Sunday, January 27, 2013

संविधान हाय हाय


साहब गणतंत्र दिवस की सुअवसर पर कई गणमान्य गणो के सुविचार जानने का सुअवर सोशल मीडिया ने जबरन प्रदान कर दिया। कोई केजरीवाल की फ़ुटवा चपकाये संसद सांसद संविधान को कोस रहा था। तो कोई "मेरा नेता चोर है" बैनर लगाये फ़िर रहा था। उनके हिसाब से जो संविधान बलात्कारियो अपराधियो भ्रष्ट लोगो को संसद मे चुने जाने की छूट प्रदान करे वह बिल्कुल बेकार है। कईयों का सीना निरीह आदिवासियो पर घनघोर अत्याचार करने वाले पुलिस अधिकारियो को पदक मिल जाने से छलनी था। तो कई बिकनी ए खास को फ़िल्मजगत मे आम करने वाली अभिनेत्री को पदम पुरूस्कार मिलने से भड़के हुये थे।

कुल मिला कर इस क्रोध के मंजर ए आम में आपस में दुश्मनी रखने वाले अनेक समूह अनेकता मे एकता की अद्भुत मिसाल दे रहे थे। दिल्ली में बलात्कार के विरोध प्रदर्शन मे पिटे हुये आंदोलन कारियों को दूर से पहचाना जा सकता था। आंसू गैस के गोले फ़ायर करती, डंडा भाजंती पुलिस का फ़ोटू इनका कामन ट्रेडमार्क मालूम होता था। हिंदू ठेकेदार संघ के लोग भी अलग से पहचाने जा सकते थे। इनके निशाने पर अग्नि मिसाईल हवाई जहाज आदि थे। इनकी राय थी जब ये हथियार पाकिस्तान पर नही चलाये जा रहे तो इनका प्रदर्शन खाली पीली नपुंसकता दिखाने के अलावे और कुछ नही। इनकी राय में इस तथाकथित सेकुलर मुल्लापरस्त संविधान से कोई आशा करना बेकार ही था। हांलांकि मेरे पूछे जाने पर ये अपने आईडियल संविधान पर कोई जानकारी विशेष नही दे पाये। मुस्लिम ठेकेदार भी अपनी राय जाहिर करने मे पीछे नही थे। एक सज्जन उर्दू मे शरिया कानून लागू किये बिना भारत मे सुख शांती स्थापित न हो पाने पर अडिग थे। हमारे द्वारा चंद सवालात पूछने पर वे थोड़ा हड़बड़ा गये। हिंदु द्वारा उर्दू पढ़ लेने पर उन्हे बेहद हैरानी थी। खैर उन्होने वक्त की क्मी का हवाला देते हुये माजरत के साथ विदा ले ली।

वैसे सबसे नरम दिल नजरिया दलित विचारको का ही था। आखिर बाबा साहेब के बनाये संविधान से लेकर बहन जी तक सारी चीजें उनके लिये श्रद्धेय कि श्रेणी मे आती हैं। हालांकि संस्कृत शब्द श्रद्धेय उन्हे स्वीकार तो न होगा लेकिन अभी दलित शब्दावली का निर्माण हुआ नही है शायद। आरक्षण विरोधी तो जाहिराना तौर पर इस संविधान के मूल प्रारूप से ही खफ़ा थे। उनकी नजर में आरक्षण के आधार पर अयोग्य को नौकरी देकर ही भारत के हालात इस स्तर तक गिर गये हैं। हालांकि हमने उन्हे याद दिलाने की कोशिश की भाई यह भ्रष्टाचार तो तब से आसमान पर है जब वी पी सिंग ने आरक्षण लागू भी न किया था। लेकिन साहब सोशल मीडिया मे सुनने की कहां होती है आसमानो से उतरो अपनी राय पेलो। सामने वाला सहमत न हो तो उसको तमाम उपाधियों नवाजो और कट लो।
सबसे संतुलित किसम का विरोध अपने एक बिलागर भाई का रहा| उनके हिसाब से मेरा भारत महान कहना ही मूर्खता है। तमाम खामिया उनकी उंगलियो की नोक पर गिनी गयीं। वैसे खामिया तो हर देश मे ही है, अमेरिका तक हजार किसम की समस्यांओ से दो चार है। साल में दो दिन अपने न सही  बच्चो की खातिर तो "मेरा भारत महान" बोलना तो बनता ही है भाई। बचपन से ही मेरा भारत बेईमान सीख लेंगे तो जाने इस देश का और क्या हश्र होगा।  सोचते सोचते सोचा जाये तो हमारा संविधान कैसा भी है लेकिन हर किसी को अपनी राय रखने, अपने मतभेद प्रदर्शन करने का हक तो मिला ही हुआ है। केजरीवाल संसद और व्यवस्था को कितना भी गरियाय���ं लेकिन यही व्यवस्था उन्हें प्रधान मंत्री के घर के बाहर धरना देने की छूट तो देती है कि नही। दसियों धर्म, भाषा, जति राज्यों में बटे इस देश के हर नागरिक को एक माला मे गूंथा हुआ भी इसी संविधान ने है। हिंदी हिंदू हिदुस्तान करने वालो लोगो की तरह जिन्ना ने भी उर्दू इस्लाम पाकिस्तान किया था। नतीजा क्या हुआ सिर्फ़ भाषा के आधार पर ही उसके दो टुकड़े हो गये। इस्लाम के नाम पर बनाये देश मे मस्जिदो दरगाहों इमामबाड़ो मे रोज बम धमाके हो रहे हैं। और बलोचिस्तान अलग देश बनने की कगार पर है।

