खचाखच भरे न्यायालय में कालू को पेश होने की पुकार लगते ही अदालत में कोलाहल मच गया। कटघरे में कालू के खड़े होने के बाद, उसके खिलाफ़ आरोपों की सूची पढ़ी गयी। पहला आरोप था बत्तीस रूपये रोज से ज्यादा कमाने के बाद भी खुद को गरीब बताकर गरीबों को दी जाने वाली सरकारी सुविधाओं का लाभ उठाना। दूसरा आरोप था, श्रीमती सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली नेशनल एडवाईजरी काउंसल के निर्णय को गलत ठहराना।
कालू के वकील दीपक भाजपाई ने आरोपो को सिरे से खारिज करते हुये कहा -" माई लार्ड, कालू की कमाई किसी तरह भी बत्तीस रूपये रोज से कम है। यह सरकार गरीबी नही, गरीबों को इस देश से हटाना चाहती है। इस लिये ऐसे मनगढ़ंत आरोप लगा रही है। इस सरकार को यह भी ध्यान रखना चाहिये कि कालू को रोज काम नही मिलता है।"
सरकार की तरफ़ से स्वयं दवे जी याने की हम वकील थे। हमने खड़े होकर कहा- " माई लार्ड, यह कालू सिर्फ़ कालू नही है। ये ऐसे करोड़ो लोगों का नुमाईंदा है, जो अमीर होने के बावजूद गरीब बने रहते हैं। और ऐसे ही लोगो के कारण बेचारे असली गरीबों तक सरकारी मदद नही पहुंच रही है। सबूत मे दी गयी तस्वीरों मे यह कालू चाट खाते, चाय पीते और कुल्फ़ी खाते नजर रहा है।"
दीपक भाजपाई ने विरोध किया बोले -" माई लार्ड कालू गरीब है तो क्या हुआ, महिने में एकाध दिन अच्छी दिहाड़ी मिलने पर अगर वह कुछ शौक पूरे कर ले, तो क्या वह अमीर हो जायेगा।"
हमने कहा-" माई लार्ड, मुझे पता था कि मेरे काबिल दोस्त यही कहेंगे। इस लिये अगला सबूत, मनरेगा में कालू के अंगूठे का छाप लगी रसीदें पेश कर रहा हूं। कालू ने साल के सौ दिन 120 रूपये की रोजी पाकर काम किया है। अगर यह मान भी लिया जाये कि इसके अलावा कालू ने कोई काम नहीं किया तो भी तकरीबन बत्तीस रूपये रोज की सालाना कमाई की ही गयी है।"
तभी कालू चिल्लाया - " माई बाप, मुझे सिर्फ़ बीस दिन का काम मिला है, और इसके अलावा बीस दिन की बिना काम, आधी हाजिरी दे, सरपंच के बच्चे ने धोखे में रख अंगूठा लगवा लिया। अगर मुझे मालूम होता कि वह कमीना बाकी साठ दिन की हाजिरी अकेला डकार रहा है, तो मै कम से कम अपनी आधी हाजिरी तो ले लेता।"
दीपक भाजपाई तुरंत खड़े होकर बोले - "माई लार्ड, सुना आपने, अब तो यह साबित हो जाता है कि सरकारी वकील का दावा गलत है और कालू की कमाई बत्तीस रूपये रोज से कम है।"
हमने खड़े होकर कहा - " माई लार्ड, हम तो केंद्र सरकार के वकील हैं, राज्य में घोटाला हुआ है कि नही यह नही बता सकते। अब राज्य में आरोपी के काबिल वकील दीपक भाजपाई की सरकार है। अगर वह स्वीकार कर रहे हैं कि उनके राज्य में मनरेगा में घोटाला हो रहा है। तब यह माना जा सकता है कि बेचारे कालू को पूरा भुगतान नही मिला है।"
सकपकाये दीपक भाजपाई खड़े होकर बोले - " नहीं माई लार्ड, राज्य में मनरेगा का पूरा और सही भुगतान हो रहा है। और कालू को पूरी हाजिरी मिली ही होगी, अतः यह तो बात साबित ही नजर आती है कि कालू बत्तीस रूपये रोज से कमा रहा है।"
