Saturday, April 30, 2011

धुर कांग्रेसी विदुर जी और नुक्कड़ चर्चा

नुक्कड़ पर यूरिया वाली चाय पीते पीते विदुर जी ने घोषणा की "  2G स्पेक्ट्रम पर, CAG और Supreme कोर्ट के कुछ Judge के साथ घिनोना षड़यंत्र करके Rss के षड्यंत्रकारी पुरोहित आज ऐसी स्थिति में पहुँच गए हैं, कि वे किसी भी क्षण इस देश के लोकतंत्र का गला घोंट सकते हैं " इतना सुनते ही नुक्कड़ मे हंगामा मच गया संसदीय माहौल को रोकना असंभव जान पड़ता था । मै जोर से चिल्लाया आज चाय का भुगतान कौन करेगा । इतना सुनते ही ऐसी शांती छा गयी जैसे कांग्रेस की कार्य समिती बैठक मे सोनिया मम्मी के मौजूद होने पर छा जाती है ।


मैने कहा विदुर जी ने अपना मत रखा है भारत मे सबको हक है आप तथ्यात्मक बहस करें जो भी सांसद टाईप व्यहवार करेगा आज का बिल वही भरेगा । दीपक भाजपाई का गुस्सा शांत नही हुआ था फ़िर भी संयमित होकर बोले किस आधार पर आप यह कह रहें है । विदुर जी ने कहा " RSS के पुरोहित जिस प्रकार अपनी झूठी-मूठी सत्यनारायण कथा से 'सिविल सोसाइटी' और 'मीडिया' को बरगला लेते हैं, उससे ज्यादा कुछ तर्क-वर्क, भारत की न्यायपालिका को भी नहीं चाहिए..अपनी तटस्थता तोड़ कर RSS के भगवे तले खड़े हेतु. बाबरी और अन्य अनेक मामलों न्यायपालिका के निर्णयों से यह स्वयंसिद्ध हो चूका है " ।

दीपक जी बोले पिछले आठ सालो से सारी नियुक्तियां आप की सरकार ही करती आ रहीं है २जी घोटाले मे आपकी सरकार ने राजा एंड कंपनी को जेल भेजा है कामन वेल्थ गेम आपकी सरकार के कार्यकाल मे हुआ और आपकी सीबीआई अदालत मे कह रही है कि घोटाला हुआ है । आप स्वीकार कर रहे हो कि आपका शासन तंत्र आपके नियंत्रण मे नही है और जिसकी मर्जी मे आया वो घोटाला कर रहा है । सबूत आपने दिये कलमाड़ी के खिलाफ़ राजा के खिलाफ़ और वो जज जिन्होने जेल भेजा वे षड़यंत्रकारी हैं ।

विदुर जी बोले गठबंधन की राजनीति मे समझौते तो करने पड़ते ही हैं  इसमे कुछ चूक भी हो ही जाती है । आसिफ़ भाई ने कहा अरे तुमको जनता की सेवा की ऐसी क्या पड़ी है बहुमत नही मिला तो नही सही ऐसी कौन सी देश भक्ती है कि जनसेवा के लिये मरे जा रहे हो और सेवा करनी ही है तो विपक्ष मे बैठ कर भी की जा सकती है । विदुर जी तिलमिलाये आसिफ़ भाई गुजरात दंगे भूल गये बाबरी मस्जिद की भी याद न रही । आसिफ़ भाई ने कहा मतलब भाजपा ने किया तो तुमको देश को बेच खाने दें नंगा नाचने दे कांग्रेसी क्यों बने नक्सलवादी न बन जाये नवीन पटनायक नीतिश कुमार को आगे न बढायें ।

शर्मा जी बोले बात तो सही है पुरुलिया मे हथियार तुम्हारी पार्टी ने गिराये थे ये बात खुल चुकी है । विदुर जी से रहा न गया चीख उठे ये झूठ है । मैने कहा अगर ये झूठ है भाई तो नक्सलियो को क्यो नही दिखती कांग्रेस् आई आज क्यो आंध्र मे जब तक चंद्र बाबू नायडू थे तो उन पे जान लेवा हमला तक हुआ और कांग्रेस सरकार आयी तो नक्सलवादी गायब हो गये । और क्यों गढ़चिरोली जहां उनका होना कांग्रेस कॊ फ़ायदे मंद है को छोड़ किसी कांग्रेसी राज्य मे नक्सल वादी नही हैं । पश्चिम बंगाल मे तो वे खुल्लम खुल्ला आपके गठबंधन के समर्थन मे हैं ।  नक्सलवादियो को उस समय आपकी पार्टी ने हथियार पहुंचाये थे कि विपक्ष की सरकार गिरा सकें । और तो और दाउद से लेकर ताज तक हर जगह कुछ न कुछ गड़बड़ है । विदुर जी अभी अंग्रेजी क्लास से आ  रहा हूं सुनो दो मुहावरे Something is rotten here और  Caesar's wife should be above suspicion  ऐसे मुहावरे गलत तो नही है ।

बात साफ़ है आपकी पार्टी सत्ता मे रहने के लिये कुछ भी कर सकती है यहां तक की लोकतांत्रिक संसदीय परंपराओं कॊ भी छोड सकती है । देख नही रहे PAC की रिपोर्ट सामने आने न दी हंगामा कर दिया धक्का मुक्की की यहां तक की नया अध्य्क्ष चुन लिया ।  विदुर जी बोले बहुमत असहमत था मैने कहा बहुमत नही बेईमानो का बहुमत और पूरे भारत मे बहुमत है इन्ही के पास । बहुमत है पूंजीपतियो के पास भारत की बहुमत संपत्ती अल्पमत लोगो के पास है सत्ता भी है । और ताकत भी मीडिया भी इनकी गुलाम है और विदुर जी स्वार्थ से बोल रहे हो तो भगवान आपका भला करे और निस्वार्थ कांग्रेसी हो तो सावधान ये वो कांग्रेस नही है और दीपक भाजपाई आप भी सावधान ये वो भाजपा भी नही है ये नाम अलग है पर काम एक है । शासन आज भ्रष्टाचारियो का है पार्टी विशेष का नही ल। भाजपा खुद भी कांग्रेस से कम नही है काम उसके नेता भी पूरे वही कर रहे हैं न कर रहे होते तो आज अन्ना हजारे और बाबा जैसे लोगो की देश को जरूरत न होती
इसलिये हे प्यारे विदुर जी अंध भक्ती छोड़ तथ्य परक बातें किया करें और आज के चाय का बिल आप ही भरें ।


Friday, April 29, 2011

खलमाड़ी - मम्मी मै बेकसूर हूं

सीबीआई की हवालात में खलमाड़ी ने हवलदार को आवाज लगाई  हवलदार पुराना चांवल था नजदीक आकर बोला मुझे अपने जैसा समझ रखा है क्या मै कोई ऐसा काम नही करता की फ़ंस जाउं ।  भाई केवल मुझे एक पत्र भेजना है वो लिख कर भेज दो मै आजीवन आभारी रहूंगा । हवलदार बोला आभारी लोग भारी पड़ते हैं भाई बाद मे आवाज आती है ऐसा कौन सा है सगा जिसे हमने नही ठगा और तू तो खांग्रेसी है । बेचैन खलमाड़ी बोला मेरा रिकार्ड अच्छा है चाहो तो मेरे पुराने सुरक्षा कर्मियो से पूछ लो और मेरी गारंटी भी वही लोग ले लेंगे और मनभावन कैश भी देंगे ।

सहप्रजातियो की गारंटी ने हवलदार को संतुष्ट किया बोला क्या लिखना है बता खलमाड़ी ने कहा मम्मी जी इतना सुनते ही हवलदार छिटक गया भाई मै पूना तो किसी कीमत मे नही जाउंगा । खलमाड़ी बोले अरे भाई अपनी मां को कौन खांग्रेसी मम्मी  बोलता है मै तो आदरणीय मम्मी जी को  पत्र लिखवा रहा  हूं । हवलदार ने कहा आगे बोल खलमाड़ी ने शुरू किया आदरणीय मम्मी आपको मेरे बारे मे दुशमनो ने भड़काया है हवलदार फ़िर रूक गया बोला विदेशियो की साठ गांठ मे मै शामिल नही हो सकता  । खलमाड़ी ने कहा अरे भाई देश के अंदर भी दुश्मन हैं राजनीतिक यार तू अपना काम कर पूरा होगा तब दिमाग लगाना ।
खलमाड़ी चालू हुये मम्मी जी  मैने कुछ भी गलत नही किया है  हवलदार फ़िर खड़ा हो गया बोला साले देश की इज्जत बेच खाया सब जगह फ़जीहत हो गयी बोलता है चीन मे चूहे थे तो यहां भी होंगे । खलमाड़ी बोला यार तू हवलदार है की पत्रकार सबका जवाब तू ही देगा तो पैसे क्या फ़ोकट के लेगा । खलमाड़ी फ़िर से बोले मम्मी मैने तो पार्टीधर्म का पालन किया है सारे निर्णयो मे सबको साथ लिया है और पार्टी को दिया भी है । कौन कह सकता था कि मै चोर हूं अगर आपकी महिला नेत्री ज्यादा खाने के चक्कर मे देर न करती और अकेले न खाती तो क्या ये मामला बनता । मै तो कुछ सौ करोड़ का आपका सहकर्मी हूं मोहतरमा तो हजारो करोड़ की रंगकर्मी हैं । उसी के लालच के  कारण ही देरी हुई और सार भेद खुल गया ।


