साहब हमें अचानक बालतोड़ हो गया। बालतोड़ बड़ी अजीब तरह का फ़ोड़ा है। जो आदमी को ऐसी जगह हो जाता है। कि कह भी नही सकता और सह भी नही सकता की स्थिती रहती है। लेकिन गर्भवती स्त्री का गर्भ और नेता के पाप की तरह फ़ुल स्टेज आने पर इसे छुपाया नही जा सकता। साहब ये हिंदुस्तान ऐसा मुल्क है। जहां आवाज धीरे आने पर ही सामने वाला खैरियत पूछने लगता है। लेकिन बालतोड़ के मामले में आपका कितना भी खैर ख्वाह होगा। बालतोड़ और उसके होने वाली जगह का उचित संबंध जोड़ते ही मुस्कुरा उठता है। खैर साहब हुआ ऐसी जगह था कि महिला डाक्टर को नही दिखाया जा सकता था। कई लोग इस लाईन को पढ़ कर अपने कुत्सित मन में कुछ और समझ लेंगे। लेकिन साहब आप ऐसे नही है सो बताये दे रहा हूं कि हुआ जांघ पर है। अत्यंत पीड़ा में हमने सोचा कि इस पीड़ा का शमन कैसे किया जाये। आखिर बाल तोड़ सांसारिक कष्टो की तरह उपर वाले के द्वारा तय किये समय पर ही जान छोड़ता है।
सो हमने श्रीमती से कहा- " सुनो प्रिये, आप हमारी अर्धांगिनी हो। भगवान से प्रार्थना कर हमारी आधी पीड़ा आप ले लो। कुछ क्षण विचार करने के बाद श्रीमती बोलीं - कल बाबा रामदेव टीवी पर कह रहे थे कि आदमी को अपने पापो का फ़ल खुद ही भुगतना पड़ सकता है। सो इस मामले में अर्धांगिनी वाला आप्शन काम नही कर सकता।" हमने कहा -"चलो कम से कम सिर की मालिश ही कर दो। पीड़ा से ध्यान बट जायेगा।" इतना सुनते ही श्रीमती ने करारा जवाब दे दिया -"हां घर मे चालीस नौकर बैठा रखे है श्रीमान ने कि वो घर के काम करें और मैं मुफ़्त बैठी सेवा करती रहूं। गया पुराना जमाना कि औरते अब गधा मजूरी करती फ़िरें।" हम भड़क गये- "हमको गधा कैसे कहा आपने। वाह रे कलजुग ये दिन भी आना बाकी था।" श्रीमती की तरफ़ से गोला आया -"लो हमने गधा कहा ही नही । पर अब जरूर सोच में पड़ गये हैं। आखिर जो मुहावरा न समझे वो लेखक गधा हुआ कि नही।"
इतना सुन हम समझ गये, कि भाई श्रीमती से उलझ, पीड़ा कम करने की बात बनेगी नही। आखिर बालतोड़ के बदले दिलतोड़ का सौदा, मुनाफ़े वाला कहां हो सकता था। अचानक दिमाग में गाना बजने लगा -"दुनिया मे कितने गम है मेरा गम कितना कम है।" हमने सोचा वाह मियां, किसी ऐसे मामले पर विचार किया जाये कि अपनी पीड़ा कम लगने लगे। तो भी काम चल सकता है। पर फ़िर हमने सोचा कि बाल तोड़ जैसी भयानक पीड़ा और कौन सी हो सकती है कि हिले तो भी दर्द न हिलो तो भी दर्द। बालतोड़ का मुकाबला बेशक बालतोड़ ही कर सकता है। फ़ेर हमने छोटे से दिमाग पर जबरदस्त जोर डाला- ’ हे मन, जल्दी बता कौन सबसे ज्यादा पीड़ित है। लौटती डाक से जवाब आया कि भाई कांग्रेसियों से ज्यादा पीड़ित आज कोई नही। फ़ेर हमने दिमाग लगाया के भाई सबसे अधिक कौन पीड़ित किये हुये है इन कांग्रेसियों को। पहले अन्ना, बाबा, ममता का ध्यान आया। फ़ेर हम सोचे, ये तो फ़ारेन पार्टिकल है, बाहरी तत्व है, गैर कांग्रेसी है। ये बाल तोड़ नहीं हो सकते। बालतोड़ तो शरीर का अंग होता है। ऐसा अभिन्न अंग जिसे आप चाह कर भी भिन्न नही कर सकते। समय आने पर ही टलेगा।
