Monday, May 9, 2011

हाय बेड़ा गर्क हो परिकल्पना पुरूस्कार पाने वाले ब्लागरो का



दिल्ली से लौटे ललित शर्मा जी से रायपुर स्टेशन पर मुलाकात हो गयी।  उनकी चढ़ी हुई मूछे, स्पष्ट तौर पर पुरूस्कार की खुशी झलका रही थी । मुझे देखते ही प्रसन्नता से बोले- "क्या हाल है दवे जी।" हमारा सीना चाक हो गया, मरी हुयी आवज में हमने कहा- "ठीक ही है शर्मा जी आप सुनाएं।" शर्मा जी पुराने चावल है, दर्द ताड़ गये। हमसे पूछा- "क्या बात है भाई, थोड़ा बुझे बुझे लग रहे हो।  हमने कहा- "छोड़िये गुरूदेव, आप बताइये कैसी कटी दिल्ली में।" शर्मा जी उत्साह से पुरूस्कार का बखान करना शुरू हो गये। इधर हमारे सीने में ज्वाला धधकने लगी। हमने जोर से चिल्ला कर कहा- "बस बस, अब हमसे और न सुना जायेगा।"  शर्मा जी बोले-  "यार जब से मिला है अलग टाईप का दिख रहा है, बात क्या है।"

हमसे रहा न गया, गुस्से से भर कर बोले- "अकेले अकेले इनाम पा लिया। अब हम दुखी भी न हों। ये हक भी छीन लो।" शर्मा जी हड़बड़ाये-  "यार आप तो  सात-आठ महिने से ब्लागिंग कर रहे हो,  इनाम कैसे मिल जाता । हमने पूछा -  "क्या वरिष्ठता के आधार पर पुरूस्कार बटे हैं।" शर्मा जी बोले- "वो बात नही है भाई, पर लोग सालों से लिख रहे हैं। सैकड़ो की संख्या में लेख लिख चुके हैं। आपने तो 50 भी नही लिखे होंगे। हमने फ़िर पूछा- "क्या पोस्ट की संख्या के आधार पर इनाम बटे हैं।" शर्मा जी बोले- "भाई बात समझ ही नही रहे हो, लोगो के लेखो में सैकड़ो की संख्या में कमेंट आते है  आपके ब्लाग में कितने आते होंगे। हमने कहा- "गुरू टोपी मत घुमाओ, तू मेरी खुजा मै तेरी खुजाउं वाले कमेंट को कमेंट नही कहते। "अच्छा लेख, मेरे ब्लाग पर भी आना, हवे ए गुड डॆ " क्या ऐसे कमेंट पुरूस्कार का आधार थे


शर्मा जी अब नाराज हो चुके थे बोले,- दो मिनट बिना बोले मेरी बात सुनोगे, तो बोलता हूं वरना मै चला।" हमने सहमती में सर हिलाया, शर्मा जी बोले- "मेरे भाई संस्था ने प्रतियोगिता रखी थी। उसमें  लोगो ने अपना  लेख भेजा।  उसमें से संस्था ने 51 लोगो को चुन कर उन्हे पुरूस्कार दिये । यदि आपने भेजा होता और उनको लेख पसंद आता, तो आपको भी मिलता। आपने भेजा ही नही, तो पुरूस्कार कैसा। हमने कहा- "मेरे जैसे लेट आने वालों या जो लेख भेज नही पाये थे। उनसे लेट फ़ीस ले लेते और उनको भी मौका देते। अरे बता ही देते कि इतना बड़ा पुरूस्कार समारोह होने वाला है। लोग सतर्क न हो जाते । मेल भेज दिया आमंत्रण का,  अरे भाई हम भी सम्मानित सदस्य हैं। टिकट भेजा होता या फोन ही कर दिया होता। हमारा अपमान तो हुआ है बस मै इससे आगे कुछ नही जानता। और तो और ऐसा समारोह किया कि ब्लागीवुड धर्म के आधार पर बट गया। जिनको आपने सम्मान, गौर कीजियेगा पुरूस्कार नही सम्मान नही दिया। उनको अपना अलग समारोह करना पड़ गया। दो जगह खर्चा हुआ वो अलग, अरे भाई उनके पुरूस्कार भी इसी मंच से बाट देते 51 के बदले 71 सही। भीड़ भी ज्यादा होती, सब खुश रहते और खर्चा शेयर हो जाता वो अलग। ललित शर्मा जी लाजवाब थे। बोले-  "मेरे चाचा मैं क्या करूं कि आपका गुस्सा शांत हो जाये।"  मैने कहा-  "पुरूस्कार के दिन मैने दुखी होकर, चुरा कर एक तुकबंदी बनाई है। पूरा सुनना पड़ेगा मजबूरी में। " शर्मा जी के  इरशाद कहते ही हम शुरू हो गये--


 कितने ऐश उड़ाते होंगे

             कितना इतराते होंगे

जाने कैसे लोग वो होंगे

         वो  जो इनाम पाते होंगे
         

इनाम की याद के बादेसमां मे

         और तो क्या होता होगा

हम लोग जो पहले से थे बिफ़रे

         और बिफ़र जाते होंगे


वो जो इनाम न पाने वाला है न

           हमको उनसे मतलब था

इनाम पाने वालो से क्या मतलब

            मिलता होगा पाते होंगे    


शर्मा जी कुछ तो हाल सुनाओ


         उन कयामत लिफ़ाफ़ो का

 वो जो पाते होंगे उनको                    
                  
     मिया वो तो  खुशी से पगला जाते होंगे


बस साहब मैं इतना ही सुना पाया था कि शर्मा जी ने हाथ जोड़े। बोले- "मेरे भाई, ये लिफ़ाफ़ा धर और बोल तो मेरा पुरूस्कार भी रख ले। आज के बाद मै कसम खाता हूं जहां आपको पुरूस्कार न मिलेगा मै भी नही लूंगा

तो जनाब, हाथ में लिफ़ाफ़ा लिये और शर्मा जी का वादा लिये। हम रंजो गम भुलाकर, चैन से घर की ओर रवाना हो गये। आखिर अगले पुरूस्कार की तैय्यारी जो करनी थी।
Comments
14 Comments

14 comments:

  1. जय हो जय हो जय हो

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  2. भाई साब हर किसी को सम्मान की चाह होती है, पुरुस्कार तो बाद की बात है. सम्मान तो सबको दिया जाना चाहिए.
    और दूसरा पक्ष ये कि सबको खुश करना उतना ही मुश्किल है जितना कि एक बारात को निपटाना.

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  3. मैं भी हूँ लाइन में...१० लोगों की भीड़ मैंने भी इकठ्ठा की थी..

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  4. हा हा हा हा हा अमां आप सच में अष्टावक्र हो जी ..कुल केतना जगह से तोडे हो भाई ..गिनना कठिन है ..गज्ज्ब्ब ..ध्यान दें गजब नहीं ..गज्ज्ब्ब..

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  5. काश... इन्दौर में भी किसी को ये पुरस्कार मिला होता तो स्टेशन पर हमें भी ऐसा मौका मिल पाता । बाकि तो आप खुश रहें... हमारा क्या...?

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  6. रंजो गम भुलाने का तरीका बहुत बढ़िया है..!!

    मार्कण्ड दवे।
    http://mktvfilms.blogspot.com

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  7. व्यंग्य सचमुच बढ़िया है !

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  8. बहुत बढ़िया!
    मगर एक कमी रह गई!
    पुरस्कार देने वालों का बेड़ा गर्क क्यों नहीं किया?

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