देखिये साहब हमारा मुल्क रंगरंगीला परजातंतर है। इस बात को नित साबित करती खबरें हमारी मीडिया पेश करती रहती है। हालिया मामला है खाप पंचायत द्वारा लड़कियों को बलात्कार से बचाने, सोलह साल में उनकी शादी करने का फ़तवा। इस पर चारों ओर बवाला मचा हुआ है , हर कोई ऐसी भूरी भूरी आलोचना कर रहा है कि क्या कहा जाये। लेकिन इस फ़ैसले से कुछ लोगो को सहमत होना चाहिये। सबसे पहले संघ समर्थक जो बेचारे लव जेहाद से बेहद घबराये हुये रहते है कि मुसलमान हिंदु लड़कियो को पटा-पटा कर भारत को मुस्लिम राष्ट्र बनाने में तुले हुये हैं। अब लव जेहाद से हिंदु लड़कियो को बचाने का इससे बढ़िया रास्ता क्या हो सकता है कि उनके हाथ सोलह बरस की उम्र मे पीले कर दिये जाये। न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी।दूसरी ओर मुल्लाओ को भी टीवी में दिखाना चाहिये, आखिर उनके अनुसार भी मुस्लिम लड़किया इस उम्र में ब्याही जा सकती है, कानूनन ब्याही जा भी रही है। लेकिन इन मुल्लाओं को टीवी पर दिखाने का कष्ट हमारी मीडिया नही करती। आखिर धर्मनिरपेक्षता भी तो कोई चीज है कि नहीं।
चलिये अब और आगे चले "तू सोलह बरस की मै सतरह बरस का" बाबी फ़िल्म के इस गाने और ऐसे हजारो फ़िल्मी गानो और फ़िल्मो पर भी बोलना नही चाहिये। आखिर प्रेम संवैधानिक वस्तु है। किसी भी उम्र में प्रेम करना, करने के लिये उकसाना संविधान सम्मत है। अब पढ़ा लिखा समाज किस तरह प्रेम के लिये मना कर सकता है। लिंग वर्धक यंत्र का इश्तेहार अखबार में छपे या जापानी तेल का विज्ञापन एफ़ एम रेडियो पर। यह तो पढ़े लिखे लोगो के लिये है। वो थोड़े इतने बेवकूफ़ है कि इन बातो मे आयेंगे। वैसे विज्ञापन तो बहुत ही गजब है।
चलिये अब और आगे चले "तू सोलह बरस की मै सतरह बरस का" बाबी फ़िल्म के इस गाने और ऐसे हजारो फ़िल्मी गानो और फ़िल्मो पर भी बोलना नही चाहिये। आखिर प्रेम संवैधानिक वस्तु है। किसी भी उम्र में प्रेम करना, करने के लिये उकसाना संविधान सम्मत है। अब पढ़ा लिखा समाज किस तरह प्रेम के लिये मना कर सकता है। लिंग वर्धक यंत्र का इश्तेहार अखबार में छपे या जापानी तेल का विज्ञापन एफ़ एम रेडियो पर। यह तो पढ़े लिखे लोगो के लिये है। वो थोड़े इतने बेवकूफ़ है कि इन बातो मे आयेंगे। वैसे विज्ञापन तो बहुत ही गजब है।
पहली दूसरी से कहती है - "क्या बात है आशा जी आज बड़ी खिली खिली नजर आती है।"
दूसरी कहती है "क्या बताउं सखी, मेरे पति थके बुझे से रहते थे, राते बोझिल कटती थी। जब से उन्होने जापानी तेल लगाना शुरू किया है तब से मेरी राते रवां दवां हो गयी है।"
जिस वक्त खाप पंचायत के फ़ैसले को चैनल में कोसा जा रहा था। उसी वक्त ब्रेक में मैनफ़ोर्स कंडोम के विज्ञापन में उत्तेजक हाव भाव वाले लड़की लड़का अलग अलग स्वाद वाले कंडोम में जीवन का मजा चखने की दावत दे रहे थे।‘
अब वापस आ जाईये खाप पंचायत के फ़ैसले पर। उसको लेने के पीछे कारण क्या थे? तर्क क्या थे? इसकी जहमत किसी ने नही उठाई। इन बढ़्ती बलात्कार की घटनाओ के पीछे सबसे बड़ी वजह इश्क मुहब्बत का ग्रामीण परिवेश में चढ़ता बुखार है। प्यार में फ़ंसा कर बिगड़ैल लड़के, लड़कियो से संबंध स्थापित कर रहे है। और अतिरेक की घटनाओ में जिसमे कुछ अभी हरियाणा में हुई है। वे अपने मित्रो को भी एश करने की सामूहिक दावत दे रहे हैं। फ़िल्मो विज्ञापनो के बाजारवाद ने सुदूर अंचलो तक अपनी पैठ बना ली है। शिक्षित परिवार के युवक युवती और ग्रामीण अंचल के अनपढ़ या कम पढ़े लिखे युवाओ पर इसके असर में बड़ा अंतर है। इस बाजारवाद के प्रभाव से ग्रामीण अंचलो या शैक्षिक रूप से पिछड़े इलाको मे दूरगामी असर हो रहे है। बलात्कार से भी आगे गरीब लड़कियो को प्रेम के जाल मे फ़सा कर ही वेश्यालयो तक पहुंचाया जाता है। ऐसा नही है कि ऐसी लड़कियो का प्रेम हरदम असफ़ल होता है लेकिन तुलनात्मक रूप से असफ़लता और बुरी संभावनाओ की दर इनमे बहुत ज्यादा है।
किसी भी संगठित समाज का अपने में आई खामियो और खतरो से निपटने का एक सामाजिक तरीका होता है। खाप इसी का एक उदाहरण है। हम आरामदेह कुर्सियो में बैठ इनके फ़ैसले को जरूर कोस सकते हैं। सोलह या पंदरह की उम्र मे शादी निश्चित ही एक अनुचित कदम भी होगा। पर हमें खाप पंचायतो के सम्मुख खड़ी समस्याओं और आशंकाओ पर भी तो चर्चा करनी चाहिये। सभ्यता तो लिव इन रिलेशन तक भी ले जाती है, पर एक नौकरीशुदा उच्चशिक्षित जोड़े के लिव इन और खेतों, कारखाने में काम करते अल्पशिक्षित जोड़े लिव-इन रिलेशन में अंतर होगा कि नही। बाजारवाद की शक्तियां ही किसी भी देश के संविधान और व्य्वस्था को निर्धारित करती है। सो इस समस्या का कोई समाधान तो हो ही नही सकता। न खाप का निर्णय माना जा सकता है और न ही फ़िल्मो और विज्ञापनो के बढ़ते असर को रोका जा सकता है। पर कम से कम टीवी में बैठ खाप को सिर्फ़ कोसने के बजाये पूरे हालात पर निष्पक्ष चर्चा करना तो चाहिये।
शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन,पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब
बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको
और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये
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ये इश्क विश्क नहीं वासना प्रेम है पिशाच प्रेम है .बाज़ार खाली हाथ नहीं आता है .कोक के साथ और बहुत कुछ आता एक जीवन शैली आती है .लेकिन खाप का काम भी फतवे ज़ारी करना नहीं है .आनर किलिंग्स के
ReplyDeleteनाम पर न्रिशंश ह्त्या करना नहीं है .ये खाप के स्वरूप को नष्ट करने वाले लोग हैं जो ऐसा कर रहें हैं .
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