साहब हुआ कुछ ऐसा कि मनमोहन सिंग साहब ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री गिलानी साहब को शांती पुरूष करार दिया। बस क्या था पूरे देश में हल्ला मच गया। लोग पानी पी पी कर कोसने लगे, कोई प्रधानमंत्री की इज्जत अफ़जाई कर रहा था और कोई पाकिस्तान को लानते भेजने में लगा था। कांग्रेस पार्टी की गिरी हुयी टीआरपी अजमल कसाब के बराबर पहुंच गयी। आनन फ़ानन में कांग्रेस कोर कमेटी की बैठक हुयी, पाकिस्तान से अगली वार्ता सर पर थी और समस्या गंभीर थी। किसी ने सुझाव दिया कि भाई दवे जी नाम के एक फ़ोकटचंद सलाहकार हैं उनसे राय ली जाये।
बुलावा मिलते ही हम तड़ से पहुंच गये, समस्या सुनकर हमने कहा - " आप हमे मुख्यवार्ताकार बना दीजिये हम मामला संभाल लेंगे।" कांग्रेस के मुंशी मैनेजर चढ़ बैठे - " इस अनुभव हीन आदमी को वार्ताकार बनाना, क्या बेवकूफ़ी की बात है, इसे कूटनीती का क भी नही आता होगा।" हमने देश की प्रधानमम्मी से कहा - "मम्मी जी, ये सब इतने शिवाजी पाले हैं आपने, क्या हालत कर दी है आपकी इन लोगो ने। आज शनी भगवान चाहें तो भी आपकी पार्टी की इससे ज्यादा दुर्गती नही कर सकते, हमको मौका दीजिये हम सब संभाल लेंगे।" लंबी जद्दोजहद के बाद हमारा नाम तय हुआ, हमारे नाम की घोषणा होते ही पत्रकारों ने हमे घेर लिया।
एक ने पूछा - " इस बातचीत से आपकी क्या उम्मीदें हैं।"
हमने कहा - " पाकिस्तान से किसी बातचीत का कोई फ़ायदा नही।"
अचकचाये पत्रकार ने पूछा- " फ़िर आप बातचीत क्यों करने जा रहे हैं"
हमने कहा- " ताकि अमेरिका की आत्मा को शांती मिले "
हड़बड़ाये कॄष्णा साहब कोई दखल देते इसके पहले ही हमने अगली लाईन जड़ दी- " जब तक वार्ता में पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष और आई एस आई प्रमुख न होंगे, हम पाकिस्तान से बात नहीं करेंगे। और अगर पाकिस्तान नही सुधरता तो हमें सुधारना भी आता है।"
हमारे इस बयान के बाद कांग्रेस मुख्यालय से लेकर अमेरिका तक कूटनीतिक धमाका हो गया। चारों ओर से दबाव पड़ने लगा, प्रधानमम्मी पर उनके मुंशी मैनेजर चढ़ बैठे- " देखा मम्मी जी, हम न कहते थे, आपने किसी भी रोडछाप आदमी को वार्ताकार बनाकर भूल कर दी है।" भारी दबाव में आयी प्रधानमम्मी ने हमें फ़ोन लगाया - " दवे जी आप ने ये क्या कर दिया, पहले ही हम इतनी मुसीबत में हैं और अब ये नया संकट आ खड़ा हुआ है।" हमने कहा - "मम्मी जी आप कल सुबह तक इंतजार करें, अभी आप तनाव न लीजिये।"
अगले दिन सुबह अखबारों की हेडलाईन -
टाईम्स आफ़ इंडिया - " भारत का मुंहतोड़ जवाब", द हिंदू - " चौसठ साल बाद उठाया सही कदम", दैनिक जागरण - "सकते में पाकिस्तान", दैनिक भास्कर - "प्रधानमम्मी का सही कदम, इंदिरा गांधी की यादे ताजा"
राजनैतिक दलो के बयान
भाजपा- "कमजोर प्रधानमम्मी ने देर से सही कदम उठाया"
