Wednesday, March 20, 2013

संविधान बिछाओ - सेक्स करो


भारत के नेताओं,  धर्म रक्षको, बुद्धीजीवियों से पूछा जाये - "क्यों जी बलात्कार पर आपकी क्या राय है।" तो सारे ऐसी घोर निंदा करेंगे कि  सारे बलात्कारी राम सिंग टाईप आत्महत्या कर लें। पर जैसे ही पूछा जाये कि- "क्यों जी बलात्कार कैसे रूकेगा।" वैसे सारे के सारे  अलग अलग सुर मे राह अलापने लगते है। 

कुछ के जवाब देखिये -

हिंदु संस्कृती रक्षक -  " बलात्कार इंडिया में होते है भारत में नही। गाय पालने से चरित्र निर्माण होगा और चरित्र निर्माण से ही बलात्कार रूक सकता है। " ( बयान के चंद ही दिनो के भीतर सूदर अंचल निपट भारत छत्तीसगढ़ के एक गांव मे गुरू जी आठ वर्ष की क्षात्राओं से बलात्कार करते पकड़ाया। गुरू जी के घर मे तीन गाय और एक बैल दशकों से बंधा हुआ था। नीम पर केरला यूं कि वहां सरकार भी हिंदु धर्म रक्षको की है। )


इस्लाम धर्म रक्षक -"  औरतो को बलात्कार से बचने के लिये बुरके मे रहना चाहिये। एक इस्लामिक मुल्क के मौलवी ने छह महिने की बच्चियो को भी बुर्का पहनाने का फ़तवा जारी किया।"

(चंद महिने पहले ही पाकिस्तान मे एक शख्स कब्र से निकाल महिलाओ के शव से बलात्कार के आरोप में पकड़ा गया। याने कब मे कफ़न ताबूत मे बंद महिला सुरक्षित नही है लेकिन उसे बुर्का भी पहना दिया जाता तो शायद बलात्कार नही होता।)  


खैर कड़ी से कड़ी सजा और उससे भी कड़े कानून पर सारे एक मत हैं। बल्कि मै तो सोचता हूं कि भारत का संविधान ही  थानेदार, वकील, कोर्ट बाबू और न्यायाधीशों के न्याय मंडल की जिंदगी चलाने के लिये बनाया गया है। कोई बवाल मचा नही  कि इन लोगो के तरकश मे एक और तीर पहुंचा दो। कर्तव्य की इतिश्री, जनता खुश, न्याय मंडल प्रसन्न। पीड़ित पक्ष या निरपराध व्यक्ती पिसता रहे, अपराधी थमाये पैसा और चैन की जिंदगी बसर करे। अब एक से एक कानून बन रहे है। मसलन घूरने पर सजा, पीछा करने पर सजा,  सोलह साल की उम्र मे सेक्स करना अपराध। याने जो लड़का लड़की शारीरिक आकर्षण से मोहित होकर समाज को, लाज शर्म को, बदनामी के डर को ताक पर रख के सेक्स करने का राजी हो गये है क्या वे संविधान को नीचे बिछा कर सेक्स नही करेंगे? हर विज्ञापन मे औरत के शरीर के बल पर माल बेचना अपराध नही है?  उस विज्ञापन से सेक्स की तरफ़ आकर्षित होकर सेक्स करना अपराध है। या साथ मे मनमोहन का बच्चो के नाम संदेश भी प्रसारित करना चाहिये-

मनमोहन सिंग  (प्रधान मंत्री आफ़िस से भारत का झंडा बाजू मे उनके जैसा मुरझाया हुआ) - "बच्चो अठारह के पहले सेक्स से दूर रहना हर जिम्मेदार भारतीय बच्चे का फ़र्ज है। आप को इस समय अपनी सारी ताकत सेक्स के बजाये पढ़ाई, खेल- कूद में लगाना चाहिये। ठीक है।


अब घूरना कानन को देखिये, कौन तय करेगा कि घूर रहा था कि नही? या कोई लड़की कह दे कि दवे जी घूर रहे थे तो दवे जी को टांग दोगे। अदालतो मे पहले ही करोड़ो केस धूल खा रहे है दस बीस लाख और बढ़ जायेंगे। मै तो सोचता हूं कि सामने वाली मिसेज रूनझुन मुझ पर घूरने का केस दर्ज करवा दे तब क्या होगा?