हवलदार बोला अबे सुन तेरी पार्टी बेशर्मी की हद लांघ चुकी है और तू पुराना इतिहास बता रहा है । जब तेरी पार्टी संसदीय परंपरा लोकतंत्र और नैतिकता  को भूल गयी तो तुझे क्या याद रखेगी । तू भी क्या याद रखेगा ले सुन मेरी शायरी


यहां अब नही रहे लाल बहादुर और आज़ाद ।
   तेरी पार्टी हो चुकी है बरबाद ।।

      प्रवक्ता हैं महान  अकड़ू नीश तिवारी ।
          तेरी पार्टी जल्दी ही हॊगी भगवान कॊ प्यारी ।।

             आज संसदीय समिती की बैठक मे मारपीट हो चुकी है ।
              और तेरी पार्टी अपनी शर्मो  हया खो चुकी है ॥

     तू आज की डेट मे इतिहास का है पन्ना ।
तेरा दल हर  घोटाले से है चौकन्ना  ।।

  और सुन मेरे प्यारे भाई ।
     भूल गयी है तुझे खांग्रेस आई ॥

        तेरी अकड़मती मम्मी के पाप का घड़ा भर रहा है बेटा ।
          बाहर आया तो किसी और केस मे जायेगा लपेटा ॥


     और सुन ले बेटा खलमाड़ी  खोल के अपने कान ।

       हर हफ़्ते तेरी पार्टी के नेता अंदर आना तय मान


   हो जा चौकन्ना और खबरदार ।

बन जा सीबीआई हवालात का नंबरदार ॥

  करोड़ों न सही दाल रोटी तो चलती रहेगी ।

     और घूस खाने की तेरी इच्छा भी पलती रहेगी ॥


इतनी शायरी सुना हवलदार मुड़ा और साथी से बोला यार ये सीबीआई की पोस्टिंग ठीक है जी भर के कैसी भी घटिया तुकबंदी सुनाओ शायरी सुनाओ ये बेचारे हवालती कही भाग भी नही पाते




Thursday, April 28, 2011

अरे आदिवासी विकास पहुंच रहा है सावधान


एक व्यक्ति आम के पेड के नीचे आराम से लेटा हुआ था।  एक राहगीर ने उससे  कहा, कि भाई लेटे क्यों हो काम क्यों नही करते। आदमी बोला- भाई मैं काम क्यों करू  तो राहगीर ने कहा कि काम करोगे, तो दो पैसा मिलेगा और उस पैसे को जोड़ कर कुछ व्यापार चालू करना! आदमी ने कहा फ़िर क्या होगा?, राहगीर बोला फ़िर क्या, तुम्हारी शादी हो जायेगी और बच्चे हो जायेंगे- आदमी ने कहा-फिर  राहगीर बोला- कि जब बच्चे बड़े हो जाये तो उन्हे व्यापार में लगा देना, फिर तुम चैन से आराम करना! आदमी ने कहा-  भाई मैं तो अभी भी चैन से लेटा हूँ, तो मै इतने बवाल में क्यो पडूं।

कमोंबेश यही बात अदिवासियों पर भी लागू होती है। और हमारे मापदंड उन पर लागू नही होते। उनकी जीवन शैली हम से अलग है। जिसे हम विकास कहते हैं। वह उनके लिये विनाश से कम नही है।  सन् 1985 तक भी बस्तर के अधिकांश इलाकों मे वस्तु विनिमय ही चलता था। व्यापारी हाट बाज़ारों में अदिवासियों से वनोंपज लेते थे, इसके बदले में उन्हे उनकी जरुरतों का सामान देते थे। उस समय तक अदिवासियों की मुख्य आवश्यकता नमक, कपडे, और गहने इत्यादि ही हुआ करती थी। अधिकांश इलाकों में सड़कें नहीं थी। तभी शायद आदिवासियों की संस्कृति और जीवनशैली  भी सरंक्षित थी।


हालाकिं शोषण तब भी था। जैसे 1 किलो चिरौंजीं, जो आज 200 रूपये किलो है के बदले मे 1 किलो नमक जो आज 5 रूपये किलो है, दिया जाता था। पर वह आज के स्तर पर नही था तब बाघ भी प्रचुर मात्रा में थे और जगली भैसें भी । धीरे-धीरे तथाकथित विकास के नाम पर और वनों के दोहन के लिये बस्तर के अंदरूनी इलाकों में सड़कें बनती गयी और हर नयी सड़क के साथ शोषण करने वालों की राह आसान होती गयी !
आदिवासी जो अपनी सरल और पर्यावरण के अनुकूल जीवन शैली के साथ हजारों वर्षों से वन्यप्राणियों के साथ  शांत व खुशहाल जीवन जीते रहे थे, अब एक ऐसे परिवेश से घिरने लगे, जिसके बारे में ना वो जानते हैं, और ना ही उसके अनुसार ढलने का उनके पास कोई जरिया था। आदिवासी बेवार पद्धति को अपनाते थे, जिसमें वनों को जला कर बिना हल चलाये बीज डाल दिया जाता है, फिर अगले वर्ष किसी और हिस्से को साफ़  कर उसमें खेती की जाती है, इस तरह के काम के आदी होने के कारण जमीन के मालिकाना हक के आदी नही थे। यह पद्धति वन्य प्राणियों के लिये तो अच्छी थी पर हम जैसे लोगों के घरो को सजने के लिये आवश्यक सागौन जैसी इमारती लकडियों के लिये नही अतः सरकार ने इस पर रोक लगा दी




अब आदिवासी को स्थाई जमीन के टुकड़े आवंटित कर दिये गये। बावजूद इसके आदिवासी मालिक तो बन ही नही सकता था क्योकि यह उसकी मूल प्रवत्ति ही नही थी। नौकर बनना ही उसकी नियति थी।  अब शहर के  अधिकारियों और उनकें मातहत व्यापरियों ने मिलकर कौडियों के मोल उनसे जमीनों को खरीदना व उसमें लगे कीमती पेड़ों को काटकर बेचना प्रारंभ कर दिया।  आम के आम और गुठलियों के दाम का यह खेल कई दशकों तक चला। इसका अंत बस्तर के प्रसिद्ध मालिक "मकबूजा काण्ड" के साथ हुआ। अभी इसमे कुछ लोगों को सजा भी हुई है।
अब बस्तर के वनों के मालिक आदिवासी नही वन विभाग था।  इन वनों से अपनी जरूरत की चीजें लेने के लिये अधिकारियों की सेवा करना उनकी मजबूरी बन गई! यह सेवा किस प्रकार से की जाती होगी, यह बात मैं पाठकों की कल्पनाशीलता पर छोडता हूँ।
 धीरे धीरे बस्तर की "रत्नगर्भा भूमि" पर लोगों की निगाहें पड़ने लगी।  उसमें छिपे खजाने को लूटने की होड़ मच गयी। बस्तर वनमण्डल देश का सबसे बडा उत्पादक वन-मण्डल बन गया एंव धडल्ले से वहाँ के जंगल कटने लगे।   आदिवासियों और वन्यप्राणियों के हितो को नजरन्दाज करते हुये प्राकृतिक वनों का कोयला बना कर उन्हे सागौन, साल, और बांस के वनों में तब्दील कर दिया।इन विविधता पूर्ण वनों में सागौन, साल और नीलगिरी जैसे व्यवसायिक महत्व वाले वृक्षों का रोपण होने लगा। साथ ही जो जंगल सदियों से आदिवासियों और वन्य प्राणियों को खुशहाल रखते आये थे, अब वो उनका पेट भरने में असमर्थ हो गये।

सन् 1995 से खनिजों की कीमत बढने लगी, साथ ही बस्तर, जिसकी भूमि लौह अयस्क से भरपूर है, वह उन लोगों की निगाह में आ गयी, जिनके पास लाभ और हानि के अलावा कोई और मापदंड नही है। बस क्या था "एम ओ यू" की बाढ आ गयी आम भाषा में "एम ओ यू" का मतलब दो पक्षों में सहमती पर है। किन्तु यहां एम ओ यू का मतलब है- मन्त्री, अधिकारियों और संबधित पक्षों में अंदरूनी समझौता!

