Thursday, December 27, 2012

बलात्कारियों को सरकारी प्रस्ताव


आदरणीय बलात्कारियों


पहले तो आप हैरान मत होना कि हम कैसे आपको  आदरणीय कह रहे हैं। बलात्कार की घटना पर चहुंओर कड़े कदम की मांग पर घिरी उपीए सरकार के मुखिया मन्नू जी नें हमको आप लोगों से बातचीत के लिये इंटरलोक्यूटर नियुक्त किया है।  आप लोगो को समाज की मुख्यधारा में लाने के खातिर हमें  आपके  आदरणीय होने के अहसास और आत्मसम्मान  को जगाना होगा, ताकि आप हिंसा और बलात्कार छोड़ दें। देखिये महिलाओं के साथ संबध बनाने का जो तरीका आपने चुना है वह निहायत ही अलोकतांत्रिक, अमानवीय और निंदनीय है।  जिस तरह हिंसा छोड़े बिना नक्सलवादियो से बातचीत नही की जा सकती है वैसे ही आपसे भी  बलात्कार बंद किये बातचीत नही की जा सकती। हम यह मानते हैं कि फ़िल्मो और विज्ञापनो में आपको कामुक और अश्लील दूष्य दिखा आपको उत्तेजित किया गया है। हम यह भी जानते है कि माश्चराईजर के विज्ञापन मे  हीरो का हाथ जिस तरह की सुंदरी की त्वचा पर फ़िसलता है वैसी सुंदरिया आपको उपलब्ध नहीं है। भारत में लोकतंत्र है और सभी को बराबरी का अधिकार है। हम चाहते हैं कि आप सही राह अपना कर अपना हक हासिल करें। देखिये हम आपको याद दिलाते है वो पुराना फ़िल्मी गीत

बड़े मियां दीवाने ऐसे न बनों।

हसीना क्या चाहे हमसे सुनों॥

सुंदरिया ऐसे ही नही मानती है उसके लिये बाजार से विशेष उत्पाद लेने पड़ते हैं। इसलिये जिस एक्स इफ़ेक्ट डिओ को लगाने से राह चलती कोई भी सुंदरी हीरो के साथ चिपक जाती है वह डिओ हमारी सरकार ने आपको दस रूपये बोटल उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है। साथ ही जाकी की वह अंडरवियर जिसे दिखाते ही महिलाओ के मन में कामना भड़क उठती है वह दस रूपये प्रति नग के रियायती भाव से आपको उपलब्ध कराये जायेंगे। हमने एक कमेटी बनाने का भी फ़ैसला किया है जो ऐसे समस्त उत्पादो को चिन्हांकित करेगी जिन्हे दे कर आपको जबरदस्ती के बजाये सहमती से संबंध बनाने का अवसर मिल सके। हमारी महात्वाकाक्षी डाईरेक्ट कैश ट्रांसफ़र योजना  के तहत आपको हर महिने हजार रूपये ट्रांसफ़र किये जाने पर भी विचार चल रहा है जिससे आप पोस्ट कतरी सराय गया से चमत्कारी सिद्ध अंगूठी,  मंगा अपनी मनोकामना पूरी कर सके।

हम जानते हैं कि जब हमारे देश कि जनता का ही हम पर पर विश्वास नही करती तो आप कहां से करेंगे। सो हम विश्वास जमाने के कदम के रूप में  उन ज्योतिषियों पंडितो की मुफ़्त सुविधा तत्काल आपको प्रदान कर रहे हैं जो चौबीस घंटे के अंदर करी कराई, वशीकरण, रूठा प्यार वापस आना, मनचाही महिला को वश में करने का ग्यारनटीड उपाय प्रदान करते है। इस हेतु आप
 पंडित संजय शर्मा
 इंदिरा मार्केट दुर्ग
 97540-55554

सूफ़ी रहमत अली
मौदहापारा रायपुर
9716640425

से संपर्क कर सकते है।
( इन की प्रमाणिकता स्थापित करने के लिये पत्र के साथ उस लीडिंग अखबार की प्रति संलग्न है जिसमे इनके विज्ञापन प्रतिदिन आते है।)