कम्यूनिस्ट पार्टी - " अमेरिका के दबाव मे न आकर, हमें कदम पीछे नही खीचना चाहिये",
संघ - "प्रधान मम्मी के अगले कदम की प्रतीक्षा, साहस पूर्ण सही कदम"
विभिन्न देशों के बयान
अमेरिका - " भारत और पाकिस्तान की समस्या बातचीत और सामंजस्य से ही सुलझ सकती है"
ब्रिटेन - "परमाणू शक्ति संपन्न देशो को संयम से आपसी संबंध सुधारने चाहिये"
चीन - "चीन पाकिस्तान का अभिन्न मित्र है, संकट की घड़ी मे हम पाकिस्तान का पूरा साथ देंगे"
अगले दिन जब हम कांग्रेस मुख्यालय पहुंचे तो मंजर बदला हुआ था। अपार जनसमर्थन से प्रधानमम्मी का चेहरा दमक रहा था और मुंशी मैनेजर दाये बायें झांक रहे थे। मन मार कर सबने हमे बधाई दी, विदेश मंत्री बार बार अमेरिका के और दुसरे देशो के पड़ते दबाव का जिक्र कर रहे थे। हमारी अमेरिका की विदेश मंत्री चची हिलेरी क्लिंटन से बात कराई गयी। हम पर वे बरस पड़ी दो परमाणू संपंन्न देशो के बीच तनाव का अंजाम, दक्षिण पूर्व एशिया के हालातो की दुहाई देने लगीं। हमने उन्हे भरोसा दिलाया कि हम वार्ता को शांती पूर्ण तरीके से निपटायेंगे और वार्ता खत्म होते ही दोनो देशो के संबंध सुमधुर हो जायेंगे।
खैर साहब वार्ता तो होनी ही उसके बिना पाकिस्तान के दान दाता अमेरिका को चैन नही पड़ता। भारी दबाव के बीच मन मार कर पाकिस्तान प्रतिनिधी मंडल भेजने को तैयार हुआ। हमने दुनिया भर के समुद्रतटों का फ़ोटू देख मारीशस चुना। जब हम एयरपोर्ट पहुंचे तो देखा विदेश मंत्री के साथ तीस चालीस अधिकारी भी झोला पकड़ जाने को रेडी थे। हमने कहा- " ये लोग क्या करेंगे भाई।" विदेश मंत्री जी बोले -"ये लोग अलग अलग मंत्रालयो से है।" हमने कहा- "दादा जी वहां इनका क्या काम, खाली दारू मुर्गा चबा के समुद्र तट मे सुंदरियों को ताड़ के लौट आयेंगे। इनकी जरूरत नही फ़ोकट देश का पैसा खराब होगा।"
विमानतल पर पत्रकारो ने हमसे पूछा - " दवे जी, बिना अधिकारियों के क्या बात होगी"
हमने कहा- " दॊ टूक बात करने के लिये अफ़सरो की फ़ौज नही चाहिये। हमारा संदेश छोटा और साफ़ है , हरकतों से बाज आओ, आतंकवाद नही शांती और विकास का रास्ता पकड़ो।"
उसके बाद हम लोग मारीशस पहुंचे, हमसे पूछा गया कि पाकिस्तानी प्रतिनिधी मंडल में पहले किससे मुलाकात करना पसंद करेंगे । हमने तड़ से कहा- "हिना रब्बानी खर से।" मुलाकात तय होते ही हमने सेंट परफ़्यूं छिड़का काला चश्मा लगाया और पहुंच गये हिना मैडम से मीठी मीठी बाते करने। मुलाकात भी हुयी, बाते भी हुयी, पर औरतों को भी अल्लाह ने गजब ताकत दी है, वे लंपटो को पहचान ही जाती हैं। खैर साहब, कहें क्या वार्ता के बाद हिना मैडम ने कॄष्णा साहब से हाथ भी मिलाया, साथ फ़ोटॊ भी खिंचाई और हमें दूर से ही नमस्कार कर दिया। आप हमारे लिये दुखी न हों, हमे सुंदरियों द्वारा दूर से नमस्कार किये जाने की आदत सी हो चुकी है। विदेश मंत्री जी इसे अपनी कूटनीतिक विजय समझ रहे थे, हमसे मुस्कुरा कर बोले- दवे जी कूटनितीक जगत में मंत्रियों की ही आपस में बात होती है।" हम जले भुने थे ही हमने कहा - "दादा जी ज्यादा मत मुस्कुराओ, नही तो मुह की सुपारी और दांत दोनो गिर जायेंगे।"
