साहब, इस दो कौड़ी के अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट द्वारा, मनमोहन जी को मौनी बाबा करार दिये जाने से, हमारा दिल को बहुत ठेस लग गया है। इनका हिम्मत कैसे हुआ हमारे परम आदरणीय और घोटालों द्वारा नित्य स्मरणीय करा दिये जाने वाले मनमोहन सिंग जी के बारे मे उल्टा सीधा लिखने का। मै पूछता हूं ये होते कौन हैं हमारे आंतरिक मामलो में दखल देने वाले। हिंदू धर्म का बड़ा शुभचिंतक बनने वाली भाजपा से भी मै पूछता हूं। कैसे हिंदू हो रे भाई, क्या नहीं पढ़ी महाभारत? घर में भले हम सौ और पांच है, आपस में लड़ते हैं पर किसी भी बाहरी के लिये पूरे 105। एक बार कड़क आवाज में अखबार वालों को कह देते - "हमारे मामलों में दखल मत दो जी।" फ़िर देखते मनीष तिवारी, दिग्विजय सिंग तक आपकी भूरि-भूरि प्रशंसा किये बिना रह पाते तो। ये कम्यूनिस्ट पार्टी भी, ऐसे अमेरिका का ’अ’ भी कान मे पड़ जाये तो एड़ी अलगा-अलगा के हाय-तौबा मचायेंगे। और इस अखबार को महत्व दे रहे हैं। अरे लाल सलामो, काहे नहीं बचपन में उचित संबंध जोड़ो ठीक से पढ़े थे? डील परमाणु किये थे मनमोहन जी, तब कैसा उछल रहा था यही अखबार - "मनमोहन सिंग विश्व के सर्वश्रेष्ठ नेताओं में से एक हैं।" आज मनमोहन जी लड़ाकू हवाई जहाज नहीं लिये तो हाय-तौबा मचा रहे हैं, चुप्पा बता रहे हैं।
कुछ दिन पहले टाईम मैग्जीन ने भी मनमोहन जी को अंडर अचीवर बता दिया था। अरे भाई, वर्ल्ड बैंक के नौकरी से शुरू कर बिना चुनाव जीते, बिना राजनीति में आये प्रधानमंत्री बन गये। इससे बड़ा अचीवमेंट किसी अमेरिकी का हो तो बताना जरा। ऐसे ही ब्रिटेन के अखबार ने उनको सोनिया जी का गुड्डा बता दिया था। इनकी क्वीन विक्टोरिया का जो विश्वासपात्र रहता था, उसको रायबहादुर का खिताब देते थे। हमारी जनता की मलिका आदरणीय़ प्रधानमम्मी जी के विश्वासपात्र को गुड्डा पपेट बता रहे हैं। अपने बाला साहेब ठाकरे भी जब देखो तब कुछ न कुछ सनसनीखेज लिख देते हैं। बीच में माननीय मनमोहन जी को राजनैतिक नपुंसक करार दिये थे। कौन राजनैतिक नपुंसक है रे भाई, जो आठ साल से देश में अभूतपूर्व घोटाले, इतनी महंगाई के बाद भी प्रधानमंत्री है, वो राजनैतिक नपुंसक है, या सत्ता से बाहर बैठ के कोसने वाले राजनैतिक नपुंसक हैं।?
और मौन रहना कम बड़ी बात है? आदमी को महान बना देता है। महात्मा गांधी मौन व्रत पकड़ अनशनिया गये थे तो बंगाल मे कत्लेआम थम गया था। मौन व्रत लेना हमारे देश की परंपरा है। इंदिरा जी के आपातकाल में एक संत विनोबा भावे ने मौन व्रत रखा था। आर्थिक आपातकाल में संत मनमोहन मौन व्रत रखे हुए हैं। एक बात मै इस वॉशिंगटन पोस्ट और बाकी अनाप-शनाप कहने वालों को बता देना चाहता हूं। जो हमारे मनमोहन जी के बारे मे बुरा कहता है, उसका हाल बहुत खराब होता है। ऐसे ही भाजपा के एक प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार ने मनमोहन जी को ’कमजोर’ कह दिया था। आज तक पाइपलाइन मे हैं बेचारे। प्रधानमंत्री बनने का सपना चूर-चूर हो गया। अब तो सुने हैं कि पाइप से भी निकाल दिये गए हैं तो ब्लॉग लिख-लिख कर भाजपाइयों के लिये सरदर्द बने रहते हैं।
कुछ अलग सी पोस्ट सच्चाई से कही गयी बात अच्छी लगी:)
ReplyDeleteसही धमकाए हो आज दवे जी, लाल सलामों को भी और दूसरों को भी:)
ReplyDeleteअभी न्यूज़ चैनेल में बता रहे थे कि मोबाईल के साईलेंट मोड़ का नया कोड 'मनमोहन मोड़' है और ये वाशिंगटन पोस्ट वाले समझते ही नहीं है कुछ| वोई वाला शेर खामोशी वाला पढ़ा-सूना तो होगा नहीं इन्होने|