ऐसे में तो किसी पार्टी के आदमी को ही खोजना पड़ेगा। जो कांग्रेसियों को बालतोड़ की तरह का कष्ट दे रहा हो। बाल तोड़ की विशेषताओं पर गौर किया जाये। तो यह एक ऐसी मुसीबत है। जो रह रह कर रूक रूक कर असीम दर्द पैदा करती है। अब कांग्रेसियो को तो ऐसी पीड़ा चिदंबरम साहब ही दे रहे हैं। हर कुछ वक्त में उनका कोई न कोई नया लफ़ड़ा चला आ रहा है। जिस तरह बालतोड़ से छुटकारा पाना हमारे बस में नही। जब बालतोड़ का मन होगा तभी जायेगा। ठीक उसी तरह चिदंबरम साहब से छुटकारा पाना भी कांग्रेसियो के बस में नही। चिदंबरम साहब जब टलने की सोचेंगे, तब ही छुट्टी मिलेगा। हम अगर लोगो से कहे कि भाई ये प्यारा बालतोड़ हमारे शरीर का बहुत अच्छा सम्मानित कुलीग है। तब कोई भरोसा करेगा नही। ठीक वैसे ही मनमोहन सिंग जी के चिदंबरम साहब को, बहुत अच्छा सम्मानित कुलीग बताये जाने पर कोई भरोसा नही करता। अब नैतिकता के आधार पर जरूर उन्हे बालतोड़ करार दिया जाना अनुचित नजर आ सकता है। पर साहब जब नेताओं का नैतिकता से कोई लेना देना नही। इस मुये बालतोड़ का भी नैतिकता से कोई लेना देना नही। तो हम काहे नैतिकता से नाता जोड़। अपने दर्द को कम करने का एक आसान जरिया जाया होने दें। वैसे भी आजकल उपमा देने की होड़ लग गयी है। आदरणीय मनमोहन सिंग को कोई शिखंडी कह रहा है, तो कोई धृतराष्ट्र। अब कोई कहे कि ’भाई ये तो पौराणिक चरित्र है।’ तो अपना बालतोड़ भी पीछे नही। जब से मनुष्य़ इस धरती पर जन्मा है। ये बाल तोड़ उसे दुखी करता ही आया है। बल्कि हम तो दावा करते है कि ये बालतोड़ दुनिया का सबसे प्राचीन पौराणिक कैरेक्टर है। बल्कि सोचते-सोचते, अब सोच रहा हूं। कहीं ईश्वर की खोज इस बाल तोड़ के कारण ही तो नही हुई। इस बालतोड़ की भयानक पीड़ा में जब आदिमानव चीत्कारा होगा। तभी ईश्वर ने प्रकट हो, उसकी पीड़ा का शमन कर अपना परिचय दिया होगा। बल्कि सोच जाये कि आदिमानव को पढ़ना लिखना आता। तो आज आन रिकार्ड ईश्वर का नाम मौजूद होता। फ़िर हम लोग अलग अलग धर्मो में न बटे होते। और इन नेताओ को ऐसा सबक सिखाते कि नानी याद आ जाता।
