Tuesday, May 17, 2011

नुक्कड़ चर्चा - पेट्रोल की मूल्य बढ़ोतरी और भाई सोहन शर्मा का इस्तीफ़ा

नुक्कड़ पर यूरिया वाली चाय का दौर चल रहा था तभी भाई सोहन शर्मा कन्नी काट गुजरते नजर आये उन्हे घेर कर रोका गया और जनता ने चढ़ाई कर दी आपकी दादा गिरी नही चलेगी मूल्य बढ़ोतरी वापस लीजिये । शर्मा जी तत्काल प्रतिवाद किया इसमे मै कहां से बीच मे आ गया । जनता ने कहा ब्लाक कांग्रेस अध्यक्ष हो की नही रेट कम करो वरना पीटेंगे  शर्मा जी गिड़गिड़ाये भाई ये सब निर्णय तो दिल्ली वाले नेता लेते हैं मै गरीब तो प्रदेश सम्मेलन मे भी पीछे बैठा रहता हूं । आसिफ़ भाई गुर्राये जब कोई निर्णय तेरे हाथ मे नही तो साले वोट मांगने क्यो आता है । मामला गर्माता देख मैने बीच बचाव किया यार आसिफ़ ये तो जिस पार्टी की नीतियो को पसंद करता है उसका प्रचार करता है यही तो लोकतंत्र है ।


मेरे हस्तक्षेप से मामला और गर्मा गया दीपक बोला अब शर्मा जी तुम बताना पड़ेगा कि कांग्रेस की कौन सी नीति पसंद करते हो जो वोट मांगने आये थे । शर्मा जी धीरे से बोले मेरी पार्टी धर्मनिरपेक्ष है गरीबो के हित मे काम करती है । आसिफ़ भाई फ़िर भड़क गये बोले ओसामा जी वाली धर्मनिरपेक्षता और मंहगाई बढ़ाने वाला गरीबो का खयाल अरे शर्मा जी तुमको तो बेशर्म जी कहना चाहिये थॊड़ी भी गैरत है तो इस्तीफ़ा दो तुरंत वरना जनता मार मार के भुर्ता बना देगी


शर्मा जी ने प्रतिवाद किया अरे भाई पेट्रोल का मूल्य सरकार के हाथ मे थोड़े ही है वो तो पेट्रोल कंपनियो के हाथ मे है । लोग फ़िर भड़क गये यदि ऐसा है तो चुनाव के पहले मूल्य क्यो नही बढ़ा नतीजे आने के बाद क्यो बढ़ गया बात साफ़ है शर्मा जी पेट्रोल कंपनिया भले नियंत्रण मे न हो लेकिन उनको चलाने वाले कांग्रेस के नियंत्रण मे ही हैं । शर्मा जी या तो आप महा मूर्ख हो जो ऐसी पार्टी मे हो और आपको पीटने से हमे कोई पाप न लगेगा और नही तो आपको इस्तीफ़ा देना ही पड़ेगा । शर्मा जी धर्म संकट मे पड़ गये एक तरफ़ पिटाई थी और दूसरी ओर कांग्रेस आई  । एक से शरीर मे तोड़ फ़ोड़ हो जाती और दूसरे से तो शरीर ही चलता था । शर्मा जी ने कातर निगाहो से मेरी ओर देखा और निगाहो ही निगाहो मे शाम की दावत का निमंत्रण भी दे दिया


मैने तुरंत घोषणा कर दी महा मूर्ख शर्मा जी नही आप लोग हो और इस्तीफ़े की इच्छा है तो भारत की नागरिकता से इस्तीफ़ा दे दो । आसिफ़ भाई बेहद गुस्से मे थे बोले दवे जी इस मामले मे लफ़्फ़ाजी नही चलेगी वरना आपके पिटने की नौबत भी आ सकती है । मैने कहा लफ़्फ़ाजी की बात ही नही है आप लोग तो खुश हो तभी तो सरकार ने रॆट बढ़ाया है सरकार चाहती तो मतदान के बाद भी बढ़ा सकती थी पर नही उसने देखा कि जनता उसकी महंगाई बढ़ाउ नीतियो को पसंद करती है कि नही है  मतगणना से साफ़ हो गया तीन राज्यों मे कांग्रेस की जीत हुयी । मतलब साफ़ था कांग्रेस की नीतिया सही हैं तो तत्काल जन भावना को स्वीकार कर कांग्रेस ने  रेट बढ़ा दिया।