न्यायाधीश - " क्यों जी आपने  मिसेज रूनझुन को घूरा है कि नही।"

दवे जी - " घूरा नही है माई बाप,  देखा है।"

न्यायाधीश - "साफ़ साफ़ कहो जी क्या लंबे समय तक देखा है।"

दवे जी - " जी माई बाप मै उन पर मोहित हो गया था।"

न्यायाधीश - " मतलब अपराध स्वीकार करते हो।"

दवे जी - " मै मजबूर हो गया था माई बाप। रसीले लाल होंठ, झील सी नीली आंखे, लहराते केश, गोरे मुखड़े पर तिल। कसम से माई बाप एक दम द्वादशी का देवी रूप लग रही थी। मै देखते देखते मंत्र पढ़ रहा था - "या देवी सर्व भूतेशू सुंदरी रूपेण संस्थितः"  वाला।

न्यायाधीश - " यह अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि अपराधी निर्दोष है घूर जरूर रहा था लेकिन पवित्र भावना से। अतः केस खारिज किया जाता है।"


दूसरा केस स्टडी देखिये- कमला ने  कमल उपर पीछा करने का आरोप लगाया

न्यायाधीश - " क्यों जी आपने  कमला का पीछा किया है कि नही।" "

कमल     -  "पीछा तो किया है माई बाप।"

न्यायाधीश - " मतलब अपराध स्वीकार करते हो।"

कमल    - "माई बाप आप भी तो कभी जवान रहे होगे आपका भी तो दिल किसी के उपर आया होगा। आप ने भी तो लाईन मारी होगी।  आप ही कहो कि बिना लाईन मारे पीछा किये कोई लड़की हां बोलती है क्या। मुहब्बत की खातिर सच बोलिये माई बाप वरना इश्क  का खुदा आपको कभी माफ़ नही करेगा।"

न्यायाधीश -  " बेटा कह तो सही रहे हो पर हमारे जमाने मे यह अपराध नही था। तब की बात और थी अब महिलायें आजाद हो गयी है पीछा करने से बुरा मनाती है। सरकार ने कानून बना दिया है मेरे हाथ बंधे हुये हैं। "


कमल   -    " हुजूर अगर मै अपराधी हूं तो यह कमला भी अपराधी है। क्यों ये मैचिंग बिदी जींस टाप पर्स पहन कर घूमती थी। क्या इतनी हसीन लगने पर कोई इससे   इश्क न कर बैठेगा भला।  माई बाप अगर मै ’पीछा’ कानून का अपराधी हूं तो यह दफ़ा 120 b  की अपराधी है इसने साजिश रच, हसीन बन मुझे अपने पीछे पड़ने को  मजबूर किया।"  

कमला -     " यह झूठ है माई बाप मै मैचिंग मैचिंग अपने अंदर कांफ़ीडेंस जनरेट करने के लिये पहनती हूं नाकि खूबसूरत लगने के लिये।" 

न्यायाधीश - " कमल बेटा मै न्याय के हाथो मजबूर हूं अतः  तुम्हे   इंडियन पीछा कानून के तहत दो साल कैदे ए बामुशक्कत की सजा सुना रहा हूं। साथ ही मै दिल के हाथो  भी मजबूर हूं सो तुम्हारी जमानत मै खुद लेता हूं"।


यह तो था काल्पनिक विचार पर वास्तविकता में होना क्या चाहिये ? अमेरिका आदि में किसी लड़की को किसी लड़के के व्यहवार से परेशानी हो तो वह अदालत मे जाकर उस लड़के के खिलाफ़ पतिबंधात्मक आदेश पारित करवा सकती है। इस अदालती आदेश से प्रतिबंधित लड़का यदि फ़िर ऐसी हरकत करे तो पुलिस में सूचना देकर उसे रंगे हाथो पकड़वाया जा सकता है या ऐसे भी उस लड़के को अदालत में पेश होना होता है। यह वह सरल तरीका है जिससे किसी निर्दोष को फ़साना भी असंभव है साथ ही लड़्कियो को पूर्ण सुरक्षा भी मिल जाती है। लेकिन हमारे देश मे सरल कमाई हीन तरीको की जरूरत किसे है? जैसे वैवाहिक विवाद मे मध्यस्थता कराने की व्यवस्था की गयी है ऐसे ही महिला छेड़ छाड़ के केस मे भी ऐसी मध्यस्थता से दोनो के परिवारो को आमने सामने बैठा मामले कि सुलझाया जा सकता है। इसने वो कानूनी आधार भी बन जाता है जिसके उल्लंघन के बाद लड़के को कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिये। इसके अलावा अधिकांश गंभीर मामलो में आरोपी मानसिक रोग से ग्रस्त रहता है। उसे तत्काल मनोचिकित्सा की आवश्यकता होती है। इस पक्ष को छोड़ दिया जायेगा तो अपराधी एक के बाद एक महिलाओ की जीना हराम किये ही रहेगा। लेकिन अपने यहां पीछा कानून और घूरना कानून जैसे सर्व शक्तिमान अस्त्रो के होते हुये इन सब बेकार की बातो के लिये समय आखिर है किसके पास।


