Thursday, February 28, 2013

हा राम - हे राम सेतु


परिवार के बड़े बुजुर्गो से मैं बड़ा नाराज हूं साहब।  बचपन में "राम रक्षा स्त्रोत" जाप करना सिखाये  "राम फ़ायदा स्त्रोत" सिखाये होते तो आज मै कहां का कहां पहुंच गया होता। वैसे मुझे अपनी भी अकल लगानी चाहिये थी। जब प्रभु  के छू मात्र देने से पत्थर तक जी उठता है। उनकी शरण मे जाने से सारे पाप धुल जाते है तो उनके नाम से भाजपा की तरह मै भी तर गया होता। बाबरी मस्जिद आंदोलन से मिला रामनामी प्रसाद बेचारो को रह रह कर याद आता है तो उनकी कोई गलती भी नही। मै तो सोचता हूं कि पिछली बार जब सत्ता पाये थे तो संसद का नाम राम संसद काहे नही कर दिये। हारते ही नारा लगा देते "सौगंध राम की खाते है राम संसद कब्जायेंगे"। भारत की भोली भाली जनता तुरंत नतमस्तक हो राम मंदिर टाईप चंदा भी देती और वोट देने में तो खैर पैसा भी नही लगता।

अब इनको मौका लगा है राम सेतु का। क्या हुआ जो अटल जी की सरकार ने  राम सेतु से नहर बना समुद्री मार्ग खोलने का फ़ैसला किया था। अरे भाई गलती हर किसी से होती है, अब अटल जी से गलती हुई तो इसका मतलब थोड़े कि नराधम कांग्रेस उसका बहाना बना कर श्रद्धेय रामसेतु को तोड़ दे। राम सेतु परियोजना का नाम आते ही हर संघी आज कल भावविह्वल हो  मृत्यु शय्या पर पड़े दशरथ की तरह  "हा राम" चीत्कार उठता है।   ऐसा लगता है कि जाने माने राम सेतु टूट गया तो ये  उपर जाकर भगवान राम को क्या मुंह दिखायेंगे।  भगवान अपना सेतु न बचा पाने के अपराध से कुपित होकर इनको सीधा खौलते तेल के कड़ाहे मे फ़ेंकवा देंगे। आप ही सोचिये कि बाबरी मस्जिद गिराने के संचित पुण्य से स्वर्गाधिकारी हो चुका हर संघी स्वर्ग  में विजय माल्या टाईप सुरा सुंदरी में तर होने का टिकट पा चुका था अचानक अपने नर्क मे धकेले जाने की संभावना से कितना हकबकाया हुआ होगा। कल तरूण विजय का राज्य सभा में भाषण सुनते समय मुझे लगा रहा था कि अब धार धार रोये कि तब।

अच्छा मै तो कोई वैज्ञानिक नही हूं शुद्ध राम भक्त हूं। जिसको शंका हो वह आकर मुझसे धारोधार रामरक्षा स्त्रोत रामचरित मानस का पाठ सुन सकता है। अब उम्र के इस पड़ाव पर मै कम्युनिस्ट भी नही हो सकता। जहां कोई कष्ट हुआ नही कि मुंह से आप ही आप "हे राम निकल: जाता है। और राम भक्त होने के नाते मै इन को शास्त्रार्थ पर भी आमंत्रित कर चुका हूं कि भाई रामसेतु ये है ही नही। पहली बात तो नल नील ने राम लिख कर चट्टान पेड़ आदि को समुद्र मे तैराया  था। सो रामसेतु पानी में तैरने वाला सेतु था जमीन से जुड़ा हुआ नहीं।  यह भौगोलिक संरचना राम सेतु हो ही नही सकती। दूसरे लंका विजय के बाद विभिषण ने प्रभु से विनती की - "प्रभु श्री राम यह सेतु मेरे राज्य पर सतत खतरा बना रहेगा, आपके नाम के प्रभाव के कारण इसे नष्ट भी नही किया जा सकता। केवल आप ही इसे नष्ट कर सकते है।" इस पर प्रभु श्री राम ने इस सेतु को नष्ट कर दिया था। स्वयं बाल्मिकी रामायण मे यह स्पष्ट दिया हुआ है। लेकिन  संघियो और उनके बाबू जी मोहन बैटरी को तो दिल्ली फ़तह करना है वे तो गधे को भी बाप बना सकते है। एक सज्जन हमसे बोले  कि भले ये वो राम सेतु नही पर राम उसी रास्ते से लंका गये थे सो वह हमारे लिये पूजनीय है। हमने कहा फ़ेर अयोध्या से लेकर लंका तक पूरा रास्ता पूजनीय हुआ कि नहीं। काहे रेलवे लाईन, रोड, नहर बनने दिये, भाजपा शासित राज्यों मे बना रहे हो?  वे सज्जन खसक लिये।