यह बात सुनते ही कालू चप्पल उठा, दीपक भाजपाई को मारने दौड़ा। हंगामा मच गया और पुलिस वाले कालू को पकड़ बाहर ले गये, पीछे दीपक भाजपाई भी गये। दस मिनट बाद जब वे सब लौटे तो ऐसा लगा कि दीपक भाजपाई ने कुछ लारी लप्पा दे, कालू को मना लिया है।
दीपक भाजपाई गला साफ़ कर बोले -" माई लार्ड यह मान भी लिया जाये कि कालू बत्तीस रूपये रोज कमाता है तो भी यह साबित नही होता कि वह गरीब नही है। बत्तीस रूपये में आज की महंगाई मे आता ही क्या है। दूध 35 रूपये, सब्जियां चालीस से अस्सी रूपया, फ़ल सौ रूपये किलो, मेवे चार सौ रूपया किलो। ऐसे में बत्तीस रूपये में जीना संभव ही नही सरकारी वकील शायद आज से बीस साल पहले की बात कर रहे है।"
हमने कहा- "माई लार्ड, भारत का आम आदमी, आम तौर पर आम चीजें ही खाता है खास नही। बत्तीस रूपये में दो किलो गेंहूं या दस अंडे आ सकते हैं और ऐसी तमाम चीजें आ सकती है जिमके सहारे आदमी आराम से जिंदा रह सकता है। माई लार्ड, भारत में गरीब उसे कहते हैं जो भूख से मर जाये। और यह बात साफ़ है कि कालू जिंदा रहने लायक कमा ही रहा है। अतः अब ये किसी सरकारी मदद का हकदार नही है।"
दीपक भाजपाई बोले- "माई लार्ड, मेरे काबिल दोस्त से मैं जानना चाहूंगा कि यह बत्तीस रूपये की रकम इनके मुवक्किल ने कैसे तय की इसका आधार क्या है। जिंदा ही रहना हो तो बाईस या बयालीस रूपये भी तय किया सकते थे पर नही, इन्होने एसी आफ़िस में बैठ मनगढ़ंत रकम तय कर दी है।"
हमने कहा - माई लार्ड बत्तीस का आंकड़ा मनगढ़ंत नही है इसके पीछे आर्थिक से लेकर ऐतिहासिक कारण मौजूद हैं। मेरे मुवक्किल ने तीन बातों का ध्यान रखा, पहले मुंह में बत्तीस दांत होते हैं, दूसरे आदमी इतना ज्यादा न खाये कि कमर की साईज बत्तीस से अधिक हो जाये और तीसरा और अंतिम कारण मेरे मुवक्किल नेशनल एडवाईजरी काउंसिल की अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी विक्रमादित्य के सिंहासन ( जिसमे बत्तीस कठपुतलियां थी, और उसमे बैठा आदमी अद्भुत और सटीक न्याय करता था ) से बहुत प्रभावित हैं। अतः उन्होने भी अपने आसपास बत्तीस कठपुतली सलाहकारों को बैठा रखा है, उनकी सलाह से ही यह रकम तय की गयी है।"
दीपक भाजपाई बोले - "माई लार्ड, क्या मेरे काबिल दोस्त यह कहना चाह रहे हैं कि देश की सौ करोड़ जनता सिर्फ़ रूखा सूखा खाकर जिंदा रहे। उसे स्वादिष्ट चीजें खाने का कोई अधिकार नही है? इससे साफ़ पता चलता है कि इनके मुवव्किल याने श्रीमती सोनिया गांधी का दल इस देश के आम आदमी को कीड़ा मकौड़ा समझता है। क्या यह मासूम कालू फ़ल, सब्जी, दूध, मिठाई न खाये,क्या यह कभी मुर्गा मछली खा ले तो इसे गरीबो की श्रेणी रहने का हक नही। माई लार्ड मै आपसे दरख्वास्त करता हूं कि आप इनके मूर्खतापूर्ण तर्कों को खारिज करते हुये इस बेचारे कालू को गरीबो को मिलने वाली सुविधा पाने का और कालू गरीब कहलाने का हक पुनः प्रदान करें।
हमने खड़े होकर कहा- "माई लार्ड, मेरे मुवव्किल को इस कालू से पूरी सहानुभूती है। मेरे काबिल दोस्त, दीपक भाजापाई कालू को और आपको भावनापूर्ण तर्क दे, बरगलाने का भरसक प्रयास कर चुके हैं। पर मै आपके सामने एक ऐसा तथ्य रखने जा रहा हूं जिससे इस बारे में कोई संशय नही रह जायेगा।"
