देखिये साहब भारत के नेता और भारत का आम मुसलमान दोनो में काफ़ी समानताएं है। इसके पहले कि कोई मुझ पर फ़तवा जारी करे मै कुछ उदाहरण दे देना चाहता हूं। देखिये जिस तरह नमाज पढ आम मुसलमान अपने को खरा मुसलमान मान लेता है। ठीक उसी तरह गांव गांव तक बिजली के खंबे पहुंचा कर भारत का नेता अपने आप को विकास पुरूष मान लेता है। जिस तरह नेकी और इमान पर चलने की शर्त आम मुसलमान वेल लेफ़्ट कर देता है। वैसे ही हर खंबे तक बिजली पहुचाने की शर्त भारत का नेता ओवर लुक कर देता है। दोनो के तर्क भी काफ़ी हद तक मिलते जुलते है। दोनो तमाम तरह की दुश्वारियो का हवाला देते है और यह भी विश्वास दिलाते है कि हम जल्द से जल्द ऐसा करने की कोशिश करेंगे।
आप- अगर अब भी नही मानते तो मै आपको और भी समानताएं बता सकता हूं। मसलन दोनो बहुत दूर की सोचते है। भारत के मुसलमान जब बात करेंगे तब फ़िलीस्तीन अफ़गानिस्तान के मुसलमानो पर ढाये जा रहे सितम का गम उन्हे खाये जायेगा। वैसे ही हमारे नेताओं को दिल्ली से दूर बसे बिजली खंबे से विहीन गावॊ के रहवासियो का गम सतायेगा। ना मुसलमान को अपने शहर के गरीब बेरोजगार मुसलामानो की चिंता सतायेगी और न ही दिल्ली से सटे फ़रीदाबाद मे बीस घंटे की लोड शेडिंग की चिंता नेताओ को सतायेगी। मुझे पता है कि नेता तो मेरे इस लेख का उतना का बुरा नही मनायेंगे पर मुसलमानो को अब भी बुरा लग रहा होगा। आखिर इस देश मे आज नेताओ से तुलना किसे पसंद आ सकती है। खैर अभी मेरे तर्क खत्म नही हुये हैं।
देखिये जिस तरह नेता अराजनैतिक आंदोलनकारियों को हिकारत की नजर से देखते है। ठीक वैसे ही मुसलमान भी दूसरे धर्म को लोगो को मूर्ख समझते है। दोनो के हिसाब से कोई और तरीके से लक्ष्य को प्राप्त करना संभव नही। दोनो ही बड़े दयालु भी है। मुसलमान हर किसी को मुसलमान बनने की सलाह देते है। उनको इतनी परवाह भी नही कि भाई जन्नत का कंपीटीशन कितना तगड़ा हो जायेगा। वैसे ही नेता भी हर किसी को चुनाव लड़ने की सलाह देते है। उन्हे भी अपनी परवाह नही कि भाई हमारे लिये कंपीटीशन तगड़ा हो जायेगा। अब आपको लग रहा होगा कि ऐसे रहमदिल लोग आज कल के जमाने मे कैसे हो गये। तो भाई मैं अंदरे खाते की बात बता दूं। नेता जानते हैं चुनाव जीतने मे कितना प्रपंच, खर्चा लगता है। वैसे ही मुसलमान भी जानते है। के भाई मुसलमान बनना तेढ़ी खीर है, नेकी और इमान पर चलना होता है। जब हम ही न बन पाये तो ये क्या खाक बनेंगे। बात इतने पर ही खत्म नही होती जिस तरह नेता दूसरे राजनैतिक दलो के नेताओ को भी मूर्ख करार देने में कॊइ गुरेज नही करते। वैसे ही मुसलमान दूसरे तरीके से इबादत करने वालो मुसलमानो को मूर्ख करार देने में कॊई परहेज नही करते।
और मजेदार समानताये बताये दिये देता हूं। जिस तरह नेता संविधान की धाराओ पर काम करने पर अटके रहते है। ठीक उसी तरह मुसलमान कुरान की आयतो पर अड़े रहते है। अगर नेता संविधान की रूह को समझ हिसाब से काम करने लगे और मुसलमान कुरान की रूह को समझ कुरान का पालन करने तो इस देश को जन्नत बनने मे कोई नही रोक सकता। नेता गांधी की खादी पहन अपने को जनता का सेवक मान लेते है और मुसलमान दाढ़ी रख अपने को मुसलमान मान लेते है। न मुसलमान नबी ए करीम के जीवन चरित्र का पालन करते है और न नेता महात्मा गांधी के जीवन चरित्र का अनुसरण करते हैं।
लेकिन साहब मेरे सारे तर्क एक जगह आकर खत्म हो जाते हैं। हमारे नेताओं की तुलना किसी से नही हो सकती। ऐसे जंतु जो बिजली का कारखाना पहले लगाते है। बिजली का खंबा उसके बाद बिछाते है, और उत्पादन शुरू होने के बाद कोयला का पता करते है तो मालूम चलता है कि अंडर वियर बनाने वाली कंपनी को पैसा लेकर खदान आबंटित कर दिये हैं। उनकी तुलना किसी से नही हो सकती। और मुसलमान कुछ भी कर ले हराम की तो नही ही खायेगा और नेता खायेंगे तो -----।