दिल्ली फ़तह करना भी कॊई बुरी बात नही हम भी चाहते है कि इस बार कांग्रेस से छुटकारा मिले। पूरे देश के मध्यमवर्ग में नरेन्द्र मोदी की लहर है, आज तक कभी किसी भाजपा के नेता के लिये ऐसा जन समर्थन भी नहीं था।  ऐसा भी नही है कि दूसरे राजनैतिक दल इस तरह की चालबाजिया नहीं करते। लेकिन जब मामला देश की सुरक्षा से जुड़ा है, श्रीलंका के दक्षिणी छोर पर चीन का बंदरगाह आ रहा है हमारा पूरा समुद्री यातायात उसके नियंत्रण मे आ जायेगा। ऐसे में राम सेतु से नहर निकाल पूरा समुद्री यातायात अपनी सीमा से होकर ले जाना कितने रणनीतिक, आर्थिक फ़ायदे की चीज है यह तो सोचना चाहिये। चलो उसके बाद भी किसी को लगे नही राम सेतु नही टूटना चाहिये तो भी कोई बुरी बात नहीं। सुप्रीम कोर्ट मे केस लगा दिया गया है अपना वकील लगाओ दलीलें तथ्य सामने रखो, जो फ़ैसला आयेगा वह सबको मान्य। लेकिन नहीं अब देश भर मे प्रोपोगेंडा मे लग गये है खुद की सरकार आ गई तो फ़िर कैसे बना पायेंगे?  कोई वैक्ल्पिक मार्ग भी बताते है भाई लोग जिसमे  हजारो करोड़ अतिरिक्त खर्च आयेगा।पहले ही देश आर्थिक संकट से जूझ रहा है याने फ़िर इनकी चुनावी तिकड़म का नुकसान देश झेले। खैर अभी भी बीच का रास्ता निकाला जा सकता है। ये कांग्रेसी लोग का भी गलती है।  हर चीज का नाम महात्मा गांधी  के नाम से कर देते है। अरे भाई ठीक है महात्मा गांधी देश के बापू  है हम भी बापू मानते है। पर बाज लोग दूसरो को बापू मानते है उनकी भावनाओ का भी तो खयाल रखो भाई। सबको अपना अपना बापू मानने का संवैधानिक अधिकार  है। इतना सब नाम अपने मन का रख लिया अब एक नाम उनके मन का भी हो जाये। आप प्रस्तावित तो करो कि राम सेतु से होकर निकलने वाली समुद्री नहर का नाम गोड़से नहर होगा फ़िर देखिये कैसे  आम सहमति बन जाती है। उनका नाम हो जायेगा देश का काम हो जायेगा।

Sunday, February 24, 2013

निर्मल बाबा वाटरप्रूफ़


अति आदरणीय निर्मल बाबा को न्यूस और मनोरंजन चैनलो पर फ़िर लोगो की पीड़ा का शमन करते देख मुझे भगवान भोले नाथ पर बड़ी दया आई। वैसे भोले बाबा ही इसके लिये जिम्मेदार भगवान होंगे ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है।  वेद और पुराण गवाह है कि भगवान भोलेनाथ का अपने सरल स्वभाव के कारण अपात्र लोगो पर भी दया कर उन्हे वरदान देने का पुराना ट्रैक रिकार्ड है। एक बार किसी असुर को दुश्मन के सर पर हाथ रखते ही उसे भस्म कर देने का वरदान दे दिया था। उस पापी असुर ने जटाशंकर पर ही वरदान अजमाने का ठान लिया। वो तो भला हो नारायण विष्णु का, जिन्होने मोहिनी रूप धारण कर असुर का हाथ उसके ही सर पर रखवा दिया तब जाकर  शंकर भगवान चैन का सांस लिये थे। सो निर्मल बाबा को भी वही वरदान दिये होंगे और निर्मल बाबा  भोलेनाथ को उनके भक्तो  के घर से निकालने की कसम खा लिये है। पिछला बार बवाल मचने के पहले हम महादेव घाट के शिव मंदिर मे सात सौ ईक्कीस पिंडिया गिने थे। इस बार पता नही कितने और घरो से महादेव निकाला हो जायेगा।