"माई लार्ड, यह है यूएन की रिपोर्ट, जिसमे कहा गया है कि हर साल भूख से मरने वाले दस आदमियों के मुकाबले ज्यादा खाने से सौ आदमी मारे जाते हैं। क्या मेरे काबिल दोस्त ने इस ओर सोचा है कि इस मासूम कालू को यदि दूध अंडा चिकन तेल धी चाकलेट खाने दिया गया तो इसके हार्ट मे कोलेस्ट्राल की मात्रा बहुत बढ़ जायेगी, कभी भी इसे हार्ट अटैक आ जायेगा। और माई लार्ड आजकल खेती मे रसायनों का अत्यधिक इस्तेमाल होने के कारण, ज्यादा खाने से कैंसर होने की कितनी संभावना बढ़ जायेगी। और तो और माई लार्ड, अगर कालू ने यूरिया से बना दूध पी लिया तो इसकी किडनी फ़ेल होने का खतरा है। और माई लार्ड इनमे से कुछ भी इसे हो गया तो इसके मासूम बीबी बच्चे इसके इलाज के लिये दर दर ठोकरें खायेंगे और उसका पैसा कहां से लायेंगे।"
"इन सबसे भी उपर माई लार्ड, इन सब बेकार चीजों को खाने से आदमी को मोटापा आ जाता है। फ़िर यह बेचारा कालू मोटापे के कारण सरकारी योजनाओं में काम नही कर पायेगा। और अगर ऐसा हो गया तो इसके परिवार का अंजाम क्या होगा। इसलिये माई लार्ड मेरी आपसे गुजारिश है आप श्रीमती सोनिया गांधी के द्वारा अपनी कठपुतलियों की सलाह से लिये गये इस बेहतरीन निर्णय को तत्काल लागू करे।"
जज साहब ने अपना निर्णय सुनाया - "तमाम दलीलों के मद्देनजर यह अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि कालू का अपने गरीब होने का दावा गलत है। अतः उसका नाम कालू गरीब से बदल कालू आम आदमी किया जाता है। और कालू के वकील दीपक भाजपाई को सख्त ताकीद की जाती है कि आज के बाद फ़िर किसी कालू जैसे मासूम को बरगला उसका और अदालत का कीमती समय जाया न करे।"
कालू के वकील दीपक भाजपाई ने आरोपो को सिरे से खारिज करते हुये कहा -" माई लार्ड, कालू की कमाई किसी तरह भी बत्तीस रूपये रोज से कम है। यह सरकार गरीबी नही, गरीबों को इस देश से हटाना चाहती है। इस लिये ऐसे मनगढ़ंत आरोप लगा रही है। इस सरकार को यह भी ध्यान रखना चाहिये कि कालू को रोज काम नही मिलता है।"
सरकार की तरफ़ से स्वयं दवे जी याने की हम वकील थे। हमने खड़े होकर कहा- " माई लार्ड, यह कालू सिर्फ़ कालू नही है। ये ऐसे करोड़ो लोगों का नुमाईंदा है, जो अमीर होने के बावजूद गरीब बने रहते हैं। और ऐसे ही लोगो के कारण बेचारे असली गरीबों तक सरकारी मदद नही पहुंच रही है। सबूत मे दी गयी तस्वीरों मे यह कालू चाट खाते, चाय पीते और कुल्फ़ी खाते नजर रहा है।"
दीपक भाजपाई ने विरोध किया बोले -" माई लार्ड कालू गरीब है तो क्या हुआ, महिने में एकाध दिन अच्छी दिहाड़ी मिलने पर अगर वह कुछ शौक पूरे कर ले, तो क्या वह अमीर हो जायेगा।"
हमने कहा-" माई लार्ड, मुझे पता था कि मेरे काबिल दोस्त यही कहेंगे। इस लिये अगला सबूत, मनरेगा में कालू के अंगूठे का छाप लगी रसीदें पेश कर रहा हूं। कालू ने साल के सौ दिन 120 रूपये की रोजी पाकर काम किया है। अगर यह मान भी लिया जाये कि इसके अलावा कालू ने कोई काम नहीं किया तो भी तकरीबन बत्तीस रूपये रोज की सालाना कमाई की ही गयी है।"
