Thursday, May 26, 2011

हल्कू बैगा ,मै और बाघ की नाक

हल्कू बैगा से मेरी मुलाकात सन १९९१ मे मध्य प्रदेश के डिंडौरी जिले के शाहपुर के पास एक छोटे से बैगा टोले मे हुई थी । मेरे एक मित्र प्रशांत नायक जिसे हम शिब्बू कहते थे को  जड़ी बूटी लेने के लिये  हर महिने वहां जाना पड़ता था और हरदम वह किसी न किसी साथी की तलाश मे रहता था और मै मुफ़्त मे जंगल घूमने और महुआ की मदिरा पीने के अवसर को नही छोड़ सकता था अतः हर महिने ह्ल्कू बैगा से मिलना तय था ।

हल्कू एक छोटे कद का गठीला अधेड़ आदमी था जिसकी दो पत्नियां थी जिसमे से छोटी महज २२ २३ साल की रही होगी । अपनी जड़ी बूटी की जानकारी बदौलत गांव मे ह्ल्कू एक बड़ी हैसियत वाला आदमी था  वह बैगा लोगो की जादू और टोने की शक्तियों का भी बड़ा जानकार था इस कारण से हल्कू से कॊई भी बैगा बिना कारण के नही मिलता था और खासकर उसकी छोटी पत्नि के पास नजर आ जाना दुर्भाग्य का सूचक माना जाता था
ऐसी परिस्थितियों मे मै और हल्कू नजदीक आये तो कारण केवल यह था कि एक समय  हल्कू मेरे बड़े पिताजी श्री ज्ञान शंकर दवे जो एक समय मंडला के वनमंडलाधिकारी थे के पास लम्बे समय तक काम कर चुका था और उनके सदव्यहवार का वह बहुत मान रखता था । एक कारण यह भी था की मै वन्यप्राणियो के व्यहवार के बारे मे सुनने के लिये सारी रात जाग सकता था और चूंकि हल्कू अपने जड़ी बूटियो की जानकारी स्थानीय बैगाओ तक नही जाने देना चाहता था तो ऐसे मे मै और शिब्बू  उसकी जंगल यात्रा के दौरान उसके लिये अच्छे कुली थे

हलकू के साथ जंगल यात्रायें
हल्कू के साथ घूमने के दौरान मुझे जंगल और उसके जीवो के बारे मे एक नया परिदृष्य सीखने का मौका मिला और हल्कू के साथ मैने जो खाना खाया वो किसी भी चीनी को शर्मिंदा करने के लिये काफ़ी है लेकिन मेरे मन के एक हिस्से मे एक शक हरदम से था कि हम जंगल का नुकसान कर रहे है ऐसे मे भारद्वाज (greater indian cocul) पक्षी के घोसले से पूरे अंडे लेते समय मेरा और हल्कू का झगड़ा हो गया मैने हल्कू धमकाया कि वो जो कर रहा है वह सही नही है और मै इसके खिलाफ़ हूं । ऐसे मे हल्कू जो की मुझसे अनुभव और उम्र मे बहुत आगे था उसने मुझे शांत किया और कहा हम कल बात करेंगे इस बारे मे । अगले दिन सुबह हम जब वापस वहां पहुचे तो हल्कू ने मुझे घोसले तक पहुचाया और पूछा कि घोसले मे अंडॆ है कि नही मैने पाया कि अंडे पूरे वापस आ गये है । इस घटना के बाद मेरा और हल्कू का विवाद २ साल तक नही हुआ लेकिन जब विवाद हुआ तो गहरा गया ।