खैर साहब अगला दौर हमारे और पाकिस्तान की सेना के बीच था। माहौल तनाव पूर्ण था, सेना प्रमुख जनरल कियानी और आईएसआई प्रमुख जनरल पाशा को हमने ब्लू लेवल व्हिस्की, कीमती सिगरेटॊ से लेकर चांदनी चौक की सोहन पापड़ी तक तमाम चीजे भेंट की। फ़िर हमने कहा - "गुरू, क्यों न एक दो पैग शैग लगा लिये जाये।" दोनो जनरलों ने हमे विश्व के तीसरे अजूबे की तरह देखा। जनरल कियानी बोले- " हम पाकिस्तानी हैं, बातचीत होशो हवास में करते है।" हमने कहा- "जनरल साहब, बात शात क्या करनी जैसा चल रहा है चलने दो। हम तो बधाई देने आये हैं, वाह गुरू क्या चाल चली क्या फ़साया अमेरिका को अफ़गानिस्तान में, मान गये।" तारीफ़ सुन कर दोनो जरा ढीले हुये, आधे घंटे यहां वहां की बात होने के बाद हमने कहा- " यार जनरल साहब आपको जो करना है करते रहो और हम भी करते रहेंगे। पर ये चीजे कब और कहां करनी है इस पर तो समझौता हो सकता है की नही। " बात दोनो के भेजे में घुसने लगी- " पाशा साहब बोले- "हां, इस पर बात हो सकती है, आप बतायें क्या चाहते हैं" हमने कहा -"भाई आप लोगो को राजनैतिक दलो को सत्ता से दूर रखना है और हम लोगो को विपक्षी पार्टियों को। धमाका तो हो पर वहां हो जो सरकार को नही, विपक्ष को मुसीबत में डालने वाला हो।" इस विषय पर आगे तकनीकी चर्चा हुयी हमने केवल विपक्ष शासित प्रदेशो मे बम धमाका करने का प्रस्ताव पास करा लिया और पाकिस्तानियों की भी कुछ मांगे मान ली। ये बात भी तय हो गयी कि संबंध इस स्थिती से न सुधारना है न बिगाड़ना है। हमारी आड़ लेकर जनरल साहब अफ़गान बार्डर से फ़ौजें हटाने की धमकी देते रहें और अमेरिका से डालर वसूलते रहें और हम देश में देश भक्ति की हवा बहाकर और पाकिस्तान से लड़ाई का फ़िजां बनाकर तमाम मामलों से जनता का ध्यान हटा दें। आखिर मे जनरल कियानी बोले- "चलिये अब मीडिया के सामने कुछ अच्छी अच्छी बाते कर ली जायें।"
हमने कहा- "जनरल साहब, क्या किये कराये में पानी फ़ेरना है, ऐसा किया तो आप के यहां के हिंदू विरोधी चरम पंथी और हमारे यहां के मुस्लिम विरोधी चरम पंथी अपना अपना राजनैतिक एजेंडा लेकर पिल पड़ेंगे। और मीडिया भी कोसने को ही देश भक्ति मानती है ऐसा करने से अपने कुर्कमो का बोझ पत्रकारों के दिल से हल्का जो हो जाता है।" जनरल साहब बोले- "बात तो सही है, फ़िर किया क्या जाये।" हमने कहा- "करना ये है कि यहां से बाहर निकल कर एक दूसरे को कोसना है एक दूसरे के लिये धमकियां देनी है। आखिर में दुनिया भर से दबाव पड़ेगा तो दोनो फ़िर अगली वार्ता के लिये सहमत हो जाना है।"