आपस की बात है भईया हम लोगो केर उपर शनी की साढ़े साती चल रही है। भगवान के अल्लाह की खातिर दो चार महिने के लिये ये सब बंद कर दो। कम से कम दिल्ली छोड़ किसी  भी राज्य में बलात्कार करो वहां न मीडिया जायेगा न बवाल मचेगा। दिल्ली मे बवाल मचा हुआ है,  प्रदर्शनकारी शरिया कानून लागू कर बलात्कारियो को सरेआम फ़ांसी देने की मांग कर रहे हैं।  लागू कर देंगे तो फ़िर बवाल मच जायेगा कि महिलाओं को बुरका पहनने कहते हो। एक तरफ़ कुंआ है दूसरे तरफ़ खाई। हमारा नही तो देश का सोचो ऐसे एक एक बलात्कार पीड़िता को सिंगापुर भेजना पड़ जाये तो देश कंगाल हो जायेगा । इस बेचारी का आंत निकाल दिये हो कितनो को तो रोज बलात्कार के बाद आग लगा दी जाती है। अरे जब देश नही बचेगा तो बलात्कार कहा करोगे भाई यह भी तो सोचो।

आशा है आप सरकार के प्रस्तावो को गंभीरता से लेकर सरकार की अच्छी नीयत का जवाब सकारात्मक कदम से देंगे। हम विश्वास दिलाते है कि नार्को एनालिसिस, पुलिस सुधार, फ़ोरेंसिक लैब को आधुनिक बनाने का हमारा कोई इरादा नही है, ना ही हमे सत्ता से हटा सता पाने की ख्वाहिश रखने वाले दलो का ऐसा कोई विचार है। बस  मीडिया और फ़िल्मो के द्वारा अमेरिका की तरह फ़्री सेक्स वाली ओपन सोसाईटी बनने  की देर है। उसके बाद आप लोगो की सारी परेशानियां दूर हो जायेंगी।

आपका शुभचिंतक

अरूणेश सी दवे


सूचना - "महिला संगठन, बुद्धीजीवी उपीए सरकार के इस इस कदम और मेरे इस पत्र पर कोई भी प्रदर्शन करने के पहले गुगल में जा इंटरलोकूटर का अर्थ और उसके काम करने के तरीको को उगलवा ले"

Sunday, December 23, 2012

दिल्ली गैंगरेप- आंदोलन नहीं पागलपन


दिल्ली गैंग रेप की जघन्य घटना ने देश को उद्वेलित कर दिया है। वास्तव मे यह जघन्यतम अपराध भी है, लेकिन इसके बाद जो कुछ देश में हुआ वह अभूतपूर्व है। यह कोई अकेली घटना भी नही थी। ऐसी घटनाएं रोज इस देश के हर शहर में घटती है। और इस घटना में तो पुलिस ने सारे अपराधियों को गिरफ़्तार कर लिया लड़की को सर्वश्रेष्ठ उपचार मिल रहा है। एक सरकार इससे ज्यादा क्या कर सकती है?  "महिलायें सुरक्षित नहीं है" का नारा जरूर कई सवाल खड़े करता है। पर इस सवाल का जवाब सरकार और पुलिस के पास नही समाज के पास होना चाहिये। उसी समाज के पास जिसके तोड़ फ़ोड़ हिंसा या तथाकथित शांती पूर्ण प्रदर्शन कर रहे लोग हिस्सा हैं।


दरअसल यह प्रदर्शन, हिंसा और पागलपन स्वयंस्फ़ूर्त नही है। मीडिया द्वारा चार दिनो से एक ही घटना दिखा दिखा कर, पुलिस को दोषी निकम्मा ठहरा ठहरा कर, उकसाया गया गुस्सा था। शुरू में कैमरा टीमों द्वारा प्रदर्शन की जगह और समय क्षात्रो एवं अन्य संगठनो से तय करके जमा किया जमावड़ा था। टीआरपी का खेल, सनसनी की चाहत में इस बेलगाम मीडिया ने उस ज्वार को पैदा किया जिसमें समस्याओं से त्रस्त और समाधानो से दूर गुस्साया मध्यमवर्ग जुट गया। राष्ट्रपति भवन में घुसने की जिद लगाया अनियंत्रित युवा माब जिसमें महिलाये, बूढ़े, बच्चे भी शामिल थे क्या पुलिस से फ़ुलों के हार की उम्मीद कर रहा था? बधाई की पात्र है दिल्ली पुलिस जिसने दो दिनो की हिंसा और प्रदर्शन को इतने प्रोफ़ेशनल और मानवीय तरीके से अपने जख्मी जवानो अधिकारियों की कीमत पर संभाला। वरना कितने जख्मी होते कितने मरते उसका कोई हिसाब न होता और यही मीडिया गला फ़ाड़ कर "लोकतंत्र की हत्या हो गयी" चीख रहा होता।