मुझे भी अपने संविधान मे एक कमी खलती है। यह आदिवासियो के हकों की रक्षा करने मे नाकाम रहा है। चौसठ सालो मे आज तक उनके हितो के लिये कोई राजनैतिक आंदोलन खड़ा नही हो पाया। दिल्ली के बुद्धीजीवी, पत्रकारिता के गलियारे मे एक भी आदिवासी विचारक नही। सांसद और विधायक भी जो बने हैं सारे आदिवासी जमींदार परिवारो के है।
आरक्षित नौकरियों का अधिकांशतम हिस्सा इसाई धर्म अपना चुके उच्च शिक्षित परिवारो को चला गया। उसके जंगल वन विभाग ने साल सागौन के बागान बना दिये। और उसके सशस्त्र विरोध आंदोलन तक का नेतृत्व बंगाल, आंध्रा के वामपंथियो के हाथ मे है। मूल आदिवासी आज भी अपनी जगह ठगा हुआ खड़ा है।
लेकिन इन तमाम खामियों को दूर कर हमे अपने सपनो का प्यारा भारत बनाना है। बनने तक क्या किया जाये पर गालिब का एक शेर याद आ रहा है-

आशिकी सब्र तलब, तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूं, खून ए जिगर होने तक

Sunday, January 13, 2013

रामदेव बाबा ’पाकिस्तानी’


साहिबान मेहरबान कदरदान एक बात मैं दावे से कहना चाहता हूं कि भारत और पाकिस्तान जुड़वा भाई हैं। अब यह बात सरसरी तौर पर कुछ राष्ट्रभक्तो को बुरी लग सकती हैं। परंतु   ऐसा मान लेने से बड़े वाले हिंदु राष्ट्र का नक्शा बाबा रामदेव की तरह प्रमाणिकता प्राप्त कर सकता है। खैर कोई अगर इस बात को न मानता हो तो उसके बताने के लिये हमारे पास दोनो देशों की अनेको चारित्रिक समानताएं हैं।

सबसे पहले जिस तरह अपने परिवार के लोगो की शहादत दे चुका गांधी परिवार हर चुनाव में उनके फ़ोटू लहरा जनता से अनुकंपा नियुक्ती प्राप्त कर लेता है। उसी तरह पाकिस्तान का भुट्टॊ परिवार भी पाकिस्तान की छाती पर मूंग दल रहा है। दोनो देशो की जुड़वा जनता बड़ी भावुक है, फ़िल्मो के दुखी सीन के बैकग्राउंड म्यूजिक के साथ जनाजे का वीडियो या माला पहनी तस्वीरो को देखते ही भ्रष्टाचार, महंगाई, बेबसी का अपना गम भूल इनके गम के साथ गमगीन होकर वोट डाल देती है। चुनांचे कि दोनो देशो के प्रमुख विपक्षी दलों भाजपा और मुस्लिम लीग को हालिया दशकों में ऐसी कोई शहादत देने का सौभाग्य प्राप्त नही हुआ है। सो उनके समर्थक दोनो खानदानो की इज्जत की मिट्टी पलीद करने, उनके बारे मे झूठी कहानिया गढ़ने और उनको विदेशी ताकतो का जासूस करार देने को ही चुनावी जीत पाने का जरिया समझते हैं।

