Wednesday, May 30, 2012

लोकतांत्रिक महंगाई की जऽऽऽऽऽऽऽऽय हो

साहब  पिछले कुछ दिनो से देश में  मातम छाया हुआ है, कि हाय महंगाई से जीना हराम हो गया है। सुबह कंपूटर बाबा को चपको नही कि स्क्रीन पर मनमोहन से लेकर अमूल बेबी तक को कोसते लोगो की रेलमपेल है।  उसके बाद कोई सुकून का कोंटा  तलाशो, तो दना दन मैसेज आने लगते हैं - " पेट्रोल महंगा हो गया"  "फ़लां तेल कंपनी इतना प्राफ़िट छुपा रही है", "तेल इतने रूपये का आता है और साले टैक्स लगा के इतना मे बेच रहे हैं"। संघी लोग का तो और गजब है, वो हर चीज को हिंदुत्व पर छाये खतरे से जोड़ देते हैं। कब महंगाई को कोसना चालू करते है और कब  इसाई सोनिया से लेकर मुस्लिम आतंक पर उतर आते है कोई पता नही चलता।

मुझे समझ नही आती कि इस देश को  तकलीफ़ किस बात से है। मुझे तो यह महंगाई बेहद पवित्र नजर आती है। क्या खूब लिखा था किसी शायर ने के " सारे चिराग गुल कर दो कि आज अंधेरा बड़ा मुक्कदस है।" सो आज ये जो अंधेरा नजर आता है। बड़ा मुक्कदस है, क्योंकी ये जम्हूरी अंधेरा है। ऐसे ही ये महंगाई भी मुक्कदस है, क्योंकि ये जम्हूरी महंगाई है। इस दुर्गत के लिये हमने खुद दावत दी है।  मजे की बात है कि  लोकतांत्रिक दावत दी है। एक पौराणिक कहानी याद आ गयी कि जिसको पूरणमासी की रात में सांप ने डसा हो। वो हर पूरणमासी को सांप से फ़िर डस जाने का इंतजार करता है। ठीक वैसे ही हालत हम हिंदुस्तानियो की है। हर चुनावी पूरणमासी को हम इन सांपो से डसे जाने का इंतजार करते हैं।

अब आ जाईये इस  क्रोधित आम आदमी पर। यह आम आदमी बोले तो भारतीय मध्यम वर्ग। वह वर्ग जो सिनेमा देखता है, अखबार पढ़ता है, सामान का खरीददार है। और जिसके मूड को भांप कर ही यह बाजार भी बदलता है। गिराहक आखिर हिंदुस्तान में पौराणिक काल से देवता माना जाता है नही। सो इस आम आदमी के क्रोधित होने से मीडिया भी क्रोधित है और सिनेमा भी।  नेताओ से ज्यादा उसका क्रोध उन लोगो पर भी है। जिन्हे वो अमूमन   तीन रूपये किलो वाला चांवल पाकर मुटियाने वाला और काम से नागा करने वाला कामचोर आलसी गंवार कहता है। आखिर इस गरीब वर्ग से उसका ताल्लुक इतना ही है न कि वो उसके घर मे काम करने वाली बाईयो  या वो मजदूर जो उसके कारखाने, दुकान पर काम करता है। और यह गरीब कही से न्योता मिला नही कि चार दिन काम से गोल हो जाता है। इस आम आदमी की नजर में गरीबो को दिया जाने वाला चावल शराब की भेंट चढ़ जाता है। यह गरीब आदमी आम आदमी के क्रोध का शिकार इसलिये है कि उसके अनुसार  ये साले दारू साड़ी लेकर इन चोर नेताओ को वोट देकर जिता देते हैं। आम आदमी अपनी बैठको में जब राजनैतिक चर्चा करता है तो इन गरीबो की वोटिंग को लेकर कसमसाता जरूर है।


लेकिन इस पवित्र महंगाई का कारण गरीब नही है। गरीब का तो पेट ही खाली है, वह कहा आंदोलन के महंगे शौक पाल सकता है। उसके आंदोलनो को टीवी पर दिखायेगा कौन। आंदोलन कर तो ये आम आदमी ही सकता है जिसका पेट भरा हुआ है। पर  इनको महंगाई से ज्यादा चिंता अपना अपना वाद पेलने की है। और भ्रष्टाचार से लड़ने के बजाये अपनी दुश्मन नजर आने वाली पार्टी को ठेलने की है। सुबह से शाम हाय हाय मचाते इन आम आदमियों में से कोई भाजपाई है तो कोई कांग्रेस और  कोई वामपंथी विचारधारा का है। व्यवस्था के खिलाफ़ उठते हर आंदोलन में यह आम आदमी अपने वाद के सुर खोजता है। कोई धर्म के कारण किसी वाद का समर्थक है। कोई विचारधारा के कारण। और कॊई कोई तो खानदानी विरासत मे पाये वाद को अपने बच्चो तक पहुंचाने को ही पूर्वजो का कर्ज चुकाने का माध्यम समझते हैं। और भारत मे ऐसे लोगो की भी कमी नही जो पैदाईशी विरोधी लाल होते हैं। सो हर उठने वाले आंदोलन की मौत भी तय ही है। बच वह तभी सकता है। जब उसके सीने में सवार कोई राजनैतिक दल हो। और ऐसा होने पर सवारी साधता राजनैतिक दल माल उड़ाने का उत्तम अवसर पा जाता है। और आम आदमी फ़िर से बेचारा महंगाई का शोक मनाता है।

