Sunday, March 4, 2012

कालू गरीब को "गे" से खतरा

साहब,  यूरिया वाली चाय का लुफ़्त उठाते नुक्कड़ में हम खड़े थे कि कालू गरीब फ़िर  पहुंच गया। हम तक पहुंचते ही सीधे उसने सवाल ठोका-  "दवे जी ये "गे" क्या होता है।"  हमने क्रोध भरी निगाह उस पर डाल कहा - " अरे ओ होशियार, अब तेरा वोट पड़ गया है। अब तू शोषित वर्ग से हो या सर्वहारा वर्ग से। चाहे तू अल्पसंख्यको मे क्यो न गिना जाता हो हो हम तुझे न बतायेंगे। बड़ा आया सवाल पूछने वाला।"

कालू गरीब घिघियाते हुये बोला -"दादा,  अब तो चुनाव खत्म हो गया है। अब ऐसे फ़ालतू बातो का मोल क्या है। कहा सुना माफ़ कर दो दादा,  हमारा दिमाग फ़ड़क रहा है मतलब बता दो।" हमने पूछा- "क्यों आसमान टूट रहा है! आग लग रही है! "गे" का मतलब नही जानेगा तो भूखा मर जायेगा। अबे यह जीने-खाने और सुप्रीम कोर्ट के नये आदेश के अनुसार सोने के जैसे मौलिक अधिकारो के उपर की चीज है रे भाई कालू। अब तक सुप्रीम कोर्टवा फ़ैसला नही कर पाया है। सरकार बार बार जवाब बदल रही है।"

कालू बोला - " फ़िर भी बताईये,  हमे जानना है कि कही हमारा वोट गलत तो नही तो नही पड़ गया।" हमारा दिमाग ठनका  "गे" और वोट का क्या लेना देना रे भाई। सो हमने पूछा-  "क्यो रे बुड़बक,  क्या किसी ने तुझसे यह कह कर वोट मांगा था कि वह तुझे गे बनने की आजादी देगा और तू उसको वोट डाल आया ।"

 कालू बोला नही माई बाप पर आज  खाकी चड्डा लोग पहने नारा लगा रहे थे-

कांग्रेसी बबुआ ने देखा है एक सपना
सवैधानिक दर्जा लिए हो गे सेक्स अपना ....


हम सोचे या राहुलवा का और "गे" का क्या संबंध! और ये गे क्या है रे भाई।  सो आपसे पूछने चले आये। हमने कहा- "भाग यहा से कांग्रेस को वोट देने वाले मूर्ख।"  कालू भड़क गया बोला - "इतने सदियो, आपके बाप दादा हमारे बाप दादा का शोषण किये थे कि नही। आज "गे" का मतलब बता कर काला मुंह साफ़ करने का मौका आया तो भगा रहे हो। सीधा जवाब नही दे सकते।" हम अपने पुरखो के किये अपराधो तले गड़ गये। अब गया में तर्पण करो, कौन जानता है कि हिंदु कौंवा खाया, इसाई कौंवा खाया कि मुसलमान कौंवा ले भागा। यहां तो  पुरखो की डाईरेक्ट मुक्ती जुगाड़ था। सो हमने कहा - "गे का मतलब होता है समलैंगिक समझा कि नही।" कालू बोला- "दादा,  हम तो मध्यान भोजन खाये लिये सरकारी स्कूल जात रहे। इतना कठिन शब्द का अर्थ क्या जाने।" हमने मन ही मन सोचा इसको टरकाया जाये सो कालू से बोले - "देख मिया कालू ,  समलैंगिकता का मतलब होता है,  दो लोगो का बिना शादी के साथ रहना।  अब ये तो जिनका पेट भरा हुआ है,  उनका टाईम पास झगड़ा है रे भाई। तू जा अपनी रोजी रोटी कमा, अब रैली में ले जाने चेपटी, पैसा देने  कोई नही आयेगा ।"

