Thursday, September 22, 2011

सत्ता सुंदरी के डाकिये दवे जी और नेता गण

हम सत्ता सुंदरी को पत्र पहुंचा लौटे ही थे कि एक भाजपाई नेता हम से आकर लिपट गये। हमनें हड़बड़ा कर दूर धकेला, कहा- " ए भाई दूर हटो, हम उस टाईप के आदमी नही हैं।"  नेताजी शर्मांए, बोले -" दवे जी आप हमें गलत समझ रहे हैं। वह तो आप सत्ता सुंदरी से मिल कर लौटे हो न,  इसलिये हम आपसे लिपट गये कि उनकी कुछ सुगंध मिल जाये।"  हमने माथा ठोका- "अरे भाई, क्या किसी सुंदरी को पत्र लेकर आये डाकिये से लिपटते देखा है क्या, जो उनकी सुंगध पाने हमसे लिपट रहे हो,  खैर क्या काम है बताईये।"  नेता जी फ़िर हमारे समीप आ गये बोले


दवे जी कुछ तो हाल बताओ  सुंदरी की  कयामत बाहों का ।

वो जो सिमटते होंगे ना उनमें  मियां वो तो मर जाते होंगे ॥


हमने कहा -"मरते नही है नेता जी, पगला जाते हैं, फ़िर सत्ता सुंदरी ऐसा झटका देती है कि चारो खानें चित्त,  आप खामखां एलिया साहब की शायरी मत चटकाओ, मुद्दे पर आओ"।

नेता जी बोले- " आप सत्ता सुंदरी को किसका पत्र पहुंचा कर आये हैं, बताईये।"  हमने कहा-  "प्रेम पत्र पहुंचाने का काम बड़ा सीक्रेट होता है। किसी को कानो कान खबर न होनी चाहिये,  हां शादी के बाद डाकिया भले डींग हांक सकता है कि हम न होते तो ये रिश्ता परवान न चढ़ता।"  तभी एक कांग्रेसी नेता पहुंच गये, बोले- "और किसका पत्र होगा मोदी ही होगा वही भूख हड़ताल पर बैठा है उपवास की नौटंकी कर रहा है"।

हमने कहा - " क्यों भाई नौटंकियो का ठेका सिर्फ़ कांग्रेसियों को मिला हुआ है क्या कि विरोधियों के राज्य में पहुंच हाय तौबा मचाने लगे,  कोई उपवास में बैठा हो तो सामने तंबु डाल के अपना नौटंकी चालू कर दिया"।


फ़िर हमने कहा- "भाईयो हम आप लोगो जैसे हराम के पैसों में नही जीते हैं, काम करना पड़ता है सो काम बताना हो तो बताओ वरना हम चले"। दोनो नेताओं ने सता सुंदरी तक पहुंचाने अपनी अपनी चिठ्ठी हमारे हाथ में रख दी, हमने कहा- "ठीक है भाई, पहुंचा देंगे आप लोग जाईये।"  दोनो नेताओं नें टलने से इंकार कर दिया, बोले- "दवे जी, जब तक चपरासी का हाथ गरम न हो फ़ाईल उपर नही आती और अफ़सर की नजर नही जाती। ठीक वैसे ही अगर हम आपको खुश न करेंगे तो आप हमारी चिठ्ठी रास्ते में गुम कर देंगे।"

हमने कहा- "खुश कर दो भाई कहां दिक्कत है"।  वे बोले- "दवे जी, एक बार सत्ता सुंदरी हमारी हो जाये,  आपका खुद का पक्का मकान होगा, खेती होगी, बच्चे अच्छी स्कूलों में पढ़ेंगे,  पक्की सड़क होगी, सुरक्षा होगी, अच्छे अस्पताल होंग।"। हमने बीच टांग अड़ाई- "ओ भाईयों होश में आओ, क्या  रटे रटाये वादे पढ़ रहे हो और हमको भारत की आम जनता के जैसा समझ लिया है क्या।" कांग्रेसी नेता ने सुर बदले, बोले - "आप गुजरात के दंगो को भूल गये। तीन हजार लाशों का हिसाब आप को याद न रहा जो आप मोदी का पत्र पहुंचाते हो।"  हमने बड़ी पीड़ा से कहा कि

जो दामनो मे दाग ही ढूढेंगे आलम।

 फ़िर तो कभी कोई अपना  न मिलेगा ॥

हमनें कहा- "कांग्रेसी बाबू , चौसठ साल में कितने मरीजो, नवजात शिशुओं, महिलाओं नें बिना इलाज के दम तोड़ा होगा और कितने लोग भूख से, कर्जे में डूब मरे होंगे, आप तो पुरुलिया जैसे आतंकवादियों को हथियार देने मे भी गुरेज नही करते हो भिंडरावाले को भी आपने ही खड़ा किया था। सिख दंगो समेत देश मे हुये कितने दंगो का खून आपके सर है। हम तो यह सोचते हैं कि मोदी जी दोषी है या नही यह तो उपर वाला ही जानता होगा और दोषी हुये भी, तो क्या उसने अपनी गलती सुधारी या नही। दूसरी बार दंगे हुये या नही,  इमानदारी से विकास किया या नही और उस विकास का लाभ अल्पसंख्यकों और पिछड़ों को मिला या नही।"

