देखिये साहब वैसे तो इस देश में लोकतंत्र है, न कोई किसी को अनशनियाने से रोक सकता है और न ही जबरदस्ती करवा सकता है। पर इस सवाल का कारण यह है कि सोशल मीडिया में स्वयं को हिंदु धर्म रक्षक मानने वाले वीर, अन्ना हजारे के अनशन को कोसते घूम रहे हैं। जाहिर है लोकतंत्र में उनको इसका अधिकार भी है, और ऐसा करने वाले वे अकेले भी नही है। मीडिया के माध्यम से अनशन के खिलाफ़ राजनैतिक प्रचार निष्फ़ल है। मीडिया और राजनैतिक दल दोनो अपनी साख खो चुके है। पर सोशल मीडिया में जहां से इस आंदोलन को जान मिलती है, वहां एक मुखर समूह संघ समर्थको का है। ये लोग अपने को देश भक्त, भारत मां के सच्चे सपूत और उनसे असहमत लोगो को देशद्रोही, बिकाउ और इन सबसे उपर शेखुलर करार देते है। इनका आरोप है कि अन्ना कांग्रेस के एजेंट हैं, उनकी टीम चंदा खोर एनजीओ का समूह है। इनके हिसाब से इस आंदोलन में जाने वाला कोई भी व्यक्ति हिंदुत्व का दुश्मन है।
ऐसे मे सवाल यह उठता है कि इन जैसे परम देशभक्तो के होते हुये क्या जरूरत है, केजरीवाल और अन्ना को अनशन करने की। ये लोग जिस संघ और उसके प्रमुख आदरणीय मोहन भागवत जी के अनुयायी होने का दावा करते है। वे क्यों नही भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन खड़ा करते, अनशन करते। देशभक्त होने के दावे के साथ जुड़ी जिम्मेदारी का पालन भी जरूरी है कि नही। वैसे ये लोग बाबा रामदेव के आंदोलन को समर्थन करने का दावा करते है। ऐसे में यह सवाल भी उठता है कि बाबा के आंदोलन के समर्थन का क्या यह अर्थ है कि दूसरे के आंदोलन को पहले असफ़ल बनाया जाये। संघ को किसी और को समर्थन करने के बजाये क्या खुद आंदोलन नही करना चाहिये था। आंदोलन भी छोड़िये, क्या भाजपा के भ्रष्टाचार के गर्त में डूबने की राह में संघ को रोड़ा नही बनना चाहिये था। यह सवाल पूछते ही तड़ से बयान आ जायेगा, संघ का भाजपा से कोई लेना देना नही, वैचारिक समर्थन है बस। बाबा रामदेव असफ़ल हो जाये आंदोलन में, या फ़िर फ़रार हो जायें सलवार पहन के। तब भी इनका यही बयान आ जायेगा कि बाबा को वैचारिक समर्थन मात्र है, उनसे लेना देना नही।
अरे भाई भाजपा से लेना देना नही, बाबा से लेना देना नही। देश से तो लेना देना है कि उससे भी लेना देना नही। क्या हिंदु राष्ट्र की अवधारणा में इमानदारी, सुशासन नही आता। क्या भ्रष्टाचार से आपके महान हिंदु राष्ट्र के नागरिको का जीवन तबाह नही हुआ जाता। जिन आदिवासियो के ईसाई बनते ही बिलबिला उठते हो, उनके जंगल जमीन के लुटने से बिलबिलाहट क्यो नही उठती। जिन दलितो पिछड़ो को आप हिंदुत्व की मुख्यधारा मे जोड़ने का दावा करते हो उनके कष्ट से आपको सरोकार नही। और तो और जो शहरी मध्यम वर्ग आपका समर्थक वर्ग है उनके घरो मे बिना सब्जी का खाना बनता देख आंखो मे आंसू नही आता। या बड़े वाले हिदु राष्ट्र का नक्शा बनाते बनाते जो राष्ट्र अभी है उसकी तबाह होती अर्थव्य्वस्था दिखना बंद हो गयी है।
वैसे अंदर खाते की आफ़ द रिकार्ड बात आपको बताउं, इनको अनशन में गांधी जी का भूत नजर आता है। वैसे गोड़से से तो कोई लेना देना नही है का बोर्ड लगाये रहते है। लेकिन गुप्त दान मे मिले नोट के आलावा जिस भी चीज में गांधी जी की छाया नजर आ जाये, उससे ये दूर छटक जाते है। हमारी पहुंच इनके हेडक्वाटर तक नही है। वरना समझाये देते कि भाई गांधी का स्वदेशी चुराये कि नही, खादी चुरा लिये, दलित उद्धार चुरा लिये। यहां तक कि "हे राम" में से "राम" भी चुरा लिये। तो काहे नही अनशन और चश्मा भी चुरा लेते। चश्मा रहता तो हिंदु राष्ट्र की हिंदु समस्याएं दिखती भी साफ़ साफ़। अनशन से देश भक्ती का काम करने का अचूक अस्त्र भी मिल जाता। पर नही भाई ये लोग जिद पर अड़े हैं कि जनता के गुस्से का सहारा न ले अन्ना और केजरीवाल। उस पर सिर्फ़ और सिर्फ़ संघ और बाबा का अधिकार है। इनके लाये ही देश मे सुशासन आयेगा, खबरदार कोई और आगे बढ़ा तो।
संघ समर्थक, इस लेख को पढ़ कहेंगे- मुसलमानो के बारे में कह के दिखाओ फ़िर हमको सीख देना। क्या कहूं भाई मै मुसलमान तो कछुए की तरह खोल के अंदर छिप कर बैठे रहते है। कोई आंदोलन हो तो यह देखते है कि इससे हमारा क्या नुकसान हो सकता है। अपना फ़ायदा देश का फ़ायदा तो उनके लिये सेकेंडरी इश्यू है। ठीक वैसे ही जैसे संघियो के लिये हिंदुत्व प्राथमिक और भ्रष्टाचार सेकेंडरी इश्यू है। संघी मुसलमानो का हवाला देंगे तो मुसलमान संघियो का। इनके आपसी रेस टीप के खेल में पिस यह देश रहा है। पिस वो लोग रहे है जो खुद को हिंदु या मुसलमान के पहले इंसान समझते हैं।