Tuesday, June 19, 2012

दो पति- दो राष्ट्रपति


 देखिये साहब, ऐसे तो हमारा राष्ट्रपति पद से कुछ खास लेना नही है।  देना नही भी चाहे, तो भी सरकार हियां उहां टैक्स लगा कर वसूल ही लेती है। लेकिन इन दिनो हम बड़े चिंतित है कि राष्ट्रपति कौन बनेगा। हम इसे बात का अनुभव भी नही कि चुनाव कैसे जीता जाता है। हम तो पति का चुनाव भी बड़ा मुश्किल से जीते थे। उस में भी ऐसे ऐसे लुभावने वादे किये थे। सारी बुरी आदते छोड़ने की कसमें खायी थी। कि मरी आज तक पीछा नही छोड़ती। श्रीमती को टोका नही कि से कि तड़ से मनीष तिवारी टाईप  बयान दे देती है- "किस मुंह से आप हमें टोकते हैं। आप तो खुद सर से कमर तक झूठ बोल कर हमसे शादी किये थे। ऐसे में हम घरेलू विवादो से जरा दूर ही रहते है।

वैसे देखा जाये तो राष्ट्रपति की हालत भी आज के पति से क्या अलग है। जो बीबी कहे उस पर मुहर लगाने वाले रबर स्टैंप के अलावा आज पति कर भी क्या सकता है। हल्का फ़ुल्का विरोध तक महिला थाना की घर से दूरी पर निर्भर करता है। हमारे यहां तो हमारा डाग टामी भी जानता है कि सत्ता का केंद्र किधर है।  सत्ता के केंद्र से याद आया कि एक विदेश एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पूअर ने कहा है- "भारत में सत्ता का केंद्र प्रधानमंत्री के पास नही प्रधानमम्मी के पास है।" बोले तो अपने विदेशी नस्ल के टामी की तरह, अगर उस विदेशी एजेंसी के आकलन पर भरोसा किया जाये। तो अपना प्रधान मंत्री भी अपुन के और राष्ट्रपति के टाईप रबर स्टैंप है। जो प्रधानमम्मी कहे वही करता है। अब हमारे गरीब देश के पास जब पहले से ही एक रबर स्टैंप है। तो दूसरा रबर स्टैंप की जरूर क्या है रे भाई। खाली फ़ोकट हालिया राष्ट्रपति की तरह बावर्चियो को लेकर विदेश फ़िरेगा। गरीब जनता के अरबो रूपये का नाश करेगा। फ़ोकट सफ़ेद हाथी घर बैठाने का खर्चा हम लोग क्यों उठाये। जब मम्मी के इशारों पर ही इसे संचालित होना है तो इतनी उठा-पटक क्यों। प्रधान मम्मी का चिर परिचित रोबोट मतलब मन्नू तो है ही...फिर दूसरे रोबोट की जरूरत का औचित्य नही समझ आता।

वैसे त हमें भारत की आम जनता की तरह, कोई मतलब नही है कि देश का पैसा कहां लुटा जा रहा है। दो प्रधान मंत्री भी बन जाये हमारी बला से। लेकिन राष्ट्रपति में पति जुड़ा है और देश को दो दो पति मिले। इससे गलत टाईप का फ़ीलिंग होता है। आखिर मर्द होने के नाते कितनाओ पत्नी बना लिया जाये, लेकिन पति दो हो जाये। इ बर्दाश्त करने वाला बात नही है भाई। आखिर देखा सीखी ही न माहौल बिगड़ता है। सोचिये कोई लड़की प्रेमी से कहे-  "बाकी सब त ठीक है। पर मैं दो पतियों से शादी करूंगी। सोच लो, फ़िर आई लव यू कहना।" अब सोचिये आज तक लड़का क्या कहता -"अरे पगला गयी हो क्या, ऐसा कहीं होता है भला।" लड़की तब  कुछ न कह पाती। लेकिन अब मामला में फ़ेरा हो जायेगा। लड़की कहेगी- "लो जब देश के दो राष्ट्रपति हो सकते हैं, तो मेरे क्यों नही।" इसलिये हम इस देश में ये दो रबरस्टैंप की परंपरा चलाने के सख्त खिलाफ़ है। पर हमारे जैसा आम आदमी कर ही क्या सकता है। सिवाये कलपने या भगवान से अपील करने के सिवा।

