जैसे ही अफ़जल गुरू की फ़ांसी की बात पहुंची, नुक्कड़ मे खुशी की लहर छा गयी। सोहन शर्मा उर्फ़ कांग्रेसी ने गर्व से सीना फ़ुलाया, कहने लगे - "कांग्रेस के घर देर है अंधेर नही"। दीपक भाजपायी बाजू मे खड़े थे, ठठाकर हंसने लगे। बोले - "वाह रे गिरगिट, अगर हमने नाक मे दम न किया होता तो तुम लोग सौ साल तक उसे दामाद बना कर रखते, वह तो हमारी पार्टी है कि आज अफ़जल गुरू को फ़ांसी चढ़ने की नौबत आयी है" । "जल्द ही हम लोग कसाब को भी इसी तरह लटकायेंगे"।
शर्मा जी भी कम न थे, आस्तीन चढ़ा कर बोले - "फ़िर क्यों दामादो को हवाई जहाज से काबुल छोड़ने गये थे"। "इतने शिवाजी बनते हो तो क्यों जिन्ना की मजार पर तारीफ़ के पुल बांध आये"। दीपक भाजपायी ने आरोपो की बौछार कर दी - "दामादो को छोड़ने के फ़ैसले मे आप शामिल थे", "और ओसामा को जी कहते हो, जिन्ना को देश बाटने किसने दिया, श्रीलंका से तिब्बत तक इंडोनेशिया से अफ़गानिस्तान तक फ़ैले हमारे महान हिंदू राष्ट्र के टुकड़े टुकड़े करवा दिये"। बहस तेज हो गयी पर हमारी आशा के विरूद्ध आपस में जूतम पैजार नहीं हुयी। होती भी क्यों ये लड़ाई हाथी का दांत जो थी, दिखाने के लिये लड़ रहे थे, खाने वाला दांत तो दोनो के लिये ही काम करता है।
खैर भीड़ अब इस हिजड़ा लड़ाई से उब चुकी थी, आसिफ़ भाई का स्टेटमेंट जानने के लिये हर कोई उत्सुक था। अखबार वाले मीडिया वाले सारे वहीं थे। ये लोग जो पत्रकार कहे जाते थे, आज कल पत्रनवीस हो गये हैं। पत्रनवीस माने वह आदमी जो दूसरो की भावना को अपने हिसाब से बयां करे। मुख्य बात यह थी कि यदि आसिफ़ भाई फ़ांसी का विरोध कर देते, तो दिन भर की धमधमाती हेडलाईन का जुगाड़ हो जाता और ये पत्रनवीस बाकी दिन की छुट्टी ले सकते थे।
आसिफ़ भाई बोले- "अपने ही शहर मे हजारो मुसलमान गरीबी रेखा के नीचे हैं, उनकी बात नहीं होगी। हमारे नेता पूरी दुनिया के मुसलमानो के ठेकेदार हैं, सर्बिया से लेकर अफ़गानिस्तान, कश्मीर, चीन पता नही कहां कहां ठेका इन्हें मिला हुआ है। और जो अरब मुल्क हैं वो इन लोगो के आंदोलन को भीख देकर अपने धर्म से छुट्टी पा लेते हैं और अमेरिका जा ऐश करते हैं। कौन समझाये इन मूर्खों को कि हम हिंदुस्तानी हैं तो हिंदुस्तान की तरक्की अखंडता मे हमारी भलाई है। जो हिंदुस्तान का दुश्मन है वह हिंदुस्तानी मुस्लमानो का दुश्मन है।
इतना सुन सारे पत्रकार निराश हो गये, आखिर देशभक्ति की बातें ब्रेकिंग न्यूज कहां बन सकती थीं। तभी हमने दीदार के दिलीप कुमार की तरह गाड़ियां रोक रोक चिल्लाना शुरू कर दिया "ए भाई कोई अफ़जल गुरू को बचा लो भाई"। ताबड़ तोड़ सारे कैमरे और पत्रकार हमे घेर खड़े हो गये। लाईव न्यूज में हमारा चेहरा चमचमाने लगा। सवाल दागा गया- "आप क्यों बचाना चाह रहे हो"। हमने कहा -"हम हर देशभक्त को बचाते हैं"। पत्रकार बैकफ़ुट मे आ गया, उसने पूछा- " वह तो आतंकवादी है, आपको देशभक्त कैसे नजर आ रहा है"। हमने कहा -" आतंकवादी तो मासूम आम आदमी को मारते हैं। यह तो नेताओं को मारने गया था। उन नेताओं को जिनकी लूट खसोट से देश त्रस्त है"। पत्रकारों की बांछे खिल गयी, एक ने पूछा- " संसद तो देश का दिल है सम्मान है उस पर हमले को आप किस तरह जायज ठहरा सकते हो"।