यह एम ओ यू कुछ के लिये खुशियों की बहार लाता है। पर कुछ ऐसे भी लोग हैं। जिनके लिये यह विनाश के अलावा कुछ भी नही है। वहाँ रहने वाले आदिवासी जिनकी सुनवाई को कहते हैं जनसुनवाई पर जैसे युद्ध में हारे हुये पक्ष की दलीलें विजेता सुनता है! ठीक उसी तरह इस सुनवाई का फ़ैसला भी पूर्वनियोजित रहता है।  वनराज बाघ और उसकी प्रजा की चिन्ता किसी को नही होती ! क्योंकि ये जंगल अभ्यारण्य नही उत्पादन का स्थल मात्र  होता है।  उत्पादन के जंगल में इनकी हैसियत अवैध कब्जाधारी की होती है।
खैर जब यह "एम ओ यू होता" है तब तालिया बहुत बजती है। वे अधिकारी जो अपने  मन्त्री के हर भाषण में सबसे शुरू से सब से अंत तक तालियां बजाते है बडे खुश होते है और मन्त्री भी। लेकिन वहां ताली बजा रहे लोगों में किसी के मन में ये ख्याल तक नही आता, कि हजारों सालों से वहा रहते आये, अदिवासी और बाघ अब कहां जायेंगे।

जहाँ एक ओर ये लोग कैमरे की चमक और तालियों की गडगड़ाहट के बीच "एम ओ यू" कर रहे थे, उसी समय बस्तर की सुदूर वादियों में एक और "एम ओ यू" हो रहा था। यह था नक्सलवादियों और आदिवासियों के बीच इसमें न कैमरे की चमक थी,  और ना तालियों की गडगडाहट पर इस "एम ओ यू" के धमाके आज हमारे रोंगटे खड़े कर रहे है। लगातार हो रहे अत्याचार से तंग आकर आज आदिवासियों ने एक ऐसी विचारधारा का समर्थन करना शुरू कर दिया है। जिसमें हमारे दुश्मनों का स्वार्थ निहित है।
आज बस्तर की भूमि कुरुक्षेत्र बन गयी है। महाभारत जैसे धर्म युद्ध, कि तर्ज पर लड़े जा रहे,  इस अधर्म युद्ध में दोनो तरफ़ लाशें हमारे अपने योद्धाओं की है। अंतर तो बस यह कि इस युद्ध में कौरव रूपी मन्त्री अफ़सर और उद्योगपतियों पर कोई आंच नही आ रही और बाघ और उसकी प्रजा बिना लड़े ही मारी जा रही है। देश के दुश्मनों का बिना एक सैनिक भेजें ही मंतव्य पूरा हो रहा है

दुख की बात तो यह है, कि इस रक्तबीज असुर रूपी माओवाद का अंत दमन से ही सम्भव है। इसमे दिक्कत यह है, कि हर दमन के साथ गिरते खून के छीटों से नये रक्तबीज असुर पैदा होते जायेंगे और इसका संहार करने के लिये दुर्गा स्वरूप इंदिरा गांधी भी आज नही है! जिनके पास राजनैतिक दूर दृष्टि और राजनैति इच्छाशक्ति दोनो का अभाव नही था।

अब देखना केवल यह है!, कि सरदार मनमोहन सिंह जैसे व्यक्ति जिनसे देश को कोई खास उम्मीद नही है!, वो क्या  आदिवासियों और बाघ प्रजा को जीवनदान दे पायेंगे, या असरदार राहुल गांधी तक इनकी  कोई गुहार पहुंच पायेगी।

Tuesday, April 26, 2011

अखबार के मालिक और मेरी भिड़ंत

शाम के वक्त एक साहित्य प्रेमी अमीर मित्र का फ़ोन आया। उनके फ़ार्म हाउस में वाईन एंड डाईन का न्योता था।  मुफ़्त में पैग लगाने की खुशी में हम दनदनाते पहुंच गये। वहां एक सज्जन और विराजमान थे। मित्र ने मेरा उनसे परिचय करवाया। वे मध्य भारत के सबसे बड़े अखबार के मालिक और संपादक थे। उन्होने ससम्मान मुझसे हाथ मिलाया। मित्र ने मेरा परिचय दिया- "भाईसाहब बड़े अच्छे व्यंग्य कार हैं।" यह सुनते ही सज्जन के चेहरे पर तिरस्कार के भाव उभरे। मन ही मन उन्होने अनुमान लगाया कि जरूर इस लेखक की चाल होगी। पार्टी के बहाने अपने लेख पढ़वायेगा। पर टेबल पर रखी शीवाज रीगल की बोतल देख, उनकी नाराजगी कुछ कम हो गयी। मन मार कर बोले- "चलिये इसी बहाने आपसे मुलाकात हो गयी।"

मैने भी मन ही मन सोचा, भाड़ में जाये मुझे इनसे क्या लेना देना। अपन तो पैग लगाओ। यहां वहां की चर्चा होती रही। और अखबार के  मालिक साहब इंतजार करते रहे कि कब मै अपनी रचना उन्हे दिखाउंगा । दो राऊंड होने के बाद भी जब लेख प्रकाशित करने की कोई चर्चा न हुई। तो मालिक साहब का माथा ठनका। पांच राउंड होने के बाद तो सब गहरे मित्र बन जाते हैं। ऐसे में बात टालते न बनेगी।  मालिक साहब ने बात मेरे लेखन पर मोड़ी बोले- "भाई साहब, कोई रचना साथ लाये हैं क्या। मैने पूछा- "किस लिये श्रीमान।" हकबकाये मालिक साहब ने कहा- " अखबार में छपवाने के लिये और क्यों।"  मैने पूछा- "किस अखबार में छपवाने के लिये ?" वे बोले- अरे भाई, मैं छापूंगा तो अपने अखबार मे ही ना। लगता है आप मेरी बात कुछ समझे नही।" मैने कहा- "आप तो कोई अखबार निकालते ही नहीं हैं श्रीमान।"  मालिक साहब ने असहाय भाव से मित्र की ओर देखा। मानो कह रहें हो ’कैसे आदमी के साथ बैठा दिया दो पैग में ही लग गयी है।’

मालिक साहब ने याद दिलाया- "अरे भाई मै  फ़लां अखबार का मालिक संपादक हूं, भूल गये क्या आप।" मैने पलट कर जवाब दिया- "वो तो अखबार है नही, सत्तारूढ़ पार्टी का मुखपत्र है। भाट और चारण जैसे चाटूकारिता करने वाला। अंतर यही है कि सरकार की छोटी मोटी गलतिया छाप दी जाती है । हां कभी कभी उसमे मंहगाई का जिक्र जरूर कर दिया जाता है।" मालिक साहब बैकफ़ुट पर थे- "आप गलत समझ रहे हैं। हमारा अखबार दूसरो से अलग है। हम किसी के दबाव में नही आते।" मैने कहा- "आम जनता को टोपी पहनाईगा मालिक साह्ब, हमे नही। सरकार के हर विभाग में खुला कमीशन बट रहा है। घपले हो रहे हैं। और आपके पत्रकार भी भीख मांगते वहीं पाये जाते हैं। कभी छापा आपने ?  क्या छापते हैं आप-  "अन्ना हजारे ने अपने भांजे को कांग्रेस में भरती किया" "बाबा रामदेव खुद को राम कह रहे हैं।" शांती भूषण नजर आ रहा है आपको। भ्रष्टाचार का प्रदूषण नही।  सलवा जुड़ूम के नाम पर हो रहा अत्याचार तो खैर आपको मालूम ही न होगा। नक्सलवाद की चक्की पर पिस रहे आदिवासियो के बारे में क्या किया आपने ? कुछ नही। छापते क्या हैं आप- "चमत्कारी अंगूठी", "फ़र्जी बाबाओ के विज्ञापन"। और तो और  वो लिंगवर्धक यंत्र का कभी उपयोग किया है आपने क्या मालिक साहब जो दूसरो को बतलाते हो

बात बिगड़ती देख, मालिक साहब ने समझौते का प्रयास किया- "आप इतने जोशीले आदमी हैं। लेख भी जानदार लिखते होंगे।" मैने कहा- "लिखता तो हूं, पर छापने की हिम्मत आपमे न होगी।  छाप पायेंगे उन कंपनियो की काली करतूत। जिनके शेयर आपने सस्ते दामो में ले रखे हैं। जिनके करोड़ो रूपये के एड आपके मुखपत्र को मिलते हैं। आप तो छापिये दलित लड़की से बलात्कार, सड़क हादसे, ब्लागरो से चुराये हुये लेख।" फ़िर हमने हाथ होड़ कर कहा- " हे फ़्री प्रेस के चाचा, फ़्री मे ब्लागरो के लेख पाओ और जनता को दिखाने के लिये बड़े नाम की तारे और मच्छर पर घटिया तुकबंदी छपवाओ। पर अपने को अखबार बस मत कहो।" आज भारत का चौथा स्तंभ न  बिकता, तो मजाल है भारत में ये भ्रष्टासुर पैदा हो जाता।"

