दीपक भाजपाई के इतना कहते ही सोहन शर्मा बोल उठे विनायक सेन को जमानत मिलने से मै खुश हूं रमन सिंग को पूर्वाग्रह छॊड़ विवेक का इस्तेमाल करना था . शर्मा जी की बात सुनते ही जनता उन पर चढ़ बैठी एक सज्जन ने अपनी बहुमूल्य राय दी ये शर्मा जी जैसे लोगो को भी निपटाने का समय आ गया है ऐसे लोगो को छह महिने के लिये बस्तर भेज देना चाहिये अकल ठिकाने आ जायेगी . शर्मा जी ने कातर निगाहों से मेरी ओर देखा उनके बचाव मे मैने कहा आपका मतलब सूप्रीम कोर्ट बेवकूफ़ है और आप होशियार हो आसिफ़ भाई ने कहा देखो दवे जी आप विधवाओं की अपील के खिलाफ़ बात कर रहे हो यहां लफ़्फ़ाजी नही चलेगी .
मैने कहा इसमे विधवायें कहा से आ गयी क्या विनायक सेन ने उनके पतियों को गोली मारी है जवाब आया गोली मारने वालो का साथ तो दे रहें हैं मैने पूछा ऐसा आपको कौन बोला अखबार वाले सरकार और कौन . मैने पूछा अखबार ये किस बला का नाम है आसिफ़ भाई बोले अरे वही जो रोज सुबह आता है न्यूस पेपर मैने हंसकर कहा वो अखबार नहीं दो रू. मे मिलने वाले सरकारी चांवल जैसे डीडी न्यूस है जो सरकार की तरफ़ से आप जैसे पैसे वाले गरीबो को दिया जाता है दो रू. मे अखबार का कागज भी नही आता सारे अखबार वाले पैसे के लिये सरकार पर निर्भर हैं जो सरकार कहती है वही छापते हैं उल्टा लिखेंगे तो दो महिने मे ताला लग जायेगा . वैसे भी आसिफ़ भाई भाजपा सरकार का साईड लेना आपके हित मे नही लादेन का फ़तवा जारी हो जायेगा .
राव साहब ने कहा बात मत भटकाओ ये बताओ ये विनायक सेन है कौन - विनायक सेन पिछले कई दशको से बस्तर मे आदिवासियों के बीच रहकर मुफ़्त चिकित्सा प्रदान कर रहे है . नक्सल प्रभावी इलाके मे काम करने से निश्चित ही उनका नक्सलियों से मिलना भी होता होगा पर झगड़ा उस बात का नही है सरकार अपने बल पर नक्सलवादियों को नही हरा पा रही थी . इसी लिये उसने जंगलो के अंदर बसे गांवो को खाली करवाने की नीति बनाई ताकी नक्सलवादियो को जंगल के अंदर खाना पीना न मिल सके और उन्हे वहां से खदेड़ा जा सके .
नक्सलियो ने जंगल से बाहर निकलने पर प्रतिबंध लगा दिया जो लोग बाहर नही निकले वे सरकार के दुश्मन बन गये और जो बाहर निकल गये वो नक्सलियो के दुश्मन बन गये . जब बाहर निकले लोगो को सरकार ने सलवा जुड़ूम के तहत हथियार बंद किया तब विनायक सेन ने इसका विरोध किया और अंदर बसे गांवो मे चिकित्सा दवाई न पहुंचने देने के सरकारी तंत्र के प्रयास के विरूद्ध जाकर अपनी सेवाएं आदिवासियो को दीं . बस क्या था वे आई ए एस और आई पी एस अधिकारियों के दुश्मन बन गये . बात को समझो बस्तर मे या तो आप जुड़ूम मे हो या नक्सलवादी हो नो मैंस लैंड कही है ही नही बात सीधी है या तो सरकार के इलाके मे रहो या नक्सलवादियों के बीच का रास्ता सीधे खदान मजदूर का है सब झंझट से दूर .
इतना सुनते ही सभा मे खलबली मच गयी एक ने पूछा फ़िर क्या हुआ मैने कहा दोनो पक्ष मे जो जिसके हाथ चढ़ गया उसकी मौत तय समझो राव साहब ने पूछा तो रमन सिंग क्यो सेन के पीछे पड़ा है मैने कहा वो तो कहीं फ़्रेम मे है ही नही उल्टे चापलूसी मे फ़ंस कर अपनी छवि बिगाड़ रहा है और साथ ही साथ हाईकोर्ट के जजों ने भी पता नही क्यों (पता तो है पर अवमानना का चक्कर है) ऐसा निर्णय दिया था
तभी भाई सोहन शर्मा ने कहा मै दवे जी की बातो से असहमत हूं . उनके इतना कहते ही मैने गुस्सा कर घोषणा की शर्मा जी को इस विषय का abcd भी नही आता वे तो सिब्बल और मोईली का बयान पढ़ यहां होशियारी झाड़ रहे थे बस क्या था पब्लिक फ़िर शर्मा जी की फ़जीहत करने मे जुट गयी और मैं यूरिया वालि चाय पीने मे जुट गया
बैठ कर युरिया वाली चाय पी्ना ही ठीक है।
ReplyDeleteNice post.
ReplyDeleteदुख का कारण
कुछ लोगों ने तृष्णा और वासना को दुखों का मूल कारण समझा और उन्हें त्याग दिया और कुछ लोगों ने सोचा कि शायद उनकी तृप्ति से ही शांति मिले। यह सोचकर वे उनकी पूर्ति में ही जुट गए। इनसानों ने योगी भोगी और नैतिक-अनैतिक सब कुछ बनकर देखा और सारे तरीके़ आज़माए बल्कि आज भी इन्हीं सब तरीकों को आज़मा रहे हैं लेकिन फिर भी मानव जाति को दुखों से मुक्ति और सुख-शांति नसीब नहीं हुई बल्कि उसके दुखों की लिस्ट में एड्स, दहेज, कन्या, भ्रूण हत्या, ग्लोबल वॉर्मिग और सुपरनोवा जैसे नये दुखों के नाम और बढ़ गए। आखि़र क्या वजह रही कि सारे वैज्ञानिक और आध्यात्मिक लोग मिलकर मानवजाति को किसी एक दुख से भी मुक्ति न दिला सके?
कहीं कोई कमी तो ज़रूर है कि साधनों और प्रयासों के बावजूद सफलता नहीं मिल रही है। विचार करते हैं तो पाते हैं कि ये सारी कोशिशें सिर्फ़ इसलिए बेनतीजा रहीं क्योंकि ये सारी कोशिशें इनसानों ने अपने मन के अनुमान और बुद्धि की अटकल के बल पर कीं और ईश्वर को और उसके ज्ञान को उसका वाजिब हक़ नहीं दिया।
http://www.islamhinduism.com/hindi-articles/30-noble-quran-a-divine-miracle
main bhi urea wali chai hi peeyunga..:)
ReplyDeleteचाय तो महंगी हो चली है, सुपरबग वाला पानी पीना ही उचित है. आपने एक बेहतरीन कमेंट किया है. सरकार को अपनी कुर्सी बचाने के लिए जो भी हथकंडे अपनाने पड़े, वह हिचकती नहीं है.
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