तो साहब  यह बेचारा आम आदमी....न तो श्रेष्ठी वर्ग की तरह संपन्न ..न ही गरीबों की तरह निर्द्वन्द ,,,इन दोनों के बीच पट में पिसने वाला यही आम आदमी है। .इसे समाज की दिशा भी बदलनी है..और  अपनी गृहस्थी को भी सुचारू रखना है। उस पर ये  लोकतान्त्रिक क्रोध और वर्तमान व्यवस्था के प्रति कसमसाहट । इस कसमसाहट को अभी एक उबाल का जरूरत है। शोषण की भट्टी में क्रोध का कोयला तपेगा।   लेकिन यह तभी संभव होगा जब वह वाद के विवाद को  धर्म के चश्मे को एक तरफ़ फ़ेंक सिर्फ़ और सिर्फ़ व्यवस्था और लचर कानून के विरोध मे बिना किसी राजनैतिक दल के उठ खड़ा होगा। और तब ये  २८ रूपये दिहाड़ी कमाने वाला गरीब शायद उस सोच को जी सके। जहाँ सिर्फ एक दिन की दारू,कपडा,चंद रूपये या खाना..उसको देश की दिशा तय करने में लोभ पैदा करके  बाधा न बने। तो साहब महंगाई को कोसने वालो इंतज़ार करिए कि इस आम जन के लोकतान्त्रिक  क्रोध  की तपिश बढे ......और उबले एक नयी क्रांति  के लिए।


Thursday, May 24, 2012

सरकारी बलात्कार टल न सके तो मजा लो

इस कथन पर अमूमन महिलाये क्रोध से भर जाती हैं, और कुछ पुरूषों के चेहरे पर मुस्कान तैर जाती है। खैर अब पुरूषो को भी सावधान हो जाना चाहिये। ये "गे" वाला लफ़ड़ा जोरो पर है। और अब तो सुप्रीम कोर्ट भी शायद "गे" बनने की इजाजत दे दे। ऐसे में नवाबी शौक वाले "गे" गुंडे के लिये, अकेला अबला पुरूष आसान शिकार बन सकता है। ऐसे नाजुक वक्त में यदि उस अबला पुरूष से कोई कहे कि मियां बलात्कार टल न सके तो मजा लो। तब उसके मुंह से जो  उद्गार निकलेंगे वो दुनिया की किसी सेंसर बोर्ड से पास नही कराये जा सकते।

खैर साहब आज हम पूरे देश के लिये स्टॆटमेंट जारी कर रहे है। कि मेरे भाईयो और बाबा रामदेव की बहनो, ये जो आर्थिक बलात्कार भ्रष्टाचार की शक्ल में हम लोगो के साथ हो रहा है। वो किसी भी सूरत में टल नही सकता। सो आराम से लेट कर इसका लुफ़्त उठाओ। काहे घड़ी घड़ी अपना खून जलाते हो। वैसे ही इस महंगाई में नया खून बनाना शरीर और जेब की औकात के बाहर ही नजर आता है। सो इस लूट के खेल को आईपीएल के मैच की तरह इन्जाय करना चाहिये। साथ ही सट्टा भी लगाना चाहिये। कारण कि सट्टा लगाओ तो रोमांच बढ़ जाता है। मानो आपने 2 G घोटाले के सबसे बड़ा होने पर दस रूपये लगाये और मैने कोयला घोटाले पर दस लगा दिये। तब हर रोज अखबार पढ़ कर दर्द नही होगा। बल्कि आप अपने खिलाड़ी के रेटिंग पता करने में मशगूल हो जायेंगे। मान लो राजा जीत जाये तो आपको मिलने वाले दस रूपये की खुशी, लाखो करोड़ो के घोटाले का दर्द जड़ मूल से गायब कर देगी। और हार गये तो गाली देंगे, मसलन - बेवकूफ़, कमीना राजा दु लाख करोड़ का खेल किया। बीस हजार करोड़ का और कर देता, क्या जाता साले के बाप का। फ़ोकट दस रूपये गल गये। सोचिये तो कैसा मजा रहेगा। बाजार की तरह फ़्यूचर आप्शन ट्रेडिंग भी हो सकती है कि इस नयी सरकार का कौन कौन मंत्री घोटाला करने वाला है। सरकार इसको आफ़िशियल कर दे तो रेव्न्यू कलेक्शन का नया स्त्रोत खुल जायेगा।