अब तक चार राउंड हो चुके थे। मालिक साहब भी क्रोध में आ चुके थे । वे  जोर से चिल्लाये- "रै बेवकूफ़ भारतीय आम आदमी। इसके जिम्मेदार खुद तुम लोग हो। तुमको हर चीज फ़ोकट में चाहिये पैसा जेब से एक न निकलेगा। बस दुनिया मुफ़्त में तुम्हारी रक्षा करे। दो रूपये किलो वाला सस्ता चावल जैसे २ रूपये में सस्ता अखबार चाहिये। तो कनकी ही मिलेगा बासमती नही। बीस रूपया महिना खर्चा कर एक पत्रिका तो खरीदना नही है। कहां से रूकेगा भ्रष्टाचार। कागज का दाम मालूम है ? अखबार के खर्चे कैसे पूरे होते होंगे कभी सोचा है? तुम खुद पैसा कमाओ तो ठीक और हम लोग तुम्हारे लिये भूखा मरें। बात ध्यान से सुन - "हम लोग तुझको अखबार बेचते नहीं है। सस्ते दाम में तुझे अखबार देकर तुझको खरीद लेते हैं।"  फ़िर हम तुझे बेचते हैं उन कंपनियो को। जो हमे तुम्हारा सही दाम देती हैं। उन नेताओ को जो तुम्हारे पैसे मे ऐश करते हैं और हमे भी करवाते हैं । पैसा देकर तुम्हारी तरह फ़ोकट नही। और सुन तुझे और लोग भी खरीदते हैं सी आई ए से लेकर तमाम विदेशी। ताकि वे अपने हिसाब का लेख छपवा कर भारत में मन माफ़िक जनमत तैयार करवाएं और अपना माल खपाएं। किसी पेपर में पढ़ता है क्या कि अमेरिकी विमान रूस के समान विमान से डेढ़ गुनी कीमत के पड़ते हैं। या परमाणू रियेक्टर की कीमतो का तुलनात्मक अध्ययन। नही न क्यों क्योंकि तुम लोग पैसा नही देते उन लोग देते हैं।" फ़िर मालिक साहब ने हमारी ही तर्ज पर हमे हाथ जोड़ कहा- तो हे फ़ोकट चंद भिनभिनाना बंद कर और चैन से मुझे पैग लगाने दे।"

मैने फ़जीहत से बचने के लिये अपने मित्र की ओर देखा। पर वह तो चैन से मजा ले रहा था। अब मुझे समझ में आया। ये सारा युद्ध प्रायोजित था  मै और मालिक साहब रोमन ग्लेडिएटर की तरह उसके मजे के लिये लड़ रहे थे। मैने प्रतिरोध किया-" मालिक साहब देशभक्ती भी कोई चीज है कि नहीं। मालिक साहब बोले- "है क्यो नही दवे जी। हम लोग दाल में नमक की तरह उसको भी इस्तेमाल करते हैं। तभी तो ये देश आज बचा हुआ है। राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले मे हम कोई समझौता नही करते। अरे भाई अगर देश ही नही रहेगा तो फ़िर तो हम ऐश कैसे करेंगे। पर भाई लोगो को जब इंडिया टीवी मे भूत प्रेत देखने में मजा आ रहा है तो कोई क्यो खोजी पत्रकारिता कर अपना जीवन बरबाद करे।"


अब तक पांच राउंड हो चुके थे और हम और मालिक साहब  गहरे मित्र भी बन चुके थे। मालिक साहब बोले- यार वैसे तू बंदा बड़ा जोशीला है। तुझे व्यस्त न किया गया और सरकारी माल न दिया गया तो  नक्सली नेता बन जायेगा और फ़ोकट में मारा जायेगा। एक काम कर भाई  कल से मेरे आफ़िस आजा। दिन भर यहां वहां से सामग्री चुराना और जरा जोश भर के उसमे हेर फ़ेर कर देना। तू भी खुश रहेगा और मुझे भी चैन से पीने और जीने देगा।"

 मालिक साहब के विदा होने के बाद मैने दोस्त को धिक्कारा- " धुर कमीना है तू। अपने ही दोस्तो को इनवाईट कर आपस में लड़ा कर मजा लेता है।  मित्र भी दार्शनिक बन गया- " मालिक साहब की बात भूल गया। कोई भी चीज फ़ोकट में नही मिलती बेटा।  दारू का खर्चा मैने किया था तो मजे लेने के लिये ही न।"

Sunday, April 24, 2011

आदिवासियों और बाघ का मुकदमा


आदिवासियो ने दूर दूर तक फ़ैले बांझ इमारती जंगलो में, वन विभाग के कोप से बचे हुये एक्का दुक्का फ़ल और फ़ूलदार पेड़ो से एकत्रित स्वादिष्ट फ़ल फ़ूलों और पत्तियो के चढ़ावे के साथ शिवगणो के प्रमुख नंदी जी की पूजा की। प्रसन्न होकर नंदी प्रकट हुये, आदिवासियो ने बिलखते हुये अपनी व्यथा सुनाई- "इन बाघो ने जीना हराम कर दिया है। पहले ही इन बाघो को बचाने के नाम पर हमारा जंगल में प्रवेश बंद कर दिया गया है। उसके बाद अब हमको  विस्थापित किया जा रहा है। उपर से ये बाघ हमारी सुंदर सुंदर गायो को मार के खा जाते हैं वो अलग। हमारे उपर भी हमला कर मार देते हैं, और तो और ऐसा होने पर शहरी बाघ प्रेमी खुश होते हैं। कि अच्छा मारा साले को, जंगल में घुसते हैं। ’हे नंदी’ शहरी पर्यावरणविदो और खदान पतियो को हम ही दुश्मन लगते हैं, आप हमारी रक्षा करें।

  इन सब बातो को ( खास कर सुंदर गायो वाली ) सुनकर नंदी के नथुने फ़ड़क उठे। वे तुरंत आदिवासियो का प्रतिनिधी मंडल लेकर कैलाश की ओर चल पड़े। यह खबर सुनते ही बाघो ने भीमाता पार्वती की वीआईपी ड्यूटी मे लगे अपने साथी के मार्फ़त अपने प्रतिनिधी मंडल को भी भेजा
कोलाहल सुन, चैन से सो रहे भोलेनाथ बाहर आये। नंदी ने बाघो पर आरोपो की झड़ी लगा दी,  सुंदर गायो के विषय पर तो वे बेकाबू ही हो गये थे। माता का प्राईवेट बाघ शेरू भी पीछे न था बोला- "ये आदिवासी बाघों को जहर दे देते हैं। गलती से कोई बाघ इनके गांव पहुच जाये तो लाठियो से पीट कर मार देते हैं। यहां तक की चैन से प्रेमालाप भी करने नही देते। पर्यटको की जिप्सी लेकर पीछे पड़ जाते हैं,  चोर शिकारियो तस्करो की मदद करते हैं वो अलग।"


भगवान शंकर बोले- "आदिवासियों, मै तुम्हारी कोई मदद नही कर सकता। बाघ राष्ट्रीय पशु है और तुम  राष्ट्रीय नागरिक तो छोड़ो नागरिक भी नही हो।  अगर तुम शहर जा कर झुग्गी में बस जाओ। तब तुम भारत के नागरिक बन जाओगे।  मैं तुमको ३ रूपये वाला सस्ता चावल, बच्चो को मध्यान भोजन बस्ता कापी और लड़कियों को साईकिल आदि दिलवा दूंगा। जंगल में रहोगे तो ताड़्मेटला जैसे जला दिये जाओगे और विपक्ष का नेता तो क्या मैं भी दस दिन तक वहां पहुच नही पाउंगा।" फ़िर भगवान ने कुछ नरम पड़ते हुये कहा- "बेटा सलवा जुड़ूम और नक्सलवाद की चक्की से बाहर निकलो और शहर जाकर झुग्गीवासी बन जाओ।" वहां कम से कम न्यूज चैनल वाले भी आते हैं,  मीडिया तुम्हारी तकलीफ़ें देश को बतायेगा।"



घर गांव जंगल छोड़ने की बात सुनते ही दुखी आदिवासी  आखों में पानी भर गिड़गिड़ाये


आदिवासी बैरी और बाघ है प्यारा ।

कहो प्रभु अपराध हमारा ॥



प्रभु कुछ कहते उसके पहले ही पीछे से मां दुर्गा बोल उठीं- "जब भगवान ही न्याय न करें तो नेताओ को दोष देने का क्या फ़ायदा। प्राणनाथ मुझे आप से ऐसी उम्मीद न थी। आज से अपना खाना खुद ही बनाईयेगा बता देती हूं।" प्रभु धीरज रख बोले- "प्रिये, अपनी इस हालात के जिम्मेदार भी ये  लोग हैं। जब इनके जंगल कट रहे थे तो क्या इनकी अकल घांस चरने गयी थी। क्यों लगने दिया  अपने जंगलो में सागौन, नीलगिरी और साल के पेड़, अपने साथ साथ वन्यप्राणियो को पर्यावास भी खत्म होने दिया।" नंदी ने अपील की- "प्रभु तब ये लोग अंजान थे। इन्हे नही पता था कि इससे क्या हो जायेगा।" प्रभु ने कहा- "अब तो अकल आ गयी है न,  देखो एक अन्ना के खड़े होने से सरकार थर थर कांपने लगती है। तो जब करोड़ो आदिवासी खड़े हो जायेंगे फ़िर क्या उनकी अकल ठिकाने नहीं आयेगी। पर नहीं, इनमे से जिसको नेता होने का आशीर्वाद देता हूं। दिल्ली जाकर सुरा, सुंदरी के मजे मारने लगता है। इनकी तो मै भी मदद नही कर सकता।"