ऐसे मे चिदंबरंम साहब को बालतोड़ कह देना, हमे किसी हिसाब से गलत भी नजर नही आता। और कांग्रेस की पीड़ा तो हमसे कई गुना ज्यादा है। हमारे बालतोड़ को मीडिया दिखायेगा तो भी धुंधला स्क्रीन करके। कांग्रेस के बालतोड़ को तो दिन रात धांय धांय दिखाया जाता है। आठ दस स्व्यंभू विद्वानो की चर्चा कराई जाती है। अब चिदंबरम साहब की तरह हमारा बालतोड़ भी बयान दे सकता है। कि - " चाहे तो खंजर भोंक लो, पर मुझ मासूम बालतोड़ की नीयत पर सवाल मत उठाओ।" अब बालतोड़ को छूना ही नानी याद दिला देता है। तो कौन बलवान उसमे छुरा भोंक सकता है। ऐसा सोच साहब हमारा दिल बाग बाग हुआ ही था। कि हमारा बालतोड़ जोर से लौंका। हमे लगा कि कह रह हों- ए दवे जी, हम भले बालतोड़ है। पर हमारी भी कोई इज्जत है कि नही। ऐसे लोगो से हमारा संबंध जोड़ा, तो चेताये देते है। सौ जन्मो में पीछा नही छोड़ेंगे।" चलिये साहब अब हम बालतोड़ की साख पर धब्बा न लगायेंगे। पर ध्यान रहे हमारे और कांग्रेस के बालतोड़ पर हंसियेगा मत। लोग कहते है कि जो बालतोड़ पीड़ित पर हंसा उसको बालतोड़ होना तय है।
सो हमने श्रीमती से कहा- " सुनो प्रिये, आप हमारी अर्धांगिनी हो। भगवान से प्रार्थना कर हमारी आधी पीड़ा आप ले लो। कुछ क्षण विचार करने के बाद श्रीमती बोलीं - कल बाबा रामदेव टीवी पर कह रहे थे कि आदमी को अपने पापो का फ़ल खुद ही भुगतना पड़ सकता है। सो इस मामले में अर्धांगिनी वाला आप्शन काम नही कर सकता।" हमने कहा -"चलो कम से कम सिर की मालिश ही कर दो। पीड़ा से ध्यान बट जायेगा।" इतना सुनते ही श्रीमती ने करारा जवाब दे दिया -"हां घर मे चालीस नौकर बैठा रखे है श्रीमान ने कि वो घर के काम करें और मैं मुफ़्त बैठी सेवा करती रहूं। गया पुराना जमाना कि औरते अब गधा मजूरी करती फ़िरें।" हम भड़क गये- "हमको गधा कैसे कहा आपने। वाह रे कलजुग ये दिन भी आना बाकी था।" श्रीमती की तरफ़ से गोला आया -"लो हमने गधा कहा ही नही । पर अब जरूर सोच में पड़ गये हैं। आखिर जो मुहावरा न समझे वो लेखक गधा हुआ कि नही।"
इतना सुन हम समझ गये, कि भाई श्रीमती से उलझ, पीड़ा कम करने की बात बनेगी नही। आखिर बालतोड़ के बदले दिलतोड़ का सौदा, मुनाफ़े वाला कहां हो सकता था। अचानक दिमाग में गाना बजने लगा -"दुनिया मे कितने गम है मेरा गम कितना कम है।" हमने सोचा वाह मियां, किसी ऐसे मामले पर विचार किया जाये कि अपनी पीड़ा कम लगने लगे। तो भी काम चल सकता है। पर फ़िर हमने सोचा कि बाल तोड़ जैसी भयानक पीड़ा और कौन सी हो सकती है कि हिले तो भी दर्द न हिलो तो भी दर्द। बालतोड़ का मुकाबला बेशक बालतोड़ ही कर सकता है। फ़ेर हमने छोटे से दिमाग पर जबरदस्त जोर डाला- ’ हे मन, जल्दी बता कौन सबसे ज्यादा पीड़ित है। लौटती डाक से जवाब आया कि भाई कांग्रेसियों से ज्यादा पीड़ित आज कोई नही। फ़ेर हमने दिमाग लगाया के भाई सबसे अधिक कौन पीड़ित किये हुये है इन कांग्रेसियों को। पहले अन्ना, बाबा, ममता का ध्यान आया। फ़ेर हम सोचे, ये तो फ़ारेन पार्टिकल है, बाहरी तत्व है, गैर कांग्रेसी है। ये बाल तोड़ नहीं हो सकते। बालतोड़ तो शरीर का अंग होता है। ऐसा अभिन्न अंग जिसे आप चाह कर भी भिन्न नही कर सकते। समय आने पर ही टलेगा।