खैर साहब सुंदरियो को देखना हर मर्द का जन्म सिद्ध अधिकार है। मै इस अधिकार के लिये तमाम उम्र लड़ता  ही रहूंगा। पीछा करने की तो मेरी उम्र रही नही, शादी शुदा आदमी को वैसे पीछा करने की जरूरत भी नही पड़ती। बीबी के पल्लू मे ही सारा संसार होता है।  आंख बस बंद करने की देरी है, श्रीमती मन चाही हीरोईन में कन्वर्ट हो जाती है। 

Thursday, February 28, 2013

हा राम - हे राम सेतु


परिवार के बड़े बुजुर्गो से मैं बड़ा नाराज हूं साहब।  बचपन में "राम रक्षा स्त्रोत" जाप करना सिखाये  "राम फ़ायदा स्त्रोत" सिखाये होते तो आज मै कहां का कहां पहुंच गया होता। वैसे मुझे अपनी भी अकल लगानी चाहिये थी। जब प्रभु  के छू मात्र देने से पत्थर तक जी उठता है। उनकी शरण मे जाने से सारे पाप धुल जाते है तो उनके नाम से भाजपा की तरह मै भी तर गया होता। बाबरी मस्जिद आंदोलन से मिला रामनामी प्रसाद बेचारो को रह रह कर याद आता है तो उनकी कोई गलती भी नही। मै तो सोचता हूं कि पिछली बार जब सत्ता पाये थे तो संसद का नाम राम संसद काहे नही कर दिये। हारते ही नारा लगा देते "सौगंध राम की खाते है राम संसद कब्जायेंगे"। भारत की भोली भाली जनता तुरंत नतमस्तक हो राम मंदिर टाईप चंदा भी देती और वोट देने में तो खैर पैसा भी नही लगता।

अब इनको मौका लगा है राम सेतु का। क्या हुआ जो अटल जी की सरकार ने  राम सेतु से नहर बना समुद्री मार्ग खोलने का फ़ैसला किया था। अरे भाई गलती हर किसी से होती है, अब अटल जी से गलती हुई तो इसका मतलब थोड़े कि नराधम कांग्रेस उसका बहाना बना कर श्रद्धेय रामसेतु को तोड़ दे। राम सेतु परियोजना का नाम आते ही हर संघी आज कल भावविह्वल हो  मृत्यु शय्या पर पड़े दशरथ की तरह  "हा राम" चीत्कार उठता है।   ऐसा लगता है कि जाने माने राम सेतु टूट गया तो ये  उपर जाकर भगवान राम को क्या मुंह दिखायेंगे।  भगवान अपना सेतु न बचा पाने के अपराध से कुपित होकर इनको सीधा खौलते तेल के कड़ाहे मे फ़ेंकवा देंगे। आप ही सोचिये कि बाबरी मस्जिद गिराने के संचित पुण्य से स्वर्गाधिकारी हो चुका हर संघी स्वर्ग  में विजय माल्या टाईप सुरा सुंदरी में तर होने का टिकट पा चुका था अचानक अपने नर्क मे धकेले जाने की संभावना से कितना हकबकाया हुआ होगा। कल तरूण विजय का राज्य सभा में भाषण सुनते समय मुझे लगा रहा था कि अब धार धार रोये कि तब।