इस पर माता ने सिफ़ारिश की - "अगर आप मुझसे तनिक भी प्रेम करते हैं, तो कुछ तो कीजिये।" प्रभु ने मुस्कुराते हुये जवाब दिया- " जैसे नेतागण भ्रष्टाचारियो के दिल में राज करते हैं। वैसे ही आप भी मेरे मन पर राज करतीं है। मै आशीर्वाद देता हूं कि आज से कुछ साल बाद, जब देश में भुखमरी की हालत आयेंगे। तब यूरोप और अमेरिका के वैज्ञानिक गहन शोध करके, यह पता लगायेंगे कि भारत में जो इमारती लकड़ी के प्लांटेशन हैं, अब वो किसी काम के नहीं है। और उनके बदले फ़ल और फ़ूलदार पेड़ लगाने से देश को को भोजन तथा पशुओं को चारा मिल सकता है। जिससे देश की भुखमरी दूर की जा सकती है। तब मनमोहनी नीतियो से कंगाल हो चुके भारत को, वर्ल्ड बैंक अरबो रूपये का कर्ज देकर इस काम को करवायेगा। तब ये आदिवासी रहेंगे तो मजदूर ही। लेकिन कम से कम जंगल के शुद्ध वातावरण में रह पायेंगे ।  बाघ और  उसकी  प्रजा के लिये भी उनमे भरपूर भोजन होगा और वे  उनमे चैन से जी पायेंगे।"

नंदी अभी तक सुंदर गायो वाली बात भुला न पाये थे- "बोले इन बाघो का  क्या है प्रभु ये तो इमारती  पेड़ो के जंगलो मे भी रह लेते हैं।"  इस पर प्रभु ने मुस्कुराते हुये पूछा- "कभी सागौन और नीलगिरी के पत्ते खाये हैं क्या  बेटा। माता के हाथ का स्वादिष्ट खाना खा खा कर तुम जमीनी हकीकतों से अनजान हो। आज शहर में रहने वाली गाय और इमारती जंगलो में रहनी वाली गायो का दूध एक समान क्यों है? मियां नंदी अमूल बेबी का खिताब तुमको मिलना चाहिये, राहुल गांधी को नहीं। फ़जीहत से बचने नंदी ने टी वी पर इंडिया टीवी लगाया और सारे शिव गण प्रभु के लंका दौरे की सच्चाई सुनने मे मगन हो गये ।

Tuesday, April 19, 2011

हाय रमन का ताला टूट गया विनायक देशद्रोही छूट गया





दीपक भाजपाई के इतना कहते ही सोहन शर्मा बोल उठे विनायक सेन को जमानत मिलने से मै खुश हूं रमन सिंग को पूर्वाग्रह छॊड़ विवेक का इस्तेमाल करना था .  शर्मा जी की बात सुनते ही जनता उन पर चढ़ बैठी एक सज्जन ने अपनी बहुमूल्य राय दी ये शर्मा जी जैसे लोगो को भी निपटाने का समय आ गया है ऐसे लोगो को छह महिने के लिये बस्तर भेज देना चाहिये अकल ठिकाने आ जायेगी . शर्मा जी ने कातर निगाहों से मेरी ओर देखा  उनके बचाव मे मैने कहा आपका मतलब सूप्रीम कोर्ट बेवकूफ़ है और आप होशियार हो आसिफ़ भाई ने कहा देखो दवे जी आप विधवाओं की अपील के खिलाफ़ बात कर रहे हो यहां लफ़्फ़ाजी नही चलेगी .

मैने कहा इसमे विधवायें कहा से आ गयी क्या विनायक सेन ने उनके पतियों को गोली मारी है जवाब आया गोली मारने वालो का साथ तो दे रहें हैं मैने पूछा ऐसा आपको कौन बोला अखबार वाले सरकार और कौन . मैने पूछा अखबार ये किस बला का नाम है आसिफ़ भाई बोले अरे वही जो रोज सुबह आता है न्यूस पेपर मैने हंसकर कहा वो अखबार नहीं दो रू. मे मिलने वाले सरकारी चांवल जैसे डीडी न्यूस है जो सरकार की तरफ़ से आप जैसे पैसे वाले गरीबो को दिया जाता है दो रू. मे अखबार का कागज भी नही आता सारे अखबार वाले पैसे के लिये सरकार पर निर्भर हैं जो सरकार कहती है  वही छापते हैं उल्टा लिखेंगे तो दो महिने मे ताला लग जायेगा . वैसे  भी आसिफ़ भाई भाजपा सरकार का साईड लेना आपके हित मे नही लादेन का फ़तवा जारी हो जायेगा .


राव साहब ने कहा बात मत भटकाओ ये बताओ ये विनायक सेन है कौन - विनायक सेन पिछले कई दशको से बस्तर मे आदिवासियों के बीच रहकर मुफ़्त चिकित्सा प्रदान कर रहे है . नक्सल प्रभावी इलाके मे काम करने से निश्चित ही उनका नक्सलियों से मिलना भी होता होगा पर झगड़ा उस बात का नही है  सरकार अपने बल पर नक्सलवादियों को नही हरा पा रही थी . इसी लिये उसने जंगलो के अंदर बसे गांवो को खाली करवाने की नीति बनाई ताकी नक्सलवादियो को जंगल के अंदर खाना पीना न मिल सके और उन्हे वहां से खदेड़ा जा सके .

नक्सलियो ने जंगल से बाहर निकलने पर प्रतिबंध लगा दिया जो लोग बाहर नही निकले वे सरकार के दुश्मन बन गये और जो बाहर निकल गये वो नक्सलियो के दुश्मन बन गये  . जब बाहर निकले लोगो को सरकार ने सलवा जुड़ूम के तहत हथियार बंद किया तब विनायक सेन ने इसका विरोध किया और अंदर बसे गांवो मे चिकित्सा दवाई न पहुंचने देने के सरकारी तंत्र के प्रयास के विरूद्ध जाकर अपनी सेवाएं आदिवासियो को दीं .  बस क्या था वे आई ए एस और आई पी एस अधिकारियों के दुश्मन बन गये . बात को समझो बस्तर मे या तो आप जुड़ूम मे हो या नक्सलवादी हो नो मैंस लैंड कही है ही नही बात सीधी है या तो सरकार के इलाके मे रहो या नक्सलवादियों के  बीच का रास्ता सीधे खदान मजदूर का है सब झंझट से दूर .


इतना सुनते ही सभा मे खलबली मच गयी एक ने पूछा फ़िर क्या हुआ मैने कहा दोनो पक्ष मे जो जिसके हाथ चढ़ गया उसकी मौत तय समझो   राव साहब ने पूछा तो रमन सिंग क्यो सेन के पीछे पड़ा है मैने कहा वो तो कहीं फ़्रेम मे है ही नही उल्टे चापलूसी मे फ़ंस कर अपनी छवि बिगाड़ रहा है और साथ ही साथ हाईकोर्ट के जजों ने भी पता नही क्यों  (पता तो है पर अवमानना का चक्कर है) ऐसा निर्णय दिया था


तभी भाई सोहन शर्मा ने कहा मै दवे जी की बातो से असहमत हूं . उनके इतना कहते ही मैने गुस्सा कर घोषणा की शर्मा जी को इस विषय का abcd भी नही आता वे तो सिब्बल और मोईली का बयान पढ़ यहां होशियारी झाड़ रहे थे बस क्या था पब्लिक फ़िर शर्मा जी की फ़जीहत करने मे जुट गयी और मैं यूरिया वालि चाय पीने मे जुट गया

Thursday, April 14, 2011

दिग्गी राजा और रामदेव बाबा का समझौता - पतंजली और कांग्रेस की विवाह चर्चा

The dialog between two named people is pure imagination of author nothing in part or full is true .

अलसुबह दिग्गी राजा पतंजली पीठ रामदेव बाबा के पास पहुंच प्रणाम कर बोले बाबा गैस की से बहुत परेशानी है । बाबा ने कहा उसके लिये तो पवनमुक्तासन करना होगा । वह तो टीवी मे आपका प्रोग्राम देख किया था बाबा पर तकलीफ़ यह है कि कुछ गैस  यहां वहां से निकलने लगती है और उलजुलूल बयान  निकल जाते हैं । बाटला हाउस से लेकर लोकपाल बिल तक सारे उटपटांग  बयान इसी कलमुहीं गैस का नतीजा है इसी चक्कर मे आपके उपर भी थोड़ा गलत सलत बोल गया था मुझे माफ़ कीजियेगा दिग्गी राजा ने दुखी स्वर मे कहा ।


गैस तो नींद पूरी न होने पर बनती है बेटा और " नींद नही आती तो  करो कपाल भाती " वैसे नींद न आने का कुछ कारण तो होगा पहले समस्या की जड़ को खत्म करने से बीमारी जल्दी ठीक होती है । आप तो जानते ही हैं बाबा आजकल मेरी पार्टी का दिन कुछ ठीक नही चल रहा है । मैने मध्यप्रदेश का चुनाव हारने के बाद दस साल तक पद न लेने की कसम खायी थी अब वो समय पूरा होने को है पर अब न मप्र मे और न केंद्र कहीं अगली सरकार बनती नजर नही आती ऐसे मे फ़िर से पांच साल सूखा बैठने की चिंता मुझे खाये जा रही है ।


