Tuesday, July 31, 2012

मोहन भागवत अनशन पर क्यो नही ?



देखिये साहब वैसे तो इस देश में लोकतंत्र है,  न कोई किसी को अनशनियाने से रोक सकता है और न ही जबरदस्ती करवा सकता है। पर इस सवाल का कारण यह है कि सोशल मीडिया में स्वयं को हिंदु धर्म रक्षक मानने वाले वीर,  अन्ना हजारे के अनशन को कोसते घूम रहे हैं।  जाहिर है लोकतंत्र में उनको इसका अधिकार भी है, और ऐसा करने वाले वे अकेले भी नही है।  मीडिया के माध्यम से अनशन के खिलाफ़ राजनैतिक प्रचार निष्फ़ल है।  मीडिया और राजनैतिक दल दोनो अपनी साख खो चुके है। पर सोशल मीडिया में जहां से इस आंदोलन को जान मिलती है,  वहां एक  मुखर समूह संघ समर्थको का है। ये लोग अपने को देश भक्त, भारत मां के सच्चे सपूत और उनसे असहमत लोगो को देशद्रोही, बिकाउ और इन सबसे उपर शेखुलर करार देते है। इनका आरोप है कि अन्ना कांग्रेस के एजेंट हैं,  उनकी टीम चंदा खोर एनजीओ का समूह है। इनके हिसाब से इस आंदोलन में जाने वाला कोई भी व्यक्ति हिंदुत्व का दुश्मन है।

ऐसे मे सवाल यह उठता है कि  इन जैसे परम देशभक्तो के होते हुये क्या जरूरत है,  केजरीवाल और अन्ना को अनशन करने की। ये लोग जिस संघ और उसके प्रमुख आदरणीय मोहन भागवत जी के अनुयायी होने का दावा करते है।  वे क्यों नही भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन खड़ा करते, अनशन करते।  देशभक्त होने के दावे के साथ जुड़ी जिम्मेदारी का पालन भी जरूरी है कि नही। वैसे ये लोग  बाबा  रामदेव के आंदोलन को समर्थन करने का दावा करते है।  ऐसे में यह सवाल भी उठता है कि बाबा के आंदोलन के समर्थन का क्या यह अर्थ है कि दूसरे के आंदोलन को पहले असफ़ल बनाया जाये।  संघ को किसी और को समर्थन करने के बजाये क्या खुद आंदोलन नही करना चाहिये था। आंदोलन भी छोड़िये, क्या भाजपा के भ्रष्टाचार के गर्त में डूबने की राह में संघ को रोड़ा नही बनना चाहिये था।  यह सवाल पूछते ही तड़ से बयान आ जायेगा,  संघ का भाजपा से कोई लेना देना नही, वैचारिक समर्थन है बस।  बाबा रामदेव असफ़ल हो जाये आंदोलन में, या फ़िर फ़रार हो जायें सलवार पहन के।  तब भी इनका यही बयान आ जायेगा कि बाबा को वैचारिक समर्थन मात्र है, उनसे लेना देना नही।


अरे भाई भाजपा से लेना देना नही, बाबा से लेना देना नही।  देश से तो लेना देना है कि उससे भी लेना देना नही। क्या हिंदु राष्ट्र की अवधारणा में इमानदारी, सुशासन नही आता। क्या भ्रष्टाचार से आपके महान हिंदु राष्ट्र के नागरिको का जीवन तबाह नही हुआ जाता। जिन आदिवासियो के ईसाई बनते ही बिलबिला उठते हो, उनके जंगल जमीन के लुटने से बिलबिलाहट क्यो नही उठती। जिन दलितो पिछड़ो को आप हिंदुत्व की मुख्यधारा मे जोड़ने का दावा करते हो उनके कष्ट से आपको सरोकार नही। और तो और जो शहरी मध्यम वर्ग आपका समर्थक वर्ग है उनके घरो मे बिना सब्जी का खाना बनता देख आंखो मे आंसू नही आता। या बड़े वाले हिदु राष्ट्र का नक्शा बनाते बनाते जो राष्ट्र अभी है उसकी तबाह होती अर्थव्य्वस्था दिखना बंद हो गयी है।


वैसे अंदर खाते की आफ़ द रिकार्ड बात आपको बताउं,  इनको अनशन में गांधी जी का भूत नजर आता है। वैसे गोड़से से तो कोई लेना देना नही है का बोर्ड लगाये रहते है। लेकिन गुप्त दान मे मिले नोट के आलावा जिस भी चीज में गांधी जी की छाया नजर आ जाये, उससे ये दूर छटक जाते है।  हमारी पहुंच इनके हेडक्वाटर तक नही है। वरना समझाये देते कि भाई गांधी का स्वदेशी चुराये कि नही, खादी चुरा लिये, दलित उद्धार चुरा लिये। यहां तक कि "हे राम" में से "राम"  भी चुरा लिये। तो काहे नही अनशन और चश्मा भी  चुरा लेते। चश्मा रहता तो हिंदु राष्ट्र  की हिंदु समस्याएं दिखती भी साफ़ साफ़। अनशन से देश भक्ती का काम करने का अचूक अस्त्र भी मिल जाता। पर नही भाई ये लोग जिद पर अड़े हैं कि  जनता के गुस्से का सहारा न ले अन्ना और केजरीवाल। उस पर सिर्फ़ और सिर्फ़ संघ और बाबा का अधिकार है। इनके लाये  ही देश  मे सुशासन आयेगा, खबरदार कोई और आगे बढ़ा तो।