वैसे निर्मल बाबा को देश के आदर्श बाबा के खिताब से नवाजा जाना चाहिये। काहे कि ऐसा वाटर प्रूफ़ देश भक्त टैक्स उ बाबा इस देश में कोई नही। इस देश के बाबा लोग तो भगवान के नाम पर लिप सर्विस का पैसा लेते है। भुगतान को दान का नाम देते है। और बिना कोई टैक्स पटाये देश का प्रधानमंत्री कौन हो इस मामले पर कुंभ से फ़तवा जारी कर देते हैं। याने चोरी त चोरी और फ़ुल सीना जोरी। अपने निर्मल बाबा न तो बाबा रामू की तरह काला धन पीलाधन आंदोलन करते है न आशा बापू राम की तरह पत्रकारो को पिटवाते, भक्तो को लात मारते है। किसी भी तरह की राजनीती से खुद को कोसो दूर रखते है। दायें बायें की बात भी नही करते दारू मत पियो, बुर्का पहनो, लड़कियो राक बैंड मत चलाओ टाईप  अंदरूनी मामलो में दखलंदाजी भी नही करते। दलित आदिवासी, स्वर्ण, ईसाई, मुसलिम  का भेदभाव भी नही। और न ही किसी भी भगवा, हरा रंग का लबादा ओढ़ अपने श्रद्धेय होने का अहसास दिलाते है।

अब तो उन्होने एक नया आदर्श स्थापित किया है। उनका मानना है कि वे भक्तो को सर्विस दे रहे हैं। तो वे हर भक्त से सर्विस टैक्स भी जमा करवा रहे हैं। अब सोचिये कि जब अकेले निर्मल बाबा इस सरकार को एक करोड़ रूपया इनकम टैक्स और बारह लाख रूपया सर्विस टैक्स की आमदनी महज तीन महिने में करवा सकते है। तो कुंभ के मेले में प्रधानमंत्री चुनने एकत्र हुये सारे बाबा कितने का रेवेन्यू जनरेट कर सकते है। इसमे तमाम रामायण गीता सुनाने वाले बापूओ को जोड़ दिया जाये तो मामला खरबों में पहुंच जायेगा।  अगर तिरुपती से लेकर वैष्णव देवी और साई बाबा से लेकर सत्य सांई बाबा मंदिर को एड कर दिया जाये त मामला शंख, नील
तक पहुंचने की संभावना है। इन पैसों से देश मे नाथूराम गोड़से स्वर्ण भारत योजना लागू की जा सकती है। अजमेर की दरगाह से लेकर हाजी अली तक, मदरसो से लेकर मस्जिदों को जोड़ने पर तमाम पसमंदा दबे कुचले मुसलमानो की तबीयत हरी की जा सकती है। दीनी मदरसो में तालीम देने वाले तमाम मौलवियों के घर लेटेस्ट टेक्नोलाजी का एसी फ़िट किया जा सकता है। अगर इस्लाम में एसी हराम हो तो भी कश्मीर वाले मुफ़्ती से फ़तवा लेकर किसी और टेक्नालाजी की सुविधा फ़रहाम की जा सकती है। कुछ बुखारियो को बुखार और पशमीना बाबा को पसीना जरूर छूट सकता है पर ये लोग ही त खुद को धर्म रक्षक, देश रक्षक बताते है। फ़िर देश को पैसा देने में हर्ज क्या। और पूरा दान थोड़े न कोई मांग रहा है, केवल इनकम टैक्स, सर्विस टैक्स काट लिया जायेगा। आखिर जब ये लोग भगवान और अल्लाह की सेवा में लगे ही हुये है। त सेवा कर देने मे क्या हर्ज हो सकता है भला। (चर्चो से मिल सकने वाले धन को जोड़ नही पाया हूं। काहे कि इतना बड़ा कैलकुलेशन करने वाला कैलकुलेटर नही था। इसे मेरी क्षद्म धर्मनिरपेक्षता हरगिज न समझा जाये।)