हमने जवाब दिया-" ये अब संसद रही नही असंसद हो चुकी है। संसद यह तब थी जब इसमे नेहरूजी, अटल जी लालबहादुर शास्त्री, मौलाना जैसे सांसद बैठते थे"। अब यहां पैसा खा वोट देने वाले; सवाल पूछने वाले, जाति धर्म के नाम पर अवाम को बांट वोट पाने वाले बैठते हैं। पहले नैतिकता के आधार पर इस्तीफ़ा देने वाले मंत्री थे। अब मंत्री ऐसे हैं जो दो लाख करोड़ का घोटाला कर सीनाजोरी से एक नंबर मे रिश्वत खाते हैं, ऐसे भी हैं जो पहले चोर अपराघियों के वकील थे और अब ऐसे घॊटाले करने वाले लोगों का बचाव करने के लिये प्रवक्ता और मंत्री बनाएं गये हैं। अब तो नौबत यह है कि खुले आम सत्ताधारी दल कोर्ट और कैग जैसी स्वायत्त संस्थाओं की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहे हैं। पैसा खिला आप जैसे पत्रकारो से उनके बारे में मनगढ़ंत घुमा फ़िरा कर कार्यक्रम जनता को दिखा रहे हैं। कानून मंत्री सुप्रीम कोर्ट के जजों पर टिप्पणी कर रहे हैं। ऐसी असंसद पर हमला राष्ट्र द्रोह नही देश प्रेम है"।
सवाल तो साहब सैकड़ो पूछे गये, लेकिन अपन रामदेव बाबा टाईप ज्यादा बयान दे, फ़जीहत कराने के मूड में नही थे। सब कुछ ठीक चल रहा था कि अघट घटित हो गया। हुआ कुछ ऐसा कि सब्जी का इंतजार कर रही श्रीमती को जब चैनल मे हमारा चमचमाता चेहरा नजर आया तो बेलन लिये धड़धड़ाते हुये नुक्कड़ पहुंच गयीं और सरेराह धुलाई करते हुये घर ले गयीं। सारी बेईज्जती खराब हो गयी, मुख्य मुद्दा रह गया सो अलग। टीवी चैनलो हम छाये जरूर थे। बाबा रामदेव की सेना टाईप पिट भी रहे थे, पर जनता से कोई सहानुभूती न मिली, लोग पेट पकड़ कर हंस रहे थे, सो अलग। खैर जनाब इस घटना पर कुछ ब्रेकिंग न्य़ूज के टाईटल बता रहा हूं हमारे महान चैनलों के
जी न्यूस - अफ़जल गुरू की फ़ांसी का विरोध करने पर पत्नी ने सरे राह पीटा
न्यूस24 - देशद्रोही की सरे राह पत्नी द्वारा पिटाई
ईंडिया टीवी- क्यों पिटा पति-- किसने पीटा उसको- कैसे पीटा गया- अफ़जल गुरू से उसका क्या रिश्ता था
(माफ़ कीजियेगा बैकग्राउंड म्यूजिक की सुविधा नही है)
चलिये हमारी असली बात तो जनता तक पहुंची नही आप तक पहुंची है। अपना विचार बताईयेगा कि आदरणीय अफ़जल गुरू को फ़ांसी दी जाये या उसे एक मौका और देना चाहिये हमले का।
शर्मा जी भी कम न थे, आस्तीन चढ़ा कर बोले - "फ़िर क्यों दामादो को हवाई जहाज से काबुल छोड़ने गये थे"। "इतने शिवाजी बनते हो तो क्यों जिन्ना की मजार पर तारीफ़ के पुल बांध आये"। दीपक भाजपायी ने आरोपो की बौछार कर दी - "दामादो को छोड़ने के फ़ैसले मे आप शामिल थे", "और ओसामा को जी कहते हो, जिन्ना को देश बाटने किसने दिया, श्रीलंका से तिब्बत तक इंडोनेशिया से अफ़गानिस्तान तक फ़ैले हमारे महान हिंदू राष्ट्र के टुकड़े टुकड़े करवा दिये"। बहस तेज हो गयी पर हमारी आशा के विरूद्ध आपस में जूतम पैजार नहीं हुयी। होती भी क्यों ये लड़ाई हाथी का दांत जो थी, दिखाने के लिये लड़ रहे थे, खाने वाला दांत तो दोनो के लिये ही काम करता है।