विवाद था बाघ की नाक और उसके सूंघने की शक्ती के बारे मे हुआ ऐसा  कि  मैने एक किताब का अध्ययन किया था जिसमे वर्णन था कि बाघ की सूंघने की शक्ती बेहद कम होती है । मै और हल्कू उसके घर मे महुआ पीते हुए और देशी मुर्गा खाते हुए  हल्कू बहुत समय से मुझे जानकारी झाड़ रहा था । और चूंकि मै उसका एक तरह से शिष्य था तो मुझे उसकी पहुंच से दूर किसी विषय मे होशियारी झाड़नी थी तो ऐसे मैने बाघ की नाक का विषय छेड़ा । इस पर छूटते ही हल्कू ने कहा बाबू तुम शहर वाले क्या जानते हो बाघ न केवल सूंघ सकता है बल्कि वह मुह बिगाड़ कर हवा को धमकाता है तो हवा उसको सारी खबर दे देती है । यह सुन मै जोर जोर से हसने लगा शिब्बू  ने जो जादू टोने पर बड़ा विश्वास रखता था उसने मुझे धीरे से चेताया भी पर मै  महुए की तरंग मे और अपनी किताबी होशियारी मे मगन था । मैने इस बारे मे ह्ल्कू से  शर्त लगा ली शर्त लगी मेरी घड़ी की और शिब्बू के पिताजी की दो महिनो की जड़ी बूटी की
हल्कू बैगा जिसने साबित किया कि बाघ हवा में चीजों को भाँप लेता हैं- यह वाकया जितना रोमांचकारी था उससे कही ज्यादा खतरनाक-  चलिए इस बैगा की जोखिम भरी प्रयोगशाला में हम भी साथ है!...............
गली सुबह जब नींद खुली तो मुझे रात की शर्त का कोई हिस्सा याद नही था पर हल्कू ने इस बात को दिल पर ले लिया था । शिब्बू जिसे दो महिने की दवायें मुफ़्त मे मिल सकती थी और हारने पर घड़ी तो मेरी जानी थी को शर्त की सारी बात याद थी ऐसे मे मेरे पास कोई रास्ता शेष न था फ़िर किताबी  जानकारी तो मेरे ही पक्ष मे थी अतः मै एक बार फ़िर अपनी बात पर अड़ गया । तय फ़िर यह हुआ कि दो दिनो के भीतर हल्कू इस बात को सिद्ध करेगा कि बाघो की सूंघने की शक्ती बहुत विकसित है ।

बस फ़िर क्या था हम दो दिनो का राशन  लेकर निकल पड़े शाम ढलने तक करीब चार बजे हमने पड़ाव डाला । हल्कू अभी आता हूं कह के गायब हो गया हमने आग जलाई और  रास्ते मे एकत्रित भोजन सामग्री के साथ भोजन तैयार करने मे जुट गये । रात करीब आठ बजे ह्ल्कू वापस आया और हम सभी खाना खा कर सोने के पहले बातचीत करने लगे इस समय तक शर्त को लेकर मेरा आत्मविश्वास थोडा डगमगाने लगा था । ऐसे मे मैने ह्ल्कू कॊ अपने बड़े पिताजी की याद दिलायी और कहा आपस के लोगो मे शर्त ठीक नही इस पर हल्कू ने कहा बाबू आपको अभी दुनिया देखनी है और बैगा अपनी जबान से कभी पीछे नही हटता अतः शर्त अपनी जगह कायम है


अगले दिन अल सुबह हल्कू फ़िर गायब हो गया लौटा तो नौ बज चुके थे आते ही उसने हड़बड़ी शुरू कर दी और हमे लेकर रवाना हो गया कुछ दूर जाकर हल्कू ने हमे पेड़ पर चढ़ा दिया और फ़िर गायब हो गया । उसका ऐसा व्यहवार नया नही था पर ऐसा वो तभी करता था जब वह बाघ के शिकार मे से एक हिस्सा हमारे खाने के लिये चुरा लाता था । पर इस बार वह एक बच्चो वाली बाघिन के इलाके मे ऐसा कर रहा था और ऐसा पहले कभी नही हुआ था
इन सब बातो पर चर्चा हो ही रही थी कि हल्कू नजर आ गया इस बार वह खाली हाथ था । उसने हमे आवाज दी और हम उसके पीछे हो लिये कुछ दूरी पर आसमान मे गिद्धो के नजर आते ही मै समझ गया कि मामला गंभीर ह।  हल्कू तेजी से आगे बढ़ रहा था बेहद तेजी से सोचने का समय ही नही था अचानक सेमल के पेड़ के पास घास के  झुरमुट के सामने वह रुका और जब वह लौटा तो उसकी पीठ पर एक मादा चीतल का शव था  । उसका कुछ  ही हिस्सा बाघ ने खाया था  हल्कू की गति अब पहले से भी तेज थी और बात बात मे वह पीछे मुड़ कर देखता था । उस जगह से कुछ दूर जाने के बाद एक मैदान आया उस मैदान को पार करने के बाद हल्कू ने मुझे कहा बाबू अब जल्दी चलना होगा बाघिन अपना शिकार खोजती आयेगी और हम सुरक्षित जगह से  दूर है । अतः हम सभी तेजी से बढ़ चले कुछ दूर बाद फ़िर एक मैदान आया इस बार हल्कू सीधे न जाकर घुमावदार रस्ते पर चलने लगा १० मिनट  मे तय हो सकने वाला सफ़र आधे घंटे मे तय हुआ हल्कू ने उस मैदान को पार करने मे जान बूझ कर समय बर्बाद किया था । खैर  हम सभी खेतो की रखवाली करने के लिये बनी करीब १०-१२ फ़ुट उंची मचान पर जा कर बैठ गये हल्कू फ़िर उतरा और और उसने जल्दी से लकड़ी एकत्रित कर मचान के एक कोने मे आग जला ली । दिन मे मचान पर आग जलाना मेरी समझ से हल्कू का बाघिन का ध्यान आकर्षित करने  की चाल थी पर इस बात को मैने शर्त हारने के बाद विवाद खड़ा करने के लिये सुरक्षित रख लिया  ।