दीपक बोला यार वो तो स्थानीय मुद्दो पर चुनाव हुये थे महंगाई तो राष्ट्रीय मुद्दा है । मैने कहा इस देश मे महंगाई कोई मुद्दा है ही नही तुम लोग वोट देते हो जात पात के नाम पर धर्म के नाम पर कोई गांधी नाम का चमचा है तो किसी को भगवा झंडा प्यारा है कोई यादव नरेश है तो कोई दलित रानी माया भक्त । भारत मे आदमी अपने हित को ध्यान रख वोट देता है देश हित मे नही । पांच रूपया रेट बढ़ गया तो शर्मा जी को मारने धर लिया जब २ लाख करोड़ का घोटाला हुआ तब क्यो नही मारने पकड़ा क्योंकि वो पैसा देश का जा रहा था और पेट्रोल का पैसा जेब से जा रहा है । जिस दिन नेता लोग देश बेच खायेंगे तब भी यदि हिंदु को बेच रहे होंगे तो दीपक खुश हो जायेगा मुसलमान खरीददार होगा तो आसिफ़ खुश हो जायेगा

तभी बीच मे गुप्ता जी बोल उठे हम ऐसे नही है । मैने कहा अकेले मे तुम ऐसे नही हो सब मिल जाओगे तो वैसे ही बन जाओगे । और ऐसे नही हो तो इस्तीफ़ा दो भारत की नागरिकता से और भाग जाओ और नही भाग सकते तो फ़ोकट मे मत चिल्लाओ । इतना सुन नुक्कड़ मे सन्नाटा छा गया और मै शर्मा जी को भीड़ से हटा कर दूर ले गया । शाम का प्रोग्राम तय करते समय मैने कहा यार शर्मा जी तुम कब ठीक ठाक नेता बन पाओगे मियां जब जब रेट बढ़े एक हफ़्ते के लिये गायब हो जाओ भारत की जनता है कितने दिन बात याद रखेगी
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8 Comments

8 comments:

  1. बढ़िया व्यंग्य!
    बिल्कुल जमीन से जुड़ा हुआ!

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  2. Nice post.

    बात दरअसल यह है कि जनता को लोकतंत्र चाहिए और लोकतंत्र को जनता के चुने हुए प्रतिनिधि चाहिएं। चुनाव के लिए धन चाहिए और धन पाने के लिए पूंजीपति चाहिएं। पूंजीपति को ‘मनी बैक गारंटी‘ चाहिए, जो कि चुनाव में खड़े होने वाले सभी उम्मीदवारों को देनी ही पड़ती है।
    देश-विदेश सब जगह यही हाल है। जब अंतर्राष्ट्रीय कारणों से महंगाई बढ़ती है तो उसकी आड़ में एक की जगह पांच रूपये महंगाई बढ़ा दी जाती है और अगर जनता कुछ बोलती है तो कुछ कमी कर दी जाती है और यूं जनता लोकतंत्र की क़ीमत चुकाती है और चुकाती रहेगी।
    लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आज़ादी की क़ीमत अगर महज़ 5 रूपये मात्र अदा करनी पड़ रही है तो इसमें क्या बुरा है ?
    और जो लोग इससे सहमत नहीं हैं , वे इसका विकल्प सुझाएँ. ऐसा विकल्प जो कि व्यवहारिक हो. नेताओं को दोष देने से पहले जनता खुद भी अपने आपे को देख ले निम्न लिंक पर जाकर :

    http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/05/exploitation.html

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  3. कमाल का लिखा है... उठा कर पटखनी देने के लिए हमेशा आम भारतीय मतदाता ही मिलता है....

    खैर ठीक है एक बार फिर हमने मात खा ली, अगली बार देख लेंगे... इस अगली बार के भरोसे ही तो एक अरब लोगों की सहिष्‍णुता टिकी हुई है :)

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  4. वाह सर, सबको तोल दिया.
    मज़ा आया पढ़कर.
    ये जनता है, भारत की जनता, भूल जी जाएगी.

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  5. जाते-जाते शर्माजी को अच्छा फार्मूला सुझाया ।

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  6. यार शर्मा जी तुम कब ठीक ठाक नेता बन पाओगे?

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  7. दस महीनों में नौ बार दाम बढे । बेशर्मी की सारी हदें पार हो रही हैं । आम जनता से कोई सरोकार नहीं। नीचे से ऊपर तक सब मिली भगत है।

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  8. mza aa gya...public ki aawaz hai aapka blog...

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