बाबा ने कहा मै ब्रह्मचारी सत्ता सुंदरी के मामले मे तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूं इसका तो कोई इलाज मेरे पास है नही । दिग्गी राजा बोले अन्ना के आने के पहले तो पूरा इलाज आप ही के पास था पर आधा इलाज अभी भी है । इलाज यह है कि आप सरकार पर आरोप लगाना बंद करें और हमारा समर्थन करें  वैसे भी ये अन्ना आपसे आंदोलन का सारा क्रेडिट तो मार ले ही गया है । ये काम मै नही कर सकता बाबा ने कहा आखिर ऐसा क्या करती है कांग्रेस जो मै उसका समर्थन करूं ।


दिग्गी राजा ने उत्साह से बताना शुरू किया मेरा कांग्रेस दल  100 साल पुराना है आजादी के आंदोलन मे शामिल था बाबा को भी सहमत होना पड़ा खानदान तो अच्छा है  पर ये बताओ दल चलता कैसे है पैसा कितना कमाता है कैसे कमाता है भाई  पतंजली का रिश्ता जोड़ने से पहले जानना तो पड़ेगा पतंजली को खुश रख पायेगा  या नही । कमाने का क्या है बाबा एक बार सरकार बनने पर वारा न्यारा हो जाता है पैसा संभाले नही संभलता स्विस बैंक मे रखना पड़ जाता है वो पैसा आड़े वक्त मे भी काम आ जाता है । बाबा ने पूछा आड़ा वक्त वो क्या होता है दिग्गी राजा ने अपने को याद करते हुये बुझे स्वर मे कहा राजनीती एक जुआं है बाबा  कभी कभी पार्टी का  मुख्यमंत्री प्रधान मंत्री हार भी जाता है बेचारा । बाबा चौंके अरे क्या जुआं खेलता है दिग्गी राजा बोले जुआं कौन जानकर खेलता है बाबा पर ये  सत्ता की शराब ही ऐसी है नशे मे  भले बुरे का होश ही कहां रहता है । बाबा बोले अच्छा शराबी भी है । नही नही बाबा ऐसी बात नही है ये अधिकारी ठेकेदार लोग जनता तक पहुचने कहां देते हैं
 सर सर कह के सर पर चढ़ा लेते हैं  आम आदमी को उन तक पहुंचने नही देते ऐसा छद्म वातावरण बना देते हैं कि मानो आप स्वयं ब्रह्मा हो आपकी हर बात की दाद देते हैं और विरोध का स्वर अखबारो में खिला पिला कर छपने नही देते  कुछ समय निकल भी गया तो किसी फ़िल्मी अभिनेत्री के नाचा का चीफ़ गेस्ट बनवा देते हैं । बाबा बोले अच्छा तो ये  मुजरा भी देखते हैं । अरे नही नही बाबा एक बार कांग्रेस और पतंजली का रिश्ता जुड़ जाये तो कर्म और धर्म से नया गठबंधन पैदा होगा हर घर मे खुशहाली होगी सड़के बनेंगी बिजली होगी हर आदमी मर्सीडीज बेंज मे घूमेगा और १०० रू. किलो प्याज मे भी देश हसंता रहेगा ।



रामदेव बाबा के मुह से निकल गया एक बात तो मानना पड़ेगा बेटा शराबी जुंवारी भ्रष्टाचारी सब तुम्हारी पार्टी लेकिन तुम्हारे मुंह से तारीफ़ ही निकलती है उसकी । दिग्गी राजा बोल पड़े  क्या करूं बाबा मेरा तो कुछ स्वभाव ही ऐसा है  किसी  और दल की बुराई तो मै बिना बात के भी  बोल देता हूं पर अपने लोगो की देख नही पाता हूं तो मै रिश्ता पक्का समझू बाबा




बाबा बोल उठे सवाल ही नही उठता सगा बाबा हूं कोई सौतेला नेता नही । दिग्गी राजा बोले अजीब सी बात है मेरे इतना समझाने के बाद भी आप नही माने । दिग्गी राजा के निकलने के पहले ही कांग्रेस की पानी टंकी से आवाज आयी बाबा मै जायींग सीबीआई आयींग पूरा लेखा देखिंग और तुम चक्की पीसींग एन्ड पीसींग ।

Tuesday, April 12, 2011

नुक्कड़ चर्चा - अन्ना के तीन यार सिब्बल , मोदी और पवार



 अन्ना के अनशन के बाद का  ये नया भारत कैसा है और इसमे कपिल सिब्ब्ल से लेकर  जाति  वर्ग धर्म विपक्ष के नाम से   कैसे कैसे लोगो के समीकरण क्या बोलते हैं ।  और अन्ना को क्या जरूरत मोदी की तारीफ़ करने की । इसी उपापोह के बीच मै नुक्कड़ पहुंचा भाई सोहन शर्मा कह रहे थे अन्ना नेताओं के मुंह पर तमाचा है कि मेरे मुंह से निकल गया शर्मा जी आप भी तो ब्लाक कांग्रेस के सचिव हैं इतना सुनते ही हंगामा मच गया हसीं ठिठोली के बीच गुस्साये शर्मा जी कुछ बोलते उससे पहले किसी और ने पूछ लिया   ये सिब्बल ऐसा क्यों बोले कि लोकपाल बिल से कुछ नही मिलेगा पानी स्वास्थ शिक्षा आदी लोकपाल बिलसे नहीं मिल सकता ।

 खार खाये शर्मा जी ने कहा बताओ दवे जी मैने कहा ये बिल मिलने के लिये तो बना ही नही है ये तो बना ही न मिलने के लिये है अरे भाई मिलने के लिये बने बिलों के दिन लद गये अब किसी नेता को किसी बिल से लाइसेंस से खरीदी से एक रूपया भी नही मिलना चाहिये और  पानी स्वास्थ्य शिक्षा इसके लिये जनप्रतिनिधी  को बोलना पड़े ये तो महा शर्म की बात है । इसका मतलब एक ही है जो समर्थन करता है उसको ही यह सब सुविधायें मिलेंगी  लोकतंत्र तो वो है कि किसी शर्माजी से मिलने की जरूरत न हो । मैने कहा शर्मा जी कांग्रेसी लोग शरद पवार को अच्छा क्यों मानते हैं । चुनाव जीतने पर पवार बेदाग हैं तो मोदी क्यों इतनी बार चुने जाने पर भी दागी हैं  पवार तो फ़िर भी बैसाखी के साथ जूनियर पार्टनर हैं मोदी तो साफ़ विजेता हैं अगर  शरद पवार सच्चे हैं तो मोदी तो अल्लाह की गाय है भाई भारी जन समर्थन है । उसने खाली राजधर्म नही निभाया बाकी तो सब धर्म निभा ही रहा है  ईमानदार है और देश मे सबसे अच्छा काम कर रहा है । मैने कहा शर्मा जी ये सिब्बल , मोदी और पवार ही तो वो तीन यार हैं जिसके कारण अन्ना अनशन के बाद भी छाये हुये हैं और छाये रहना चाहिये भी वरना ये देश फ़िर सो जायेगा

अब तक शर्मा जी कपिल सिब्बल बन चुके थे बोले हें हें हें हें दवे जी आप मेरी बात का गलत मतलब निकाल रहे हैं  मेरी पार्टी तो इस बिल को जल्दी से जल्दी  लाना चाहती है । मैं मुस्कुराया और बोलने वाला ही था कि आसिफ़ भाई बोले यार दवे इतना सब जान कर भी मोदी की तारीफ़ कर रहा है । मैं बोला आसिफ़ भाई इस देश मे दो ही गुनाह है पवार की बुराई करना और मोदी की तारीफ़ करना  । मुझे इतना मालूम है कि अन्ना हजारे सच बोलते हैं और नेता झूठ बोलते हैं । और ये बात भी सच है कि इस आंदोलन की नौबत आना ही पूरे लोकतंत्र पर तमाचा है इस तमाचे को खाकर अगर ये  लोकतंत्र सुधर जाये तो ठीक है वरना पूरा देश पवारो और मोदियों के कब्जे मे आ जायेगा ।  एक बिना किसी धार्मिक भेदभाव के पैसा खाता है उसके लिये हसन अली और ललित मोदी एक बराबर है पैसा आना चाहिये बस दूसरा एक बार धर्म की पिच पर फ़िसल चुका है पर पैसा नही खाता दिक्कत उससे यही है कि उसके दूसरी बार नहीं फ़िसलने की कोई गांरटी नही है


शर्मा जी बोल पड़े और ये दलित वर्ग चिल्ला रहा है कि आरक्षण विरोधी केजरीवाल चोर है उसका क्या । मैने कहा भाई जो शामिल होने से रह गया उसको लग रहा है कि जब इस आंदोलन के नाम पर स्वाधीनता आंदोलन के जैसे पेंशन मिलेगी तो वो खाली हाथ रह जायेगा । अरे क्या कॊई अन्ना की जात पूछ कर गया था क्या जिसमे जर थी देश के लिये कुछ करने का हौसला था वो गया और जो घर बैठे थे उनको कुछ बोलने का हक नहीं है आडवानी से लेकर पासवान तक देश मे इतनी समस्याएं हैं इतने घोटाले हुये क्यों नही खुद आमरण अनशन पर बैठ गये । जान की बाजी लगा नही सकते और अब ढोल पीट रहे हैं दलितो आदिवासियो पर इतना अत्याचार हो रहा है तो क्यों नही गांधीगिरी करते । माना कि केजरीवाल आरक्षण विरोधी सोच रखता होगा पर भ्रष्टाचार वाले मसले पर उसकी सोच कहां आड़े आती है हां जिस दिन वो चुनाव लड़ेगा तो आवाज उठाना अभी मसला देश मे भ्रष्टाचार को जड़ से गायब करने का है और उसके लिये हम गधे को भी बाप बना सकते हैं। शर्मा जी बोल उठे मूर्ख हैं साले मैने मुस्कुरा कर कहा अरे भाई सभी थोड़ी शर्मा जी बन सकते हैं । बस क्या था गिला शिकवा दूर हो गया और मै चैन से यूरिया वाली चाय पीने मे व्यस्त हो गया ।

