नुक्कड़ पर, गॉड पार्टिकल पर चर्चा में कालू गरीब ने दखल दिया - 'इसको हिंदी में क्या बोलते हैं, गुरू।' हमने कहा - 'यार जब तक हिंदी भवन के बड़ी बुद्धि
वाले अफ़सर, इसके लिए कठिन, भारी भरकम हिंदी शब्द न खोज लें, तब तक बताया
नही जा सकता। अभी हम सरल सा कुछ नाम दे देंगे, तो उ लोग बौरायेंगे कि देखो
दवे जी ने हिंदी को पतित कर दिया।' कालू गरीब ने राय दी - 'गुरू कुछ सुझाव
टाइप नाम दे दो, बहुत कुलबुलाहट हो रहा है। हमने कहा- 'देख भाई, ऐसे तो
इसका नाम 'भगवान कण’ होना चाहिये।' इतना सुनते ही कालू हंस हंस के लोट-पोट
हो गया, बोला- 'तुमाये जैसे बामन, यहां वहां की फ़ेंकते थे। मेरे जैसे
दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक फ़ोकट अपना शोषण करवाये इत्ते साल।'
हमारा माथा घूमा, हमने पूछा- 'क्यों बे, इसमें बामन किधर से बीच में आ गया?' कालू लरज कर बोला - 'कहते नहीं थे 'कण-कण में भगवान होता है’ अब बताओ, ये भगवान कण अलग किधर से आया गुरू।' हमने माथा ठोका- 'रै बुड़बक, अब हम समझे काहे तुम लोगों का इत्ते साल शोषण हुआ। अरे बात समझते हो नहीं, लगते हो उछलने। उल्टा ये वैज्ञानिक लोग पुष्टी किये हैं। पहले जब बामन लोग कहते थे कि कण-कण में भगवान होता है, तो दूसरे हंसी उड़ाते थे। अब बता हर कण के अंदर ये 'गॉड पार्टिकल’ मौजूद है तो उसमें भगवान हुआ कि नहीं।' अब कालू बैकफ़ुट में था, लेकिन फिर भी उसने तर्क ठोका- इसका मतलब गॉड पार्टिकल हम लोगो के अंदर भी है। कितना शोषण किये हमारा, सोचो हमारे अंदर का गॉड पार्टिकल कितना तकलीफ़ सहा होगा।
हमने कहा - रै कालू, अपना गलती महसूस कर न आरक्षण दिये हैं। पर एक बात जान जाओ, तुम्हारे अंदर का गॉड पार्टिकल तुम लोगो से बड़ा नाराज है। काहे कि तुम लोग उसका पूजा पाठ नहीं करवाते हो हम लोगो से। कालू पहले तो ठठाकर हंसा, फिर बोला- गुरू हंसी मजाक छोड़ो, ई गॉड पार्टिकल क्या बला है उ बताओ। बहुते कुलबुलाहट हो रहा है सच्ची। हमने कहा- देख भाई कालू जिस मूल तत्व से पूरा संसार बना है उसकी खोज हो गयी है। हिग्स बोसान नाम दिया गया है उसको। कालू ने मुंडी झटकी बोला- गुरू त इस खोज का फ़ायदा क्या। हम हड़बड़ा गये, बामन सब जानता है कि यह सिद्धांत खतरे में था। जो हम ही नही जानते इस कालू को कैसे बतायें। सो हम भड़क गये - तू जान जायेगा गॉड पार्टिकल के बारे में तो क्या फ़ायदा होगा? अरे बुड़बक हर काम फ़ायदा नुकसान से नही होता है। वैज्ञानिक लोग को तेरे जैसे कुलबुलाहट हुआ त खोज किये। लगा है दिमाग खाने सुबह सुबह। कालू ने आहत नजरों से हमको देखा बोला - क्या गुरू, सदियों आप के पुरखों ने हमारे पुरखों का शोषण किये थे कि नहीं! आज हम लोगो को ज्ञानी बना, अपने पुरखों का पाप काटने का आपको मौका मिल रहा है, तो भड़क रहे हो।
हमने नर्म स्वर में कहा - यार तू हर बात में हमारे पुरखों के पाप को बीच में ले आता है। हम तो मजाक कर रहे थे यार, अब खोज अभी हुई है। अब उस खोज के फ़ायदे खोजने में भी समय लगेगा कि नहीं। वैसे हम सुने हैं कि इस खोज के बाद जो चीजें गड़बड़ बन गई है, उनमे सुधार किया जा सकता है। कालू ने सर खुजाया, बोला- "गुरू इससे अपने देश का क्या फ़ायदा।" हमने कहा- "देख भाई, सबसे बड़ा फ़ायदा तो यह होगा कि गांधी जी अपने लोकतंत्र को राबिनहुड की तर्ज पर अमीरों से छीन गरीबों को देने वाला बनाना चाहते थे, वो बन गया गाबिनहुड, गरीबों से छीन अमीरों को दे देता है। अब गलती सुधारने का मौका मिले मियां, तो सबसे पहले उसको सुधारना चाहिये। तभी कालू ने हमें टोका - गुरू तब तो इस ’गॉड पार्टिकल’ से आप जैसे सवर्णों को दलित और मुझ जैसे दलितों को सवर्ण भी बनाया जा सकता है कि नहीं। इतना कह कालू सरपट भाग लिया, हम पीछे पीछे थे छड़ी उठाये - ठहर, अहसान फ़रामोश कालू आज छोड़ने वाले नहीं तुझे।
