बायें से दायें - लेखक ,संजय जायसवाल , मनीष धांडे
मई के गर्म दिनो की एक दोपहर मुझे एक फोन आया मैनपुर से जो कि आज नक्सल प्रभावित क्षेत्र है और उस समय धुर आदिवासी इलाका था । खबर यह थी कि इंदागांव के पास एक बाघ तकरीबन रोज देखा जा रहा है । फोन करने वाला व्यक्ती था परभू जो कि एक अर्धशहरी आदिवासी था याने की उसके पास शहरी लोगों कि कुटलिता भी थी और आदिवासियो का नैसर्गिक भोलापन भी था । इस खबर को सुनते ही मै व्याकुल हो उठा और जाने की योजनाएं बनाने मे व्यस्त हो गया लेकिन समस्या यह थी कि हाल मे ही मेरा परीक्षा परिणाम आया था और उसके बाद मेरे पूरे खानदान मे मुझे कॊई एक रूपये भी देने वाला नही था । और पैसे अगर मिल भी जाते तो साहब अपने पैसे से जंगल घूमने मे मुझे वो आनंद कहां आता जैसा मुफ़्त मे घूमने पर आता है ।
खैर तकरीबन एक घन्टे तक दिमाग लगाने के बाद मुझे यह समझ मे आ गया कि जाना मुश्किल ही नही असंभव है क्योंकि गर्मी की छुट्टियों मे मैं अपने तकरीबन हर दोस्त को चूना लगा चुका था । इस पर मै समस्त नेताओ और अधिकारियों को कोसता हुआ कसमसा रहा था कि मेरे जैसा महान वन्यजीव विषेशज्ञ आज एक एक पैसे को मोहताज है । ऐसे मे समय काटने के लिये मैने अखबार उठाया और पहली खबर जिस पर मेरी नजर गय़ी वह यह थी कि मैनपुर मे हीरे की खदान खोजी गयी है ऐसे मे मै पहले सपने देखने लगा कि मुझे हीरे मिल गये है और मै उसके बाद तमाम उम्र जंगल मे रह रहा हूं इसी बीच अचानक मै होशो हवास मे आया और मेरे दिमाग मे एक विचार आया उस विचार को अमली जामा पहनाने के लिये मैने चारे के लिये आर्मी कैंटीन से एक रम की बोतल जुगाड़ी ।
रात मे मेरे बुलावे पर मेरे दोस्त संजय जायसवाल और मनीष धांडे जब पहुचे तो उनकी सावधानी का स्तर इतना ज्यादा था कि दोनो अपना पर्स घर मे रखकर आये थे इस पर मेरे द्वारा की गयी खाने और पीने की व्यवस्था देखकर दोनो और सतर्क होकर बैठ गये । लेकिन मै भी पुराना घाघ था दो दो पैग अंदर जाते ही मैने बातचीत कि दिशा मैने उन सुंदर अमीर लड़कियों की ओर मोड़ी जो बिना तगड़े पैसे वाले लड़को को घास भी नही डालती थी अब वे दोनो भी मेरी बात से पूरी तरह सहमत थे (दोनो ऐन ऐसी ही लड़कियो से प्रेम करते थे) हालांकि अब हीरे की खदान पर बात करने का समय आ चुका था लेकिन संजय के खर्चे पर मै सबसे अधिक बार जंगल घूम चुका था और इस बात उसे बड़ा मलाल था । ऐसे मे संजय ने छूटते ही मुझसे पूछा कि मुझे लड़कियों से क्या लेना देना है और यह भी कि मै तो दूसरो के खर्चे पर अपना जंगल जाने का शौक पूरा कर ही लेता हूं । ऐसे मे मैने भारी मन से स्वीकार किया कि अब ऐसा करना मुश्किल हो गया है यार लोग देखते ही रास्ता बदल लेते हैं किसी अच्छे काम के लिये भी मिलो तो शक की निगाह से देखते हैं । मैने कहा कि मैं शर्त लगाने को तैयार हूं कि तुम दोनो अपना पर्स घर मे छोड़ के आये होगे और यह भी कि आज मै सुधरना चाहता हूं तो सबसे अच्छे दोस्त भी मुझ पर विश्वास नही कर रहे । यह सुनते ही दोनो आत्म ग्लानी से भर गये । संजय ने मेरा पैग बनाया मनीष ने पानी डाला और भारी मन से बोला जो बीत गयी उसे छोड़ो और अब आगे करना क्या है वो बता।