अच्छा मै तो कोई वैज्ञानिक नही हूं शुद्ध राम भक्त हूं। जिसको शंका हो वह आकर मुझसे धारोधार रामरक्षा स्त्रोत रामचरित मानस का पाठ सुन सकता है। अब उम्र के इस पड़ाव पर मै कम्युनिस्ट भी नही हो सकता। जहां कोई कष्ट हुआ नही कि मुंह से आप ही आप "हे राम निकल: जाता है। और राम भक्त होने के नाते मै इन को शास्त्रार्थ पर भी आमंत्रित कर चुका हूं कि भाई रामसेतु ये है ही नही। पहली बात तो नल नील ने राम लिख कर चट्टान पेड़ आदि को समुद्र मे तैराया  था। सो रामसेतु पानी में तैरने वाला सेतु था जमीन से जुड़ा हुआ नहीं।  यह भौगोलिक संरचना राम सेतु हो ही नही सकती। दूसरे लंका विजय के बाद विभिषण ने प्रभु से विनती की - "प्रभु श्री राम यह सेतु मेरे राज्य पर सतत खतरा बना रहेगा, आपके नाम के प्रभाव के कारण इसे नष्ट भी नही किया जा सकता। केवल आप ही इसे नष्ट कर सकते है।" इस पर प्रभु श्री राम ने इस सेतु को नष्ट कर दिया था। स्वयं बाल्मिकी रामायण मे यह स्पष्ट दिया हुआ है। लेकिन  संघियो और उनके बाबू जी मोहन बैटरी को तो दिल्ली फ़तह करना है वे तो गधे को भी बाप बना सकते है। एक सज्जन हमसे बोले  कि भले ये वो राम सेतु नही पर राम उसी रास्ते से लंका गये थे सो वह हमारे लिये पूजनीय है। हमने कहा फ़ेर अयोध्या से लेकर लंका तक पूरा रास्ता पूजनीय हुआ कि नहीं। काहे रेलवे लाईन, रोड, नहर बनने दिये, भाजपा शासित राज्यों मे बना रहे हो?  वे सज्जन खसक लिये।


दिल्ली फ़तह करना भी कॊई बुरी बात नही हम भी चाहते है कि इस बार कांग्रेस से छुटकारा मिले। पूरे देश के मध्यमवर्ग में नरेन्द्र मोदी की लहर है, आज तक कभी किसी भाजपा के नेता के लिये ऐसा जन समर्थन भी नहीं था।  ऐसा भी नही है कि दूसरे राजनैतिक दल इस तरह की चालबाजिया नहीं करते। लेकिन जब मामला देश की सुरक्षा से जुड़ा है, श्रीलंका के दक्षिणी छोर पर चीन का बंदरगाह आ रहा है हमारा पूरा समुद्री यातायात उसके नियंत्रण मे आ जायेगा। ऐसे में राम सेतु से नहर निकाल पूरा समुद्री यातायात अपनी सीमा से होकर ले जाना कितने रणनीतिक, आर्थिक फ़ायदे की चीज है यह तो सोचना चाहिये। चलो उसके बाद भी किसी को लगे नही राम सेतु नही टूटना चाहिये तो भी कोई बुरी बात नहीं। सुप्रीम कोर्ट मे केस लगा दिया गया है अपना वकील लगाओ दलीलें तथ्य सामने रखो, जो फ़ैसला आयेगा वह सबको मान्य। लेकिन नहीं अब देश भर मे प्रोपोगेंडा मे लग गये है खुद की सरकार आ गई तो फ़िर कैसे बना पायेंगे?  कोई वैक्ल्पिक मार्ग भी बताते है भाई लोग जिसमे  हजारो करोड़ अतिरिक्त खर्च आयेगा।पहले ही देश आर्थिक संकट से जूझ रहा है याने फ़िर इनकी चुनावी तिकड़म का नुकसान देश झेले। खैर अभी भी बीच का रास्ता निकाला जा सकता है। ये कांग्रेसी लोग का भी गलती है।  हर चीज का नाम महात्मा गांधी  के नाम से कर देते है। अरे भाई ठीक है महात्मा गांधी देश के बापू  है हम भी बापू मानते है। पर बाज लोग दूसरो को बापू मानते है उनकी भावनाओ का भी तो खयाल रखो भाई। सबको अपना अपना बापू मानने का संवैधानिक अधिकार  है। इतना सब नाम अपने मन का रख लिया अब एक नाम उनके मन का भी हो जाये। आप प्रस्तावित तो करो कि राम सेतु से होकर निकलने वाली समुद्री नहर का नाम गोड़से नहर होगा फ़िर देखिये कैसे  आम सहमति बन जाती है। उनका नाम हो जायेगा देश का काम हो जायेगा।