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हमारा माथा घूमा, हमने पूछा- 'क्यों बे, इसमें बामन किधर से बीच में आ गया?' कालू लरज कर बोला - 'कहते नहीं थे 'कण-कण में भगवान होता है’ अब बताओ, ये भगवान कण अलग किधर से आया गुरू।' हमने माथा ठोका- 'रै बुड़बक, अब हम समझे काहे तुम लोगों का इत्ते साल शोषण हुआ। अरे बात समझते हो नहीं, लगते हो उछलने। उल्टा ये वैज्ञानिक लोग पुष्टी किये हैं। पहले जब बामन लोग कहते थे कि कण-कण में भगवान होता है, तो दूसरे हंसी उड़ाते थे। अब बता हर कण के अंदर ये 'गॉड पार्टिकल’ मौजूद है तो उसमें भगवान हुआ कि नहीं।' अब कालू बैकफ़ुट में था, लेकिन फिर भी उसने तर्क ठोका- इसका मतलब गॉड पार्टिकल हम लोगो के अंदर भी है। कितना शोषण किये हमारा, सोचो हमारे अंदर का गॉड पार्टिकल कितना तकलीफ़ सहा होगा।
हमने कहा - रै कालू, अपना गलती महसूस कर न आरक्षण दिये हैं। पर एक बात जान जाओ, तुम्हारे अंदर का गॉड पार्टिकल तुम लोगो से बड़ा नाराज है। काहे कि तुम लोग उसका पूजा पाठ नहीं करवाते हो हम लोगो से। कालू पहले तो ठठाकर हंसा, फिर बोला- गुरू हंसी मजाक छोड़ो, ई गॉड पार्टिकल क्या बला है उ बताओ। बहुते कुलबुलाहट हो रहा है सच्ची। हमने कहा- देख भाई कालू जिस मूल तत्व से पूरा संसार बना है उसकी खोज हो गयी है। हिग्स बोसान नाम दिया गया है उसको। कालू ने मुंडी झटकी बोला- गुरू त इस खोज का फ़ायदा क्या। हम हड़बड़ा गये, बामन सब जानता है कि यह सिद्धांत खतरे में था। जो हम ही नही जानते इस कालू को कैसे बतायें। सो हम भड़क गये - तू जान जायेगा गॉड पार्टिकल के बारे में तो क्या फ़ायदा होगा? अरे बुड़बक हर काम फ़ायदा नुकसान से नही होता है। वैज्ञानिक लोग को तेरे जैसे कुलबुलाहट हुआ त खोज किये। लगा है दिमाग खाने सुबह सुबह। कालू ने आहत नजरों से हमको देखा बोला - क्या गुरू, सदियों आप के पुरखों ने हमारे पुरखों का शोषण किये थे कि नहीं! आज हम लोगो को ज्ञानी बना, अपने पुरखों का पाप काटने का आपको मौका मिल रहा है, तो भड़क रहे हो।
हमने नर्म स्वर में कहा - यार तू हर बात में हमारे पुरखों के पाप को बीच में ले आता है। हम तो मजाक कर रहे थे यार, अब खोज अभी हुई है। अब उस खोज के फ़ायदे खोजने में भी समय लगेगा कि नहीं। वैसे हम सुने हैं कि इस खोज के बाद जो चीजें गड़बड़ बन गई है, उनमे सुधार किया जा सकता है। कालू ने सर खुजाया, बोला- "गुरू इससे अपने देश का क्या फ़ायदा।" हमने कहा- "देख भाई, सबसे बड़ा फ़ायदा तो यह होगा कि गांधी जी अपने लोकतंत्र को राबिनहुड की तर्ज पर अमीरों से छीन गरीबों को देने वाला बनाना चाहते थे, वो बन गया गाबिनहुड, गरीबों से छीन अमीरों को दे देता है। अब गलती सुधारने का मौका मिले मियां, तो सबसे पहले उसको सुधारना चाहिये। तभी कालू ने हमें टोका - गुरू तब तो इस ’गॉड पार्टिकल’ से आप जैसे सवर्णों को दलित और मुझ जैसे दलितों को सवर्ण भी बनाया जा सकता है कि नहीं। इतना कह कालू सरपट भाग लिया, हम पीछे पीछे थे छड़ी उठाये - ठहर, अहसान फ़रामोश कालू आज छोड़ने वाले नहीं तुझे।
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आखिर गाड पार्टिकल का भी तो कुछ समाजवाद होता होगा, यदि वह कालू के पास होगा तो अम्बानी के पास भी तो ,,, हम आरक्षण व्यवस्था का किसी भी रूप में समर्थन का विरोध करते हैं
ReplyDeleteगाड पार्टिकल से बहुत सारे काम हो सकते हैं, इसके द्वारा होने वाले कार्यों को एक कमेन्ट में नहीं समेटा जा सकता..पूरी पोस्ट ही लिखनी पड़ेगी. तब तक कालू गरीब को प्रतीक्षा करनी पड़ेगी.
ReplyDeleteओह माय गौड "पार्टी-कल" है और लोग आज से ही खाना छोड़ बैठे है.....:P
ReplyDeleteसटीक व्यंग्य ...!
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