मैने तुरंत अखबार की कटिंग निकाली और उनके सामने रख दी और कहा कि पैसा कमाने का इससे सुनहरा अवसर फ़िर नही मिलेगा दोनो खबर पढ़ते ही उत्साहित हो उठे पर संजय अभी भी पूरी तरह आश्वस्त नही था उसने योजना में तरह तरह की कमियां निकालने का प्रयास किया लेकिन मेरी तैयारी मे कोई कमी नही थी और यह बात तय थी कि आज की रात मै बाघिन के और वे दोनो हीरों के सपने देखने वाले थे हालांकि बीच मे एक बार उनके दिमाग मे ये खयाल भी आया कि इस योजना पर तो वे दोनो भी अमल कर सकते हैं और मुफ़्त मे मुझे पार्टनर क्यों बनाया जाय पर मेरे यह समझाने पर कि यह योजना तो मै ही लेकर आया था और यदी मेरे पास पैसे आ जाय तो मेरी मुफ़्त मे जंगल घूमने की आदत से उन्हें सालाना होने वाला नुकसान भी नही होगा वे तुरंत सहमत हो गये । बस क्या था साहब अगली सुबह दो मोटरसाईकिलो से निकल पड़े हम लोग मैनपुर से परभू को साथ लेकर पहुच गये पहले जुंगाड़ और फ़िर इंदागाव मेरी योजना यह थी की राज फ़ाश होने के पहले तो महुआ की बियर और देशी मुर्गे का मजा ले लिया जाय उसके बाद जो प्राथमिकता थी वह यह कि बाघिन होने या न होने की असलियत पता की जाय , बाघिन की खबर सत्य पायी जाने पर उसके द्वारा अकसर प्रयोग मे लाये जाने वाले पानी के स्त्रोत का पता लगाकर वहां मचान बाधंकर एक दो रात गुजारी जाय ।
अगले दिन सुबह पतासाजी करने दो बाते मालूम पड़ी एक तो यह की खबर पूरी सच नही थी बाघिन को देखा तो जा रहा था पर रोज नही दूसरी यह कि बाघिन ने अभी तक आस पास के गांवो मे किसी पशु को नही मारा था । कान्हा जैसे प्रसिद्ध उद्यानो के विपरीत भारत के आम जंगलो मे जो पर्यटको से अछूते हों बाघो का देखा जाना एक असामान्य चीज है तेंदुओ के उलट बाघ आमतौर पर मनुष्यों से दूर ही रहते हैं और अभी भी बाघिन के दिखने की खबर पर पूरा यकीन नही किया जा सकता था हो सकता था कि बड़े आकार के मर तेंदुए की झलक पाकर किसी उत्साही ग्रामीण ने बाघ की घोषणा कर दी हो या किसी एक को बाघ दिखने पर बाकियो ने खुद कॊ बाघ दिखने की बात फ़ैला दी हॊ ।
किसी भी जंगल मे बाघ है कि नही यह जानने के लिये जो तरीका कारगर है वह यह है कि बाघ की भोजन श्रंखला की उपस्थिती बाघ के किसी भी जगह मौजूद होने के लिये उसका भोजन वहां मौजूद होना बेहद आवश्यक है यही नियम हर प्राणी पर लागू होता है हम पर भी गर्मियों मे यह काम और आसान हो जाता है । फ़सल के दिनो मे हिरण जंगली सुअर आदि वन्य प्राणी खेतो की ओर खिचे चले आते हैं और उनके पीछे बाघ भी लेकिन गर्मियो मे वन्य प्राणी आम तौर पर जंगल मे पानी के स्त्रोत के पास ही रहते हैं और ऐसे मे पानी का स्त्रोत वहा रहने