प्रिय आमिर"- ऐसे मै लिखता अपने पत्र में। लेकिन अल्कोहल वाले आपके शो ने, आप के और मेरे संबधो मे खटास ला दी है। अब तो "क्यों बे आमिर" से पत्र शुरू करने का मन हो रहा था, पर सभ्यता के तकाजे ने रोक लिया। क्या बिगाड़ा था हमने तुम्हारा। कभी कभार जिंदगी के गम गलत करने के लिये दो पैग का ही सहारा था, वो भी छीन लिया। अरे बेदर्द सोचते तो कि पहले ही पत्नियो को अपने दबे कुचले पति का कोई सुख देखा नही जाता। एक बार पैग लगाओ तो हफ़्तो सुनना पड़ता है। ऎ जालिम इतना तो सोचा होता कि भाई अच्छे शराबियो के लिये कोई बहाना छोड़ दूं। एक ही वाक्य कह देते कि जो चैन से दो पैग लगा बीस की स्पीड में आराम से घर आ जाता है, उस पर यह शो लागू नही होता।
पर आपने तो कभी कभार पीने वालो को भी एक्सीडेंट का खतरा बता दिया है। कल श्रीमती ने पांच बार शो दिखाया है। भगवान को धन्यवाद दे रहीं थी कि आज तक मेरे पियक्कड़ पति सुरक्षित रहे। हम बहुत कहे कि भाई इसमे भगवान का कोई काम नही है। हम पीकर गाड़ी बहुत संभाल के चलाते है। लेकिन अब वे कहां मानने वाली हमारी बातें। जावेद अख्तर साहब, शराब पीने वालो को घिनौना और गधा बता दिये। अरे भाई खुद तो मारे पूरी बोटल वो भी 27 साल। मैं गरीब तो साल में सत्ताईस बार नही पी पाता। वो भी बहुत हुआ तो चेपटी। खुद ही हमारे जैसे चेपटी पर टिके रहते तो छोड़ने की नौबत तो नही आती। खुद लिये मजा और हमारे लिये सजा का जुगाड़ पेल दिये, उनसे ये उम्मीद न थी।
और ये क्या किये भाई नंबर भी दे दिये "Alcohal Abuse" संस्था का। हमारी श्रीमती ने नोट कर लिया है, धमकी दी है के जो कभी पी। तो फ़ोन करके बुलवा लूंगी और फ़िट करवा दूंगी। जो इंकार किया तो फ़िर सोच लेना महिला थाना दूर नही है। बेमुरव्वत कुछ तो रहम करते, अरे इतन ही कह देते भाई कि जो पति बीबी की सब बात मानते हों। उनको साल में छह बार घर में चैन से पैग लगाने देना चाहिये। और साथ मे अच्छा तला भुना स्नैक्स भी देना चाहिये। इससे बेचारे का शराब के लिये मन नही ललचायेगा। घर में पीने से एक्सीडॆंट भी नही होगा, पत्नि भक्त बना रहेगा उ अलग।
पर नही हमारा सुख नही देखा गया आपसे। जिंदगी भर का बैन लगवा दिये। अब हम भारत की गरीब जनता, किसी का कुछ बिगाड़ ही पाते। तो इन नेताओ को नही सीधा कर लिये रहते आज तक। इसलिये आज आपको हम वही दे रहे है। जो भारत का गरीब आदमी नेताओं को दे सकता है, बोले तो श्राप। " हे आमिर, जा आज के बाद तेरे पूरे खानदान में किसी को शराब का दो बूंद नसीब नही होगी।" कोई कितनी भी दुआ मांगे, कितनी मन्नते करे, माथा रगड़े पर जान लीजिये हमारा श्राप नही छूटने वाला है। रही बात जावेद अख्तर साहब की तो उनका काम तो अपने आप हो जायेगा। अरे भाई आदमी दो पैग लगा न शेरो शायरी सुनता है। नहीं बैठ गया उनका शेरो शायरी का धंधा तो हमारा नाम भी दवे जी नही।
दवे दलित दारू दवा, पीता कम्बल ओढ़ |
ReplyDeleteअंग्रेजी आमिर अमर, धन दौलत से पोढ़ |
धन-दौलत से पोढ़, तोड़ते हाड़ खेत में |
फटे बिवाई गोड़, निकाले तेल रेत में |
दर्द देह चित्कार, रात में सो न पाए |
कैसे पैंसे चार, अगर वो नहीं कमाए ||
आमिर बेडा गर्क हो, तुझे पड़े क्या फर्क |
ReplyDeleteसत्ता का खर्चा चले, जाय व्यवस्था दर्क |
जाय व्यवस्था दर्क, अर्थ बिन सत्ता कैसी |
बिना पिए ही दर्प, उठा ली लाठी भैंसी |
सरकारी व्यापार, ज़रा ठप तो करवाना |
बहुत बहुत आभार, हमें आकर समझाना ||
दवे दलित दारू दवा, पीता कम्बल ओढ़ |
अंग्रेजी आमिर अमर, धन दौलत से पोढ़ |
धन-दौलत से पोढ़, तोड़ते हाड़ खेत में |
फटे बिवाई गोड़, निकाले तेल रेत में |
दर्द देह चित्कार, रात में सो न पाए |
कैसे पैंसे चार, अगर वो नहीं कमाए ||
बीबी की सहते रहो, हरदम हरदिन धौंस |
ReplyDeleteआफत आमिर दे बढ़ा, कह रविकर बेलौस |
कह रविकर बेलौस, कतरनी किच किच करती |
रहूँ अगर मदहोश, तभी वह थोडा डरती |
अल्कोहल एब्यूज, दिया है नंबर जबसे |
कर दी पूरा फ्यूज, डराती रहती तबसे ||
तुम कब बीबी से इतना डरने लग गए ? जो दहाड़े मार रहे हो।
ReplyDelete:)
ReplyDeleteआपके इस खूबसूरत पोस्ट का एक कतरा हमने सहेज लिया है क्रोध की ऊर्जा का रूपांतरण - ब्लॉग बुलेटिन के लिए, पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
बेड़ा गर्क हो
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