Sunday, February 24, 2013

निर्मल बाबा वाटरप्रूफ़


अति आदरणीय निर्मल बाबा को न्यूस और मनोरंजन चैनलो पर फ़िर लोगो की पीड़ा का शमन करते देख मुझे भगवान भोले नाथ पर बड़ी दया आई। वैसे भोले बाबा ही इसके लिये जिम्मेदार भगवान होंगे ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है।  वेद और पुराण गवाह है कि भगवान भोलेनाथ का अपने सरल स्वभाव के कारण अपात्र लोगो पर भी दया कर उन्हे वरदान देने का पुराना ट्रैक रिकार्ड है। एक बार किसी असुर को दुश्मन के सर पर हाथ रखते ही उसे भस्म कर देने का वरदान दे दिया था। उस पापी असुर ने जटाशंकर पर ही वरदान अजमाने का ठान लिया। वो तो भला हो नारायण विष्णु का, जिन्होने मोहिनी रूप धारण कर असुर का हाथ उसके ही सर पर रखवा दिया तब जाकर  शंकर भगवान चैन का सांस लिये थे। सो निर्मल बाबा को भी वही वरदान दिये होंगे और निर्मल बाबा  भोलेनाथ को उनके भक्तो  के घर से निकालने की कसम खा लिये है। पिछला बार बवाल मचने के पहले हम महादेव घाट के शिव मंदिर मे सात सौ ईक्कीस पिंडिया गिने थे। इस बार पता नही कितने और घरो से महादेव निकाला हो जायेगा।

वैसे निर्मल बाबा को देश के आदर्श बाबा के खिताब से नवाजा जाना चाहिये। काहे कि ऐसा वाटर प्रूफ़ देश भक्त टैक्स उ बाबा इस देश में कोई नही। इस देश के बाबा लोग तो भगवान के नाम पर लिप सर्विस का पैसा लेते है। भुगतान को दान का नाम देते है। और बिना कोई टैक्स पटाये देश का प्रधानमंत्री कौन हो इस मामले पर कुंभ से फ़तवा जारी कर देते हैं। याने चोरी त चोरी और फ़ुल सीना जोरी। अपने निर्मल बाबा न तो बाबा रामू की तरह काला धन पीलाधन आंदोलन करते है न आशा बापू राम की तरह पत्रकारो को पिटवाते, भक्तो को लात मारते है। किसी भी तरह की राजनीती से खुद को कोसो दूर रखते है। दायें बायें की बात भी नही करते दारू मत पियो, बुर्का पहनो, लड़कियो राक बैंड मत चलाओ टाईप  अंदरूनी मामलो में दखलंदाजी भी नही करते। दलित आदिवासी, स्वर्ण, ईसाई, मुसलिम  का भेदभाव भी नही। और न ही किसी भी भगवा, हरा रंग का लबादा ओढ़ अपने श्रद्धेय होने का अहसास दिलाते है।