इधर के धर्म रक्षक हिंदु हिंदी हिंदुस्तान का नारा लगाते है उधर के उर्दू मुसलमान पाकिस्तान के। उधर के देश भक्तो ने हिंदुस्तानी भाषा को शुद्ध उर्दू बनाने के लिये दुनिया तमाम के शब्द गढ़े, हिंदु समझे जा सकने वाले तमाम शब्दो का उपयोग बंद कर दिया। इधर भी हिंदुस्तानी को शुद्ध हिंदी बनाने के लिये एक से एक शब्दो की खोज की गयी और उर्दू लग सकने वाले शब्दो को दरकिनार कर दिया गया। लेकिन दोनो तरफ़ के धर्म रक्षक नकारा निकले और आज भी दोनो देशो के आम नागरिक बिना किसी डिक्शनरी की सहायता के प्रेम से बात कर सकते हैं।  मै तो कहता हूं कि दोनो देशो के अखबार और साहित्य लिपी बदल के एक दूसरे के यहां छपने लगें तो इन राष्ट्रवादियों की चौसठ साला मेहनत पर महज एक साल में पानी फ़िर सकता है।
एक जगह  पाकिस्तान अपुन लोगो से भारी है वह यह कि उनका बाबा ए कौम जिन्ना पाकिस्तान बनाने के तुरंत बाद अल्लाह को प्यारा हो गया  सो आज भी जिन्ना की  हरकतों का अंजाम भुगतते हर पाकिस्तानी के लिये श्रद्धेय है।  अपने नेहरू जी चीन युद्ध में देश को हरवाने के बाद निपटे कि उनका किया धरा कोई नही पूछता। मै सोचता हूं कि अगर वो भी गांधी जी की तरह बटवारे के तुरंत बाद "हे राम" कहते हुये सौभाग्यवता हो जाते तो उनकी भी भौत इज्जत रहती अपने देश में।
खैर समानताओं की आखिरी कड़ी में जिस तरह अपने बाबा रामदेव कालाधन, भ्रष्टाचार,, नाकाम सरकार चुनाव सुधार आदि आदि इत्यादी एक सौ एक मांगो को ले अपने चेले चपाटियों के साथ दिल्ली मे अनशनिया गये थे। ठीक उसी तरह पाकिस्तान के शुद्ध स्वदेशी बाबा मिन्हाजुल कुरान के सर्बरा जनाब मौलाना तहारूल कादरी साहब लगभग ऐसी ही मांगो के साथ इस्लामाबाद में आज लांग मार्च कर धरना देने वाले हैं। बाबा की तरह कादरी साहब भी सेकुलर बाबा होने का दावा कर रहे है। बाबा की तरह कादरी साहब का भी कोई ऐसा सालिड राजनैतिक बैकग्राउंड नही है। जिस तरह बाबा के पीछे हिंदु ठेकेदार संघ का समर्थन था उसी तरह कादरी साहब को मुस्लिम ठेकेदार संगठनो का पूरा समर्थन मिल रहा है। हालांकि जिस तरह बाबा को कुछ और बाबा ठग और फ़र्जी करार दे रहे थे ठीक उसी तरह कादरी साहब को भी कुछ मौलवी फ़र्जी बता रहे हैं। जिस तरह भारतीय मीडिया, बुद्धिजीवि वर्ग बाबा को घेर रहा था उसी तरह पाक मीडिया भी कादरी साहब की पोल पट्टी खोलने में भिड़ा हुआ है।
चूंकि दोनो के पीछे कार्य कर रही ताकतें चुनावी मैदान में सत्तारूढ़ गठबंधन को धाराशाही करने में नाकाम है तो वे चाहते है कि शांती पूर्ण लोकतांत्रिक प्रदर्शन का सहारा ले महंगाई घोटालो कुशासन से भड़की हुई जनता को घरो से बाहर निकाल ऐसा अराजकता भरा माहौल पैदा कर दिया जाये कि सरकार चारो खाने चित्त हो जाये। आखिर लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गयी सरकार को बिना चुनाव के निहायत लोकतांत्रिक तरीके से निपटाने का प्रयास हम दो बिरादर मुल्को के सिवा कहां किया जा सकता है भला। खैर अपने श्रद्धेय बाबा को तो जान बचाने के लिये सलवार पहन कर आधी रात भागना पड़ गया था उनके चेले चपाटियो को पुलिस ने पीट कर भगा दिया था। कादरी साहब का भी अगर मिलता जुलता अंजाम हुआ तो मै अपने इस लेख मे जबरदस्ती दो चार सौ लाईने जोड़ "भारत पाकिस्तान भाई भाई" नामक शोध ग्रंथ बना "इति सिद्धं" लिख, पीएच डी के लिये जमा कराने की सोच रहा हूं ।