वाले हर जीव की खबर दे देता है । खैर साहब योजना यह थी पहले बायी तरफ़ आगे जाकर उस नाले मे उतरा जाय जो कि आगे जाकर हीरे की खदान के बाजू मे देवधारा नाम के जल प्रपात से होकर आती हुई उदंती नदी की जल धारा से मिलता है (यह नदी सतकोशिया अभ्यारण्य होते हुये हीराकुन्ड बांध के ठीक बाद महानदी से जाकर मिल जाती है) । इसके बाद फ़िर बायीं ओर मुड़कर देव धारा तक सफ़र किया जाता इस योजना मे फ़ायदा यह था कि लम्बे क्षेत्र मे हुये वन्यप्राणियों के आवागमन की सटीक जानकारी मिल जाती और इस काम के पूरा होने पर हम ठीक हीरे की खदान के बाजू निकलते इससे हीरे की तलाश भी साबित हो जाती ।
अगली सुबह नाले मे पहुचने पर सबसे पहले नेवले के दर्शन हुये आगे बढ़ते हुये हम चारों नाले मे तलाश करने लगे मैं और परभू वन्यप्राणियो के पैरो के निशान की और मेरे दोस्त हीरे की हालांकि मै भी बीच बीच मे चमकीले पत्थरों का मुयायना कर लेता था अगर बाघिन के साथ दैवयोग से हीरे भी मिल जाते तो इसमे नुकसान कहां था। आगे बढ़ने पर सांभर सियार भालू आदी जानवरों के पैरों के निशान तो मिल रहे थे पर बाघ का कॊई निशान नही था और जब परभू ने जंगली कुत्तों के निशान की ओर मेरा ध्यान खींचा मन मे निराशा छा गई मेरी समझ से अब बाघिन के मिलने की संभावना नगण्य थी इस पर मेरा ध्यान अपने दोस्तों की ओर गया जिस लगन से वे हीरे की तलाश कर रहे थे उस से आधी भी उन लोगो ने पढ़ाई मे लगाई होती तो आज वे आई एफ़ एस होते और मैं जीवन भर उनके सहारे मुफ़्त मे जंगल घूम सकता था । खैर साहब बाघिन न सहीं मै जंगल मे तो था जिसकी सुगंध मात्र से मेरा रोम रोम पुलकित हो जाता था और परभू के थैले मे महुआ की बियर भी भरी हुई थी ऐसे मे पुनः प्रसन्न मन से मैं आगे बढ़ चला । नाले के दोनो ओर मुख्यतः बांस और साल के पॆड़ थे जंगल एक दम शांत था सिवाय सतबहनिया पक्षियो की बीच होती खटपट और एक रैकेट टेल ड्रोंगो के जो पता नही किस चिड़िया की नकल उतार रहा था । ऐसे मे मैने आराम करने की सोची इसके लिये उपयुक्त जगह के बारे मे सोचने लगा आगे एक गोलाकार जगह थी जहां नाले ने रस्ता बदल कर मोड़ ले लिया था वहां पानी और छांव दोनो उपलब्ध थी वहां महुए की एक बोतल खाली करने का विचार बुरा नही था ।
मै सबसे आगे हो गया था और परभू थोड़ा पीछे बाजू मे और दोनो हीरा खॊजी सबसे पीछे । परभू मुझे मन ही मन थॊड़ा सनकी मानता था उसके विचार से बिना हथियार के और बिना शिकार की इच्छा के इस तरह जंगल घूमने वाला सिवाय सनकी के कुछ और नही हो सकता था लेकिन जैसे बाघ के पीछे रहने वाले सियार का काम चल जाता है ठीक वैसे ही मेरे जैसे मुफ़तिया घुमक्कड़ के साथ उसका भी चल जाता था और डी एफ़ ओ साहब के भांजे के साथ घूमने के कारण वन कर्मचारी भी उसका थोडा मान रखते थे इसलिये वह मेरे साथ प्रसन्न रहता था और सामान खरीदी के पैसों मे रोजी भी निकल जाती थी ।
