Wednesday, October 10, 2012

वाड्रा जीज्जा को बचाओ कांग्रेसियो





साहब हिंदुस्तान एक गजब मुल्क है , घटनाये भी अजब घटती है। हालिया मामला सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा का है। दामाद बाबू दुलरू अपनी ससुराल में बराबर फ़िट हो चुके थे। पिता भाई से भी संबंध इस बात पर ही टूटा कि वे गांधी परिवार के नाम से आसानी से मिलने वाले पैसे का मोह नही छोड़ सके थे। यहां तक तो दामाद बाबू ठीक चले लेकिन 2006 आते आते दामाद बाबू के अंदर महत्वकांक्षाये जाग उठी थी। पैसे उनके पास थे नही और अवसर स्वर्णिम नजर आ रहा था। ऐसे में उन्होने जो तथाकथित खेल किये वैसा खेल राजनीति का ककहरा पढ़ चुका कोई समझदार एमएलए भी नही करता, और दस साल व्यापार चला चुका कोई व्यापारी भी। किसी भी पत्रकार की लाईफ़ टाईम स्टोरी बनने या किसी भी राजनैतिक दल का लांच पैड बनने के लिये इनका शिकार काफ़ी था। मुझे तो लगता है कि पिछले दस साल महामूर्खो के सफ़ल होने का दशक था। फ़र्जी दस्तावेजो के आधार पर भारी कमीशन खिला खदान लेने वाले कोयला चोर हों। या चेक से कमीशन लेने वाली कणिमोझी। ए राजा हो या कलमाड़ी आज सारे पछता रहे हैं। ऐसा ही किस्सा राबर्ट वाड्रा का भी कहा जा सकता है।

2007 में कुल पचास लाख रूपये के साथ बनी कंपनी शुरू की, उसके बाद शुरू हुआ डीएलएफ़ एवं अन्य तीन कंपनियो से मुफ़्त पैसे मिलने का सिलसिला। जिसमे डी एल एफ़ ने 80 करोड़ दिये। इसमें भी केमिकल लोचा है, बोले तो कंपनियो ने इसे अपनी बैलेंस शीट में बिजनेस एडवांस दिखाया है और वाड्रा बाबू ने लोन। इसके बाद वाड्रा ने डीएलएफ़ के पैसो से उसकी ही जमीने फ़्लैट और होटल मे हिस्सेदारी खरीदी।  2007-8 से पचास लाख रूपये में शुरू हुई पांच कंपनियो से वाड्रा जी ने साठ लाख रूपये सालाना तंख्वाह भी प्राप्त की। और लोन के रूप मे मिले हुये पैसो को अज्ञात जगहो मे फ़िक्स डिपाजिट कर ढाई करोड़ ब्याज भी प्राप्त कर लिये। उसके बाद जादुई शक्तियो ने उनकी संपत्तियां 7.95 करोड़ वर्ष 2008, Rs 17.18 करोड़ वर्ष 2009, Rs 60.53 करोड़ वर्ष 2010 में पहुंच गयी। बोले तो 350 गुना की बढ़ोतरी तीन सालो में। लेकिन 2010 में उन्होने अज्ञात स्त्रोत से तीन करोड़ का नुकसान दिखा दिया। अब सोचने वाली बात यह है कि इस तरह तो उनकी लागत पचास लाख और कमाई ढाई करोड़ शून्य हो गयी। और इस पूरे दौरान उनकी किसी कंपनी ने कोई कार्य नही किया उनके पास कोई कर्मचारी भी नही था।