ऐसे में तो किसी पार्टी के आदमी को ही खोजना पड़ेगा। जो कांग्रेसियों को बालतोड़ की तरह का कष्ट दे रहा हो। बाल तोड़ की विशेषताओं पर गौर किया जाये। तो यह एक ऐसी मुसीबत है। जो रह रह कर रूक रूक कर असीम दर्द पैदा करती है। अब कांग्रेसियो को तो ऐसी पीड़ा चिदंबरम साहब ही दे रहे हैं। हर कुछ वक्त में उनका कोई न कोई नया लफ़ड़ा चला आ रहा है। जिस तरह बालतोड़ से छुटकारा पाना हमारे बस में नही। जब बालतोड़ का मन होगा तभी जायेगा। ठीक उसी तरह चिदंबरम साहब से छुटकारा पाना भी कांग्रेसियो के बस में नही। चिदंबरम साहब जब टलने की सोचेंगे, तब ही छुट्टी मिलेगा। हम अगर लोगो से कहे कि भाई ये प्यारा बालतोड़ हमारे शरीर का बहुत अच्छा सम्मानित कुलीग है। तब कोई भरोसा करेगा नही। ठीक वैसे ही मनमोहन सिंग जी के चिदंबरम साहब को, बहुत अच्छा सम्मानित कुलीग बताये जाने पर कोई भरोसा नही करता। अब नैतिकता के आधार पर जरूर उन्हे बालतोड़ करार दिया जाना अनुचित नजर आ सकता है। पर साहब जब नेताओं का नैतिकता से कोई लेना देना नही। इस मुये बालतोड़ का भी नैतिकता से कोई लेना देना नही। तो हम काहे नैतिकता से नाता जोड़। अपने दर्द को कम करने का एक आसान जरिया जाया होने दें। वैसे भी आजकल उपमा देने की होड़ लग गयी है। आदरणीय मनमोहन सिंग को कोई शिखंडी कह रहा है, तो कोई धृतराष्ट्र। अब कोई कहे कि ’भाई ये तो पौराणिक चरित्र है।’ तो अपना बालतोड़ भी पीछे नही। जब से मनुष्य़ इस धरती पर जन्मा है। ये बाल तोड़ उसे दुखी करता ही आया है। बल्कि हम तो दावा करते है कि ये बालतोड़ दुनिया का सबसे प्राचीन पौराणिक कैरेक्टर है। बल्कि सोचते-सोचते, अब सोच रहा हूं। कहीं ईश्वर की खोज इस बाल तोड़ के कारण ही तो नही हुई। इस बालतोड़ की भयानक पीड़ा में जब आदिमानव चीत्कारा होगा। तभी ईश्वर ने प्रकट हो, उसकी पीड़ा का शमन कर अपना परिचय दिया होगा। बल्कि सोच जाये कि आदिमानव को पढ़ना लिखना आता। तो आज आन रिकार्ड ईश्वर का नाम मौजूद होता। फ़िर हम लोग अलग अलग धर्मो में न बटे होते। और इन नेताओ को ऐसा सबक सिखाते कि नानी याद आ जाता।