तभी कालू चिल्लाया - " माई बाप, मुझे सिर्फ़ बीस दिन का काम मिला है, और इसके अलावा बीस दिन की बिना काम, आधी हाजिरी दे, सरपंच के बच्चे ने धोखे में रख अंगूठा लगवा लिया। अगर मुझे मालूम होता कि वह कमीना बाकी साठ दिन की हाजिरी अकेला डकार रहा है, तो मै कम से कम अपनी आधी हाजिरी तो ले लेता।"
दीपक भाजपाई तुरंत खड़े होकर बोले - "माई लार्ड, सुना आपने, अब तो यह साबित हो जाता है कि सरकारी वकील का दावा गलत है और कालू की कमाई बत्तीस रूपये रोज से कम है।"
हमने खड़े होकर कहा - " माई लार्ड, हम तो केंद्र सरकार के वकील हैं, राज्य में घोटाला हुआ है कि नही यह नही बता सकते। अब राज्य में आरोपी के काबिल वकील दीपक भाजपाई की सरकार है। अगर वह स्वीकार कर रहे हैं कि उनके राज्य में मनरेगा में घोटाला हो रहा है। तब यह माना जा सकता है कि बेचारे कालू को पूरा भुगतान नही मिला है।"
सकपकाये दीपक भाजपाई खड़े होकर बोले - " नहीं माई लार्ड, राज्य में मनरेगा का पूरा और सही भुगतान हो रहा है। और कालू को पूरी हाजिरी मिली ही होगी, अतः यह तो बात साबित ही नजर आती है कि कालू बत्तीस रूपये रोज से कमा रहा है।"
यह बात सुनते ही कालू चप्पल उठा, दीपक भाजपाई को मारने दौड़ा। हंगामा मच गया और पुलिस वाले कालू को पकड़ बाहर ले गये, पीछे दीपक भाजपाई भी गये। दस मिनट बाद जब वे सब लौटे तो ऐसा लगा कि दीपक भाजपाई ने कुछ लारी लप्पा दे, कालू को मना लिया है।
दीपक भाजपाई गला साफ़ कर बोले -" माई लार्ड यह मान भी लिया जाये कि कालू बत्तीस रूपये रोज कमाता है तो भी यह साबित नही होता कि वह गरीब नही है। बत्तीस रूपये में आज की महंगाई मे आता ही क्या है। दूध 35 रूपये, सब्जियां चालीस से अस्सी रूपया, फ़ल सौ रूपये किलो, मेवे चार सौ रूपया किलो। ऐसे में बत्तीस रूपये में जीना संभव ही नही सरकारी वकील शायद आज से बीस साल पहले की बात कर रहे है।"
हमने कहा- "माई लार्ड, भारत का आम आदमी, आम तौर पर आम चीजें ही खाता है खास नही। बत्तीस रूपये में दो किलो गेंहूं या दस अंडे आ सकते हैं और ऐसी तमाम चीजें आ सकती है जिमके सहारे आदमी आराम से जिंदा रह सकता है। माई लार्ड, भारत में गरीब उसे कहते हैं जो भूख से मर जाये। और यह बात साफ़ है कि कालू जिंदा रहने लायक कमा ही रहा है। अतः अब ये किसी सरकारी मदद का हकदार नही है।"
दीपक भाजपाई बोले- "माई लार्ड, मेरे काबिल दोस्त से मैं जानना चाहूंगा कि यह बत्तीस रूपये की रकम इनके मुवक्किल ने कैसे तय की इसका आधार क्या है। जिंदा ही रहना हो तो बाईस या बयालीस रूपये भी तय किया सकते थे पर नही, इन्होने एसी आफ़िस में बैठ मनगढ़ंत रकम तय कर दी है।"
हमने कहा - माई लार्ड बत्तीस का आंकड़ा मनगढ़ंत नही है इसके पीछे आर्थिक से लेकर ऐतिहासिक कारण मौजूद हैं। मेरे मुवक्किल ने तीन बातों का ध्यान रखा, पहले मुंह में बत्तीस दांत होते हैं, दूसरे आदमी इतना ज्यादा न खाये कि कमर की साईज बत्तीस से अधिक हो जाये और तीसरा और अंतिम कारण मेरे मुवक्किल नेशनल एडवाईजरी काउंसिल की अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी विक्रमादित्य के सिंहासन ( जिसमे बत्तीस कठपुतलियां थी, और उसमे बैठा आदमी अद्भुत और सटीक न्याय करता था ) से बहुत प्रभावित हैं। अतः उन्होने भी अपने आसपास बत्तीस कठपुतली सलाहकारों को बैठा रखा है, उनकी सलाह से ही यह रकम तय की गयी है।"