अब आप कहेंगे कि घोटालो का तो लुफ़्त लिया जा सकता है। पर इस मुई महंगाई का क्या करें। तो भाई ये महंगाई नही देश के लिये वरदान है। नही समझे, अरे भाई आज कल हेल्थ प्रब्लम कितना फ़ैल रहा है, चारो ओर।  सुनते है अब तो जवानो को भी हार्ट अटैक आने लगा है। सो इस लिये दयालु  नेताओं ने हमें ये नेमत बख्शी है। ऐसी महंगाई में अब कौन तेल घी खायेगा भला। मिठाई पकवान की तो बात ही छोड़ दीजिये। बिना जिम गये, वजन अपने आप बीस प्रतिशत कम हो जायेगा, वो भी मुफ़्त। यही नही देखिये तो आज कैसा कलजुग है। दूध में मिलावट सब्जी में जहर मसालो में गधे की लीद। ऐसे मे भले इंसान न खाये कम खाये। पर ज्यादा जहरीली चीजें खाकर मरेगा तो नही। और डिमांड कम होगी तो अपने आप दुकानदार मिलावटी माल बेचना बंद कर देंगे। अरे भाई जब चीज बिक ही नही रहा। तो कौन गधा खोजे, उसकी गंदी फ़ुंदी लीद उठाये,  सुखाये, मिलाये। पेट्रोल महंगा तो लोग साईकल में आ जायेंगे। फ़िर चालीस कमर को बत्तीस बनने में क्या समय लगता है भला। सवारी गाड़ी से लेकर मालवाहक आटो तक सब चलना बंद हो जायेंगे। तो फ़िर ठेला, रिक्शा, बैलगाड़ी वालो को काम मिलने लगेगा कि नही। ऐसी रोजगार मूलक, पर्यावरण बचाउ महंगाई को क्यों कोसते हो भाई। ऐसी दूर दृष्टि वाली कांग्रेस आई और उनकी मम्मी  सोनिया माई को क्यो कोसते हो भाई। तो चलो भाईयों,  मेरे साथ नारा लगाये सोनिया मम्मी कीऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ।


आयं एक भी नारा नही लगा। क्यों भाई, मेरे इतना समझाने पर भी आप लोग नही समझे। क्या कहा ?? इस भ्रष्ट तंत्र को बदल के रहोगे। ले भाई ये मुंह और मसूर की दाल। मियां शेख चिल्ली मत बनो, भारत में रहते हो भूल गये। अभी बड़ा खून खौलेगा कि मियां ऐसी की तैसी इस भ्रष्टाचार की। फ़िर खून खौलते ही आंदोलन करना होगा। यही पर आकर हिंदुस्तान में पंगा पड़ जाता है। कि भाई आंदोलन का नेता कौन हो। मसलन  "X"  को नेता बना दिया। तो फ़ेर सवाल पैदा होगा कि इस X   ने जिंदगी में क्या क्या पाप किये हैं। नेता लोग भिड़ जायेंगे कि साहब "X" तो खुद सर से कमर तक भ्रष्टाचार में डूबा है किस मुंह से भ्रष्टाचार की बात करता है। चलिये अपना "X" इस फ़ंदे में नही आया। त सवाल उठेगा कि ये  किस पार्टी का मोहरा है। कांग्रेस आरोप लगायेगी कि "X" के पीछे संघ का हाथ है। "X" बयान देगा कि भाई हमारा संघ से कोई लेना देना नही है। चलो कोई बात नही "X" एक नही सभी पार्टियो के भ्रष्टाचार के खिलाफ़ हमला कर दे। कड़े कानून की मांग लेकर पिल जाये। इसके बाद वो लोग भी तो हैं जो भ्रष्टाचार के आंदोलन के पीछे छुप अपना एजेंडा लाना चाहते होंगे। अब "X"  उनके इरादे को कैंसल कर दे और सीधा लाईन पर टिका रहे। तो शुरू "X" को कोसने का अभियान। कट्टर हिंदुत्व का एजेंडा है। तो एक्स को हिंदु विरोधी, कांग्रेस का एजेंट, बुखारी का तलवा चाटने वाला करार दिया जायेगा। कट्टर मुस्लिम एजेंडा है। तो संघ का एजेंट, मुस्लिम विरोधी, भाजपा का तलवा चाटने वाला करार दो। अब यहां तक आते आते X भी हांफ़ने लगेगा लेकिन उसकी मुश्किले कम नही होंगी। अभी दलित, आदिवासी बुद्धीजीवी "X" को स्वर्ण, अगड़ो, मध्यम वर्ग की चाल बताये कहां हैं। मीडिया का घूमता कैमरा भी X की एक लाईन को चमका धमका के सनसऽऽऽनी बनाने में पीछे रहने वाला नही है। अभी "X" की जात धर्म भी गुप्त है, उसके प्रकट होते ही नया मसाला आयेगा, वो अलग। फ़ेर "X" के संगी साथी भी तो होंगे। जिनमे से कुछ के गलत कारनामे भी होंगे। सो "X" सही है, पर "X" को गलत लोगो ने घेर रखा है का नारा भी बुलंद होगा ही। फ़िर संगी साथियो में पईसा खाकर बिकने वालो की क्या कमी। कोई कुछ कहेगा, कोई कुछ, जनता बेचारी असमंजस में। फ़िर कांग्रेस से इतर बाकी राजनैतिक पार्टियां भी उसी भ्रष्ट तंत्र के भरोसे चल रही हैं कि नही। जो साथ देगा भी,  तो केवल अपने नफ़े नुकसान के मद्दे नजर। और कोई खंडूरी टाईप इमानदार भी निकल कड़े कानून लागू कर दे। तो भी चुनाव में जनता उसको निपटा ही देगी। आखिर गरीब आदमी को क्या पता कि देश में क्या हो रहा है। वो तो मजदूरी कमाने में व्यस्त और तीन रूपया किलो वाला चांवल खाने में मस्त है। वोट के लिये दारू, पईसा पाता है वो अलग।