हमने कहा- "खैर आप यह छोड़ो ये बताओ कि आप कैसे पत्र भेज रहे हो,  कांग्रेस में गांधी परिवार के अलावा कौन सत्ता सुंदरी के ख्वाब देख सकता है। नेता जी ने सीना फ़ुलाया बोले हम बाबा का ही पत्र लाये हैं।" हमने कहा- " इसके साथ 2G घोटाला, KG बेसिन घोटाला, कामनवेल्थ घोटाला आदी के सिफ़ारशी पत्र भी लगा दो, सत्ता सुंदरी पर बड़ा अच्छा प्रभाव पड़ेगा।"  फ़िर हम भाजपाई की ओर मुड़े पूछा -" आप मेरे ब्रदर की दुलहन पिक्चर देख आये हो क्या, जो मोदी भाई के होते हुये पत्र भेज रहे हो।" भाजपाई बोले गठबंधन की समस्या के कारण और हमारे यहां अनेक योग्य दावेदार हैं सत्ता सुंदरी के।

हमने कहा- " क्या योग्यता है आपके योग्य उम्मीदवारी की, कांग्रेसियों के समान भ्रष्टाचार, रिश्वत, बेईमानी, अरे भाई सत्ता सुंदरी को बेईमान वर ही चाहिये तो ये कांग्रेसी क्या बुरे हैं,  एक से बढ़ कर एक रिकार्ड बना रहे हैं। हां झूठे दुष्प्रचार के मामले मे आप जरूर आगे हैं कि मोतीलाल नेहरू का बाप मुसलमान था, स्विस बैंक मे फ़ला का इतना पैसा जमा है, हिंदु राष्ट्र का पतन ईरान से चालू हुआ, मुसलमान लव जिहाद फ़ैला रहे हैं, मुसलमानो ने ऐसा किया, वैसा किया। बंग्लादेश से सीमा विवाद के निपटारे में मनमोहन ने देश बेच दिया। और फ़ैला भी क्या सकते हो, इमानदारी तो है नही। एक बात कान खुल कर सुन लो हम मोदी के अलावा किसी के पत्र की सिफ़ारिश करने वाले नही हैं। 

इतना सुन दोनो भड़क गये, हमसे बोले- "डाकिया हो सीधे पत्र पहुंचा देना, होशियारी दिखाने की जरूरत नही है।" उनके जाने के बाद बाजू में खड़े कालू ने हमसे कहा- "अब क्या करोगे भैय्या"। हम बोले- "पत्र नाली में और क्या।" कालू ने सर खुजाया बोला- " आपको सत्ता सुंदरी का डाकिया किसने बनाया।" हमने कहा- " प्यारे आप और हम ही तो इन नेताओं और सत्ता सुंदरी के बीच माध्यम हैं  हम ही रिश्वत न लें और अपना काम इमानदारी से करें तो क्या मजाल है कोई बेईमान सत्ता सुंदरी पर डोरे डाल सके।"


खैर साहब यह तो रही हमारी बातचीत, आप भी ध्यान रखियेगा सत्ता सुंदरी तक कोई गलत आदमी न पहुंच पाये। जात,धर्म, नफ़रत, और लालच के आधार पर दिया गया वोट, हरदम देश को पतन की ओर ही ले जाता है।
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8 Comments

8 comments:

  1. मान गए दवे जी व्यंग्य होतो ऐसा जिस के प्रहार से कोई ना बचे जबरदस्त अच्छी खबर ली आपने, बधाई ....

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  2. प्यारे आप और हम ही तो इन नेताओं और सत्ता सुंदरी के बीच माध्यम हैं हम ही रिश्वत न लें और अपना काम इमानदारी से करें तो क्या मजाल है कोई बेईमान सत्ता सुंदरी पर डोरे डाल सके.....

    अरुणेश भाई वाह... चुटीले अंदाज में कितने पते की बात कह दी... वाह...
    बेहतरीन लेखन.... सादर बधाई...

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  3. गज़ब का विश्लेषण बड़ी सहजता से..... या..... यूं कहें कि वर्तमान राजनीति का अच्छा सा पोस्टमार्टम

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  4. आप भी ध्यान रखियेगा सत्ता सुंदरी तक कोई गलत आदमी न पहुंच पाये। जात,धर्म, नफ़रत, और लालच के आधार पर दिया गया वोट, हरदम देश को पतन की ओर ही ले जाता है।

    अगली बार दोनों (भाजपाई या कांग्रेसी ) मिले तो उनकी शिफारिश करने से पहले कहियेगा " दस बार कान पकड़कर उठक बैठक करो तो करूँगा "

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  5. .

    दवे साहब ,

    मेरा एक काम करेंगे ? मेरा भी एक पत्र है सत्ता सुंदरी के नाम , पहुंचा देंगे क्या ? हम जानते हैं आप रिश्वत नहीं लेते इसीलिए आपके हाथ भिजवा रही हूँ।

    पत्र का मजमून कुछ इस प्रकार है ---

    " हे सत्ता सुंदरी तुम , भारत छोड़ कब जाओगी
    इतनी हिकारत होने पर भी , क्या तनिक नहीं लजाओगी।
    हम न कांग्रेसी है ,न भूखे भाजापाई हैं ,
    हम तो तेरी सत्ता से पैदा होते आतातायी हैं "

    नाली में ना फेंकना।
    सादर !

    .

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