दीपक भाजपाई बोले - "माई लार्ड, क्या मेरे काबिल दोस्त यह कहना चाह रहे हैं कि देश की सौ करोड़ जनता सिर्फ़ रूखा सूखा खाकर जिंदा रहे। उसे स्वादिष्ट चीजें खाने का कोई अधिकार नही है? इससे साफ़ पता चलता है कि इनके मुवव्किल याने श्रीमती सोनिया गांधी का दल इस देश के आम आदमी को कीड़ा मकौड़ा समझता है। क्या यह मासूम कालू फ़ल, सब्जी, दूध, मिठाई न खाये,क्या यह कभी मुर्गा मछली खा ले तो इसे गरीबो की श्रेणी रहने का हक नही। माई लार्ड मै आपसे दरख्वास्त करता हूं कि आप इनके मूर्खतापूर्ण तर्कों को खारिज करते हुये इस बेचारे कालू को गरीबो को मिलने वाली सुविधा पाने का और कालू गरीब कहलाने का हक पुनः प्रदान करें।
हमने खड़े होकर कहा- "माई लार्ड, मेरे मुवव्किल को इस कालू से पूरी सहानुभूती है। मेरे काबिल दोस्त, दीपक भाजापाई कालू को और आपको भावनापूर्ण तर्क दे, बरगलाने का भरसक प्रयास कर चुके हैं। पर मै आपके सामने एक ऐसा तथ्य रखने जा रहा हूं जिससे इस बारे में कोई संशय नही रह जायेगा।"
"माई लार्ड, यह है यूएन की रिपोर्ट, जिसमे कहा गया है कि हर साल भूख से मरने वाले दस आदमियों के मुकाबले ज्यादा खाने से सौ आदमी मारे जाते हैं। क्या मेरे काबिल दोस्त ने इस ओर सोचा है कि इस मासूम कालू को यदि दूध अंडा चिकन तेल धी चाकलेट खाने दिया गया तो इसके हार्ट मे कोलेस्ट्राल की मात्रा बहुत बढ़ जायेगी, कभी भी इसे हार्ट अटैक आ जायेगा। और माई लार्ड आजकल खेती मे रसायनों का अत्यधिक इस्तेमाल होने के कारण, ज्यादा खाने से कैंसर होने की कितनी संभावना बढ़ जायेगी। और तो और माई लार्ड, अगर कालू ने यूरिया से बना दूध पी लिया तो इसकी किडनी फ़ेल होने का खतरा है। और माई लार्ड इनमे से कुछ भी इसे हो गया तो इसके मासूम बीबी बच्चे इसके इलाज के लिये दर दर ठोकरें खायेंगे और उसका पैसा कहां से लायेंगे।"
"इन सबसे भी उपर माई लार्ड, इन सब बेकार चीजों को खाने से आदमी को मोटापा आ जाता है। फ़िर यह बेचारा कालू मोटापे के कारण सरकारी योजनाओं में काम नही कर पायेगा। और अगर ऐसा हो गया तो इसके परिवार का अंजाम क्या होगा। इसलिये माई लार्ड मेरी आपसे गुजारिश है आप श्रीमती सोनिया गांधी के द्वारा अपनी कठपुतलियों की सलाह से लिये गये इस बेहतरीन निर्णय को तत्काल लागू करे।"
जज साहब ने अपना निर्णय सुनाया - "तमाम दलीलों के मद्देनजर यह अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि कालू का अपने गरीब होने का दावा गलत है। अतः उसका नाम कालू गरीब से बदल कालू आम आदमी किया जाता है। और कालू के वकील दीपक भाजपाई को सख्त ताकीद की जाती है कि आज के बाद फ़िर किसी कालू जैसे मासूम को बरगला उसका और अदालत का कीमती समय जाया न करे।"
बढ़िया मुक़दमा... सटीक (कु)तर्क....