ऐसे मे चिदंबरंम साहब को बालतोड़ कह देना, हमे किसी हिसाब से गलत भी नजर नही आता। और कांग्रेस की पीड़ा तो हमसे कई गुना ज्यादा है। हमारे बालतोड़ को मीडिया दिखायेगा तो भी धुंधला स्क्रीन करके। कांग्रेस के बालतोड़ को तो दिन रात धांय धांय दिखाया जाता है। आठ दस स्व्यंभू विद्वानो की चर्चा कराई जाती है। अब चिदंबरम साहब की तरह हमारा बालतोड़ भी बयान दे सकता है। कि - " चाहे तो खंजर भोंक लो, पर मुझ मासूम बालतोड़ की नीयत पर सवाल मत उठाओ।" अब बालतोड़ को छूना ही नानी याद दिला देता है। तो कौन बलवान उसमे छुरा भोंक सकता है। ऐसा सोच साहब हमारा दिल बाग बाग हुआ ही था। कि हमारा बालतोड़ जोर से लौंका। हमे लगा कि कह रह हों- ए दवे जी, हम भले बालतोड़ है। पर हमारी भी कोई इज्जत है कि नही। ऐसे लोगो से हमारा संबंध जोड़ा, तो चेताये देते है। सौ जन्मो में पीछा नही छोड़ेंगे।" चलिये साहब अब हम बालतोड़ की साख पर धब्बा न लगायेंगे। पर ध्यान रहे हमारे और कांग्रेस के बालतोड़ पर हंसियेगा मत। लोग कहते है कि जो बालतोड़ पीड़ित पर हंसा उसको बालतोड़ होना तय है।
यदि चिदंबरम, टाइप के बालतोड़ का इलाज़ करना हो तो अन्ना जैसे एलोपथिक हाकिम को लगाना होगा , एक्शन ठीक बैठा तो इलाज सफल यदि रिएक्ट कर गया तो एलोपैथ खुदे भाग जायेगा ... स्वभावानुसार
ReplyDeleteबालतोड़ पे बलबला, देत मिनिस्टर पीर |
ReplyDeleteसतफुड़िया से बिलबिला, कब से विकट अधीर |
कब से विकट अधीर, सिलसिला चालू चक्कर |
मैया रही सँभाल, निकलती एक-एक कर |
बीबी बेटा दुष्ट, रुष्ट होकर के कोसें |
पर मैया संतुष्ट, प्यार से मुझको पोसे ||
इस बाल तोड़ ने तो वाकई रिकार्ड तोड़ डाला अरुणेश भाई ,,और सूना है की एक बार जब ये हो जता है तो सात बार और होता है,पता नहीं अभी और कितने बालतोड़ झेलने बाकी है |
ReplyDeleteहसाते हूए पीड़ा को भूल जाना,ये आप ही कर सकते है ,एकदम सटीक लिखा "बालतोड़"
समसामयिक चटपटी !मजेदार
ReplyDeleteक्या टिपण्णी में खोट है -
ReplyDeleteपब्लिश नहीं हुई -
बालतोड़ पे बलबला, देत मिनिस्टर पीर |
सतफुड़िया से बिलबिला, जो है विकट अधीर |
कब से विकट अधीर, सिलसिला चालू चक्कर |
मैया रही सँभाल, निकलती एक-एक कर |
बीबी बेटा दुष्ट, रुष्ट होकर के कोसें |
पर मैया संतुष्ट, प्यार से मुझको पोसे ||
कांग्रेस का बालतोड़ है इतनी जल्दी पीछा नहीं छोड़ेगा। रह रह के कसकेगा, धसकेगा फ़िर आखिर में फ़ंसकेगा। बालतोड़ की महिमा निराली है। चीरा लगाने से ही फ़ूटेगा :)
ReplyDeleteBala ki hai ye baltoadka dard aur vashe hi congrasiyo ne is desh ki janta ko baldoad jaisa dard to aapne kokrathyo se de hi rakha hai
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (17-06-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
ये आख़िरी लाईन पेलकर बहुत नाइंसाफी कर दी आपने, बहुत हंस चुके थे यहाँ तक पहुँचते पहुँचते:)
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