और इन राजनैतिक दलो को भी तो थोड़ा सोचना चाहिये। ये न्यूस वाले निर्मल बाबा को इतना बदनाम कर रहे है ये लोग कुछ दखल देते नहीं। अरे सोचिये तो जिस आदमी के कहने से करोड़ो लोग टीवी के सामने काला पर्स खोल कर बैठ जाते है तो क्या फ़लां छाप पर मुहर लगाने से लाभ होगा कहने से एकतरफ़ा वोटिंग नही हो सकती। और टैक्स पटाने के लिये जब अमिताभ बच्चन सचिन तेंदुलर का विज्ञापन दिखा सकते हो तो निर्मल बाबा तो देश हित मे मुफ़्त मे भी काम करने तैय्यार हो जायेंगे।  इन स्वयंभू चौथे स्तंभ के लोगो से भी पूछना चाहता हूं। आखिर क्या बिगाड़ा था निर्मल बाबा ने एड दे रहा था। अब प्रिंट मीडिया वालो को नही मिला त भाई मांग लेते जो बाबा एक साथ आठ न्यूस चैनलो मे अपने समागम दिखा सकता है उ क्या सौ पचास अखबारो को एड नही दे देता। और जरा सोचो कि निरमल बाबा कही प्रेस कांफ़्रेस कर आरोप लगा दिया कि खुद नीम-हकीम- खतरा- ए- जान का रोज विज्ञापन छापते हो, लिंगवर्धक यंत्र का प्रचार कर लोगो को बरगलाते हो  और हमारे को बदनाम करते हो तो क्या जवाब दोगे भाई। याने "निर्मल बाबा बैरी संपादक प्यारा बताओ पत्रकारिता अपराध हमारा" टाईप का सवाल दागा जा सकता है।


खैर साहब इन बाबाओ मुल्लाओ नेताओ सरकार और पत्रकारो से तो हमे हमारी सलाह माने जाने की कोई उम्मीद नही। पर हम आपको एक नेक सलाह मुफ़्त मे दे रहे है। किसी ऐरे गैरे बाबा के पास जाने से निर्मल बाबा के पास जाना सबसे अच्छा। काहे कि ज्योतिष के पास जाओगे त कालसर्प से लेकर भंयकर मंगल, शनी अमंगल बता देगा। दुनिया तमाम के रत्न -पूजा-यज्ञ करवा देगा। हजारो का चंदन लगेगा और समय खोटी हो वो अलग। इससे अपने निर्मल बाबा कितने बेस्ट है, एंट्री फ़ीस जरूर थोड़ी महंगी है पर उसके बाद बहुत ही सस्ता उपाय बता देते है। गोलगप्पा से लेकर सवा किलो पेड़ा तक झट पट किया नही कि रूकी हुई किरपा फ़ुल स्पीड से आपके पास आना शुरू।  अभी पैसे नही तो बस टीवी से ही पर्स खोल किरपा ले लो पर्स भरने के बाद डाईरेक्ट किरपा लेने एपाइंटमंट। याद रखो भाईयो सस्ता रोये बार बार महंगा रोये एक बार।

Wednesday, February 20, 2013

ग से गधा, क से काटजू


आदरणीय काटजू जी


देखिये काटजू साहब गधे गाते नही है। हालांकि गधों का गाना उनका संवैधानिक अधिकार है जिसे किसी भी अदालत में चैलेंज नही किया जा सकता। परंतु जिस तरह नयी बहू से ससुराल मे सर झुका कर रहने की उम्मीद रखी जाती है उसी तरह गंधो से भी चुप रहने की उम्मीद की जाती है। मै किसी भी प्रकार से आपकी और गधो की तुलना नही कर रहा हूं। लेकिन गधा शब्द आजकल ’हाट’ है। काहे कि यू पी सरकार ने ग से गणेश को संप्रदायिक मानते हुये उसके स्थान पर ग से गधा पढ़ाने का आदेश दिया है। अब चूंकि क से कमल भ से भाजपा  का चुनाव चिन्ह है तो उसे तो संप्रदायिक मानने के पूरे कारण मौजूद है। अतः क से काटजू भी पढ़ाया जा सकता है। बच्चो को समझना भी आसान होगा। क्योंकि आज कल आप सारे न्यूस चैनलो में, अखबारो में, फ़ेस बुक में हर मामले मे अपनी राय देते पाये  जाते है।

दूसरी ओर गधा शब्द इस लिये भी प्रासंगिक है कि संवैधानिक पदो पर बैठे लोगो से गधो की तरह संयमित व्यहवार की उम्मीद की जाती है। जिस तरह गधा अपने मालिक द्वारा दी गयी जिम्मेदारी के अलावा दाये बाये का काम नही कर सकता वैसे ही संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्तियों से भी संविधानप्रदत्त जिम्मेदारी के अलावा किसी भी तरह की एक्टिविटी में शामिल न होने की उम्मीद की जाती है।  हालांकि गधे और ऐसे व्यक्ति को आफ़ टाईम मे अपन समय का सामाजिक उपयोग करने की इजाजत होती हैं। खैर आप जैसे फ़ाजिल आदमी के बारे में कुछ कहना अनुचित सा लग सकता है पर माननीय काटजू जी दो कारणो से आपका व्यहवार मुझे खल रहा है।