तो मियां समझ में आ गयी होगी बात, फ़ुल डिटेल में। बलात्कार का आनंद लेने का हमारा फ़ार्मूला अपनाओ और जीवन सुखी बनाओ। अब इतना निराश भी मत हो भाई। अपने बच्चो के लिये अच्छा भारत चाहते हो? तो अनाथालय जाकर दस बच्चो को लेकर उनको रेडी करो, आंदोलन के लिये। पूरी नजर रखना कि कही कोई कानून का उल्लंघन न कर पायें। और उनको किसी धर्म का भी मत बनाना। नाम रखना भी तो राम अली क्राईस्ट टाईप का। फ़ूल प्रूफ़ प्लानिंग से काम होगा तो पच्चीस साल बाद लड़ने लायक नेता रेडी हो ही जायेंगे। 




Monday, May 21, 2012

महिला मुक्ती मोर्चा से मुटभेड़





साहब हम नुक्कड़ छोड़ कहीं आते जाते नही| पर मुसीबत है कि कोई न कोई बहाने से हमारे पास चली ही आती है। एन ऐसे एक बुरे दिन, हम चैन से गुजरती हुई सुंदरियो को निहारते खड़े ही थे। कि मिसेज रूनझुन जो कि शहर महिला मुक्ती मोर्चा की अध्यक्षा हैं, की नजर हम पर पड़ गयी। नजर तो हमारी भी उन पर पड़ गयी थी।  लेकिन साहब सुंदरियो को देखते ही हमारा दिमाग काम करना बंद कर देता है। नही तो हम पहले ही कट लिये रहते। खैर साहब मिसेज रूनझुन काफ़ी दिनो से हम पर खफ़ा थी। कोई उनका कान भर दिया था कि दवे जी महिलाओ को अत्याचारी बताने वाला लेख लिखते हैं। सो हम पर  चढ़ दौड़ी, बोलीं - "क्यों दवे जी आपको शर्म नही आती।  21 सदी में रहते हैं और महिलाओं के बारे में उल्टा सीधा लिखते हैं।" हमने कहा -"किस ने कहा आपसे, जरूर हमारे दुश्मनो की चाल है। हम तो महिलाओ की बड़ी इज्जत करते है। अब घर के कामो में पत्नी का हाथ बटाते हैं,  यही लिखते हैं। बस यही गुनाह है हमारा।"

मिसेज रूनझुन उलझन में पड़ गयी। पर उनकी खबर पक्की थी सो वे टस से मस नही हुईं।  कहने लगी- " नही हमें पक्की खबर है।  आप लोगो को सलाह देते हो कि पत्नी की इज्जत मत करो और खुद भी महिलाओ की  इज्जत नही करते।"


हमने कहा - "हम लोगो से कहते हैं कि पत्नी की जितनी इज्जत करनी चाहिये उतनी इज्जत कीजिये।"  मिसेज रूनझुन तमतमा उठीं- " जितनी इज्जत करनी चाहिये से क्या मतलब है आपका ?" हमने कहा - " अब मैडम आदमी औरत की जियादे ही इज्जत करने लगेगा तो दुनिया में बच्चे पैदा होना बंद नही हो जायेंगे। आप ही सोचिये कि कहीं इज्जत करना ज्यादा हो गया और पति ने  पत्नी को देवी मां बना लिया। फ़िर कैसा हाहाकार मच जायेगा दुनिया में।" मिसेज रूनझुन सकपका गयी बोली अच्छा इसे छॊड़िये ये बताईये दहेज प्रथा के बारे में आपका क्या विचार है। हमने कहा -"मैडम, अब ये बारे मे विचार वो लोग करते है जिनका शादी नही हुआ है। हम तो शादी शुदा हो हुआकर कबाड़ में पड़े हैं। लेकिन हमारी युवाओ को यही सलाह रहती है कि  बेटा भूले से दहेज नही लेना। वरना जिंदगी भर सुनना पड़ेगा कि फ़ला चीज मेरे पापा ने दी थी, आपसे तो खरीदी ही नही जाती।"