खैर भीड़ अब इस हिजड़ा लड़ाई से उब चुकी थी, आसिफ़ भाई का स्टेटमेंट जानने के लिये हर कोई उत्सुक था। अखबार वाले मीडिया वाले सारे वहीं थे। ये लोग जो पत्रकार कहे जाते थे, आज कल पत्रनवीस हो गये हैं। पत्रनवीस माने वह आदमी जो दूसरो की भावना को अपने हिसाब से बयां करे। मुख्य बात यह थी कि यदि आसिफ़ भाई फ़ांसी का विरोध कर देते, तो दिन भर की धमधमाती हेडलाईन का जुगाड़ हो जाता और ये पत्रनवीस बाकी दिन की छुट्टी ले सकते थे।
आसिफ़ भाई बोले- "अपने ही शहर मे हजारो मुसलमान गरीबी रेखा के नीचे हैं, उनकी बात नहीं होगी। हमारे नेता पूरी दुनिया के मुसलमानो के ठेकेदार हैं, सर्बिया से लेकर अफ़गानिस्तान, कश्मीर, चीन पता नही कहां कहां ठेका इन्हें मिला हुआ है। और जो अरब मुल्क हैं वो इन लोगो के आंदोलन को भीख देकर अपने धर्म से छुट्टी पा लेते हैं और अमेरिका जा ऐश करते हैं। कौन समझाये इन मूर्खों को कि हम हिंदुस्तानी हैं तो हिंदुस्तान की तरक्की अखंडता मे हमारी भलाई है। जो हिंदुस्तान का दुश्मन है वह हिंदुस्तानी मुस्लमानो का दुश्मन है।
इतना सुन सारे पत्रकार निराश हो गये, आखिर देशभक्ति की बातें ब्रेकिंग न्यूज कहां बन सकती थीं। तभी हमने दीदार के दिलीप कुमार की तरह गाड़ियां रोक रोक चिल्लाना शुरू कर दिया "ए भाई कोई अफ़जल गुरू को बचा लो भाई"। ताबड़ तोड़ सारे कैमरे और पत्रकार हमे घेर खड़े हो गये। लाईव न्यूज में हमारा चेहरा चमचमाने लगा। सवाल दागा गया- "आप क्यों बचाना चाह रहे हो"। हमने कहा -"हम हर देशभक्त को बचाते हैं"। पत्रकार बैकफ़ुट मे आ गया, उसने पूछा- " वह तो आतंकवादी है, आपको देशभक्त कैसे नजर आ रहा है"। हमने कहा -" आतंकवादी तो मासूम आम आदमी को मारते हैं। यह तो नेताओं को मारने गया था। उन नेताओं को जिनकी लूट खसोट से देश त्रस्त है"। पत्रकारों की बांछे खिल गयी, एक ने पूछा- " संसद तो देश का दिल है सम्मान है उस पर हमले को आप किस तरह जायज ठहरा सकते हो"।
हमने जवाब दिया-" ये अब संसद रही नही असंसद हो चुकी है। संसद यह तब थी जब इसमे नेहरूजी, अटल जी लालबहादुर शास्त्री, मौलाना जैसे सांसद बैठते थे"। अब यहां पैसा खा वोट देने वाले; सवाल पूछने वाले, जाति धर्म के नाम पर अवाम को बांट वोट पाने वाले बैठते हैं। पहले नैतिकता के आधार पर इस्तीफ़ा देने वाले मंत्री थे। अब मंत्री ऐसे हैं जो दो लाख करोड़ का घोटाला कर सीनाजोरी से एक नंबर मे रिश्वत खाते हैं, ऐसे भी हैं जो पहले चोर अपराघियों के वकील थे और अब ऐसे घॊटाले करने वाले लोगों का बचाव करने के लिये प्रवक्ता और मंत्री बनाएं गये हैं। अब तो नौबत यह है कि खुले आम सत्ताधारी दल कोर्ट और कैग जैसी स्वायत्त संस्थाओं की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहे हैं। पैसा खिला आप जैसे पत्रकारो से उनके बारे में मनगढ़ंत घुमा फ़िरा कर कार्यक्रम जनता को दिखा रहे हैं। कानून मंत्री सुप्रीम कोर्ट के जजों पर टिप्पणी कर रहे हैं। ऐसी असंसद पर हमला राष्ट्र द्रोह नही देश प्रेम है"।