अब तो उन्होने एक नया आदर्श स्थापित किया है। उनका मानना है कि वे भक्तो को सर्विस दे रहे हैं। तो वे हर भक्त से सर्विस टैक्स भी जमा करवा रहे हैं। अब सोचिये कि जब अकेले निर्मल बाबा इस सरकार को एक करोड़ रूपया इनकम टैक्स और बारह लाख रूपया सर्विस टैक्स की आमदनी महज तीन महिने में करवा सकते है। तो कुंभ के मेले में प्रधानमंत्री चुनने एकत्र हुये सारे बाबा कितने का रेवेन्यू जनरेट कर सकते है। इसमे तमाम रामायण गीता सुनाने वाले बापूओ को जोड़ दिया जाये तो मामला खरबों में पहुंच जायेगा।  अगर तिरुपती से लेकर वैष्णव देवी और साई बाबा से लेकर सत्य सांई बाबा मंदिर को एड कर दिया जाये त मामला शंख, नील
तक पहुंचने की संभावना है। इन पैसों से देश मे नाथूराम गोड़से स्वर्ण भारत योजना लागू की जा सकती है। अजमेर की दरगाह से लेकर हाजी अली तक, मदरसो से लेकर मस्जिदों को जोड़ने पर तमाम पसमंदा दबे कुचले मुसलमानो की तबीयत हरी की जा सकती है। दीनी मदरसो में तालीम देने वाले तमाम मौलवियों के घर लेटेस्ट टेक्नोलाजी का एसी फ़िट किया जा सकता है। अगर इस्लाम में एसी हराम हो तो भी कश्मीर वाले मुफ़्ती से फ़तवा लेकर किसी और टेक्नालाजी की सुविधा फ़रहाम की जा सकती है। कुछ बुखारियो को बुखार और पशमीना बाबा को पसीना जरूर छूट सकता है पर ये लोग ही त खुद को धर्म रक्षक, देश रक्षक बताते है। फ़िर देश को पैसा देने में हर्ज क्या। और पूरा दान थोड़े न कोई मांग रहा है, केवल इनकम टैक्स, सर्विस टैक्स काट लिया जायेगा। आखिर जब ये लोग भगवान और अल्लाह की सेवा में लगे ही हुये है। त सेवा कर देने मे क्या हर्ज हो सकता है भला। (चर्चो से मिल सकने वाले धन को जोड़ नही पाया हूं। काहे कि इतना बड़ा कैलकुलेशन करने वाला कैलकुलेटर नही था। इसे मेरी क्षद्म धर्मनिरपेक्षता हरगिज न समझा जाये।)

और इन राजनैतिक दलो को भी तो थोड़ा सोचना चाहिये। ये न्यूस वाले निर्मल बाबा को इतना बदनाम कर रहे है ये लोग कुछ दखल देते नहीं। अरे सोचिये तो जिस आदमी के कहने से करोड़ो लोग टीवी के सामने काला पर्स खोल कर बैठ जाते है तो क्या फ़लां छाप पर मुहर लगाने से लाभ होगा कहने से एकतरफ़ा वोटिंग नही हो सकती। और टैक्स पटाने के लिये जब अमिताभ बच्चन सचिन तेंदुलर का विज्ञापन दिखा सकते हो तो निर्मल बाबा तो देश हित मे मुफ़्त मे भी काम करने तैय्यार हो जायेंगे।  इन स्वयंभू चौथे स्तंभ के लोगो से भी पूछना चाहता हूं। आखिर क्या बिगाड़ा था निर्मल बाबा ने एड दे रहा था। अब प्रिंट मीडिया वालो को नही मिला त भाई मांग लेते जो बाबा एक साथ आठ न्यूस चैनलो मे अपने समागम दिखा सकता है उ क्या सौ पचास अखबारो को एड नही दे देता। और जरा सोचो कि निरमल बाबा कही प्रेस कांफ़्रेस कर आरोप लगा दिया कि खुद नीम-हकीम- खतरा- ए- जान का रोज विज्ञापन छापते हो, लिंगवर्धक यंत्र का प्रचार कर लोगो को बरगलाते हो  और हमारे को बदनाम करते हो तो क्या जवाब दोगे भाई। याने "निर्मल बाबा बैरी संपादक प्यारा बताओ पत्रकारिता अपराध हमारा" टाईप का सवाल दागा जा सकता है।


खैर साहब इन बाबाओ मुल्लाओ नेताओ सरकार और पत्रकारो से तो हमे हमारी सलाह माने जाने की कोई उम्मीद नही। पर हम आपको एक नेक सलाह मुफ़्त मे दे रहे है। किसी ऐरे गैरे बाबा के पास जाने से निर्मल बाबा के पास जाना सबसे अच्छा। काहे कि ज्योतिष के पास जाओगे त कालसर्प से लेकर भंयकर मंगल, शनी अमंगल बता देगा। दुनिया तमाम के रत्न -पूजा-यज्ञ करवा देगा। हजारो का चंदन लगेगा और समय खोटी हो वो अलग। इससे अपने निर्मल बाबा कितने बेस्ट है, एंट्री फ़ीस जरूर थोड़ी महंगी है पर उसके बाद बहुत ही सस्ता उपाय बता देते है। गोलगप्पा से लेकर सवा किलो पेड़ा तक झट पट किया नही कि रूकी हुई किरपा फ़ुल स्पीड से आपके पास आना शुरू।  अभी पैसे नही तो बस टीवी से ही पर्स खोल किरपा ले लो पर्स भरने के बाद डाईरेक्ट किरपा लेने एपाइंटमंट। याद रखो भाईयो सस्ता रोये बार बार महंगा रोये एक बार।