मिसज रूनझुन ने अगला सवाल दागा - "दवे जी एक्स्ट्रा मैरिटल अफ़ेयर के बारे में आप क्या सोचते है यह बताईये।"  हमने अमिताभ बच्चन की तरह कमर झटक कर कहा - "जिस को भी प्यार आये जब चाहे चली आये प्रेमनगर दवे जी की खोली नंबर 420।" मिसेज रूनझुन भड़क गयी - "क्या बकवास कर रहे हो आप दवे जी।"  हम भी भड़क गये -"और आप क्या कर रही है। कभी सोचा है आपने कि जिन महिलाओ के पति ऐसे संबंध बनाते है उन बेचारियो पर क्या गुजरती है। इस तरह की महिला विरोधी मुद्दो पर चर्चा हमें नही करनी। विवाह एक पवित्र बंधन है उस के अलावा कोई संबंध चर्चा के योग्य भी नही।" अब मिसेज रुनझुन ने हमे बड़े सम्मान की नजरो से देखा। वाह कैसा उम्दा किस्म का पति है। काश दुनिया के सभी पति ऐसे ही होते। फ़िर उन्होने कहा- "वाह दवे मान गये, बड़े अच्छे विचार हैं आपके। अच्छा ये बताईये कि बलात्कार के विषय में आप क्या सोचते हैं। हमने कहा- "मिसेज रूनझुन, सत्य यही है कि बलात्कार टल न सके तो उसका मजा लेना चाहिये।" मिसेज रूनझुन क्रोध से लाल हो गयी, हमको पीटती उसके पहले हमने सफ़ाई पेश कर दी - " दरअसल बात यह है कि नेता देश की जनता के साथ जो आर्थिक बलात्कार कर रहे हैं वो तो टाला नही जा सकता। जिसको चुनो वही भ्रष्टाचार में भिड़ जाता है। ऐसे में विकल्प ही क्या बचता है। सो हमारा विचार है कि जनता को इस आर्थिक बलात्कार का मजा लेना चाहिये।  कि वाह राजा साहब क्या स्टीक स्कैम किया था  आपने 2G में। या कलमाड़ी की हौसला अफ़जाई करनी चाहिये। कि वाह कामनवेल्थ की वेल्थ किस खूबसूरती से लूटी, लाजवाब खेला किया मजा आ गया। अधिकरियो से कहना चाहिये कि कि जरा प्रेम से लूटो भाई पैसा जाने का दर्द हो। लेकिन मीठा मीठा, हमे हर्ट बस मत करना ।

मिसेज रूनझुन भड़क गयी हम महिलाओ के उपर हो रहे अत्याचारो की बात कर रहे है। और आप कहां पहुंच गये। हमने समझाया - "आप कहां टिकी हो मैडम, जिस देश के आदमी ही व्यवस्था के गुलाम है। उनके हक ही नेताओ और अधिकारियों के चंगुल मे फ़ड़फ़ड़ा रहे हो। उस देश की औरतो की आजादी की बात करना ही बेमानी है। और आप हैं कि दिन भर व्यर्थ परेशान रहती है।"  फ़िर हमने बात घुमाई - वैसे मिसेज रूनझुन मानना पडेगा आपके पतिदेव को। हम इतनी सुंदर महिला के पति होते तो एक मिनट भी अकेला न छोड़ते अपनी श्रीमति को। मिसेज रूनझुन अभी तक महिला मुक्ती में ही अटकी हुई थी। गुस्से से बोली- "आप का मतलब है कि आदमी को अपनी बीबी को चौबीस घंटे कैद में रखना चाहिये।" हमने माथा ठोक कहा -"हम कहते क्या है और आप समझती क्या है। हमारा मतलब था कि जिसकी बीबी आपकी तरह  खूबसूरत हो। वो अपनी श्रीमती से एक पल की जुदाई भी कैसे बर्दाश्त कर सकता है भला।"

मिसेज रूनझुन शर्मा गयी - " आप तो हमे खामखा चने के झाड़ में चढ़ा रहे है। आदमी को कामधंधे पर जाना होता है कि नही। वो सब छोड़िये दवे जी, यह बताईये कि हम महिला मुक्ती आंदोलन को कैसे आगे बढ़ायें।"
हमने सलाह दी - "बात ऐसी है मैडम, कि ये सब मुद्दे कीजिये साईड। इन सब से फ़ोकट बातचीत के अलावा कुछ होना जाना नही है। आज कल हाट मुद्दो का जमाना है। हेडलाईन देखिये और उस हिसाब से बिगुल बजाईये। जैसे उ जोहल हमीद का मामला हाट है, तो पिल जाईये बयान दीजिये। कि सिद्धार्त माल्या माफ़ी मांगे वरना उसके खिलाफ़ आंदोलन होगा। कुछ हेडलाईन न दिखे, तो ममता शर्मा टाईप "सेक्सी कहना गलत नही" बयान दे दीजिये। बवाल मच जायेगा और आप खुद ही हेड लाईन बन जायेंगी। नही तो कन्या भ्रूण हत्या या खाप पंचायत के पीछे लग लीजिये। टीवी शो में गला फ़ाड़िये। फ़िर देखिये कैसे आप महान बन जायेंगी फ़टाफ़ट।