सवाल तो साहब सैकड़ो पूछे गये, लेकिन अपन रामदेव बाबा टाईप ज्यादा बयान दे, फ़जीहत कराने के मूड में नही थे। सब कुछ ठीक चल रहा था कि अघट घटित हो गया। हुआ कुछ ऐसा कि सब्जी का इंतजार कर रही श्रीमती को जब चैनल मे हमारा चमचमाता चेहरा नजर आया तो बेलन लिये धड़धड़ाते हुये नुक्कड़ पहुंच गयीं और सरेराह धुलाई करते हुये घर ले गयीं। सारी बेईज्जती खराब हो गयी, मुख्य मुद्दा रह गया सो अलग। टीवी चैनलो हम छाये जरूर थे। बाबा रामदेव की सेना टाईप पिट भी रहे थे, पर जनता से कोई सहानुभूती न मिली, लोग पेट पकड़ कर हंस रहे थे, सो अलग। खैर जनाब इस घटना पर कुछ ब्रेकिंग न्य़ूज के टाईटल बता रहा हूं हमारे महान चैनलों के
जी न्यूस - अफ़जल गुरू की फ़ांसी का विरोध करने पर पत्नी ने सरे राह पीटा
न्यूस24 - देशद्रोही की सरे राह पत्नी द्वारा पिटाई
ईंडिया टीवी- क्यों पिटा पति-- किसने पीटा उसको- कैसे पीटा गया- अफ़जल गुरू से उसका क्या रिश्ता था
(माफ़ कीजियेगा बैकग्राउंड म्यूजिक की सुविधा नही है)
चलिये हमारी असली बात तो जनता तक पहुंची नही आप तक पहुंची है। अपना विचार बताईयेगा कि आदरणीय अफ़जल गुरू को फ़ांसी दी जाये या उसे एक मौका और देना चाहिये हमले का।
सही कहा भाई ,देश भक्ति की बातें और ब्रेकिंग न्यूज़ ? पर जायेंगे सभी , क्या गुरु और क्या चेला.
ReplyDeleteभोंपू टी वी----- घाटी का माहौल खराब करने वाला घाटे में; घर की धुलाई आज सड़क पर हुई.
रोएं या हंसें ...
ReplyDeleteखाने वाला दांत तो दोनो के लिये ही काम करता है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर बात कही है अरुणेश भाई....
लेख का एक हिस्सा तो टोपाज ब्लेड की तरह तीखा है, और वो भी आपने उलटे चलाई है... बहुतों के चेहरे छीले जाने का डर है....
और आखिर में तो पेट पकड़ा ही दिया....
.....निरमा बाबा की ही धुलाई...
भयंकर डिटर्जेंट है भाई....:))
देर-सवेर तो होती ही रहती है!
ReplyDeleteहर आतंकवादी की औसत आयु दो दिन की होती है,
कोई दो दिन में नेसेत नाबूद हो जाता है और कोई दो घंटे में।
आपने अच्छा व्यंग्य लिखा है!
अमेरिका से चाची को वापस आने दीजिये .. बचा लेंगे अफजल गुरु को.
ReplyDeleteइतना सुन सारे पत्रकार निराश हो गये, आखिर देशभक्ति की बातें ब्रेकिंग न्यूज कहां बन सकती थीं। afsos ki baat hai ki ek patranavees hone ke baavzood bhi main is bat se sahmat hun,arunesh.sateek.
ReplyDeleteTRUTH OF 15TH AUGUST AND MEANING OF INDIANS BY INVADER BRITISH INDIA OUR COUNTRY IS A DOMINION U/S 3 OF INDIAN INDEPENDENCE ACT, 1947 OF BRITISH INDIA. CONSTITUTIONAL AMENDMENTS ARE ANTI-THESIS AS THOSE WHICH WAS EXISTING PRIOR TO INDEPENDENCE BY BRITISH INDIA IS STILL CONTINUE TO DIVIDE AND RULE I CHANGE LEADERSHIP UNDER DECEPTIVE IDENTITY OF GANDHI NEHRU NEXUS - PRO PAKISTANI FROM BRITISH INDIA. SELF G
ReplyDeleteYou are such a brilliant person, every hit is a super hit like Virendra Sahwag.
ReplyDeleteYou deserve to be a national hero, like deepak chorasiya, barkha datta.
You must not appear on television shows, otherwise where the politicians would hide?