Wednesday, February 20, 2013

ग से गधा, क से काटजू


आदरणीय काटजू जी


देखिये काटजू साहब गधे गाते नही है। हालांकि गधों का गाना उनका संवैधानिक अधिकार है जिसे किसी भी अदालत में चैलेंज नही किया जा सकता। परंतु जिस तरह नयी बहू से ससुराल मे सर झुका कर रहने की उम्मीद रखी जाती है उसी तरह गंधो से भी चुप रहने की उम्मीद की जाती है। मै किसी भी प्रकार से आपकी और गधो की तुलना नही कर रहा हूं। लेकिन गधा शब्द आजकल ’हाट’ है। काहे कि यू पी सरकार ने ग से गणेश को संप्रदायिक मानते हुये उसके स्थान पर ग से गधा पढ़ाने का आदेश दिया है। अब चूंकि क से कमल भ से भाजपा  का चुनाव चिन्ह है तो उसे तो संप्रदायिक मानने के पूरे कारण मौजूद है। अतः क से काटजू भी पढ़ाया जा सकता है। बच्चो को समझना भी आसान होगा। क्योंकि आज कल आप सारे न्यूस चैनलो में, अखबारो में, फ़ेस बुक में हर मामले मे अपनी राय देते पाये  जाते है।

दूसरी ओर गधा शब्द इस लिये भी प्रासंगिक है कि संवैधानिक पदो पर बैठे लोगो से गधो की तरह संयमित व्यहवार की उम्मीद की जाती है। जिस तरह गधा अपने मालिक द्वारा दी गयी जिम्मेदारी के अलावा दाये बाये का काम नही कर सकता वैसे ही संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्तियों से भी संविधानप्रदत्त जिम्मेदारी के अलावा किसी भी तरह की एक्टिविटी में शामिल न होने की उम्मीद की जाती है।  हालांकि गधे और ऐसे व्यक्ति को आफ़ टाईम मे अपन समय का सामाजिक उपयोग करने की इजाजत होती हैं। खैर आप जैसे फ़ाजिल आदमी के बारे में कुछ कहना अनुचित सा लग सकता है पर माननीय काटजू जी दो कारणो से आपका व्यहवार मुझे खल रहा है।

पहला कि आप सुप्रीम कोर्ट के भूतपूर्व न्यायाधीश है। यदि आपके कद का व्यक्ति ही सुप्रीम कोर्ट और उसके द्वारा बनाई गयी एसआईटी की पड़ताल और निर्णय का सम्मान नही करेंगे। तो फ़िर आप जिस प्रेस काउंसिल आफ़ इंडिया के अध्यक्ष है उसके अंतर्गत आने वाले पत्रकार से किस तरह की उम्मीद रखी जा सकती है?  क्या आपका यह मानना है कि भारत में न्याय नही होता? और अगर भारत मे न्याय नही होता है या न्याय होता प्रतीत नही होता तो आपको मोदी के बजाये न्याय व्यवस्था पर बात करनी चाहिये। अगर  मोदी अपराधी होकर भी बेदाग निकलने मे सफ़ल हो चुके है तब मोदी नही यह न्याय व्यवस्था अपराधी है। आखिर किस तरह दो हजार लोगो का कातिल बच निकला।  फ़िर यदि कोई अपराधी निर्दोष छूट सकता है तो  निर्दोष लोगों को भी सजा हुई होगी। इसके अलावा भी कई सवाल उठाये जा सकते हैं।  मसलन आरोप यह है कि मोदी के निर्देश पर पुलिस मूक दर्शक बन गयी।  जब निर्देश देने वाला कातिल है तो उसके इस असंवैधानिक निर्देश का पालन करने वाले उससे भी बड़े अपराधी है। क्या जाकिया जाफ़री समेत दुनिया तमाम के मानवाधिकारियों मे से किसी ने भी किसी भी दोषी अफ़सर के खिलाफ़ किसी भी अदालत मे कोई याचिका लगाई है? और यदि नही लगाई तो 90 % मूर्ख भारतीयो की श्रेणी मे कौन आता है मोदी या उनपर आरोप लगाने वाले लोग।