जब बाघिन और उसके शावकों ने हमारे मचान के नीचे उड़ाई दावत
कुछ ही समय बाद जिस दिशा से हम आये थे उसी दिशा से चीतल की सावधान करने वाली आवाज सुनाई दी । कुछ ही समय बाद एक बाघिन उस रास्ते पर प्रकट हुई जिस पर हम आये थे उसके पीछे उसके दो किशोरवय शावक भी थे । तीनो ठीक उसी रास्ते पर थे जिससे पर हम चलकर आये थे अब मुझे हल्कू के मैदान घुमावदार रास्ते पर चलने का राज समझ मे आ गया था हल्कू मेरे पास घड़ी न देने का कोई भी बहाना नही छोड़ना नही चाहता था । बाघिन निश्चित ही हमारा अनुसरण कर रही थी और वह वाकई रास्ते मे बार बार मुह बिगाड़ कर गुस्सा करती प्रतीत हो रही थी और ऐसा वह हमे देख या सुन कर नही कर रही थी वरना वह एक दम सीध मे आसानी से हम तक आ सकती थी । कुछ ही देर मे बाघिन मचान के ठीक नीचे अपने दोनो शावको के साथ थी महज कुछ फ़ुट की दूरी से उनको देख कर मुझे घड़ी के साथ जान भी जाती नजर आयी तभी बाघिन जोर से दहाड़ लगाई । हल्कू ने तुरंत हिरण नीचे फ़ेक दिया बाघिन तो हिरण लेकर  पीछे हट गयी पर किशोरवय नर शावक मचान पर चढ़ने की कोशिश करने लगा हर छलांग के साथ वह और उपर पहुंच रहा था । हल्कू के हाथ मे जलती हुई लकड़ी तो थी पर वह उसका इस्तेमाल नही कर रहा मैने लकड़ी खीचने की कोशिश की तो उसने मुझे जलती लकड़ी दिखाकर पीछे ढकेल दिया । तभी बाघिन ने चेतावनी भरी आवाज निकाली तो शावक गुर्राता हुआ पीछे हट गया । मां और दोनो शावक वही हिरण की दावत उड़ाने लगे और मैं गुस्से से हल्कू को घूर रहा था पर बाघिन के डर से मेरे मुह से कोई आवाज नही निकल रही थी और रही बात मेरे शिब्बू की तो मेरे अंदाज  से वो अर्धमूर्छा की स्थिती मे था ।  करीब दो घंटे के बाद बाघिन बचे खुचे हिरण को लेकर शावको के साथ वहां से निकल गयी ।