आप- अगर अब भी नही मानते तो मै आपको और भी समानताएं बता सकता हूं। मसलन दोनो बहुत दूर की सोचते है। भारत के मुसलमान जब बात करेंगे तब फ़िलीस्तीन अफ़गानिस्तान के मुसलमानो पर ढाये जा रहे सितम का गम उन्हे खाये जायेगा। वैसे ही हमारे नेताओं को दिल्ली से दूर बसे बिजली खंबे से विहीन गावॊ के रहवासियो का गम सतायेगा। ना मुसलमान को अपने शहर के गरीब बेरोजगार मुसलामानो की चिंता सतायेगी और न ही दिल्ली से सटे फ़रीदाबाद मे बीस घंटे की लोड शेडिंग की चिंता नेताओ को सतायेगी। मुझे पता है कि नेता तो मेरे इस लेख का उतना का बुरा नही मनायेंगे पर मुसलमानो को अब भी बुरा लग रहा होगा। आखिर इस देश मे आज नेताओ से तुलना किसे पसंद आ सकती है। खैर अभी मेरे तर्क खत्म नही हुये हैं।
देखिये जिस तरह नेता अराजनैतिक आंदोलनकारियों को हिकारत की नजर से देखते है। ठीक वैसे ही मुसलमान भी दूसरे धर्म को लोगो को मूर्ख समझते है। दोनो के हिसाब से कोई और तरीके से लक्ष्य को प्राप्त करना संभव नही। दोनो ही बड़े दयालु भी है। मुसलमान हर किसी को मुसलमान बनने की सलाह देते है। उनको इतनी परवाह भी नही कि भाई जन्नत का कंपीटीशन कितना तगड़ा हो जायेगा। वैसे ही नेता भी हर किसी को चुनाव लड़ने की सलाह देते है। उन्हे भी अपनी परवाह नही कि भाई हमारे लिये कंपीटीशन तगड़ा हो जायेगा। अब आपको लग रहा होगा कि ऐसे रहमदिल लोग आज कल के जमाने मे कैसे हो गये। तो भाई मैं अंदरे खाते की बात बता दूं। नेता जानते हैं चुनाव जीतने मे कितना प्रपंच, खर्चा लगता है। वैसे ही मुसलमान भी जानते है। के भाई मुसलमान बनना तेढ़ी खीर है, नेकी और इमान पर चलना होता है। जब हम ही न बन पाये तो ये क्या खाक बनेंगे। बात इतने पर ही खत्म नही होती जिस तरह नेता दूसरे राजनैतिक दलो के नेताओ को भी मूर्ख करार देने में कॊइ गुरेज नही करते। वैसे ही मुसलमान दूसरे तरीके से इबादत करने वालो मुसलमानो को मूर्ख करार देने में कॊई परहेज नही करते।
और मजेदार समानताये बताये दिये देता हूं। जिस तरह नेता संविधान की धाराओ पर काम करने पर अटके रहते है। ठीक उसी तरह मुसलमान कुरान की आयतो पर अड़े रहते है। अगर नेता संविधान की रूह को समझ हिसाब से काम करने लगे और मुसलमान कुरान की रूह को समझ कुरान का पालन करने तो इस देश को जन्नत बनने मे कोई नही रोक सकता। नेता गांधी की खादी पहन अपने को जनता का सेवक मान लेते है और मुसलमान दाढ़ी रख अपने को मुसलमान मान लेते है। न मुसलमान नबी ए करीम के जीवन चरित्र का पालन करते है और न नेता महात्मा गांधी के जीवन चरित्र का अनुसरण करते हैं।
लेकिन साहब मेरे सारे तर्क एक जगह आकर खत्म हो जाते हैं। हमारे नेताओं की तुलना किसी से नही हो सकती। ऐसे जंतु जो बिजली का कारखाना पहले लगाते है। बिजली का खंबा उसके बाद बिछाते है, और उत्पादन शुरू होने के बाद कोयला का पता करते है तो मालूम चलता है कि अंडर वियर बनाने वाली कंपनी को पैसा लेकर खदान आबंटित कर दिये हैं। उनकी तुलना किसी से नही हो सकती। और मुसलमान कुछ भी कर ले हराम की तो नही ही खायेगा और नेता खायेंगे तो -----।
एकदम सही व निष्पक्ष तुलना।
ReplyDeleteचलो, पहली बार कुछ सही तो लिखा!
ReplyDeleteसमझ में आ गया कि कौन सही को सही मानता है, मुस्लिम विद्वानों के कमेन्ट पढकर.
ReplyDeleteनेता और मुस्लिम के इस तुलनात्मक लेख में कुछ बात है...
ReplyDeleteबहुत दिनों के बाद आपका एक अच्छा लेख पढ़ने को मिला !! हार्दिक धन्यवाद !!
ReplyDeleteदवेजी, आपने ये लेख हटा क्यूँ दिया था ??
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