Tuesday, July 24, 2012

प्लीऽऽस माई लार्ड आचार्य बालकृष्ण को छोड़ दो


देखिये साहब अमूमन मदद या चंदे के लिये आयी किसी भी पुकार को मै मंझे हुये नेता की तरह आश्वासन के बल्ले से सीमा रेखा के पार पहुंचा देता हूं। लेकिन बाबा रामदेव के चेले चपाटियों की इस मार्मिक गुहार से मै क्लीन बोल्ड हो गया हूं।  बाबा रामदेव भी बड़े सज्जन आदमी है मदद ऐसे मांगते हैं कि मदद करने वालो का धेला खर्चा नही होता। जैसे  आंदोलन का समर्थन कर फ़लां नंबर पर मिस्ड काल करके। आचार्य बालकृष्ण की मदद भी मुफ़्तिया ही करने की है। उपर के चित्र मे दिये पते पर ईमेल भेजना है। इस कदम से सरकार भी खफ़ा नही होगी क्योंकि आपको यह कही नही कहना कि आचार्य बालकृष्ण बेगुनाह है। बस एक मार्मिक सी अपील ठोक दीजिये कि उनके खिलाफ़ कोई पुख्ता सबूत नही है।

वैसे देखा जाये तो आम जनता को इन वकीलो की लूट खसोट से बचाने का यह एक नायाब तरीका साबित हो सकता है। सरकार को कानून बना कर यह तय कर देना चाहिये कि फ़लां धारा के तरह गिरफ़्तार आरोपी को इतनी मार्मिक हृदय विदारक अपीलो के मिलने पर जमानत दे दी जायेगी।  ऐसा करने से लोकतंत्र बहुत मजबूत हो जायेगा। इसमे दबे कुचले, पिछड़ो, पसमंदा मुसलमान जैसे अपराधियो को अपीलों की संख्या में विशेष छूट देकर उन्हे सरकार मुख्य धारा के अपराधियो के साथ ला खड़ी कर सकती है। और देश की बड़ी बड़ी समस्याएं चुटकियो मे सुलझ सकती है। मसलन बाबरी मस्जिद का ही लफ़ड़ा ले लीजिये। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश का नंबर ईमेल सरकार अखबारो मे छपवा देती और वोटिंग लाईन बंद करने का टाईम देती। उस टाईम पर जिस पक्ष मे सबसे  ज्यादा मार्मिक अपीले आती वो केस जीत जाता। अब आप कहेंगे कि कहीं ऐसा होता है भला। तो भाई पाकिस्तान से सरबजीत की रिहाई के लिये मार्मिक अपील हो रहा है कि नही।

और ये बेचारा आचार्य  बालकृष्ण किया क्या है, कि उसके पीछे पड़ गये। सब डिग्री डिग्री खेल रहे थे,  उसने भी खेल लिया। जब सफ़ाई कर्मचारी टांका लगा सकता है,  चौकीदार आपरेशन कर सकता है। तो क्या बेचारा आचार्य गोली चूरण नहीं बाट सकता। वो भी आयुर्वेदिक,  जिसका कोई साईड ईफ़ेक्ट नही होता। हम तो कहते है कि ये बाबा रामदेव के साईड में न होता, तो बेचारे पर कोई पुलिसिया इफ़ेक्ट ही नही होता। गांधी परिवार के बारे में अनाप शनाप बोला बाबा और फ़िट हो गया बालकृष्ण। यही होता है जब अनुभव हीन लोग इस तरह का जोखिम लेते है।

गलती पर गलती हुआ बालकृष्ण से।  सबसे पहला भगवा चोला नही पहना बुड़बक ने, सफ़ेद चोला इधर शांती का प्रतीक है क्रांती का थोड़े।  अरे बाबा टाईप भगवा पहनता तो तत्काल जनता के मन में 'जी' से प्रमोट होकर 'श्रद्धेय' हो जाता। गिरफ़्तारी की नौबत आते ही हिंदु बचाओ सेनाएं चारो ओर से टूट पड़तीं।  उसके बाद ये डिग्री का जरूरत ही क्या था भाई, भारत में एलोपेथिक दवाई की पुड़िया बिना डिग्री बाटो तो थाने से जमानत हो जाता है। फ़र्जी डिग्री ले लो, तो सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ता है। काम वही करना है, अंतर कुछ नही। और ये तो बेचारा जड़ी बूटी बेचने वाला कौन पकड़ सकता था, इसको खामखा जंजाल मे फ़सा लेने के देने पड़ गये।
इतना भी नही समझे आचार्य बाबू कि जिन लोगो की शह पर बावेला मचा रहा हूं। वो लोग बाद में "हमारा इससे कोई लेना देना नही है" वाला बयान जारी कर देते है। आंदोलन करने से जयजयकार ही होती प्यारे तो नही उ लोग खुद ही कर लिये होते। खैर इस बार मार्मिक अपील कर रहा हूं, अगला बार बवेला किये फ़ेर हमारे पास मत आना।

 माई लार्ड नही पता था बेचारे को, माफ़ कर दीजिये।  कसम खाते है के आज के बाद ये किसी आंदोलन में भाग नही लेगा।  उनके खिलाफ़ कोई पुख्ता सबूत भी नही है। छोड़ दीजिये प्लीऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽज
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3 Comments

3 comments:

  1. सब लफ़ड़ा बाबा की सलवार ने करवा दिया, नहीं तो किसी की हिम्मत नहीं थी अबालकृष्ण को भीतर करने की। :)

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  2. सही बात तो है जब अपने यहाँ सब डिग्री डिग्री खेल रहे थे, उसने भी खेल लिया। जब सफ़ाई कर्मचारी टांका लगा सकता है,चौकीदार आपरेशन कर सकता है। तो क्या बेचारा आचार्य गोली चूरण नहीं बाट सकता। वो भी आयुर्वेदिक,जिसका कोई साईड एफ़ेक्ट नही होता...यथार्थ का आईना दिखती बहुत ही बढ़िया व्यंगात्मक प्रस्तुति।

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  3. उमदा कटाक्ष।संत तो बाबा है बालकृ्ष्ण को तो झूठ बोलने का पूरा हक है अब तो बाबा ने भी वो हक हासिल कर लिया लगता है वो भी तो यही कहते थे कि आचार्य निर्दोश है।

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