तभी पीछे से  बजरंग दल के नेता दीपक बाबू की कड़कती हुयी आवाज आई- "क्यों दवे जी भोले भाले लोगो को बेवकूफ़ बनाते हो शर्म नही आती।" हमने कहा- "दीपक बाबू,  गंदी फ़ुंदी बातो का मतलब समझाने का शौक चर्राया है। समाज में गंदगी फ़ैलाना चाहते हो।  वैसे तो बड़ा हिंदु धर्म और संस्कृती के रक्षक बने फ़िरते हो।

दीपक बाबू ने सीना फ़ुलाकर बोले - " रक्षक हैं,  तभी सनातन धर्म और संस्कृती पर छाये आसन्न संकट को पहचान रहे हैं। समलैंगिकता हमारी संस्कृती पर कुठाराघात है। यह कांग्रेस जो हिंदुत्व पर हमला करने का कोई मौका नही छोड़ती। सुप्रीम कोर्ट में गे का विरोध करने की बजाय, हमें कोई आपत्ती नही है का जवाब इसिलिये दाखिल किया है। राहुल गांधी खुद इस मामले मे रूची क्यो ले रहे है यह हम बता तो नही सकते, पर आप खुद समझ जाओ।" हमने कहा- "यार,  इस कालू गरीब को काम धंधा करने दो काहे ये सब लफ़ड़े की बात इसके दिमाग में डालते हो।" दीपक बजरंगी फ़िर कड़क कर बोले -"बताना जरूरी है दवे जी, कालू गरीब तक बाते नही पहुंचती है इसिलिये न ये कांग्रेस हर बार चुनाव जीत जाती है।" इतना कहा, दीपक बाबू ने कालू गरीब से कहा - "सुन कालू, गे का मतलब होता है, लडके की लड़के से शादी और लड़की की लड़की से शादी। अगर कांग्रेस सरकार ने ऐसी शादियो के लिये कानूनी स्वीकृति दे दी तो तेरा लड़का बहू नही बाबू लेकर आयेगा।"


कालू सकपकाया- "हाय मै मर जाउंगा माई बाप, मेरा वंश कैसे आगे चलेगा। नाती पोते कैसे होंगे।" हमने कालू को समझाया -"अरे कालू नाहक चिंता में मत पड़। एक लाख में एक आदमी इस चक्कर मे पड़ता है भाई। आम आदमी थोड़े ये सब दंद फ़ंद मे पड़ता है।" दीपक बाबू भड़क गये -"अजीब हिंदु हो, सनातन परंपरा के खिलाफ़ कानून पास हो रहा है। धर्म खतरे में है और कुतर्क दे रहे हो।" अब भड़कने की बारी हमारी थी हमने कहा- " सनातन, सनातन की रट लगाये जा रहे हो खजुराहो के प्राचीन मंदिर मे नही है नक्काशी गे सेक्स के बारे मे। बड़े आये धर्म की आड़ लेने।  कोई सटक ही रहा है कि हमको यह करना है तो करने दो। जब से दुनिया बनी है। सब कुछ होता ही आया है, आगे भी होगा।"

फ़िर हम कालू की ओर मुड़े -"क्या मर जायेगा बे, भूल गया तू क्या है "पिछड़ा",  अबे जब विकास तुझ तक नही पहुंच सका। सरकार की योजनाये तुझ तक नही पहुंच सकी। तो गे कहा से पहुंच पायेगा पगला। खामखा डर रहा है,  कमा खा ये सब शौक नवाबी है समझा। शरीर मे पूरा कपड़ा नही पेट दाना नही कोई गे तुम लोग दूर से भी देखेगा तो सरपट भाग लेगा।  जा काम धंधा कर, ये अगड़े लोगो के पास सरकारी नोट आता है तो खुद खा लेते है और गे आ गया तो बचा कालू,  तू भी ले चिल्ला रहे हैं।" अब बात कालू के भेजे में घुसने लगी बोला- "दादा ये दीपक बाबू पिछड़ा विरोधी है क्या।" हम कहा- "नही भाई, ऐसा बात नही है। इनका झंझट दूसरा है,  वैलेंटाईन डे में ये लोग हर साल प्रेमी प्रेमिकाओ को पीट भगाने जाते है। अब गे कानून पास हो जायेगा तो पार्क में प्रेमी- प्रेमिकाओं के साथ साथ प्रेमी- प्रेमी भी बैठेंगे। फ़िर मुकाबला बराबरी का हो जायेगा, पिटने की भी नौबत आ सकती है।"