जनरल कियानी मुस्कुराते हुये बोले- "मिया दवे जी, आप लालबहादुर शास्त्री के बाद दूसरे आदमी हो जिसे पाकिस्तान मे पैदा होने था, गजब खोपड़ी लगाई है भाई।" हमने कहा- "कियानी साहब, भाई कहा है तो हमारा एक काम करना होगा। जब फ़िर से वार्ता करने की बात पर सहमति बन जाये तो जरा हिना रब्बानी खर मैडम के साथ हाथ मिलाते और मुस्कुराते हुये हमारा एक फ़ोटॊ सेशन करवा दीजियेगा।"
चलिये मामला हमारे हिसाब से जम भी गया और हिना मैडम के साथ फ़ोटो सेशन भी हो ही गया। आप सोचते होंगे कि दवे जी हिना मैडम के साथ फ़ोटो खिचाने को इतने आतुर क्यों तो साहब जब चौका बर्तन का बोझ ज्यादा हो जाये और और पति किसी सुंदरी के साथ खिंची अपनी फ़ोटो के सामने खड़ा नजर आये, तो सुना है बीबियां शौहर से कुछ समय के लिये बड़ी मुहब्बत से पेश आती हैं।
रही बात भारत पाकिस्तान संबंधो की, तो साहब इन बातचीतों से कुछ होना जाना नही है। मुद्दो को हल करने की इच्छा ही न हो तो राह निकल ही नही सकती। इच्छा हो भी जाये तो दोनो तरफ़ की मीडिया तिल का ताड़ बनाकर हर वार्ता को ढेर कर देती है। मीडिया साथ हो भी जाये तो दोनो तरफ़ के विपक्षी और पाकिस्तान के सेना इस दोस्ती मे सेंध लगाने से बाज नही आते। आखिर अपना हित देश के हित के आड़े जो आ जाता है। इसलिये इस बातचीत से हमने कम से कम देश की प्रधान मम्मी भला किया की नही।
बुलावा मिलते ही हम तड़ से पहुंच गये, समस्या सुनकर हमने कहा - " आप हमे मुख्यवार्ताकार बना दीजिये हम मामला संभाल लेंगे।" कांग्रेस के मुंशी मैनेजर चढ़ बैठे - " इस अनुभव हीन आदमी को वार्ताकार बनाना, क्या बेवकूफ़ी की बात है, इसे कूटनीती का क भी नही आता होगा।" हमने देश की प्रधानमम्मी से कहा - "मम्मी जी, ये सब इतने शिवाजी पाले हैं आपने, क्या हालत कर दी है आपकी इन लोगो ने। आज शनी भगवान चाहें तो भी आपकी पार्टी की इससे ज्यादा दुर्गती नही कर सकते, हमको मौका दीजिये हम सब संभाल लेंगे।" लंबी जद्दोजहद के बाद हमारा नाम तय हुआ, हमारे नाम की घोषणा होते ही पत्रकारों ने हमे घेर लिया।
एक ने पूछा - " इस बातचीत से आपकी क्या उम्मीदें हैं।"
हमने कहा - " पाकिस्तान से किसी बातचीत का कोई फ़ायदा नही।"
अचकचाये पत्रकार ने पूछा- " फ़िर आप बातचीत क्यों करने जा रहे हैं"
हमने कहा- " ताकि अमेरिका की आत्मा को शांती मिले "
हड़बड़ाये कॄष्णा साहब कोई दखल देते इसके पहले ही हमने अगली लाईन जड़ दी- " जब तक वार्ता में पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष और आई एस आई प्रमुख न होंगे, हम पाकिस्तान से बात नहीं करेंगे। और अगर पाकिस्तान नही सुधरता तो हमें सुधारना भी आता है।"
