मित्रो आईये करते है, देश की बहुचर्चित शख्सियत माननीय कालेधन जी से तीखे सवाल- "सर आपका नाम कालाधन कैसे पड़ा।" कालाधन जी -" हमारा नाम सुनहरा धन होता, आखिर गाढ़ी कमाई हैं। टैक्सखोर अधिकारियो की काली निगाह से बचाने के लिये हमें कालाधन का नाम दिया गया। वैसे इससे "बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला" भी हो जाता है।" हमने मुस्कुराते हुये पूछा -" बाबा योगानन्द कहते है कि आप चार सौ लाख करोड़ हैं।"
वे बोले - "बाबा नोट गिनने की मशीन ले के आया था क्या मेरे पास। अच्छा हुआ आठ सौ लाख करोड़ नही बोला वरना कालाधन नाम भी मुझे बुरी नजर से नही बचा सकता था।" हमने कहा- "कुछ भी कहिये सर, जनता उनके आरोपो पर विश्वास करती है।" कालाधन जी मुस्कुराये - "मियां जनता को बाबा पर विश्वास नही, हम पर अविश्वास है। हम उस खूबसूरत लड़की की तरह है, जो दूसरे की बाहों में है। हमें देख हर न पाने वाला आहें भरता है और पाने वाले से जलता है। बिना मुझे चंदे में पाये बाबा ग्यारह सौ करोड़ का आसामी बनता क्या रे भाई। इनकम टैक्स पटाने के बाद, वैट, एक्साईज चुसाने के बाद ईमानदार के पास बचता क्या है। खुद खायेगा कि इन बाबाओ को चढ़ायेगा। पापियो को ही न भगवान के नाम बाबाओ का सिफ़ारिशी लेटर मंगता है। हमारा तो मन होता है कि हम ही इन बाबाओ के खिलाफ़ आंदोलन करें।"
हमने अगला सवाल दागा - बाबा ने आंदोलन छेड़ने से पहले, क्या आपसे राय ली थी। वे बोले - "प्यारे मै आंदोलन का इशू हूं। इशू से कोई राय नही ली जाती। गौरक्षा वाले कोई गाय से पूछकर थोड़े आंदोलन करते हैं। " हमने कहा - बाबा आपको देश में वापस लाने के बाद, आपका जो प्रयोग करना चाहते है उस बारे मे आपकी क्या राय है। वे बोले- देखिये जिस तरह गौरक्षा वाले गाय को बचाने के बाद उसे भगवान भरोसे छोड़ देते है उसी तरह बाबा को मुझे लाने के बाद सरकार भरोसे छोड़ देना चाहिये।" हमने चिहुंक कर कहा - "ऐसे तो आप फ़िर नेता, अफ़सरों के पास पहुंच जायेंगे, हमको फ़ायदा क्या होगा।" कालाधन जी मुस्कुराये बोले - "बेटा इशू बरकरार रहना चाहिये। इस देश की आम जनता भोली भाली है। उसको जनलोकपाल टाईप का कठिन इशू समझ में नही आता। जात, धर्म में बटे लोगों की अनेकता में एकता के लिये मेरा होना बहुत जरूरी है।
हमने गुस्से से कहा - " महंगाई से त्रस्त आम आदमी , दो वक्त की रोटी के लिये जूझ रहा है। आपको शर्म नही आती,क्या आप इस देश से प्यार नही करते। क्या आपको खुद ही आत्मसमर्पण नही कर देना चाहिये।" वे बोले -"अरे भाई देश वासियो से प्यार है गरीबो की चिंता है इसलिये त चुपचाप विदेश में बैंको मे पड़ा हूं। वरना कौन अपनी मातृभूमी से दूर रहना चाहता है।" हम चौंक गये, पूछा - "सर प्यार तक तो समझ में आता है पर आपके वापस आ जाने से गरीब को क्या नुकसान।" कालाधन जी गंभीर हो गये बोले -" बाबा को अर्थशास्त्र का ’अ’ नही मालूम। मनमोहन सिंग क्या बेकूफ़ है जो इतना बदनामी झेलने के बावजूद हमको नही ला रहा। अरे भाई देखते नही चिदंबरम पांच लाख करोड़ का नोट छाप के देश में झोंके तो महंगाई आसमान में पहुंच गया। दो लाख करोड़ का मनरेगा ला दिये त देश में लेबर नही मिल रहा काम करने को। शराब की खपत आसमान छूने लगी। हम आ जायेंगे तो हर परिवार को एक करोड़ मिलेगा।कौन करोड़पति खेत मे काम करने जायेगा कहो तो भला। सवा सौ करोड़पति मार्केट पर टूट पड़ेगा, त कीमत नही आसमान छूने लगेगी।
इतना भयानक अंजाम सुन हमारे रोंगटॆ खड़े हो गये। हमने कहा - " तो सर आप ही कोई राह सुझाईये। " कालेधन जी ने मनमोहन सिंग की तरह आश्वासन दिया -" सरकार ठीक कदम उठा रही है, धीरे धीरे एफ़ डी आई के माध्यम से हमे सफ़ेद धन बना उसका उपयोग रोजगार मूलक इन्फ़्रास्ट्रक्चर में होगा। हमारे वालमार्ट के माध्यम से देश मे पहुंचते ही किसान, उपभोक्ता खुशहाल और काला बजारिये बदहाल हो जायेंगे। देश अग्नी राकेट की तरह खुशहाली के नये कीर्तीमान स्थापित करेगा। अब विदा लेने का समय आ गया है, जाते जाते सभी देश वासियो को हमारी तरफ़ से ढेर सारा प्यार, शुभकामनाएं, जय हिंद, वंदे मातरम।" ,