Saturday, April 9, 2011

भ्रष्टाचारी मरीच , सूर्पणखा और अन्ना विश्वामित्र

एक बार फ़िर हिलने लगा था इंद्र का सिंहासन ।

 भला कि जय  मेनका ने सिखलाया समझौते का आसन ॥


बढ़ी विश्वामित्र के गौरव की जद ।


स्वीकार हुआ ब्रह्म ऋषि का पद ।।


 शरद रितु का पवार बन गया सूर्पणखा ।


कर न सका कुछ झोंक भाड़ का ।


एक खेमा झूम झूम खुशी मनाता ।

एक टाल पराजय सांस राहत की पाता ।।

दूर खड़ा संपादक चिल्लाता ।

इस जीत से मेरा भी नाता ॥


एक   भगवा  झंडा हुआ है ढीला  ।

भ्रष्ट आचरण ने किया था गीला ॥

न बात चलती आज विश्वामित्र की ।

जो राह चलते  सदचरित्र की ॥

मंत्रीगण मुक्त हुये चाल टेढ़ी चलने को ।
मायावी मरीच मुक्त हुआ मनमर्जी करने को ।।

मरीच को  क्या 2 जी से 3 जी हो जायेगा ।

 भारत का जन मानस फ़िर हाथ मलते रह जायेगा ॥


लेखक - पंडित राम किशोर मेहता   एवं अरूणेश दवे

Friday, April 8, 2011

अन्ना हजारे , लोकपाल , गधे की हड्डी और कुत्ते की दुम


सुबह चाय ठेले में मेरे मित्र सोहन शर्मा ने घोषणा की ये अन्ना हजारे तो मुख्य मांग ही भूल गये हैं लोकपाल के दफ़्तर की नींव मे गधे की ह्ड्डी गड़ाना कम्पलसरी होना चाहिये । सुनते ही जमावड़ा चौंक गया एक ने कहा उससे क्या होगा भाई । शर्मा जी ने प्रकाश डाला पुराने जमाने मे जेल और कोतवाली की नींव मे गधे की हड्डी गड़ाई जाती थी ताकि गुनहगार यदी बचने के लिये तंत्र मंत्र का सहारा ले तो गधे की हड्डी से उसका प्रभाव खत्म हो जाये ।

इतना सुनते ही हंगामा मच गया हंसी ठहाके और चुहल के बीच आसिफ़ भाई जिनसे शर्मा जी काफ़ी सामान खरीदते थे उन्होने ग्राहक बचाओ आंदोलन के तहत ये सुझाव दिया कि शर्मा जी की बात एकदम से काटना ठीक नही । लंबी बहस के बाद सबसे कम पढ़ा और सबसे ज्यादा लिखा होने के कारण निर्णय जिम्मेदारी मुझ पर डाली गयी । गाहे बगाहे शर्मा जी साहित्य सेवा के तहत मुझे कुछ पिला खिला दिया करते थे ऐसे मे बीच का रास्ता निकालना ही उचित था । मैने कहा अब वो तांत्रिक रहे कहां जो वो सब कलाएं जानते थे लेकिन आजकल मार्डन तंत्र मंत्र जरूर चल रहा है अब उसकी काट गधे की हड्डियां कर पायेंगी कि नही ये मुझे नही मालूम । मेरे इतना कहते ही सारे शब्द बाण मेरी ओर मुड़ गये और शर्मा जी की जगह मेरी छीछालेदर शुरू हो गयी ।


फ़जीहत से बचने के लिये मैने दमदार तर्क देना शुरू किया - दोस्तो लोकपाल का गधे की हड्डी और कुत्ते की दुम से बड़ा गहरा संबध है और तंत्र मंत्र आज भी जारी है । देखो जब भी कोई अपराधी गिरफ़्त मे आता है तो सबसे पहले तंत्र का इस्तेमाल करता है तंत्र याने शासन तंत्र तक अपनी पूरी पहुंच लगाकर छूटने की कोशिश करता है । इसमे असफ़ल होले पर वह मंत्र का इस्तेमाल करता है और आज की तारीख मे सबसे शक्तिशाली मंत्र लक्ष्मी मंत्र है । आम तौर पर इस मंत्र के प्रभाव से कोई भी व्यक्ती नही बच सकता है । इसीलिये ये कहना तंत्र मंत्र आज भी जारी है गलत न होगा ।


दीपक बोल उठा यार गधे की हड्डी का क्या चक्कर होगा । मैने कहा जहां जिसकी हड्डी गड़ती है उसकी आत्मा वहीं मंडराने लगती होगी कि नही और आत्मा अपने शरीर पर होते अत्याचार को सहन नही कर सकती है । अब लोकपाल के दफ़्तर मे कुछ भी गलत होगा तो आत्मा गलती करने वाले को छोड़ेगी नही । सवाल आया पर गधे की हड्डी ही क्यों । मैने कहा  प्यारे भारत मे गधा कौन है जवाब मिला आम आदमी मैने पूछा लोकपाल किस पर हुये अनाचार की जांच करेगा जवाब मिला आम आदमी के । मैने विजयी मुद्रा से चारो तरफ़ देखा कोई मेरी बात नही काट पा रहा था । तभी एक ने पूछा भाई ये कुत्ते की दुम वाली बात भी बता दो ।


मैने कहा कुत्ते की दुम क्या नही होती जवाब मिला सीधा नही होती मैने कहा और इस देश मे कौन सीधा नही हो सकता जवाब मिला नेता । तो मैने कहा जब तक देश मे ऐसे नेता रहेंगे लोकपाल का दफ़्तर भी आबाद रहेगा और गधे की हड्डी को भी काम मिलता रहेगा । फ़िर मैने दार्शनिक मुद्रा मे कहा यार तुम लोग तो एक से बढ़ कर एक थिंक टैंक हो सारा बात तो जानते ही थे खामखा मेरे मुह से झूठी सच्ची बाते बुलवाते हो । अब खुद को थिंक टैंक मानकर मित्र गण खुश हो गये और मै चैन से यूरिया वाली चाय पीने मे व्यस्त हो गया । जाते जाते मैने शर्मा जी से शाम को बार का प्रोग्राम फ़िक्स किया और सलाह दी यार शर्मा जी ये इंडिया टी वी देखना बंद करो कब तक मै आपको बचाता रहूंगा ।

Wednesday, April 6, 2011

शिव पार्वती - भ्रष्टाचार से लड़ेगा तो मरेगा अन्ना ?

कैलाश पर विराजे शिव जी से माता ने पूछा क्यों प्राणनाथ ये अन्ना हजारे का क्या होगा । प्रभु ने कहा प्रिये प्रारब्ध को अपना काम करने दो आप क्यो अभी से परेशान हो रही हो । माता बोलीं वाह बेचारा भारत भूमी के उद्धार के लिये अनशन कर रहा है और आप कहते हो मै परेशान न हॊउं सच है पुरुष पत्थर दिल होते हैं । अपनी गलती के कारण समस्त पुरूषो को बदनाम होता देख प्रभु बोले नही नही भाई ऐसी बात नही है पर ये अन्ना विधी विरूद्ध कार्य भी तो कर रहा है । माता बोलीं विधी विरूद्ध अरे वो तो भ्रष्टाचार के खिलाफ़ अनशन मे बैठा है समर्थन मे थोड़े ही बैठा है । शिव जी मुस्कुराये अरे आप समझी नहीं देखिये  पडिंतो ने क्या कहा है " जेही विधी राखे राम तेही विधी रहिये सीता राम सीता राम कहिये "



अब कलयुग मे ये नेता अफ़सर लोग ही तो राम हैं जैसे रख रहें है रहो अब इनसे लड़ने जाओगे तो मरना तो निश्चित है । माता बोलीं क्या आप कुछ भी कहते हैं अरे इसी अहिंसा और उपवास के अस्त्र का प्रयोग करके तो महात्मा गांधी ने अंग्रेजो को भारत से बाहर खदेड़ा था । प्रभु ने कहा अरे वो लोग अलग देश के रंग के थे और वे ये जानते थे कि आज नही तो कल इसे छोड़ के जाना है । ये नेता अफ़सर तो इसी देश के इसी रंग के हैं और ये केवल अपने पैसे को विदेश भेजने की सोच सकते हैं देश छोड़ने का तो इनको सपना भी नही आता । ये सब अस्त्र इन पर लागू नही हो सकता ।