हमारे इस बयान के बाद कांग्रेस मुख्यालय से लेकर अमेरिका तक कूटनीतिक धमाका हो गया। चारों ओर से दबाव पड़ने लगा, प्रधानमम्मी पर उनके मुंशी मैनेजर चढ़ बैठे- " देखा मम्मी जी, हम न कहते थे, आपने किसी भी रोडछाप आदमी को वार्ताकार बनाकर भूल कर दी है।" भारी दबाव में आयी प्रधानमम्मी ने हमें फ़ोन लगाया - " दवे जी आप ने ये क्या कर दिया, पहले ही हम इतनी मुसीबत में हैं और अब ये नया संकट आ खड़ा हुआ है।" हमने कहा - "मम्मी जी आप कल सुबह तक इंतजार करें, अभी आप तनाव न लीजिये।"
अगले दिन सुबह अखबारों की हेडलाईन -
टाईम्स आफ़ इंडिया - " भारत का मुंहतोड़ जवाब", द हिंदू - " चौसठ साल बाद उठाया सही कदम", दैनिक जागरण - "सकते में पाकिस्तान", दैनिक भास्कर - "प्रधानमम्मी का सही कदम, इंदिरा गांधी की यादे ताजा"
राजनैतिक दलो के बयान
भाजपा- "कमजोर प्रधानमम्मी ने देर से सही कदम उठाया"
कम्यूनिस्ट पार्टी - " अमेरिका के दबाव मे न आकर, हमें कदम पीछे नही खीचना चाहिये",
संघ - "प्रधान मम्मी के अगले कदम की प्रतीक्षा, साहस पूर्ण सही कदम"
विभिन्न देशों के बयान
अमेरिका - " भारत और पाकिस्तान की समस्या बातचीत और सामंजस्य से ही सुलझ सकती है"
ब्रिटेन - "परमाणू शक्ति संपन्न देशो को संयम से आपसी संबंध सुधारने चाहिये"
चीन - "चीन पाकिस्तान का अभिन्न मित्र है, संकट की घड़ी मे हम पाकिस्तान का पूरा साथ देंगे"
अगले दिन जब हम कांग्रेस मुख्यालय पहुंचे तो मंजर बदला हुआ था। अपार जनसमर्थन से प्रधानमम्मी का चेहरा दमक रहा था और मुंशी मैनेजर दाये बायें झांक रहे थे। मन मार कर सबने हमे बधाई दी, विदेश मंत्री बार बार अमेरिका के और दुसरे देशो के पड़ते दबाव का जिक्र कर रहे थे। हमारी अमेरिका की विदेश मंत्री चची हिलेरी क्लिंटन से बात कराई गयी। हम पर वे बरस पड़ी दो परमाणू संपंन्न देशो के बीच तनाव का अंजाम, दक्षिण पूर्व एशिया के हालातो की दुहाई देने लगीं। हमने उन्हे भरोसा दिलाया कि हम वार्ता को शांती पूर्ण तरीके से निपटायेंगे और वार्ता खत्म होते ही दोनो देशो के संबंध सुमधुर हो जायेंगे।
खैर साहब वार्ता तो होनी ही उसके बिना पाकिस्तान के दान दाता अमेरिका को चैन नही पड़ता। भारी दबाव के बीच मन मार कर पाकिस्तान प्रतिनिधी मंडल भेजने को तैयार हुआ। हमने दुनिया भर के समुद्रतटों का फ़ोटू देख मारीशस चुना। जब हम एयरपोर्ट पहुंचे तो देखा विदेश मंत्री के साथ तीस चालीस अधिकारी भी झोला पकड़ जाने को रेडी थे। हमने कहा- " ये लोग क्या करेंगे भाई।" विदेश मंत्री जी बोले -"ये लोग अलग अलग मंत्रालयो से है।" हमने कहा- "दादा जी वहां इनका क्या काम, खाली दारू मुर्गा चबा के समुद्र तट मे सुंदरियों को ताड़ के लौट आयेंगे। इनकी जरूरत नही फ़ोकट देश का पैसा खराब होगा।"
विमानतल पर पत्रकारो ने हमसे पूछा - " दवे जी, बिना अधिकारियों के क्या बात होगी"
