Saturday, March 12, 2011

भगवान शिव और आदिवासियो का चढ़ावा


                                                 skyismycanvas.com   से साभार

धरती से शिव पूजन अटेंड कर कैलाश लौटे भगवान भोलेनाथ को मुस्कुराते और थोड़ा लड़खड़ाते देख मां पार्वती के मन में शक उत्पन्न हुआ। उन्होने प्रभु से कारण पूछा, परंतु वे बात को अनसुना कर सीधे शयन कक्ष चले गये और २ मिनट मे ही उनके खर्राटों की आवाज आने लगी । भगवान के समीप जाने पर माता को महिला इत्र की खुशबू आयी। उन्होने  सोचा, आज क्या हुआ है इसका पता लगाना ही होगा

 माता ने एक बड़े से थाल में नाना तरह के व्यंजन रखे और साथ ही 100 ग्राम सूखी घांस भी रख ली। नंदी के पास पहुच कर माता  सूखी घास उसके सामने रख वापस मुड़ी ही थी। कि नंदी चीत्कार कर उठा- "मै मुखबिरी करने को तैयार हूं माते।" मुस्कुराते हुये माता ने कहा- "फ़टाफ़ट  आज का घटनाक्रम पूरा बताओ।"  नंदी बोला- "आज प्रभु बड़े खदानपति के यहां गये थे। आर्गेनिक भोजन सामग्री से बने वहां नाना प्रकार के व्यंजन , मदिरा थी। सुंदर सुंदर महिलाओ ने प्रभु का श्रंगार किया। वे ऐसा भजन गा रही थी कि पूछिये मत।" "वो तो मै था जो प्रभु का पतित्व बचाकर उनको ले आया माते।" : -  नंदी ने गर्व से कहा

अगले दिन सुबह जब प्रभु तैयार होकर धरती भ्रमण पर निकल रहे थे। तो माता ने टोका- " क्या बात है. आजकल आप केवल अमीरो के यहां जाते हैं। बाकी भक्तो ने क्या पाप किये हैं। पिछले कई सालों से आप किसी आदिवासी भक्त के बुलावे मे नही गये। क्या आप अब  मेदभाव करने लगे हैं।" प्रभु ने नंदी की झुकी हुई गरदन देख सारा माजरा समझ लिया। मुस्कुराकर माता से- "बोले क्या बिना कामदेव की मदद से आप मुझे बहला पायी थी। जो इस मक्कार की बातों में आ रही हो। मेरे लिये स्त्री क्या, पुरूष क्या। मै तो जहां लोग प्रेम से बुलाते हैं, वहीं चला जाता हूं।" माता फ़िर भी अड़ी रहीं- "मै कुछ नही जानती। पहले की बात और थी।  कलयुग में पतियो का कोई भरोसा नही है चाहे वे स्वयं आप ही क्यों न हो।  जब तक मैं न कहूं आपको आदिवासियो के यहां ही जाना होगा।  क्या आपको आदिवासी स्वादिष्ट भोग नही लगाते।"

प्रभु ने आदिवासियो का चढ़ावा याद कर ठंडी सांस ली। वे बोले- " उनका चढ़ावा तो मुझे सबसे प्रिय है । बेल, बेर, आम, जामुन, शह्तूत, गंगाइमली , धतूरा आदि नाना प्रकार के जंगली फ़ल। तरह तरह के कंदमूल, पलाश आदि फ़ूल।, जंगली जड़ीबूटिया खाने वाली गायो का शुद्ध पीला दूध। महुआ सल्फ़ी आदी जड़ीबूटी मिश्रित मदिरा। चिरौंजी, दो वर्षो बाद खेत से निकाली हुई कुटकी का अनाज। आहा! इनके लिये तो मै स्वयं नारायण की दावत भी ठुकरा सकता हूं ।:

प्रसन्न चित माता ने कहा- "फ़िर आज से आप उनकी ही पूजा में जायेंगे बस बात खत्म।" प्रभु ने बुझे मन से कहा- "प्रिये अब आदिवासी है कहां, जो मै उनके यहां जाउं।" माता ने तुरंत सूची पेश की- "देखिये, करोड़ो नाम हैं जिसके यहां मर्जी हो जाईये।" प्रभु ने कहा- "प्रिये, अब ये केवल सरनेम के आदिवासी हैं। ये सब अब मिलो मे , खदानो मे और भवन निर्माण के कार्यो में रत गरीब मजदूर हैं। इनके यहां जाउगा तो ३ रू. किलो वाला सरकारी चावल, जहरीली शराब और किसी विवाह समारोह से उठाये हुये बासी फ़ूल ही मिलेंगे। दूध चढ़ायेंगे तो यूरिया मिला। सब्जी होगी तो जहर मिली। देवताओ के हिस्से का विष पीने के बाद अब मुझमे और विष पीने की ताकत नही।"

अचंभित माता बोलीं- " ऐसा कैसे हो गया। अब ये सब अपना पुराना चढ़ावा क्यों नही ला सकते। जब मै आदिवासियो के यहा आपके साथ जाती थी तब तो वे बड़े खुशहाल लोग थे  शाम को वे कैसे भव्य नाचगाना करते थे। उनमे से किसी ने आपसे भोजन  नही मांगा था और वे कभी भूखे भी नही सोते थे।" प्रभु ने जवाब दिया- "उनको भोजन देने वाला जंगल अब नही रहा प्रिये। पूंजीवाद ने फ़ल और फ़ूलदार पेड़ो को  सफ़ाचट कर उनके बदले अपने मतलब के इमारती पेड़ जैसे सागौन, धावड़ा, साल, नीलगिरी आदि लगा दिये हैं। ये इमारती जंगल आदिवासियो और वन्यप्राणियो के लिये बांझ है । इनमे भोजन का एक दाना भी नही । नतीजतन ये आदिवासी मजदूर हो गये। अब आप ही बतायें जो खुद का पेट नही भर सकते। उन पर मै अपना बोझ कैसे डालूं ।"


माता क्रोध मे आ गयीं- आप भी कैसे भगवान हैं। जिन लोगो ने आपके भक्त आदिवासियो का ये हाल किया। आप उनकी पूजा स्वीकार कैसे कर सकते हैं। प्रभु उदास भाव से बोले- "आप ही बताये भगवान को पूजा और भोग तो चाहिये कि नही।न बिना भक्तो के भगवान है कहां।" फ़िर प्रभु ने मुस्कुरा कर कहा- "मै तो हूं ही भोलेनाथ। क्या रावण क्या राम। मै तो हर किसी को वरदान दे देता हूं। कहिये आप इसी भोलेपन पर रीझ कर ही तो मुझसे विवाह करने आयी थी कि नही। रही बात पूंजीपतियो की, इनके पाप का घड़ा भरने दो ऐसा जनसैलाब उठेगा कि इनको नानी याद आ जायेगी।"

"हां आप सरकारी अधिकारियों और नेताओं को समझा कर इन इमारती वनो को मूल प्राकृतिक वनों मे बदलवा सकें तो आदिवासियो का जीवन फ़िर से खुशहाल हो जायेगा। और मै इनकी पूजा  छोड़ कभी पूंजीवादियो के यहां नही जाउंगा।" माता जैसे जाने को तत्पर हुई तो प्रभु ने बोले - सुनिये, बाघ को लेकर मत जाईयेगा। कही संसारचंद शिकार न कर ले। एक काम कीजिये, इस नंदी को ले जाईये। वैसे भी ये चुगलखोर अब मेरे किसी काम का नही।" प्रभु फ़िर धीरे से फ़ुसफ़ुसा कर नंदी से बोले- "जा बेटा सरकारी दफ़्तरो के चक्कर काट काट कर तेरे खुर न घिस गये तो मेरा नाम भी महादेव नही।"
Comments
21 Comments

21 comments:

  1. करारा व्‍यंग्‍य है अरुणेश जी। किसानों को खेत और आदिवासियों को जंगल से बेदखल कर उन संपदाओं को पूंजीपतियों के हवाले किया जा रहा है। बहुत बुरी स्थिति है।

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  2. रही बात पूंजीपतियो की इनके पाप का घड़ा भरने दो ऐसा जनसैलाब उठेगा कि इनको नानी याद आ जायेगी ।

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  3. Waah.. bahut khoob...
    vyavatha par aisa karara vyangya..
    hum bhi isi ummeed mein baithe hian ki..