माता ने कहा क्या करोड़ो लोगो की भीड़ भी इन भ्रष्टाचारियो को सबक नही सिखा सकती प्रभू । हजारो सालो से राजाओ बादशाहो अंग्रेजो और अब नेताओ की गुलामी सहती जनता उदासीन हो चुकी है उदासीन न होती तो पीटती होश ठिकाने ले आती प्रभु ने कहा । और पीटना भी किसको अपने ही लोगो को वैसे भी भारत का आदमी दया सागर है । नेता हो या अफ़सर दोषी के पैरो मे लोटते ही स्वय़ं भगवान क्रुपानिधान बन जाता है उसपर रहम कर सोचता है वाह मैने कितना पुण्य कमा लिया जनता का भी यही हाल है नेता गिड़गिड़ाया नही कि बस ।

इतना सुनते ही माता भड़क उठीं ठहरिये मै अभी ही इन भ्रष्टाचारियो का संहार कर देती हूं । माता को रौद्र रूप मे देख प्रभु ने उन्हे शांत करते हुये कहा आप कानून व्यवस्था अपने हाथ मे न लें हे जगदबें आप ऐसा करेंगी तो आप के नाम से कपटी साधू लोग सत्ता हाथ मे ले लेंगें । अभी तक जो रामानंद बन राम के नाम से आनंद उठा रहे हैं वे दुर्गानंद बन कर आपका कोई विदेशियो द्वारा ध्वस्त मंदिर खोज उसके नाम पर आनंद उठाना चालू कर देंगे क्या आप ऐसा चाहती हैं । माता ने कहा कदापी नही पर मै इस दुष्ट भ्रष्टासुर को जीवित भी तो नही छोड़ सकती । और ये अन्ना तो मुझे पुत्र के समान प्रिय है इसकी रक्षा तो मै करूंगी ही ।


आप चिंता न करें प्रिये ये अन्ना भी पुराना चावल है इसने महाराष्ट्र मे कई नेताओं को ठीक किया है ये जानता है कब उंगली टेढ़ी करना है और कब सीधी इसे ये भी मालूम है कि बात एक बार मे ही नही बन जायेगी लड़ाई लंबी लड़नी होगी । बातचीत से कोई न कोई रस्ता निकल जायेगा आप चिंता न करें । माता का गुस्सा फ़िर भी कम न हुआ था आप ये बात सीधे सीधे नही कह सकते थे हर बात को गोल गोल घुमाना आपकी आदत बन गयी दिखती है । प्रभु ने मुस्कुरा कर कहा आप तो आजकल दिन भर महिला मुक्ती नारी शक्ती पता नही क्या क्या आंदोलनो मे इतना व्यस्त रहतीं है कि मुझसे बात करने का आपको समय ही नही मिलता इसी बहाने आपके दो मीठे बोल तो सुन लेता हूं मै । इतना सुनते ही माता का क्रोध शांत हो गया और मुस्कुराकर बोलीं क्या आप भी दो बच्चो के पिता होकर ऐसी बातें करते हैं इधर प्रभु ने नंदी को आंख मार कर चैन की सांस ली ।

Sunday, April 3, 2011

शिव पार्वती और गणेश जी का वनमार्ग से भ्रमण


कैलाश पर विश्राम कर रहे भगवान शिव और पार्वती जी से गणेश जी ने भारत भ्रमण की अनुमती मांगी प्रभू ने अनुमती प्रदान करते हुये कहा कि जाओ पुत्र पर  केवल सड़क मार्ग से ही जाना शार्टकट के चक्कर मे वनमार्ग से न चले जाना । माता पार्वती ने आश्चर्य से पूछा वनमार्ग से जाने मे क्या समस्या है प्रभु ।

प्रभु ने कहा वन मार्ग उबड़ खाबड़ होते हैं इसीलिये... माता ने बात काटते हुये कहा वाह वनविभाग तो वनमार्गो के रखरखाव मे तो हर साल अरबो रूपये खर्च करता है । प्रभु ने समझाया भाई जंगल मे मोर नाचा किसने देखा हर साल तो बारिश मे सड़के खराब होनी ही हैं इसीलिये अधिकारी सड़क के आजू बाजू से थोड़ी बहुत मिट्टी गिट्टी डालकर खाना पूर्ती कर लेते हैं और जून महिने मे ही विभाग से भुगतान करवाते हैं । जब तक कोई शिकायत करे बारिश तो आ ही जानी है । माता ने पूछा परंतु प्रभु राष्ट्रीय उद्धानो और अभ्यारण्यो मे तो खनन पर रोक है फ़िर ये सड़क के बाजू से कैसे गिट्टी निकाल लेते हैं । प्रभु मुस्कुराये अरे भाई ये सब रोक तो बाहरी लोगो के लिये है नियम कायदे अधिकारियो पर थोड़े ही लागू होते हैं नियम तोड़ने का अधिकार प्राप्त होने के कारण ही तो इन्हे अधिकारी कहा जाता है । माता ने पूछा और बाहरी लोगो के लिये क्या दंड है प्रभु । बाहरी लोग अगर साहब लोगो को बिना बताये ऐसा करेंगे तो वाहन जप्त हो जाता है और बता कर करेंगे तो कमाई का 50 % ही अर्थदंड लगेगा प्रभु ने समझाया। भारत मे अधिकारियो को बता कर जुर्म करने वाले लोगो को विशेष छूट दी जाती है

माता ने कहा ये तो गलत है भ्रष्टाचार है प्रभु ने कहा ये बेचारे वनाधिकारी शहर से दूर जंगलो मे ड्यूटी करते हैं बिना बिजली के रहते हैं कितनी मेहनत करते हैं । इस पर माता बोल उठीं नही आप गलत बोल रहें हैं मै जानती हूं कि ये अधिकारी तो अधिकांशतः शहर मे ही रहते हैं । प्रभु मुस्कुराये और बोले अरे भाई पत्नियो को भी तो समय  देना ही पड़ता है (मन ही मन प्रभु ने सोचा समय न दो तो कितनी मुसीबते आती हैं मुझसे भला कौन ज्यादा जानता होगा)   उनकी फ़रमाईशें भी तो पूरी करनी पड़ती हैं  अब शिकार करवा के पैसा कमायेंगे तो दुनिया भर के लोग पीछे पड़ जाते हैं इसीलिये ये बेचारे बिना पेड़ कटवाये बिना शिकार करवाये थोड़ा बहुत कमा लेते हैं तो इसमे गलत क्या है । वैसे भी गिट्टी मुरुम निकलवाने से गड्ढा बन जाता है जिसमे बारिश मे पानी जमा हो जाता है और जो गर्मी मे वन्यप्राणियो को पानी मिलता है कितने पुण्य का कार्य है यह तो । ये सब छोड़ो बेटा गणेश तुम वन मार्ग से न जाना ।

गणेश जी ने कहा पापा मेरा चूहा तो होवर क्राफ़्ट की तरह जमीन से दो फ़ुट उपर चलता है खराब रोड से इसको कोई परेशानी नही होती । तभी माता बोल उठी इन्होने कोई बात कह दी है तो अब उसका समर्थन करने के लिये दस बहाने खोज निकालेंगे बताईये बताईये  प्राणनाथ । प्रभु मुस्कुरा उठे और कहा बेटा दूर भ्रमण मे जा रहा है तो पिता कुछ सलाह तो देगा ही कि नही और आप हैं कि मै जो बोलता हूं उसके पीछे पड़ जाती हैं फ़िर गंभीर स्वर मे बोले असली कारण यह है बेटा कि जंगल मे तुम्हे खाने के लिये कुछ नही मिलेगा । गणेश जी ने कहा मै तो दो सदी पहले ही गया था और मैने तो रास्ते भर जंगल से ही रसीले फ़ल और मधु का भोग लगाया था । प्रभु ने कहा दो सदी पहले और आज मे बहुत अंतर आ गया है । अब वो भोजन देने वाले  जंगल काट दिये गयें है और उनके बदले मनुष्य ने सोफ़ा अलमारी और चौखट देने वाले जंगल लगा दिये हैं । अब इन जंगलो मे चिड़ियो वन्यप्राणियो और आदिवासियो के लिये ही भोजन नही है तो तुम्हे खाने को क्या मिलेगा । अचंभित गणेश जी ने कहा अरे मै जिस मुड़िया आदिवासी से मिलने जा रहा था वह मुझे कहां मिलेगा प्रभु ने कहा बेटा आस पास के किसी कारखाने या खदान मे पता कर लेना वही मजदूरी करता होगा

माता और कुछ कहती उसके पहले ही प्रभु बोल उठे और मुख्य बात यह है बेटा कि बस्तर जहां तुम जा रहे हो वहां बारूदी सुरंगे बिछी हुई हैं इलाका बेहद खतरनाक है तुमको कोई परेशानी हो गयी तो तुम्हारी मां मेरा जीना मुश्किल कर देगी याद नही पिछली बार की कैसे रणचंडी बन गयी थीं  और मुझे जल्दीबाजी मे हाथी का सर ट्रांसप्लांट करना पड़ गया था
इतना सुनते ही गणेश जी माता पिता को मीठी तकरार मे उलझा छोड़ मुस्कुराते हुये सड़क मार्ग से भ्रमण को निकल गये ।