हमने कहा- " दॊ टूक बात करने के लिये अफ़सरो की फ़ौज नही चाहिये। हमारा संदेश छोटा और साफ़ है , हरकतों से बाज आओ, आतंकवाद नही शांती और विकास का रास्ता पकड़ो।"
उसके बाद हम लोग मारीशस पहुंचे, हमसे पूछा गया कि पाकिस्तानी प्रतिनिधी मंडल में पहले किससे मुलाकात करना पसंद करेंगे । हमने तड़ से कहा- "हिना रब्बानी खर से।" मुलाकात तय होते ही हमने सेंट परफ़्यूं छिड़का काला चश्मा लगाया और पहुंच गये हिना मैडम से मीठी मीठी बाते करने। मुलाकात भी हुयी, बाते भी हुयी, पर औरतों को भी अल्लाह ने गजब ताकत दी है, वे लंपटो को पहचान ही जाती हैं। खैर साहब, कहें क्या वार्ता के बाद हिना मैडम ने कॄष्णा साहब से हाथ भी मिलाया, साथ फ़ोटॊ भी खिंचाई और हमें दूर से ही नमस्कार कर दिया। आप हमारे लिये दुखी न हों, हमे सुंदरियों द्वारा दूर से नमस्कार किये जाने की आदत सी हो चुकी है। विदेश मंत्री जी इसे अपनी कूटनीतिक विजय समझ रहे थे, हमसे मुस्कुरा कर बोले- दवे जी कूटनितीक जगत में मंत्रियों की ही आपस में बात होती है।" हम जले भुने थे ही हमने कहा - "दादा जी ज्यादा मत मुस्कुराओ, नही तो मुह की सुपारी और दांत दोनो गिर जायेंगे।"
खैर साहब अगला दौर हमारे और पाकिस्तान की सेना के बीच था। माहौल तनाव पूर्ण था, सेना प्रमुख जनरल कियानी और आईएसआई प्रमुख जनरल पाशा को हमने ब्लू लेवल व्हिस्की, कीमती सिगरेटॊ से लेकर चांदनी चौक की सोहन पापड़ी तक तमाम चीजे भेंट की। फ़िर हमने कहा - "गुरू, क्यों न एक दो पैग शैग लगा लिये जाये।" दोनो जनरलों ने हमे विश्व के तीसरे अजूबे की तरह देखा। जनरल कियानी बोले- " हम पाकिस्तानी हैं, बातचीत होशो हवास में करते है।" हमने कहा- "जनरल साहब, बात शात क्या करनी जैसा चल रहा है चलने दो। हम तो बधाई देने आये हैं, वाह गुरू क्या चाल चली क्या फ़साया अमेरिका को अफ़गानिस्तान में, मान गये।" तारीफ़ सुन कर दोनो जरा ढीले हुये, आधे घंटे यहां वहां की बात होने के बाद हमने कहा- " यार जनरल साहब आपको जो करना है करते रहो और हम भी करते रहेंगे। पर ये चीजे कब और कहां करनी है इस पर तो समझौता हो सकता है की नही। " बात दोनो के भेजे में घुसने लगी- " पाशा साहब बोले- "हां, इस पर बात हो सकती है, आप बतायें क्या चाहते हैं" हमने कहा -"भाई आप लोगो को राजनैतिक दलो को सत्ता से दूर रखना है और हम लोगो को विपक्षी पार्टियों को। धमाका तो हो पर वहां हो जो सरकार को नही, विपक्ष को मुसीबत में डालने वाला हो।" इस विषय पर आगे तकनीकी चर्चा हुयी हमने केवल विपक्ष शासित प्रदेशो मे बम धमाका करने का प्रस्ताव पास करा लिया और पाकिस्तानियों की भी कुछ मांगे मान ली। ये बात भी तय हो गयी कि संबंध इस स्थिती से न सुधारना है न बिगाड़ना है। हमारी आड़ लेकर जनरल साहब अफ़गान बार्डर से फ़ौजें हटाने की धमकी देते रहें और अमेरिका से डालर वसूलते रहें और हम देश में देश भक्ति की हवा बहाकर और पाकिस्तान से लड़ाई का फ़िजां बनाकर तमाम मामलों से जनता का ध्यान हटा दें। आखिर मे जनरल कियानी बोले- "चलिये अब मीडिया के सामने कुछ अच्छी अच्छी बाते कर ली जायें।"