खैर साहब उस मोड़ पर जैसे मैं मुड़ा तो दो चीजे एक साथ हुई एक कॊटरी चमक कर महज कुछ फ़ुट की दूरी से भागा शायद हमारे रेत पर चलने से उसे आवाज नही आयी थी और जैसे ही मै कोटरी के भागने की दिशा में देखने लगा ठीक वैसे ही एक भयानक आवाज से मेरे कान सुन्न हो गये और वापस देखने पर मुझे एक बाघ का चेहरा जो कि एकदम गोल कान पीछे मुड़े हुये और आंखे एकदम गोल अपनी ओर आता नजर आया और पीछे से परभू आवाज आयी भागो बाघ मै अपनी जगह पर जड़ था दिमाग सुन्न उसके बाद के कुछ क्षणो मे क्या हुआ मुझे पता नही आंखो के सामने लालिमा छा गयी । होश मे आने के बाद मैने देखा वह यह कि बाघ बायी ओर से उसी दिशा मे किन्तु थोड़ी दूरी बनाते हुए जा रहा था जिस तरफ़ मेरे साथी भागे थे फ़िर कुछ दूरी से बाघ की एक और दहाड़ सुनाई दी मैं वही पर बैठ गया कुछ मिनटो बाद जब होश हवास ठिकाने मे आये तो कांपती टांगो से गांव वापस जाने का रस्ता पकड़ा ।
कुछ दूर चलने के बाद एक टीले पर खड़े होकर मैने देखा कि मेरे साथी पूरी रफ़्तार से गांव की ओर भाग रहे थे । भागना तो मैं भी चाहता था पर ताकत नही थी और अभी मेरा पैंट जिस स्थिती मे था उसे साफ़ किये बिना गांव जाने पर भारी खिल्ली उड़ती ।मेरे तालाब से होकर गांव पहुचने तक दो बाते हो चुकी थी पहली यह कि मेरे साथी कुछ दूर भागकर मेरे लिये रुके थे लेकिन बाघ की दूसरी दहाड़ सुनकर उनकी हिम्मत जवाब दे गयी और मेरे जीवित होने की आशा उन्होने छोड़ दी । दूसरी यह जब तीनो भाग कर गांव पहुचे और उन्होने घटना की खबर दी तो वहां एक वनरक्षक मौजूद था जिसने पहले से उस इलाके बाघ दिखने के बाद गांव वालो को वहा जाने से मना कर रखा था इसके अलावा जब उसे यह मालूम हुआ कि जिस पर हमला हुआ है वह डी एफ़ ओ साहब का भांजा है तो उसने कड़क कर तीनो से पूछा वे वहां क्या खोजने गये थे तो उसे एक साथ दो जवाब मिले मेरे दोस्तो ने कहा हीरा और परभू जो अब थर थर कांप रहा था ने कहा बाघिन इस जवाब को सुनकर मेरे दोस्तो को पूरा माजरा समझ मे आ गया ।
अब साहब जैसे ग्रुहमंत्री का कुत्ता चोरी होने पर पुलिस विभाग सक्रिय हो जाता है वैसे ही डी एफ़ ओ साहब के भांजे की खबर सुनकर वनविभाग सक्रिय हो गया और खोजी दल तैयार हो चुका था कि मै पहुंचा मेरे पहुंचते ही मेरा प्यारा दोस्त संजय जायसवाल मेरे गले से लिपट गया हम दोनो की ही आंख मे आंसू थे ।तभी पीछे से मनीष की आवाज आयी संजय इस कमीने ने फ़िर हमको टोपी पहना कर जंगल घूम लिया इतना सुनते ही संजय छिटककर मुझसे दूर हो गया और बोला मैने सुना था कि बिल्ली की नौ जिंदगिया होती है पर कुत्ते की दो जिंदगी होती है यह पहली बार देखा । यह बोलकर दोनो ने अपनी अपनी गाड़ी चालू कि और बोले साले तू आना अपने खर्चे मे लौट कर और वापस रायपुर की ओर चले गये । अब बारी परभू की थी वह भी मुझसे लिपट कर रोया और बोला मै बच गया भईया वरना साहब लोग मुझे बहुत मारते । मै उसे दिलासा दे ही रहा था कि खबर सुनते