"हमारे नेता नपुंसक है", "हमारी पुलिस नपुंसक है" "बलात्कारी को फ़ांसी दो" का नारा लगाने वालो से मै पूछना चाहता हूं कि कहा से आये है ये लोग? इन बलात्कारियों को इसी समाज ने पैदा किया है और नेताओ को भी। और मनोविकार पैदा कौन कर रहा है? जापानी तेल और लिंग वर्धक यंत्र का विज्ञापन कौन छापता है नेता या मीडिया? पुरूष जीन्स के विज्ञापन में अर्धनग्न महिला का फ़ोटो कौन दिखाता है नेता या मीडिया ? महिलाओ के जिस्म की नुमाइश कर अपना माल बेचने वाले बाजार को माध्यम कौन दे रहा है नेता कि मीडिया ??? अपने उकसाये आंदोलन के इस हिंसा के दौर में पहुंचने पर लोगो से शांती और अहिंसा की अपील कर रहे मीडिया ने पत्रकारिता नैतिकता और ढोंग की सारी हदें पार कर दी हैं। खाप पंचायत वाले अपनी बेटियों को जब इस बाजारवाद के दुष्परिणामो से बचाने की कोशिश करते तो यही मीडिया उनको तालीबान करार देता है। फ़ांसी की सजा ही एक समाधान हो सकता है पर इस देश में कानून का कितना दुरूपयोग होता है यह भी किसी से छुपा नही है। जरूरत फ़ोरेंसिक लैब को अत्याधुनिक बनाने और ऐसे जघन्य अपराधों में नार्को एनालिसिस जैसे आधुनिक उपायों को कानूनी जामा पहनाने की है। लेकिन इसकी बात और मांग कर कौन रहा है?
यह आंदोलन तो बिना नेतृत्व, समाधान का बेसरपैर का आंदोलन है। लोकपाल जैसे सशक्त नेतृत्व समाधान और कानूनी प्रस्तावो वाले आंदोलन के साथ इस मीडिया ने क्या किया था? जनता का अंहिसक शांती पूर्ण आंदोलन जब चरम पर पहुंचा तब इसी मीडिया ने उसके पैरो के नीचे से जमीन खसका दी थी। "भीड़ नही आई" की हेडलाईन्स से लेकर तमाम हथकंडे अपनाये गये। मतलब साफ़ है इस मीडिया को आंदोलन के उद्देश्यो से कोई लेना देना नही है। सनसनी फ़ैलाओ, टीआरपी खींचो और जब अपने को पोषित करने वाले वर्ग के हितों में आंच आती नजर आये तो तत्काल कन्नी काट लो। 


दरअसल मध्यमवर्ग में घोटालो महंगाई को लेकर भयानक गुस्सा है, जो आज हिंसा में नजर आ रहा है।। इस गुस्से की लहर फ़ैलाने वाले विपक्ष से भी अनेकों सवाल पूछे जाने चाहिये। कांग्रेस पार्टी की सरकार को महाभ्रष्ट करार देने वाले, चार सौ लाख करोड़ के तथाकथित कालाधन, दो लाख करोड़ से ज्यादा के हर महिने खुलासा होने वाले घोटालों पर चीखते चिल्लाते विपक्षी तब कहां थे जब यह घोटाले हो रहे थे? 2G लाईसेंस की बंदरबाट जब हो रही थी तब क्या भाजपा के महारथी सो रहे थे? जब कोयला खदान फ़ोकट के भाव में बाटी जा रही थी तब ये शरद यादव, वामपंथी  क्या संसद में नही थे? क्या ये इतने नकारा है कि इन्हे पता ही नही चलता? सबके तार जब इस खेल में जुड़े हुये है,  अंबानी के घोटाले के उपर बोलने का साहस जब किसी के पास नही है, तो घोटाला घोटाला क्यों चीखना? सत्ता चाहिये तो जात, धर्म, आरक्षण की पालिटिक्स में माहिर बनो। खेल के नियम जब तय है तो कांग्रेस के लगातार जीतने पर फ़ाउल फ़ाउल क्यों चिल्लाना। यह देश जैसा भी चल रहा है कम से कम चल तो रहा है। इसको मिस्र तो मत बना दो।



और आखिर में दिल्ली पुलिस से मैं अपील करूंगा कि अब मौका लगे तो आम जनता के बजाये इन मीडिया वालो को कूटना। इनको भी तो पता चले पुलिस से टकराव और हिंसा मे जब चोट लगती है तो दर्द कितना होता है।