    रही बात पूंजीपतियो की इनके पाप का घड़ा भरने दो ऐसा जनसैलाब उठेगा कि इनको नानी याद आ जायेगी ।

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  4. महादेव का भ्रम टूटना चाहिए, केवल पाप का घड़ा भरने से काम नहीं चलेगा। जब तक ये आदिवासी/मजदूर उस घड़े को लात मार कर तोड़ नहीं देंगे।

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  5. बहुत सुंदर लिखा जी जिस दिन यह पाप का घडा भरेगा उस दिन यह गरीब आदिवासी सब से पहले इन हरामी पूंजीपतियो को ही इस घडे मे डुबो कर इन की ओकात याद दिलायेगा.... ओर वो दिन अब दुर नही

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  6. बाप रे बाप.
    धमाका है यह तो

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  7. bahut hi khubsurat lekh pad kar sach me mza aa gya dost .

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  8. bahut hi shaandaar vyangya Arunesh ji.. ek-ek shabd saamrajyavaadiyon ki khaal utaarta sa laga.

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  9. Arunesh, tumhare lekho me jo nirantar nikhar aa raha hai use dekh kar mai chamatkrit hoon shiv-parvati ke mithak kp pakar kar samaaj ki vartmaan visangatiyo par prrahaar jabardast kaam hai. badhai, badhai

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  10. वाह! इस तरह के व्यंग्य बहुत कम पढ़ने को मिलते हैं। बेहद सटीक। हास्य को खुद में समेटकर अपनी बात कह रहा है। पूर्ण बात। मेरी बधाई स्वीकार करें।

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  11. व्यंग्य के माध्यम से आपने एक बड़े मुद्दे की बात की है। आज आदिवासियों की नैसर्गिक संपदा का विनाश हो चुका है, जिसकी सजा सभी भुगत रहे हैं। प्राकृतिक आवास में मिलने वाले भोज्य पदार्थ भी अप उपलब्ध नहीं है। जो आदिवासी पहले वनों पर आश्रित थे वे अब सरकार पर आश्रित हो गए हैं।
    बाकी इसने धमाका कर तहलका मचा ही दिया है।

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  12. Beautiful satire. After having lost my wife last month, I am seldom able to comment on blogs. Kindly forgive. Presently I am a wanderrer. It will take a month or so to settle down.

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  13. इतना सुन्दर और सार्थक व्यंग्य लिखा है आपने कि पढ़कर मन गद गद हो गया...

    वर्तमान परिपेक्ष्य पर करारा प्रहार किया है आपने हास्य के माध्यम से...

    बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर पोस्ट...

    मंजी हुई है आपकी लेखनी...हास्य के माध्यम से सार्थक ढंग से कैसे बात पाठक के ह्रदय तक पहुंचाई जा सकती है,भली भांति जानते हैं आप...

    ऐसे ही सुन्दर लिखते रहें...

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  14. बहुत सुन्दरऔर सार्थक ब्यंग | धन्यवाद|

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  15. सुन्दर और सार्थक व्यंग्य लिखा है आपने
    ऐसे ही सुन्दर लिखते रहें
    धन्यवाद|

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  16. नन्‍दी तो गया काम से...


    आपकी लेखनी में दम है... मैं पहली बार आपके ब्‍लॉग पर आया हूं और लगातार पोस्‍टें पढ़ रहा हूं। पुरानी, पुरानी और पुरानी... पर हर पोस्‍ट नई और ताजा लग रही है...


    सार्थक व्‍यंग्‍य के लिए आभार...

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  17. अरे वाह!
    आप तो बहुत अच्छा लिखते हैं!
    बढ़िया व्यंग्य है!

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  18. दम है भाई आपकी लेखनी मे

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