प्रसन्न होमिसेज रूनझुन ने अगली समस्या बताई- "हमारे साथ महिलाये नही जुड़ती है। उसका उपाय बताईये कि कैसे उन्हे साथ लिया जाये। हमने कहा  -" आप भी न समझती नही हैं। देखिये आप पहले ही कितनी हसीन हैं। उपर से मेकअप कर लेती हैं। ऐसे में कौन महिला बदसूरत नजर आने आपके साथ नजर आना चाहेगी। सो थोड़ा टोन डाउन कीजिये, बिना मेकअप के रहिये उससे साथी महिलाएं भी खुश। हमारा  दर्द भी कुछ कम होगा, कि हाय हमें श्रीमती आपकी तरह खूबसूरत क्यों न मिली।


मिसेज रूनझुन शर्मा कर बोलीं - आप भी न दवे भईया बड़े मजाकिया है। चलिये अब मै चलती हूं। आईयेगा भाभी जी को लेकर कभी हमारे घर। हमारे हसबैंड को बड़ा अच्छा लगेगा आपसे मिल कर। इतना सुना साहब कि हमारा दिल टूट गया।  उपर से बगल में खड़े आसिफ़ भाई ने और टांट कस दिया कि -"दवे जी अल्लाह ने औरतो को आदमी पहचानने की गजब नेमत दी हुई है। लंपटो को वे तड़ से भाई बना लेती है। "






Monday, May 14, 2012

वीर्यवान एन डी तिवारी का खून




साहब हिंदुस्तान बड़ा गजब मुल्क है। जाती धर्म की विविधता के साथ यहां विचित्र लोगो की भी कोई कमी नही, भांती भांती के  पाये जाते हैं। अब ताजा मामला देखिये एक कह रहा है- "फ़लां मेरा बाप है"। फ़लां कह रहा है कि- "नही, मै इसका बाप नही।" अब इन तथाकथित बाप बेटे के लफ़ड़े से देश की सत्ताधारी पार्टी का चेहरा काला हो रहा है। लोग बोलते हैं कि हाय इस महान देश की महान पार्टी के फ़लां नेता अईसा है। तो बाकी कैसे होंगे। फ़ेर ऐसे लोगो को और दुखी करने के लिये हर महिने कोई न कोई सीडी मार्केट में आ जाता है। चाल चरित्र और चेहरा वाला महान विपक्षी पार्टी भी खामोशी से इस लफ़ड़े के सलटने के इंतजार में है। आखिर सीडी का क्या है, किसी का भी बन सकता है। और चाल चेहरा चरित्र तो घोषणापत्र का मैटर है नेताओ का थोड़ी।

खैर साहब बात भटक गयी, ये तिवारी साहब अपना खून देना नहीं चाहते, पता नही क्यों ? जमाना तो जाने चुका है उनका पराक्रम। हैदराबाद के राज्यपाल रहते उ एक नही दो दो षोडसी कन्याओ के साथ रास लीला रचाते आन रेकार्ड सीडी में मौजूद हैं। सो इज्जत वाला मामला तो अब है नही। अब किसी को अपना बेटा मानने से इंकार का कारण हो क्या सकता है? अपनी छोटी से खोपड़ी में इतना लाईट जरूर जलता है कि बेटा निकला तो संपत्ती में हिस्सा बाटा मांग लेगा। पर इस बुढ़ापे में "राम" नाम के अलावा कौन संपत्ती काम आने वाला है। जा तो आखिर बेटा को रहा है न। और पूरा जिंदगी  नोट सूते हैं,  पूरा व्हाईट में तो होगा नही। अधिकांश मामला ब्लैक में ही होता है। उ तो अक्क्षुण रहेगा आफ़िशियल बच्चो के पास। एक संभावना यह भी बनती है कि आफ़िशियल बच्चे पांच गांव भी नही देंगे वाला दुर्योधनी स्टैंड लेकर बाप के सामने अड़ गये हों। खैर अब तिवारी जी का खून भारी संकट में है। कोर्टवा अड़ गया है, पुलिस भेज कर भी निकाले लेगा। वैसे आज कल पेनलेस इंजेक्शन आ गया है। खून देते टाईंम दिल में केतना भी दर्द हो, शरीर मे नही होगा। वैसे अब पुराना जमाना भी नही रहा, हर जगह मीडिया  आ गया है। पहले क्या था, जब हेरोईन का सैंपल जादू से पाउडर बन जाता था। तो तिवारी जी के खून के बदले गिरगिट का खून बन जाता। वैसे भी नेताओ का खून इंसानो से कमे मिलता है। माफ़ कीजियेगा, ये बात हम बेईमान नेताओ के विषय में कह रहे थे। ईमानदार नेताओ का खून तो सीधा गांधी या गोड़से (जो जिस विचारधारा का हो ) से मैच खाता होगा।