संघ समर्थक, इस लेख को पढ़ कहेंगे-  मुसलमानो के बारे में कह के दिखाओ फ़िर हमको सीख देना। क्या कहूं भाई मै मुसलमान तो कछुए की तरह खोल के अंदर छिप कर बैठे रहते है। कोई आंदोलन हो  तो यह देखते है कि इससे हमारा क्या नुकसान हो सकता है। अपना फ़ायदा  देश का फ़ायदा तो उनके लिये सेकेंडरी इश्यू है। ठीक वैसे ही जैसे संघियो के लिये हिंदुत्व प्राथमिक और भ्रष्टाचार सेकेंडरी इश्यू है। संघी मुसलमानो का हवाला देंगे तो मुसलमान संघियो का। इनके आपसी रेस टीप के खेल में पिस यह देश रहा है। पिस वो लोग रहे है जो खुद को हिंदु या मुसलमान के पहले इंसान समझते हैं।
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6 Comments

6 comments:

  1. रहिमन उजली प्रकृति को, नहीं नीच को संग ।
    करिया वासन कर गहे, कालिख लागत अंग ॥

    See
    इंसानी दिमाग स्त्री और पुरुषों को अलग-अलग तरीके से देखता है. स्त्रियों का दिमाग भी यह भेदभाव करता है.
    http://auratkihaqiqat.blogspot.com/2012/07/blog-post.html

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  2. बड़ी जबर जानकारी मिली दवेजी आपकी पोस्ट से कि 'राम' को गांधी के कहे 'हे राम' से चुराया गया है..

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  3. खाने के और दिखाने के और दाँत हैं इनके ।

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  4. मौन सिंह इस मर्तबा १५ अगस्त को लाल किले पर नहीं चढ़ पायेंगे .आठ अगस्त को ही बाबा रामदेव को दिल्ली पहुँचने से पहले गिरिफ्तार कर लिया जाएगा /मरवाया भी जा सकता है .लाखों समर्थक ९ अगस्त को दिल्ली पहुँच नहीं पायेंगे .इससे पहले देश में साम्प्रदायिक झगडे करवा दिए जायेंगे .उसी में कुछ होगा .मौन साधे बैठी साम्राज्ञी पुणे के बम विस्फोट पे शांत है इस आतंकी हरकत को इन्डियन मुजाहिदीन की करतूत बतलाने से अकलियत के वोट जो कट जायेंगें .
    करेंगे मिलकर भ्रष्टाचार ,
    क्या कर लेंगे भकुवा वोटर ,
    जन गन मन भी है लाचार .

    सलमान खुर्शीद कहतें हैं देश रमजान में व्यस्त है .पुणे के धमाके क्या नव नियुक्त गृह मंत्री के स्वागत में किए गए हैं .कितना महान है देखो भारत देश ये तो साइकिल बम ही हैं यहाँ आके तो आतंकी भी शहीद हो जातें हैं .शहीद पद पा जाते हैं .आतंकी दस्ते .शहीद होने ही आतें हैं इस महान देश में .
    नौ अगस्त से पहले राम देव जी के दिल्ली आवाहन से पहले दिल्ली पुलिस फिर उन्हें दिल्ली के बाहर ही सलवार पहन वायेगी .

    वह महारानी जिसने पूडल पाल रखे हैं यह नहीं समझती देश पहले ही एक बार धर्म के आधार पर बंट चुका है .चुप्पी साधे बैठी है .और ये मौन सिंह इन महाशय के नामकरण में गलती हो गई ग्रंथि से ,राशि वही रही मनमोहन सिंह नहीं यह मौन सिंह हैं .

    देश की बे -इज्ज़ती होने के बाद भी यह कहतें हैं : देश की नहीं मन मोहन सिंह की तौहीन हुई है ब्रिटेन में .
    अरे भाई पुणे के विस्फोटों को लोकल इफेक्ट क्यों नहीं बतलाते ?

    लोकल सबोतेज़ को क्यों नहीं मानते आप ?

    कहीं अकलियत का वोट न चला जाए ?

    और ये चैनालिए कहतें हैं पांच ब्लास्ट हुए हैं लोग महाराष्ट्र में खुशियाँ मना रहें हैं नव -नियुक्त गृह मंत्री का स्वागत कर रहें हैं .

    हाय हाय वोट !अकलियत का वोट .अल्पसंख्यकों का वोट .
    आई एम् में नहीं है खोट .
    आई एम् बोले तो -इन्डियन मुजाहीदीन .

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  5. खाने और दिखाने के छोड़िये जनाब अब किसी के पास दाँत नहीं रह गये हैं !

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  6. छन्ना सेक्युलर छानता, पयलट आजम खान ।

    मोहन मोदी का नहीं, प्यारे हिन्दुस्तान ।

    प्यारे हिन्दुस्तान, भले मानुष सब चंगे ।

    करते सेक्युलर मौज, असम के खूनी दंगे ।

    मोहन अनशन करे, छोड़ अन्ना को रविकर ।

    असमी हिन्दू मरे, छानता छन्ना सेक्युलर ।।

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