वनविभाग के कुख्यात अधिकारी पन्नाश्री बाबला जी के दफ़्तर के सामने शेहला मह्सूद , दिया बेनर्जी आदि की अगुवाई मे एक जनसभा चल रही थी मंच से वक्ता पानी पी पी कर वनविभाग और मुख्यमंत्री कॊ कोस रहे थे । वहा से गुजरते हुये भगवान जटाशंकर ने खतरे को भापते हुये नंदी को कलटी काटने का इशारा किया । लेकिन देर हो चुकी थी माता पार्वती की नजर पड़ गयी । उन्होने भगवान शिव से पूछा प्रभू माजरा क्या है इन लोगो ने मेरे वाहन बाघ की तस्वीरे अपने हाथो मे ली हुईं है और देखो एन डी टी वी की कैमरा टीम भी है जरूर मेरे वाहन पर कॊई संकट आया है ।
अब महादेव ने क्रोध के हथियार से मामले को दबाने पर विचार किया लेकिन आदतन नंदी महिला थाने के सामने पहुंच चुका था भाई सेवक भले भगवान का था पर दो टाईम का चारा तो माता से ही मिलना था । हार कर भगवान ने माता से कहा केवल १४११ बाघ ही बचे हैं । माता का चेहरा क्रोध से लाल हो उठा बोली ऐसे मे तो मेरे प्रति अवतार एक एक बाघ भी उपलब्ध नही होगा आप नाम बतायें दोषी का अभी मै उसका संहार कर देती हूं । भगवान ने उन्हे शांत करते हुये कहा दोषी तो मनुष्य जाती है पर गलती मेरी है । माता ने अचंभे से पूछा कैसे प्रभु ने कहा अपने जीसस अवतार मे मैने बुद्धि का पेड़ नही हटाया था और आदम ने मेरे मना करने पर भी उसका फ़ल खा लिया था । उसी कारण मनुष्यो ने प्रक्रुति के विनाश के नये नये तरीके खोज लिये नतीजतन बाघो की संख्या मे भारी गिरावट आ गयी है। माता ने कहा गलती आपकी है तो सुधार भी आप करो मैं कुछ नही जानती मुझे कम से कम १०००० बाघ चाहिये बस । प्रभु ने कहा मजाक है क्या मुह से निकला और हो गया अरे भाई जंगल ही नही तो बाघो का भोजन कहां से आयेगा ।
माता ने दिव्य द्रुष्टी डालॊ और तुरंत भोलेनाथ पर फ़ट पड़ीं - " विश्व महिला दिवस पर भी आप झूठ बोलने से बाज नही आये भारत मे 6 ,78,000 वर्ग किलोमीटर का जंगल है और आप कहते हो जंगल नही है "। प्रभु सकपकाये और उन्होने भी दिव्यद्रुष्टी का प्रयोग किया फ़िर मुस्कुराते हुये बोले अरे भाई तुम भी हड़बड़ी मे गड़बड़ी करती हो ध्यान से देखो जिसे तुम जंगल कहती हो दरअसल वो तो सागौन साल नीलगिरी आदी इमारती लकड़ी के प्लांटेशन हैं इन इमारती लकड़ी के पेड़ो के पत्ते , फ़ल और फ़ूल खाध थोड़ी होते हैं कि उन्हे हिरण आदि खाये और तो और इनके नीचे घांस और छोटी झाड़िया भी नही उग पाती हैं हां लैंटाना जैसी बेकार खरपतवार उग जाती है । माता भी कहां पीछे हटती उन्होने कहा अब आप कहोगे की कान्हा राष्ट्रीय उद्यान भी प्लांटेशन है प्रभु ने तुरंत हामी भरी अब विजयी मुस्कान से माता ने कहा अगर कान्हा भी प्लांटेशन का जंगल है तो वहां सौ बाघ कैसे जीवित हैं मेरे तथाकथित महान प्रभु । प्रभू भी अनुत्तरित थे उन्होने आखिरी लाईफ़लाईन का प्रयोग करते हुये फ़िर से जादुई नजर डाली फ़िर संतोष पूर्वक बोले प्रिये वहां से आदिवासियों को हटा दिया गया है और उनके गांव घास के मैदान बन चुके हैं इन्ही मैदानो मे वो हिरण बसते हैं जिनको खाकर वे बाघ जिंदा हैं ।