ही एस डी ओ साहब जो कि इलाके के दौरे पर थे पहुंच गये और मुझे ठीक ठाक देखकर उन्होने राहत की सांस ली और उनके साथ गाड़ी मे मैं मैनपुर तक आ गया । रास्ते मे मैने अपने दोस्तो को भी देखा पर वे मुझे नही देखा । मैनपुर पहुच कर गाड़ी विश्रामग्रह मे रुकी और मैने साहब के बहुत हाथ पैर जोड़े कि यह बात मेरे मामा को न बतायें वरना मेरी बहुत पिटाई होगी इस वादे पर कि अब मैं कभी जंगल नही घूमुंगा उन्होने हां कहा और चौकीदार को खाने की व्यव्स्था करने और ड्राईवर को मुझे बसस्टैंड पहुचाने का निर्देश देकर चले गये ।
अब साहब मैने चौकीदार को तीन लोगों का खाना बनाने को कहा और ड्राईवर को कहा कि मेरे दो दोस्त जो रास्ते पर दिखे थे वे आते होंगे उन्हे रोककर कहना कि बड़े साहब बुला रहे हैं । कुछ देर बाद जब दोनो बड़े साहब से मिलने अंदर आये और आराम कुर्सी पर मुझे बैठा देखा तो दोनो आश्चर्य चकित हो गये मैने बताया कि मैं वनविभाग की गाड़ी से आया और तुम लोगों का खाना भी यहीं है । खाना खाते खाते दोनो का गुस्सा भी कम हो गया और हममे बातचीत भी चालू हो गयी । खाना खाने के बाद जब हम बाहर आये तो मैने उनसे कहा कि आराम से जाना तो दोनो जो ये सोच रहे थे कि मै साथ ले चलने की मिन्नते करूंगा ने पूछा कि मै किसमे जाउंगा तो मैने गाड़ी की ओर इशारा किया । अब वे दोनो भरी गर्मी मे बाईक से तपते हुये जांये और मै आराम से गाड़ी मे ये उनकी बर्दाश्त से बाहर था अब दोनो ने लगभग धमकाते हुये कहा तू हमारे साथ आया था और हमारे साथ ही जायेगा बस क्या था एक बार फ़िर मै उनके खर्चे पर ही अपने घर की ओर लौट चला ।
आज भी मेरे ये दोनो दोस्त मेरे साथ जंगल घूमने जाते हैं अंतर बस इतना है कि अब मुझे अपना हिस्सा एडवांस मे जमा कराना पड़ता है हांलाकि मेरी मुफ़्तखोरी की पुरानी और असाध्य बीमारी को देखते हुये मुझे १०-२० % की छूट मिल जाती है पर अब इस लेख के प्रकाशित होने पर शायद यह छूट मिलना भी बंद हो जाये ।
इस घटना के ५ महीने बाद उसी जगह एक बाघिन शिकारियों के फ़ंदे मे फ़स गयी । यह फ़ंदा आम फ़ंदो की तरह नही था जिसे स्थानीय आदिवासी प्रयोग करते हैं । इस घटना मे बाघिन को अपने एक पंजे और स्वतंत्रता से हाथ धोना पड़ा । सबसे लम्बी उम्र २१ वर्ष की जीवित रहने का रिकार्ड इसी बाघिन जिसका नाम शंकरी रखा गया था के नाम ही है । हाल ही मे इसका निधन रायपुर के चिड़िया घर मे हुआ है जब वह पकड़ी गयी थी तब उसकी उम्र ६ वर्ष की थी । मैं यह तो नही जानता कि मेरी जान बख्श देने वाला बाघ वही थी लेकिन जितनी बार भी मैने उसे पिंजरे मे देखा हर बार धन्यवाद जरूर कहा ।
सुन्दर लेख दवे जी आप को साधुवाद
ReplyDeleteबाघ से साक्षात्कार के अनुभव बताने के लिए धन्यवाद। साथ में उस बाघ को भी। जीवंत वर्णन। ऐसा लगता है कि सब कुछ सामने घटित हो रहा है।
ReplyDeleteye huyi na koi baat.
ReplyDeletemast post hai.
sadhu-sadhu-sadhu