अब आ जाईये  इस बेटा के मामला में। वो भी गजब आईटम है। अरे भाई कांग्रेसी नेता है, भव्य इतिहास है ऐसे नेताओ का खिला पिला कर मामला सेटल कर लेने का। भाजपा टाईप थॊड़े के बंगारू टाईप फ़ंस गये। तो लगे हाय हाय करने कि हमारे खिलाफ़ साजिश हो गया। अरे भाई पईसा का लंबा आफ़र था। दस खोखे का मार्केट में खबर भी है। पर उ बेटवा है कि अड़ गया कि नहीं मै इसका बेटा बन कर ही रहूंगा। ले भाई, बेटा बन के मिलेगा क्या ? पईसा तो वैसे भी मिल रहा था। और वीर्य पुरूष का बेटा बनना आसान बात है क्या। हमारे यहां तो मुहावरा भी है। जैसा बाप वैसा बेटा। सभ्य समाज अपनी बेटियो को दस कोस दूर रखेगा। कि भाई वीर्य पुरूष का बेटा है। कही बाप की तरह खोंसू न हो। जो मिलेगा वही मन में सोचेगा। इतने साल बाद बाप मिला बेचारे को, वो भी कैसा लंपट। अरे भाई कांग्रेसी का बेटा होने का मतलब थोड़े है कि विरासत में मंत्री- उंत्री बन जाओगे। उसके लिये राहुल उर्फ़ पप्पू के टाईप चांदी का चमची मुंह में ले गांधिये परिवार में पैदा होने से काम होता है।

खैर साहब हिंदुस्तान है, यहां कुछ भी हो सकता। और ये नेता मंत्री भी न दूर- दर्शन देखना चाहिये। राष्ट्रीय चैनल है, अच्छा सलाह- उलाह देता है। कल ही आ रहा था- "जरा सी सावधानी, जिंदगी भर आसानी।" चलिये साहब जियादे बात करने का आदत तो हमको है नही। ये फ़ेस बुकिये हमको कोचक के खामखा उल्टा सीधा लिखवा देते हैं।कल को ये न हो कि दवे जी संसद का अपमान कर रहे हैं।



Wednesday, May 9, 2012

आओ मुसलमानो से बदला चुकाएं

सोशल मीडिया में आग उगलते घूम रहे लोगो की कमी नही है। ये लोग अलग अलग धर्मो से वास्ता रखते है और अपने धर्म के पूर्वजो पर हुये अत्याचार का बदला चुकाने इनकी भुजाये फ़ड़क रही होती है। लेकिन इनकी भुजाये चाहती है कि बाकियो की भी भुजाये फ़ड़के। ताकी अकेले बदला चुकाने का में होने वाला जोखिम बाकियो के साथ आ जाने से कम हो जाये। इसे एक तरह का इंश्योरेंस भी कहा जा सकता है। ऐसे लोग अमूमन भावुक होते है जिन्हे किसी संगठन विशेष के प्रोपोगेंडा अभियान ने उत्तेजित किया होता है। मेरे पिछले लेख में ऐसे ही एक सज्जन ने टिप्पणी की कि दवे जी आपकी मां बहनो से किसी ने बलात्कार किया हो। और उस बात को काफ़ी समय गुजर गया हो। तो क्या आप उसे भूल जायेंगे। एक दूसरे सज्जन ने टीपा कि जयचंद जैसे गद्दार आज भी है। असभ्य शब्दो मे इसे कहा जाये तो दवे जी हिंदु धर्म के गद्दार है लिखा गया था। तो चलिये आज इस मामले पर चर्चा कर ली ही जाये कि बदला कैसे चुकायें।

इतिहास का बदला मुसलमानो से चुकाने का खयाल कोई बुरा खयाल नही है। हजारो सालो का इतिहास बहुत से लोगो को बहुत से लोगो से बदला करने के लिये प्ररित करने में सक्षम है। और अगर कोई चाहता है कि मुसलमानो से बदला चुकाया जाये। तो फ़िर वही बदला चुकाने के हकदार वे दलित भी है। जिन पर उंची जाती के हिंदुओ ने सदियो तक छुआछूत से लेकर क्या क्या जुल्म नही ढाये। मुंशी प्रेमचंद से लेकर अदम गोंडवी  की अनुपम कृतियां आपको इस की झलके दिखा सकती हैं। या उनसे आप ये कहेंगे कि-" हे दलितो कहा सुना माफ़ करना ।"और मुसलमानो से कहेंगे कि- "रै मुसलमान हम कहा सुना माफ़ नही करेंगे।"