अब सवाल यह उठता है कि राबर्ट वाड्रा जी पर लगे आरोपो क्या जांच होगी, कौन जांच करेगा? क्या उन पर कोई कार्यवाही की जा सकती है? रे कांग्रेस के महारथी उन्हे बचाने के लिये अंग्रेजी के लफ़्जो का प्रयोग कर रहे हैं। जिसमे पहला शब्द है प्राईवेट , बोले तो कांग्रेसियो के हिसाब से वाड्रा एक गैर राजनैतिक शख्स है जो किसी भी सरकारी ओहदे मे भी नही। दूसरा शब्द आ रहा है "क्विड प्रो को-quid pro quo" सरलता से कहा जाये तो फ़ेवर के बदले में फ़ेवर। कांग्रेस का कहना है कि DLF की मेहरबानियो के बदले वाड्रा जी किसी भी तरह की सरकारी मेहरबानी करने की स्थिती मे नही थे या उन्होने नही की। इसलिये उन पर कोई भी अपराध का आरोप नही लगाया जा सकता। और ना ही जांच के दायरे मे आते है। हद से हद उनसे इनकम टैक्स वसूला जा सकता है जिसे चाहे आवेदन दे कर इनकम टैक्स विभाग से जांच करवा ले। पर अंग्रेजी का एक और वाक्य इन दलीलो को धाराशाही कर देता है। वह है "पालिटिकली एक्सपोस्ड पर्सन।" बोले तो राजनितिक परिवार से नजदीकी संबंध रखने वाला आदमी। विश्व के विकसित देश में यह कानून है कि किसी भी नेता अधिकारी का पुत्र आदि यदि संपत्ती या लाभ प्राप्त करते है तो उन्हे भी अपराधी ठराया जा सकता है। हमारे देश मे यह कानून नही है, पर सुप्रीम कोर्ट के विद्वान जज साहेबान दिन भर विश्व भर के कानूनो का हवाला दे कर फ़ैसले सुनाया ही करते है और वे यदि आरोप साबित समझे तो वाड्रा जी को भी मुजरिम ठहराया जा सकता है।
कांग्रेस के महारथी आरोप लगाने वालो को अदालत जाने की नसीहत भी दे रहे है। लेकिन फ़िर तो ऐसे मे दिन भर एक दूसरे पर आरोप लगाने वाले नेतागणॊ को इसे आचरण पर भी उतारना चाहिये क्योंकि भारत की राजनीति तो टिकी ही आरोप लगाने मे है। उससे भी बड़ा तर्क आता है नैतिकता का। लेकिन नैतिकता हमारे देश को त्याग कर जा चुकी है। सो उसकी बात करना ही बेमानी है, वरना यहां मंत्री बनने लायक नेता खोजे नही मिलेंगे। डैमेज कंट्रोल मे जुटी कांग्रेस काफ़ी डैमेज तो हो ही चुका है। राजनैतिक रूप से छिछालेदर झेलने के अलावा भी कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व पर लगा यह धब्बा आसानी से मिटने वाला नही है। उनके लिये राहत की बात यही है कि प्रियंका गांधी इन किसी भी कंपनियो मे किसी भी रुफ मे शामिल नही रही।

इस खुलासे से एक और बहुत बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है कि जब पिछले साल इकानामिक टाईम्स ने इस घोटाले के बारे इशारा करती स्टोरी छापी थी। तब उसके बाद भाजपा और भारत की मीडिया ने इस विषय को क्यों नही उठाया। क्या भाजपा और मीडिया समूहो को अपनी पोल भी खुल जाने का डर था।  पर अब एक ऐसा नया संगठन इस मैदान में आ चुका है, जिसका दामन साफ़ है और वह इन सबकी पोल खोलने में आमदा है। यदि केजरीवाल अपने कार्य में सफ़ल हो जाये, तो इस देश के सामने ऐसे सैकड़ो नग्न सत्य सामने आने वाले हैं। जिसे हर देश वासी जानता तो है पर उसकी बात बोलने वाला आज तक कोई नही था।
शाबास केजरीवाल आगे बढ़ो, हर देशभक्त आपके साथ है। और वाड्रा जी बाकी त सब ठीक है पर आप राजनीति मे मत आना, ऐसा कच्चा खेल करने वाला नेता तो इस देश को डुबा ही देगा प्रभु।
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3 Comments

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  1. कांग्रेस अभी तक यह तय नहीं कर पाई है की क्या कहे क्या ना कहे, बचा कुचा सलमान खुर्शीद के NGO ने पूरी कर दी........

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  2. (सोनिया) माँ ना कहे कि मेरे बेटे वक़्त पड़ा तो काम न आए ... ;-)



    विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर देश के नेताओं के लिए दुआ कीजिये - ब्लॉग बुलेटिन आज विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम और पूरे ब्लॉग जगत की ओर से हम देश के नेताओं के लिए दुआ करते है ... आपकी यह पोस्ट भी इस प्रयास मे हमारा साथ दे रही है ... आपको सादर आभार !

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  3. बहुओं पर इतनी कृपा, सौंप दिया सरकार ।
    बेटी से क्या दुश्मनी, करते हो तकरार ।
    करते हो तकरार, होय दामाद दुलारा ।
    छोटे मोटे गिफ्ट, पाय दो-चार बिचारा ।
    पीछे ही पड़ जाय, केजरी कितना काला ।
    जाएगा ना निकल, देश का यहाँ दिवाला ।

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