Sunday, April 24, 2011

आदिवासियों और बाघ का मुकदमा


आदिवासियो ने दूर दूर तक फ़ैले बांझ इमारती जंगलो में, वन विभाग के कोप से बचे हुये एक्का दुक्का फ़ल और फ़ूलदार पेड़ो से एकत्रित स्वादिष्ट फ़ल फ़ूलों और पत्तियो के चढ़ावे के साथ शिवगणो के प्रमुख नंदी जी की पूजा की। प्रसन्न होकर नंदी प्रकट हुये, आदिवासियो ने बिलखते हुये अपनी व्यथा सुनाई- "इन बाघो ने जीना हराम कर दिया है। पहले ही इन बाघो को बचाने के नाम पर हमारा जंगल में प्रवेश बंद कर दिया गया है। उसके बाद अब हमको  विस्थापित किया जा रहा है। उपर से ये बाघ हमारी सुंदर सुंदर गायो को मार के खा जाते हैं वो अलग। हमारे उपर भी हमला कर मार देते हैं, और तो और ऐसा होने पर शहरी बाघ प्रेमी खुश होते हैं। कि अच्छा मारा साले को, जंगल में घुसते हैं। ’हे नंदी’ शहरी पर्यावरणविदो और खदान पतियो को हम ही दुश्मन लगते हैं, आप हमारी रक्षा करें।

  इन सब बातो को ( खास कर सुंदर गायो वाली ) सुनकर नंदी के नथुने फ़ड़क उठे। वे तुरंत आदिवासियो का प्रतिनिधी मंडल लेकर कैलाश की ओर चल पड़े। यह खबर सुनते ही बाघो ने भीमाता पार्वती की वीआईपी ड्यूटी मे लगे अपने साथी के मार्फ़त अपने प्रतिनिधी मंडल को भी भेजा
कोलाहल सुन, चैन से सो रहे भोलेनाथ बाहर आये। नंदी ने बाघो पर आरोपो की झड़ी लगा दी,  सुंदर गायो के विषय पर तो वे बेकाबू ही हो गये थे। माता का प्राईवेट बाघ शेरू भी पीछे न था बोला- "ये आदिवासी बाघों को जहर दे देते हैं। गलती से कोई बाघ इनके गांव पहुच जाये तो लाठियो से पीट कर मार देते हैं। यहां तक की चैन से प्रेमालाप भी करने नही देते। पर्यटको की जिप्सी लेकर पीछे पड़ जाते हैं,  चोर शिकारियो तस्करो की मदद करते हैं वो अलग।"


भगवान शंकर बोले- "आदिवासियों, मै तुम्हारी कोई मदद नही कर सकता। बाघ राष्ट्रीय पशु है और तुम  राष्ट्रीय नागरिक तो छोड़ो नागरिक भी नही हो।  अगर तुम शहर जा कर झुग्गी में बस जाओ। तब तुम भारत के नागरिक बन जाओगे।  मैं तुमको ३ रूपये वाला सस्ता चावल, बच्चो को मध्यान भोजन बस्ता कापी और लड़कियों को साईकिल आदि दिलवा दूंगा। जंगल में रहोगे तो ताड़्मेटला जैसे जला दिये जाओगे और विपक्ष का नेता तो क्या मैं भी दस दिन तक वहां पहुच नही पाउंगा।" फ़िर भगवान ने कुछ नरम पड़ते हुये कहा- "बेटा सलवा जुड़ूम और नक्सलवाद की चक्की से बाहर निकलो और शहर जाकर झुग्गीवासी बन जाओ।" वहां कम से कम न्यूज चैनल वाले भी आते हैं,  मीडिया तुम्हारी तकलीफ़ें देश को बतायेगा।"