चलिये अब आगे भी चला जाये। दलित वाला मामला तो हिंदुओ का आपसी मामला है। और मुसलमान आपसी नही हैं। भला जिस "हिंदु का खून न खौले खून नही वो पानी है" वाला संगठन विशेष का नारा किस तरह भुलाया जा सकता है। अब देखना यह है कि जिन लोगो के उपर ये जुल्म हुये उनका क्या हुआ। आखिर उनका बदला ही न चुकाने के लिये खून खौल रहा है। उनका बना साहब ये कि उन्हे मुसलमान बना दिया गया तलवार की जोर पर। और जब आक्रमणकारी लौट जाते थे। तब उस समय के हमारे हिंदु ब्राह्मण जिनमे से किसी एक का वंशज मै भी हूं। उन्हे हिंदु धर्म में वापस लेने से मना कर देते थे। बने फ़ायदे के लिये कुछ जमींदार राजा व्यापारी भी। पर ऐसे लोगो को प्रतिशत बहुत कम है आखिर हजारो मे एक आदमी ही न अमीर हो सकता है।  जिस कश्मीर के लिये संगठन विशेष का नारा है "दूध मांगोगे तो खीर देंगे, कश्मीर मांगोगे तो चीर देंगे।" उसी कश्मीर में जब जबरदस्ती मुसलमान बनाये गये लोगो ने धर्म वापसी करना चाहा। तो आदरणीय राजपुरोहित जी नदी मे कूड गये। आपके उपर आक्रमणकारी कौन थे अरबी, तुर्क, मंगोल  और भारत के मुस्लमानो मे से कितने अपनी वंश रेखा उन से जोड़ सकते हैं। अब मेरे खून खौलाने वाले भाईयो क्या जिनके उपर हुये जुल्म का बदला भुंजाना है उन्ही को मारोगे। अरे भाई जरा हवाई जहाज का इंतजाम करो। चलते हैं तुर्की मंगोलिया अफ़गानिस्तान। वहा जाकर खून खौलायेंगे, आप लोग आत्मघाती हमलावर बन जाना। दवे जी  आपका साथ देने के लिये लव जिहाद कर आयेंगे एकाध सुंदरी से बियाह कर लेंगे। 

कई स्वयंभू राष्ट्रभक्त मांग रखते है कि मुसलमान यह माने कि उनके उनके पूर्वज हिंदु थे। अरे भाई क्यो मानेंगे?  हमी लोग तो मना कर दिये थे कि अब तुम हिंदु नही रहे मुसलमान हो गये हो। इतनी सदियो से जो इंसान जिस धर्म मे रच बस गया है उसको अपना धर्म निभाने दो, हम अपना निभायें। हम  गायें वंदे मातरम तो मुस्लिम गायें बंदा ए मातरम, झगड़ा खत्म। कभी तो मैं सोचता हूं कि कहीं ये संगठन विशेष वालो और मुसलमानो के संगठन विशेष वालो के पूर्वज एक ही तो नही थे। दोनो के लक्षण केतना मिलते जुलते है। दोनो विरोधी धर्म के खिलाफ़ दिन भर आग उगलते है। दुनो प्रोपोगेंडा के लिये एक से एक नायाब कहानिया गढ़ लाते है। वो पाकिस्तान में इस्लामिक राष्ट्र बनाने में भिड़े है। ये हिंदुस्तान में हिंदु राष्ट्र बनाने को कमर कसे हुये है। मजे की बात ये है ये दोनो एक दूसरे का हवाला दे, हमसे कहते कि लड़ने मरने तैयार हो जाओ। अरे भाई तुम लोग आपस में काहे नही लड़ मर जाते फ़ोकट हम लोगो का खून खौलाने में लगे रहते हो।

चलिये अब और आगे चले इस पर विचार करें। कि कैसे करोड़ो आदमियो के मुल्क में महज कुछ लाख हमलावर आकर इस तरह खून खराबा कर सकते थे। कर ऐसे सकते थे कि हम जात पात में,  राज्यो में बटे हुये थे। आपस में लड़ मर रहे थे। हम में से कुछ आपसी झगड़े के कारण दुश्मनो का साथ देते थे। आज आजादी के आंदोलन मे एक सूत्र भारतीयता से बंध हम एक है, मजबूत है। यदि हम फ़िर आपस में धर्म के नाम पर भाषा के नाम पर जात के नाम पर लड़ने लगें। तो फ़िर हमारे मुल्क के हालात वैसे ही हो जायेंगे जिसमे दुश्मन हमारा सीना चीर सकता है।

अरे भाई हिंदु हो तो ईश्वर से डरो, मुसलमान हो तो खुदा का खौफ़ करो। क्यो आने वाली नस्लो के लिये जहर की बुनियाद रखते हो। अपने घर से मच्छर, चीटी, काकरोच तो हम खत्म नही कर सकते । कैसे हिंदु मुसलमानो को खत्म कर लेगा या मुसलमान हिंदुओ को खत्म कर लेगा। और जब रहना साथ ही तो भाई बनकर रहने मे भलाई है कि दुश्मन बन कर। अभी भी तर्क दिये जा सकते हैं कि हम तो शांती से रहते हैं। सामने वाला फ़लां करता है, ढिकां करता है। तो भाई कानून व्यवस्था है कि नही देश मे। जो गलत कर रहा है उसकी रिपोर्ट की जा सकती है कि नही। आतंकवाद को अंजाम उसी कौम को सबसे अधिक उठाना पड़ता है जो इसमे शामिल हो। भरोसा नही तो पाकिस्तान को देख लें हमारे यहां आतंकवद एक्सपोर्ट करने का कारखाना आज उसे ही तबाह कर रहा है कि नही। और हां यह भी याद रहे इन नेताओ के भी पूर्वज एक ही है चाहे वो मुसलिम नेता हो या हिंदु नेता। इतिहास उठा कर देख लीजियेगा तब भी ये ऐश ही कर रहे थे और आज भी कर रहे हैं।