ReplyDeleteउम्दा लेखन...
सादर बधाई...
शानदार और सटीक व्यंग्य सोचने को मजबूर करता है आज के जंगलराज के बारे मे।
ReplyDeleteजय हो, अब वकालात मे हाथ आजमा लिया जाए तो अच्छा रहेगा। आम आदमियों को एक बढिया वकील मिल जाएगा। वैसे तुम्हारी काबिलियत मुझे कोई संदेह नहीं है।
ReplyDeleteमस्त पोस्ट है, आनंद आ गया।
यह है यूएन की रिपोर्ट, जिसमे कहा गया है कि हर साल भूख से मरने वाले दस आदमियों के मुकाबले ज्यादा खाने से सौ आदमी मारे जाते हैं। क्या मेरे काबिल दोस्त ने इस ओर सोचा है कि इस मासूम कालू को यदि दूध अंडा चिकन तेल धी चाकलेट खाने दिया गया तो इसके हार्ट मे कोलेस्ट्राल की मात्रा बहुत बढ़ जायेगी, कभी भी इसे हार्ट अटैक आ जायेगा। ....बहुत सटीक -मजा आ गया
ReplyDeleteथर्ड-क्लास को ट्रेन से, हटा चुके थे लोग |
ReplyDeleteफोर्थ क्लास भुखमरी का, मिटा श्रेष्ठ संजोग ||
बहुत बढ़िया ||
बधाई ||.
अब लास्ट क्लास थर्ड क्लास ||
भुखमरी ही आज के सरकार की गरीबी है |
जय सम्मोहन जय मनमोहन
जय नग्नोहन जय रक्त्दोहन ||
वाह!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
सटीक लेखन है आपका!
सुंदर!
ReplyDeleteमुकदमा, सुनवाई एवँ तर्क सब बेमिशाल। एकदम सटीक व्यँग्य।
ReplyDeleteबत्तीस के आंकड़े खूब बताये .. बढ़िया व्यंग
ReplyDeleteफ़िर यह बेचारा कालू मोटापे के कारण सरकारी योजनाओं में काम नही कर पायेगा। और अगर ऐसा हो गया तो इसके परिवार का अंजाम क्या होगा। इसलिये माई लार्ड मेरी आपसे गुजारिश है आप श्रीमती सोनिया गांधी के द्वारा अपनी कठपुतलियों की सलाह से लिये गये इस बेहतरीन निर्णय को तत्काल लागू करे।"
ReplyDeleteSateek vyangya .....
ReplyDeletemmamm a
ReplyDeleteसरकार कि बनाई इस नई नीति पर सटीक व्यंग शानदार लेखन
ReplyDeleteसमय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है। आपको और आपके सम्पूर्ण परिवार को हम सब कि और से नवरात्र कि हार्दिक शुभकामनायें...
.http://mhare-anubhav.blogspot.com/
सटीक व्यंग !
ReplyDeleteaaj 32 rs. ka raaj samajh aaya.
ReplyDeletejabardast vyangy.
aabhar.
शहर के ३२ रुपये कमाने वाले के मुकदमे पर तो हाथों हाथ सुनवाई भी शुरू हो गयी - वकीलों में जिरह चल रही है | और गाँव के २६ रुपये रोज कमाने वालों को कोई पूछ ही नहीं रहा है | गरीबी में भी ऐसा उंच नींच !! बहुत भेदभाव है भाई |
ReplyDeleteHUME BATAYA GAYA HAI KI HAME 1947 ME AJADI MILI , MUJHE TO YE LAGTA HAI KI IS DESH ME SABKUCH LUTA JACHUKA THA ,,, DESH ME ANGRAJO K LAYAK KUCH NAHI BACHA TO UNHONE APNI SATTA NAHRU PARIWAR KO DE DI.
ReplyDeleteKALU AJ BHI KALE ANGREGO KA GULAM HAI...ISE AJADI CHAHIYE.PATA NAHI KAB MILEGI.
BADHIYA DAVE JI.