घर गांव जंगल छोड़ने की बात सुनते ही दुखी आदिवासी  आखों में पानी भर गिड़गिड़ाये


आदिवासी बैरी और बाघ है प्यारा ।

कहो प्रभु अपराध हमारा ॥



प्रभु कुछ कहते उसके पहले ही पीछे से मां दुर्गा बोल उठीं- "जब भगवान ही न्याय न करें तो नेताओ को दोष देने का क्या फ़ायदा। प्राणनाथ मुझे आप से ऐसी उम्मीद न थी। आज से अपना खाना खुद ही बनाईयेगा बता देती हूं।" प्रभु धीरज रख बोले- "प्रिये, अपनी इस हालात के जिम्मेदार भी ये  लोग हैं। जब इनके जंगल कट रहे थे तो क्या इनकी अकल घांस चरने गयी थी। क्यों लगने दिया  अपने जंगलो में सागौन, नीलगिरी और साल के पेड़, अपने साथ साथ वन्यप्राणियो को पर्यावास भी खत्म होने दिया।" नंदी ने अपील की- "प्रभु तब ये लोग अंजान थे। इन्हे नही पता था कि इससे क्या हो जायेगा।" प्रभु ने कहा- "अब तो अकल आ गयी है न,  देखो एक अन्ना के खड़े होने से सरकार थर थर कांपने लगती है। तो जब करोड़ो आदिवासी खड़े हो जायेंगे फ़िर क्या उनकी अकल ठिकाने नहीं आयेगी। पर नहीं, इनमे से जिसको नेता होने का आशीर्वाद देता हूं। दिल्ली जाकर सुरा, सुंदरी के मजे मारने लगता है। इनकी तो मै भी मदद नही कर सकता।"


इस पर माता ने सिफ़ारिश की - "अगर आप मुझसे तनिक भी प्रेम करते हैं, तो कुछ तो कीजिये।" प्रभु ने मुस्कुराते हुये जवाब दिया- " जैसे नेतागण भ्रष्टाचारियो के दिल में राज करते हैं। वैसे ही आप भी मेरे मन पर राज करतीं है। मै आशीर्वाद देता हूं कि आज से कुछ साल बाद, जब देश में भुखमरी की हालत आयेंगे। तब यूरोप और अमेरिका के वैज्ञानिक गहन शोध करके, यह पता लगायेंगे कि भारत में जो इमारती लकड़ी के प्लांटेशन हैं, अब वो किसी काम के नहीं है। और उनके बदले फ़ल और फ़ूलदार पेड़ लगाने से देश को को भोजन तथा पशुओं को चारा मिल सकता है। जिससे देश की भुखमरी दूर की जा सकती है। तब मनमोहनी नीतियो से कंगाल हो चुके भारत को, वर्ल्ड बैंक अरबो रूपये का कर्ज देकर इस काम को करवायेगा। तब ये आदिवासी रहेंगे तो मजदूर ही। लेकिन कम से कम जंगल के शुद्ध वातावरण में रह पायेंगे ।  बाघ और  उसकी  प्रजा के लिये भी उनमे भरपूर भोजन होगा और वे  उनमे चैन से जी पायेंगे।"

नंदी अभी तक सुंदर गायो वाली बात भुला न पाये थे- "बोले इन बाघो का  क्या है प्रभु ये तो इमारती  पेड़ो के जंगलो मे भी रह लेते हैं।"  इस पर प्रभु ने मुस्कुराते हुये पूछा- "कभी सागौन और नीलगिरी के पत्ते खाये हैं क्या  बेटा। माता के हाथ का स्वादिष्ट खाना खा खा कर तुम जमीनी हकीकतों से अनजान हो। आज शहर में रहने वाली गाय और इमारती जंगलो में रहनी वाली गायो का दूध एक समान क्यों है? मियां नंदी अमूल बेबी का खिताब तुमको मिलना चाहिये, राहुल गांधी को नहीं। फ़जीहत से बचने नंदी ने टी वी पर इंडिया टीवी लगाया और सारे शिव गण प्रभु के लंका दौरे की सच्चाई सुनने मे मगन हो गये ।

Comments
13 Comments

13 comments:

  1. प्रभु ने एकदम सही बताया ...

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  2. सटीक व्यथा है
    प्रभु की कथा है।

    लाजवाब कटाक्ष

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  3. bahut hi acha likha hai apne..... meri kismat achi thi ki main yu hi bhatakta hua apke blog pe aa gaya... varna kabhi pata hi nahi chalta ki hindi ab bhi jinda hai....

    congrats alot!!!!!!!1

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  4. मारे भी और रोने भी न दे...

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  5. दिलचस्‍प है...

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  6. बहुत गहराई में गोता
    मेरी नयी पोस्ट
    मिलिए हमारी गली के महामूर्ख से

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