हमने कहा- "जनरल साहब, क्या किये कराये में पानी फ़ेरना है, ऐसा किया तो आप के यहां के हिंदू विरोधी चरम पंथी और हमारे यहां के मुस्लिम विरोधी चरम पंथी अपना अपना राजनैतिक एजेंडा लेकर पिल पड़ेंगे। और मीडिया भी कोसने को ही देश भक्ति मानती है ऐसा करने से अपने कुर्कमो का बोझ पत्रकारों के दिल से हल्का जो हो जाता है।" जनरल साहब बोले- "बात तो सही है, फ़िर किया क्या जाये।" हमने कहा- "करना ये है कि यहां से बाहर निकल कर एक दूसरे को कोसना है एक दूसरे के लिये धमकियां देनी है। आखिर में दुनिया भर से दबाव पड़ेगा तो दोनो फ़िर अगली वार्ता के लिये सहमत हो जाना है।"
जनरल कियानी मुस्कुराते हुये बोले- "मिया दवे जी, आप लालबहादुर शास्त्री के बाद दूसरे आदमी हो जिसे पाकिस्तान मे पैदा होने था, गजब खोपड़ी लगाई है भाई।" हमने कहा- "कियानी साहब, भाई कहा है तो हमारा एक काम करना होगा। जब फ़िर से वार्ता करने की बात पर सहमति बन जाये तो जरा हिना रब्बानी खर मैडम के साथ हाथ मिलाते और मुस्कुराते हुये हमारा एक फ़ोटॊ सेशन करवा दीजियेगा।"
चलिये मामला हमारे हिसाब से जम भी गया और हिना मैडम के साथ फ़ोटो सेशन भी हो ही गया। आप सोचते होंगे कि दवे जी हिना मैडम के साथ फ़ोटो खिचाने को इतने आतुर क्यों तो साहब जब चौका बर्तन का बोझ ज्यादा हो जाये और और पति किसी सुंदरी के साथ खिंची अपनी फ़ोटो के सामने खड़ा नजर आये, तो सुना है बीबियां शौहर से कुछ समय के लिये बड़ी मुहब्बत से पेश आती हैं।
रही बात भारत पाकिस्तान संबंधो की, तो साहब इन बातचीतों से कुछ होना जाना नही है। मुद्दो को हल करने की इच्छा ही न हो तो राह निकल ही नही सकती। इच्छा हो भी जाये तो दोनो तरफ़ की मीडिया तिल का ताड़ बनाकर हर वार्ता को ढेर कर देती है। मीडिया साथ हो भी जाये तो दोनो तरफ़ के विपक्षी और पाकिस्तान के सेना इस दोस्ती मे सेंध लगाने से बाज नही आते। आखिर अपना हित देश के हित के आड़े जो आ जाता है। इसलिये इस बातचीत से हमने कम से कम देश की प्रधान मम्मी भला किया की नही।
क्या बात है अरुणेश भाई...
ReplyDeleteचुन चुन कर मोती ले आते हैं आप....
सादर बधाई.....
भाई दवे जी आपका ज़वाब नहीं आपने मम्मीजी की साख बचाई ब्लोगियों को नै ऊर्जा दी .मुबारक .
ReplyDeleteदवे जी अब दिग्विजय सिंह जी का क्या होगा उन्हें कौन घास डालेगा ?
ReplyDeleteपाकिस्तान तुम संघर्ष करो , हम तुम्हारे साथ हैं ...
ReplyDeletekya baat hai...gahra kataaksh
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