साहब आज की बैठक नुक्कड़ में न थी। शहर से दूर एक ढाबे में भाई सोहन शर्मा उर्फ़ कांग्रेसी ने दावत रखी थी। दावत इस कर के थी कि कोई भी समझदार कांग्रेसी आड़े वक्त मे लेखक और पत्रकार इन दो प्राणियो को अवश्य खिलाता पिलाता है। आजकल भाजपायी भी इसी रास्ते में हैं, पर ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हे इस मामले आरक्षण की आवश्यकता है। खैर हुआ कुछ ऐसा कि माहौल बनने के बाद बात भ्रष्टाचार पर न मुड़ जाये। इसलिये शर्मा जी ने शेरो शायरी की इच्छा जाहिर की। अपने राम शुरू हो गये
कांग्रेसियों की कांग्रेसियत से।
भ्रष्टाचार बदनाम तो न होगा॥
लोकपाल लाओ पर इतना बतला दो।
कहीं हमें आराम तो नही होगा॥
भ्रष्टाचार का नाम सुनते ही शर्मा जी ने मुंह बनाया। कहने लगे- " एलिया साहब से चुरा कर मरोड़ कर सुना रहे हो।" हमने कही- "भाई आम खाओ, पेड़ क्यों गिनते हो। हमने सुनाई, अभी हमारी हुई। अब आप जो बियर पी रहे हो, पूछा है किसने बनाई। कैसे अनाज को सड़ा कर, उसमे कीड़े लगाकर खमीर उठाया जाता है। बदबूदार माहौल में दुर्गंध के बीच उसे कैसे पैक किया जाता है। शर्मा जी पीते पीते ठसक गये, आगे न पी गयी। अपने मियां पीना जारी था। उन्होने आरोप लगाया- " जब इतनी गंदी चीज है। तो तो आप कैसे पी रहे हो।" हम मुस्कुराये, कहा- शर्माजी आप आम जनता की तरह अनजान हो। आपको पता ही नही कि आप पी क्या रहे हो। हम सरकार की तरह कैलकुलेटेड रिस्क ले रहे हैं। हमे पता है, इसमे गंदगी है, गरीब का पसीना, आह, पीड़ा मिली हुयी है। पर हमने सरकार की तरह हिसाब लगाया हुआ है। नशा ज्यादा मजा देता है और गंदगी या भ्रष्टाचार है ही नही। कह कर साफ़ नकारा जा सकता है।"
शर्मा जी भड़क गये, बोले- "हर बात मे सरकार को काहे बीच मे लाते हो। हम तो इस ठंडी और खूबसूरत दिखने वाली बियर का मजा लेंगे ही।" हमने - मियां आखिर विज्ञापन में आपके बबलू बाबा दीदी प्रधान मम्मी की तरह के चिकने लोग ही दिखते हैं की नही। खलमाड़ी टाईप थोड़े होर्डिंग मे आते हैं। यह सोचने साम न चलेगा। बियर के अंदर गंदगी है इसमे कोई शक नही।" शर्मा जी भड़क गये, बोले- दवे जी, हमारी पार्टी में हमारी बियर पीकर, हमारी पार्टी को ही भुला बुरा कह रहे हो।" हमने कहा- "आपसे ही सीखा है भाई। जिस देश ने आपको सिर माथे पर लगाया, आपकी हर गलती माफ़ की उससे बेईमानी। फ़िर उसके बाद सीनाजोरी। हम जैसे देश वासी भी तो यही सीखेंगे न। आप लोगो की तरह खा पी के डकार रहे है अहसान काहे गिनाते हो।
शर्मा जी खड़े हो गये, कहने लगे- "हमारी पार्टी के नेताओ ने शहादत दी है इस देश के लिये। महात्मा गांधी से लेकर राजीव गांधी तक। संघ वाले तो आजादी के आम्दोलन मे थे ही नही। इन विरोधियों ने किया क्या है देश की आजादी के लिये।" हमने जवाब दिया- "भाई मेरे महात्मा गांधी कांग्रेस छोड़ चुके थे। और कितने चुनाव जीतोगे शहादत के नाम पर। हद हो गयी, एक आम शहीद के परिवार को कितने लाख रूपये मिलते हैं। उतने लाख करोड़ तो आरोप है कि स्विस बैंक में जमा हैं राजपरिवार के। अनुकम्पा नियुक्ती का समय खत्म हो गया भाई, अब बख्श दो हमें।"
मामला बिगड़ते और अगली बियर की आशा धूमिल पड़ती देख। आसिफ़ भाई ने बात घुमाई। पूछा- "दवे जी "भ्रष्टाचार से आराम तो नही होगा" ऐसा क्यों कहा आपने।" हमने कहा- "भाई बात समझो, भ्रष्टाचार समाप्त हो जायेगा तो हम लोगों का जीना ही मुश्किल हो जायेगा। नक्शा पास करवाने से लेकर हर काम में गरीबो की तरह चक्कर लगाने होंगे। अब आम हिंदूस्तानी के लिये यह कितना मुश्किल है। हर काम मे शार्टकट नस-नस में समाया हुआ है। लोकपाल के डर से कोई सरकारी कर्मचारी दो नंबर का काम ही नही करेगा। तो हम लोग तो जीते जी मारे जायेंगे।"
