकता है। हिंदुत्ववादी होगा तो उसके जादू का असर सिर्फ़ हिंदुओ पर होगा।  सेकुलर बोले तो उसके जादू के असर पर पहला अधिकार अल्पसंख्यको का होगा। खैर साहब "इंडिया सर ये चीज घुरंघर रंगरंगीला परजातंतर" वाली बात इस देश पर बरोबर फ़िट बैठती है।  अब  जादू मत  देखिये और जादूगरो के रंग देखिये वो भी ईस्टमेन कलर में।