पहला कि आप सुप्रीम कोर्ट के भूतपूर्व न्यायाधीश है। यदि आपके कद का व्यक्ति ही सुप्रीम कोर्ट और उसके द्वारा बनाई गयी एसआईटी की पड़ताल और निर्णय का सम्मान नही करेंगे। तो फ़िर आप जिस प्रेस काउंसिल आफ़ इंडिया के अध्यक्ष है उसके अंतर्गत आने वाले पत्रकार से किस तरह की उम्मीद रखी जा सकती है?  क्या आपका यह मानना है कि भारत में न्याय नही होता? और अगर भारत मे न्याय नही होता है या न्याय होता प्रतीत नही होता तो आपको मोदी के बजाये न्याय व्यवस्था पर बात करनी चाहिये। अगर  मोदी अपराधी होकर भी बेदाग निकलने मे सफ़ल हो चुके है तब मोदी नही यह न्याय व्यवस्था अपराधी है। आखिर किस तरह दो हजार लोगो का कातिल बच निकला।  फ़िर यदि कोई अपराधी निर्दोष छूट सकता है तो  निर्दोष लोगों को भी सजा हुई होगी। इसके अलावा भी कई सवाल उठाये जा सकते हैं।  मसलन आरोप यह है कि मोदी के निर्देश पर पुलिस मूक दर्शक बन गयी।  जब निर्देश देने वाला कातिल है तो उसके इस असंवैधानिक निर्देश का पालन करने वाले उससे भी बड़े अपराधी है। क्या जाकिया जाफ़री समेत दुनिया तमाम के मानवाधिकारियों मे से किसी ने भी किसी भी दोषी अफ़सर के खिलाफ़ किसी भी अदालत मे कोई याचिका लगाई है? और यदि नही लगाई तो 90 % मूर्ख भारतीयो की श्रेणी मे कौन आता है मोदी या उनपर आरोप लगाने वाले लोग।

हालांकि आपके शेष दस %  बुद्धिमानो की श्रेणी मे होने के बारे में मुझे कोई संदेह नही है और इसका संवैधानिक आधार भी है कि सिर्फ़ विद्वान लोग ही भारत के उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश और उसके बाद प्रेस काउंसिल का अध्यक्ष लगाया जाता। वैसे प्रेस काउंसिल के चेयरमैन रहते हुये आपके दायरे मे वह मीडिया है जो पिछले कई सालो से सतत मोदी के खिलाफ़ अभियान चलाये हुये है।  अगर गुजरात के वनवासी इलाकों में विकास नहीं हुआ, आदिवासियो पर अत्याचार हो रहे है, जमीने छीनी जा रही है,  सौराष्ट्र की सड़के नाली आदि आदि इत्यादी सब कंडम है तो क्यों नहीं मीडिया उसको कवर करता। वहां के स्थानीय भाजपा नेता को खड़ा कर क्यो नही जनता के सामने सवाल पूछ पोल खोलते। ठीक है कि मोदी को हराने मे मीडिया असमर्थ है पर उसके शासन की पोल खोलने से कम से कम  सुधार का दबाव तो बना सकता है आदिवासियो की समस्याए दूर करवा सकता है। वैसे भी हजार साल की गुलामी में रहने वाले देश का कोई राज्य महज  15 सालों में अमरीका का कैलिफ़ोर्निया प्रांत  बन जाये यह कमाल रजनीकांत के अलावा किसी के बस में नही।

आप यह मत समझियेगा कि संवैधानिक पद का हमे कोई अनुभव नही है। देखिये हम खुद भी पति परमेश्वर के संवैधानिक पद पर बैठे है। जिस तरह मोदी की बढ़ती लोकप्रियता आपको खल रही है। उसी तरह हमारे पड़ोस मे रहने वाली सुंदरियो के पति हमको खलते है। हमारा भी मन कहता है कि हम उन सुंदरियो को उनके पतियो के चंगुल से छुड़ा ले ठीक उसी तरह जिस तरह आप इस देश को मोदी से बचाना चाहते है। लेकिन जैसे हम अपने पद के कारण विवश है आपको भी आपकी विवशता का ध्यान रखना चाहिये। हालांकि हम जानते है कि जिस तरह हम अपनी श्रीमती का मोह नही छोड़ पा रहे, ठीक उसी तरह आप भी अपनी कुर्सी का मोह नही छोड़ पा रहे है।

खैर साहब नैतिकता का तकाजा था कि आप और मैं अपने से असंबधित मामलो पर लेख न लिखते। आपने लिखा दुनिया समझ गयी  मैने लिखा है तो आशा करता हूं आप भी मेरी बात समझ जायेंगे।

आपका अपना 

अरूणेश सी दवे "राम भरोसे"