अब माता बिफ़र गयीं रांउड रांउड बात मत कीजिये प्रभु बाघ जंगल आदिवासी दंद फ़ंद ये सब मुझे नही मालूम मुझे १०००० बाघ चाहिये बस । प्रभु क्रुपाशंकर ने प्रेमपूर्वक कहा प्रिये तुमसे शादी करने के बाद कॊई राउंड नही है पर अकर्म से कॊई भी काम करना भी मेरे बस मे नही । कही भी बाघ होने का मतलब हैं कि वहां शाकाहारी वन्यप्राणी हो और उनके लिये स्वस्थ पर्यावरण तंत्र का होना जरूरी है जो इन वन्यप्राणियो को भोजन दे सके । हां मै तुमको राह सुझा सकता हूं ध्यान से सुनो बाघो की संख्या १०००० पहुचाने के तीन रास्ते हैं पहला रास्ता ५००० आदिवासी गांवो मे रहने वाले एक करोड़ लोगो को विस्थापित करना ताकी उनके खेत घास के मैदान बना कर हिरणो को भोजन उपल्ब्ध कराया जा सके , दूसरा भारत के समस्त वनो कॊ फ़ल और फ़ूल दार पेड़ो से युक्त मूल प्राक्रुतिक वनो मे तब्दील करना तीसरा --- तभी माता ने टोका वाह क्या इससे भी मुश्किल और श्रमसाध्य तरीका खोज रहे हो । प्रभु मुस्कुराये और कहा लो भागवान मै आसान राह बता देता हूं इन ५००० गांवो मे रहने वाले किसानो से घास की खेती करवाई जा सकती है और धीरे धीरे प्राक्रुतिक वनो के पुर्नस्थापन के कार्य मे लगाया जा सकता है ।
माता ने पूछा और घास की खेती करने वह घास बिकेगा कहां प्रभु ने जवाब दिया वह घास वन्यप्राणियो और गांव के पशुओ के लिये होगी और घास की खेती मे लागत और श्रम कुछ नही है और प्रति एकड़ धान की खेती मे होने वाला १०००० का फ़ायदा तो सरकारी सबसीडी से ही आता है उसी सबसीडी को नकद भुगतान किया जा सकता है। और रही बात दीगर खर्चो की वह तो जिन इमारती पेड़ो को काट कर हटाया जायेगा उनको बेच कर ही पूरा हो जायेगा । इस विधी का प्रयोग करने से आदिवासियो को हटाना भी नही पड़ेगा और एक बार प्राक्रुतिक वन स्थापित हो गये तो वनवासियो का जीवन उनसे और पर्यटन से खुशहाल हो ही जायेगा ।
प्रभु ने माता से कहा कि उपाय मैने बता दिया है अब तुम नेताओ और वनाधिकारियो को समझाकर यह कार्य संपन्न कराओ । माता के जाते ही प्रभु ने चैन की सांस ली और नंदी से कहा चल भाई अब कम से कम १०० साल तक माता सरकारी दफ़्तरों के चक्कर लगाती रहेंगी तब तक कैलाश चल कर कुवांरी जिंदगी का आनंद लिया जाय ।
This is the same Government who worship Goddess Durga and is insensitive towards Tiger.
ReplyDeletethe very first line brings smiles on your face!! :-) writer skilfully says precious things abt ecological balance in humourous way!!
ReplyDeleteप्रतीकों के माध्यम से पर्यावरण के साथ शेरों की रक्षा के लिए सार्थक संदेश देती हुई उत्तम रचना के लिए आभार
ReplyDeleteबाघ अभयारण्यों के अन्तर्गत आने वाले जलाशयों की मछलियों को भी संरक्षित वन्य-जीव घोषित करना भी इस अभियान का हिस्सा है। संरक्षित का विलोम हैं तो उस क्षेत्र के लोग ।
ReplyDeleteमनुष्य-बाघ संवाद,भरत डोगरा
वन्यजीव संरक्षण पर व्यंगदृष्टि द्वारा जनसामान्य के धायानाकर्षण के इस पुनीत कार्य हेतु साधुवाद...
ReplyDeleteउन्नति के मार्ग में बाधक महारोग - क्या कहेंगे लोग ?