 बाघिन के नजरों से ओझल होने के कुछ समय बाद वापस लौटते वक्त मैने हल्कू से गुस्से से कहा कि उसने शावक कॊ जलती हुई लकड़ी से क्यों नही भगाया ।  इस पर हल्कू ने मुसकुराते हुये जवाब दिया बाबू उस शावक के मुह से निकली एक दर्द भरी आवाज को सुनते बाघिन एक क्षण मे मौत बनकर हमारे सर पर पहुंच जाती दस बारह फ़ुट की उंचाई उस बाघिन के लिये कोई मायने नही रखती ।  लकड़ी हम केवल बाघिन पर ही मार सकते थे शावको पर नही । पर मैने कहा कि हो सकता था बाघिन रात तक वहां से नही जाती फ़िर इस पर उसका जवाब था बाबू मचान से तीन कोस आस पास कहीं पानी नही है ऐसे मे दोपहर के वक्त मांस खा कर बाघिन इससे ज्यादा रुक नही सकती थी । इस पर भी मेरा गुस्सा शांत नही हुआ मैने उससे कहा कि तुम उस हिरण कॊ मचान से दूर भी छोड़ सकते थे मचान तक लेकर क्यों आये उसने कहा बाबू आज तुमने  जो बाते सीखी है वे अनमोल है तुम्हारे जीवन मे बहुत काम आयेंगी तुमको जंगल घूमने का नशा है तुमको ये चीज सिखाना जरूरी था।  और फ़िर आज के बाद तुम भूलकर भी कभी शर्त भी नही लगाओगे यह कहकर वह ठठाकर हसने लगा और मै भी बाघिन को भूल कर उस घड़ी के बारे मे सोचने लगा जो मेरे पिताजी की थी और मै बिना बताए पहन आया था

मैने तुरंत गिरगिट की तरह रंग बदला और हल्कू से लिपट गया मैने कहा हल्कू आज से तुम मेरे भाई हो आज के बाद हम दोनो सदा एक दूसरे के काम आयेंगे ।  ह्ल्कू ने हसते हुए कहा बाबू मै तुम्हारे साथ बहुत लंबे समय से घूम रहा हूं शहर मे आदमी जिंदगी साथ गुजार ले पर एक दूसरे को नही जान पाता है पर जंगल मे केवल कुछ समय मे आदमी का व्यहवार समझ लेता है निकालो मेरी घड़ी । इस पर दुखी मन से मेरी घड़ी जिसके वापस घर ना ले जाने पर मेरी पिटाई निश्चित थी मैने हल्कू को दे दी

अगले दिन सुबह वापस लौटते समय हल्कू मे शिब्बू कॊ जड़ीबूटी दी और मुझे मेरे मन पसंद जंगली फ़लॊ का टोकरा दिया और मुझसे कहा बाबू किताब मे दिया हुआ ज्ञान हरदम सही नही होता है अपना दिमाग भी लगाना पड़ता है जरा सोचते तो जिस बाघ को अपना इतना बड़ा इलाका संभालना पड़ता है वह बिना सूंघे दूसरे बाघो के बारे मे कैसे जान पायेगा बाबू हम लोग बोल कर जानकारी बाटते है बाघ जंगल के नॊटिस बोर्ड पर गंध सूंघ कर ही ऐसा करते क्यो बाघ हर बारिश के बाद पॆड़ो पर अपना मूत्र छोड़ते है क्योंकि बारिश से गंध मिट जाती है । और शिकार किस दिशा मे गया है यह बाघ को कैसे मालूम पड़ेगा या जिस दिशा मे वह जा रहा है उससे पहले उसमे कौन सा जानवर गया है यह बाघ को कैसे मालूम पड़ेगा

घर लौटते समय जब मैने फ़लो का टोकरा खोला तो सबसे उपर मेरी घड़ी थी । इस घटना के बाद कई बार मै और हल्कू साथ जंगल मे घूमने गये पर शिब्बू फ़िर कभी हमारे साथ नही गया । इस घटना के ३ वर्षों बाद हल्कू और उसकी छोटी पत्नी भालूओं के हमले मे मारे गये और इसके  अनेको वर्ष बाद मुझे फ़्लेहमेन रिसपांस और जैकबसन आर्गन के बारे मे मुझे मालूम पड़ा जिससे हल्कू के मुंह बिगाड़ने से हवा के द्वारा राज उगलने की सच्चाई ज्ञात हुई ।

Comments
4 Comments

4 comments:

  1. प्रयोगात्मक ज्ञान किताबी ज्ञान से हमेशा आगे ही होगा..
    प्रयोग से ही सिधान्तो का सृजन होता है..

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  2. ये स्टोरी तो पहले भी एक बार पढ़ी थी |

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  3. रोमांचक और रोचक भी.

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  4. बहुत बढिया.. कम ही होता है जब ऐसे लेख पढने को मिलते हैं।
    शुभकामनाएं..

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