गुप्ता जी मुफ़्त में मिली तीन बियर डकार चुके थे। भारी जोश में थे। बुलंद आवाज मे बोले- "एक दो तीन चार अन्ना जी की जय जय कार।" फ़िर कहा- "लोकपाल मस्ट कम आर वुई वुड सफ़र लाईक अनी थिंग।" हम गुप्ता जी के मुंह से धाराप्रवाह अंग्रेजी निकलते देख सावधान हो गये। तीन बियर के बाद उनका अंग्रेजी पेलना शुरू हुआ। मतलब उनको वापस होम ग्राउंड पहुंचाये बिना, उनसे मुक्ति पाना अंसंभव था। सो उनकी उतारने के लिहाज से हमने उन्हे टोका- "सोच लो गुप्ता जी। फ़िर हमको सारे काम नियम से करने होंगे।" उनको बात मंजूर थी, बोले- यस, टाईम हैस कम टु बिकम हानेस्ट।" हमने घोषणा की - भाईयों, घर लौटते समय गुप्ता जी पैदल जायेंगे। दस किलोमीटर पैदल चलने की बात सुन। गुप्ता जी तुरंत होश में आ गये। भड़ककर हिंदी में बोले- "मैं पैदल क्यों जाउं, जिसको बियर लग गई हो वो जाये।" हमने कहा- मिस्टर गुप्ता ड्रंक ड्राईविंग इस अनलाफ़ुल। गुप्ता जी ने हिंदी का दामन न छोड़ा, चीत्कार कर बोले - भाई , अभी लोकपाल बिल आया कहां है, एक बार आ जाये। फ़िर नेताओं की तरह हम भी सुधर जायेंगे।
मित्रो यह तो लोकपाल पर हल्की फ़ुल्की दिल्लगी थी। पर इससे निकली गंभीर बात यही है कि हमें यदि भ्रष्टाचार को भारत से दूर भगाना है तो शुरूवात खुद से ही करनी होगी। जमीनी स्तर से भ्रष्टाचार के खिलाफ़ लड़ने से ही भ्रष्टाचार खत्म होगा। और बाकी पच्चीस जुलाई से महायुद्ध तो छिड़ने वाला ही है। आप सभी से अनुरोध है कि आगे बढ़, अन्ना हजारे और उनकी टीम का साथ दे। वरना कतील शिफ़ाई का यह शेर सदैव हमारा मुंह चिढ़ाता रहेगा-
Paper work online hone se hi 90% bhrastachar khatma
ReplyDeleteright to information ne kafi kaam kiya hai
CAG bhi active hui hai
Ye defence ke naam me secrecy bekaar hai
Jitani secrecy ka naatak hai usame .1% ki jaroorat hai
Ek bhi dhang ka invention halia dinon me nahi hua
thodi si transparency aur ho bhrast logon ki fati padegi
Baki 10% janlokpal kar degaa khaatamaa.
तो आप भी चाहते है ना, कि ये बिल आये लेकिन ऐसा आये जो सही हो जनता से धोखा ना हो।
ReplyDeletesach to yahi hai ki ham khud ko badle bina sab kuchh badlna chahte hain jo katai sambhav nahi par ye baat manane ko ham taiyyar nahi kyonki bhrastachar to hamari nas nas me smaya hai. mujhe tajjub hota hai jab dekhta hun ki college time me tuition padhane wale teacher se lekar duty time me private practice karne wale doctor tak, milawat karke maal bechne wale vypari se lekar chungi par trucks se wasooli karte sipaahi tak sab ke sab anna ke aur lokpaal ke samrthan me hain to bhrastchar hai kahan. par baat wahi hai ki khud ko nahi badlna, sari duniya ko badlana hai. bahut achchha vyang aur sanjya mahpatra ji ki baat se main bhi sahmat hun ki anukampa niyukti jaisa prayog maine bhi kabhi nahi dekha.
ReplyDeleteजिस देश ने आपको सिर माथे पर लगाया, आपकी हर गलती माफ़ की उससे बेईमानी और फ़िर उसके बाद सीनाजोरी।
ReplyDelete"हमने कातिल सा मुंसिफ नहीं देखा
जो ज़ुल्म तो सहता है, बगावत नहीं करता."
एकदम सच्चा आवाहन है अरुणेश भाई... शुरुआत यहीं से करनी होगी... अपने से ही करनी होगी...
इन्कलाब जिंदाबाद...
एकदम सच्चा आवाहन है अरुणेश भाई.......
ReplyDeleteमेरा आपसे निवेदन है कि 16 अगस्त से आप एक हफ्ता देश के नाम करें, अन्ना के आमरण अनशन के शुरू होने के साथ ही आप भी अनशन करें, सड़कों पर उतरें। अपने घर के सामने बैठ जाइए या फिर किसी चौराहे या पार्क में तिरंगा लेकर भ्रष्टाचार के खिलाफ नारे लगाइए। इस बार चूके तो फिर पता नहीं कि यह मौका दोबारा कब आए
सही बात है हम लोगो को शोर्टकट की आदत जो हो गई है . सच्चाई तो यह है कि वह शोर्टकट का टाइम ही काम पूरा करने का सही टाइम होता है . सुविधा शुल्क बाबु को देने के बाद हमें लगता है कि काम जल्दी हो गया.
ReplyDeleteआप भी ना किसी न किसी बहाने इस देश के पवित्र परिवार की पवित्र पार्टी के पीछे पड़े!!
ReplyDeleteway4host
दिलचस्प आलेख...
ReplyDeleteअरुणेश जी अच्छी बात रोचक भी ..कुछ तो डर सताने लगा है बाद में सुधर जायेंगे ...
ReplyDeleteभ्रमर ५
गुप्ता जी ने बचाव किया- अभी लोकपाल बिल आया कहां है, एक बार आ जाये फ़िर नेताओं की तरह हम भी सुधर जायेंगे।
बहुत सटीक आलेख..
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