तसल्ली बख्श होकर कालू अपने काम धाम में निकल गया। दीपक बाबू बोले -"क्यों दवे जी, हम कांग्रेस का वोट काट रहे थे और आपका पेट दुख रहा था। दिग्गी बनने का तैयारी नजर आता है।" हमने दीपक बाबू को पुचाकारा- "क्या यार दीपक भाऊ, भावनाओ में बह जाते हो,  फ़ायदा आप ही का करा रहे हैं। देखिये, राहुल शादी नही कर रहा और गे कानून भी पास हो रहा है। अब राहुल बाबा शादी कर लिये रहते,  तो नही यूपी चुनाव में दो और राजकुमार घूमते वोट मांगने, बीबी वोट मागंती। आप तो जानते ही हो हिंदुस्तानियो को। जरा खूबसूरत बच्चो को खूबसूरत मम्मी  के साथ पापा के लिये वोट मांगते देख नही लेते कि फ़िसल जाते है। और भारत का आबादी भी कितना बढ़ रहा है बन जाने तो जिसको गे बनना है जनसंख्या भी कम होगा कि नही।"

खैर साहब दीपक बाबू तो निकल लिये इस नई विचारधारा पर मनन के लिये। पर हम खुद चिंता में पड़ गये। ये "गे" वाला कानून पास हो गया तो पार्क, मेला, सिनेमा जाना ही दूभर हो जायेगा।  जहां देखो वहां, लड़का- लड़का लड़की- लड़की पप्पी, झप्पी खेलते नजर आयेंगे।"


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5 Comments

5 comments:

  1. """" -"क्या मर जायेगा बे, भूल गया तू क्या है "पिछड़ा", अबे जब विकास तुझ तक नही पहुंच सका। सरकार की योजनाये तुझ तक नही पहुंच सकी। तो गे कहा से पहुंच पायेगा पगला। खामखा डर रहा है, कमा खा ये सब शौक नवाबी है समझा। """"

    करारा चोट .. वैसे मुझे ये जुमला बहुत पसंद आया """ कालू भड़क गया बोला - "इतने सदियो, आपके बाप दादा हमारे बाप दादा का शोषण किये थे कि नही। आज "गे" का मतलब बता कर काला मुंह साफ़ करने का मौका आया तो भगा रहे हो। सीधा जवाब नही दे सकते।" ... जय हो ऐश करो

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  2. सुन्दर प्रस्तुति

    दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक

    dineshkidillagi.blogspot.com

    होली है होलो हुलस, हुल्लड़ हुन हुल्लास।
    कामयाब काया किलक, होय पूर्ण सब आस ।।

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  3. लेख बढ़िया है , लेकिन आप खजुराहो नहीं गएँ हैं .. :) शायद , (वहाँ गे वाला कोई कोंसप्त नहीं है . (मैंने नहीं देखा )

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    ♥ होली ऐसी खेलिए, प्रेम पाए विस्तार ! ♥
    ♥ मरुथल मन में बह उठे… मृदु शीतल जल-धार !! ♥



    आपको सपरिवार
    होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार
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  5. फ़िर हम कालू की ओर मुड़े -"क्या मर जायेगा बे, भूल गया तू क्या है "पिछड़ा", अबे जब विकास तुझ तक नही पहुंच सका। सरकार की योजनाये तुझ तक नही पहुंच सकी। तो गे कहा से पहुंच पायेगा पगला। खामखा डर रहा है, कमा खा ये सब शौक नवाबी है समझा।
    दवे भाई !क्या धोबी घाट मारत हो .व्यंग्य बाण चलावत हो .ये दिग्गी -राहुल का क्या लफडा है ?क्या फिराक गोरख पुरी -नेहरु सम्बन्ध जैसा कुछ गे -वे है .

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