अब भगवान से अपील करने जाओ, तो पुराने ज्ञानियो की सीख याद आ जाती है। कि हर बुराई के पीछे भगवान कुछ न कुछ अच्छाई देता है। वैसे अपने बुर्जुआ क्रांतीकारी दोस्त लोग कहते हैं। कि धर्म में ये सब बाते शोषण करने के लिये सिखाई जाती है। ताकी आदमी शोषित होने में भी फ़ायदा देखे। लेकिन अपुन शादी के बाद वामपंथी से घोर आस्तिक हो चुका हूं। कारण कि पत्नी ने जब पीड़ित करना शुरू किया। तब बाद में कितना भी पछताउं, लेकिन उस समय मुंह से ’हे भगवान, बचाओ’ निकल ही जाता था। उस पर हमारी आस्तिक श्रीमति टांट और कस देती- " बड़े नास्तिक बनते हो, त काहे मेरे भगवान को याद करते हो।" सो कुछ फ़ब्ती से, कुछ शोषण से तंग आकर धीरे धीरे भगवान और नर्क के प्रति मेरी घोर आस्था हो गयी। और ज्ञानी लोग भी देख भाल के ही कहे हैं। जान गये होंगे कि भाई शोषण त होना ही है चाहे पत्नी करे चाहे नेता या  राजा। ऐसे मे तुलसीदास जी का कहा -"जेही विधी राखे राम तेही विधी रहिये। सीता राम सीता राम सीताराम कहिये।" आज भी सटीक बैठता है और युगो युगो तक बैठता ही रहेगा। अब ये बुर्जुआ क्रांतीकारी भी केतना ऎड़ी अलगा अलगा कर भाषण पेले। क्रांती मे तो  होता यही है कि एक जालिम को हटा कर दूसरा जालिम बैठ जाता है। ये लोग फ़ोकट खून भी बहवा देते हैं, अपना गांधी का पालिसी बेस्ट -"अहिंसा" कोई। एक बार शोषण करे त दूसरा गाल माफ़ कीजियेगा गाल का बात फ़िट नही बैठता। अब जो चाहे बैठा लीजिये, लेकिन सामने पेश कर दीजिये।


 ऐसे में ईश्वर के प्रति  पूर्ण आस्था से मैने सोचा कि भाई। इसमें भी भलाई छुपा ही होगा कुछ न कुछ। तभी कही दूर अंदर से आवाज आयी- "ऐ छोटी सोच वाले आम आदमी, देश की प्रधानमम्मी की तरह दूर की सोच। देख भारत में कन्याओ का अनुपात कम हो रहा है कि नही। कन्या भ्रूण हत्या धड़ाधड़ हो रही है कि नही। ऐसे में हजारो साल से एक पति के सोच वाले समाज को। नई दिशा देने के लिये दो राष्ट्रपति बनाना जरूरी है। धीरे धीरे कन्याओ की घटती संख्या के साथ एक लड़की में दो लड़को का अनुपात आ ही जायेगा। फ़ेर समाज में हाहाकार फ़ैलने से बचाना हो त क्या रास्ता बचेगा।  दो राष्ट्रपति की तरह दो पति का सिस्टम लागू बिना किये उद्धार कैसे होगा।" इतना सुनते ही साहब हमनें भगवान को प्रधान मम्मी को और दोनो रबर स्टैंप  को सादर नमन किया। और भजन गुनगुनाने लगे-

जेही विधी राखे राम तेही विधी रहिये।
सीता राम सीता राम सीताराम कहिये।।
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2 Comments

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  1. सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम

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  2. हा हा हा, पूरी बात क्‍यों नही लिखी, एक धर्म विशेष में एकाधिक विवाह करने का अधिकार प्राप्‍त है, जिनकी गणना आपने नहीं की, वरना निश्चित ही आप यह कहते कि महाभारत काल को अपना आदर्श बनाना चाहिए और एक पत्‍नी के पांच पति वाली बात सर्वसम्‍मति से स्‍वीकार कर लेनी चाहिए , रही बात राष्‍ट्रपति की, तो भाई हर पति की एक मम्‍मी तो होती ही

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