हालांकि आपके शेष दस %  बुद्धिमानो की श्रेणी मे होने के बारे में मुझे कोई संदेह नही है और इसका संवैधानिक आधार भी है कि सिर्फ़ विद्वान लोग ही भारत के उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश और उसके बाद प्रेस काउंसिल का अध्यक्ष लगाया जाता। वैसे प्रेस काउंसिल के चेयरमैन रहते हुये आपके दायरे मे वह मीडिया है जो पिछले कई सालो से सतत मोदी के खिलाफ़ अभियान चलाये हुये है।  अगर गुजरात के वनवासी इलाकों में विकास नहीं हुआ, आदिवासियो पर अत्याचार हो रहे है, जमीने छीनी जा रही है,  सौराष्ट्र की सड़के नाली आदि आदि इत्यादी सब कंडम है तो क्यों नहीं मीडिया उसको कवर करता। वहां के स्थानीय भाजपा नेता को खड़ा कर क्यो नही जनता के सामने सवाल पूछ पोल खोलते। ठीक है कि मोदी को हराने मे मीडिया असमर्थ है पर उसके शासन की पोल खोलने से कम से कम  सुधार का दबाव तो बना सकता है आदिवासियो की समस्याए दूर करवा सकता है। वैसे भी हजार साल की गुलामी में रहने वाले देश का कोई राज्य महज  15 सालों में अमरीका का कैलिफ़ोर्निया प्रांत  बन जाये यह कमाल रजनीकांत के अलावा किसी के बस में नही।

आप यह मत समझियेगा कि संवैधानिक पद का हमे कोई अनुभव नही है। देखिये हम खुद भी पति परमेश्वर के संवैधानिक पद पर बैठे है। जिस तरह मोदी की बढ़ती लोकप्रियता आपको खल रही है। उसी तरह हमारे पड़ोस मे रहने वाली सुंदरियो के पति हमको खलते है। हमारा भी मन कहता है कि हम उन सुंदरियो को उनके पतियो के चंगुल से छुड़ा ले ठीक उसी तरह जिस तरह आप इस देश को मोदी से बचाना चाहते है। लेकिन जैसे हम अपने पद के कारण विवश है आपको भी आपकी विवशता का ध्यान रखना चाहिये। हालांकि हम जानते है कि जिस तरह हम अपनी श्रीमती का मोह नही छोड़ पा रहे, ठीक उसी तरह आप भी अपनी कुर्सी का मोह नही छोड़ पा रहे है।

खैर साहब नैतिकता का तकाजा था कि आप और मैं अपने से असंबधित मामलो पर लेख न लिखते। आपने लिखा दुनिया समझ गयी  मैने लिखा है तो आशा करता हूं आप भी मेरी बात समझ जायेंगे।

आपका अपना 

अरूणेश सी दवे "राम भरोसे" 

Sunday, January 27, 2013

संविधान हाय हाय


साहब गणतंत्र दिवस की सुअवसर पर कई गणमान्य गणो के सुविचार जानने का सुअवर सोशल मीडिया ने जबरन प्रदान कर दिया। कोई केजरीवाल की फ़ुटवा चपकाये संसद सांसद संविधान को कोस रहा था। तो कोई "मेरा नेता चोर है" बैनर लगाये फ़िर रहा था। उनके हिसाब से जो संविधान बलात्कारियो अपराधियो भ्रष्ट लोगो को संसद मे चुने जाने की छूट प्रदान करे वह बिल्कुल बेकार है। कईयों का सीना निरीह आदिवासियो पर घनघोर अत्याचार करने वाले पुलिस अधिकारियो को पदक मिल जाने से छलनी था। तो कई बिकनी ए खास को फ़िल्मजगत मे आम करने वाली अभिनेत्री को पदम पुरूस्कार मिलने से भड़के हुये थे।

कुल मिला कर इस क्रोध के मंजर ए आम में आपस में दुश्मनी रखने वाले अनेक समूह अनेकता मे एकता की अद्भुत मिसाल दे रहे थे। दिल्ली में बलात्कार के विरोध प्रदर्शन मे पिटे हुये आंदोलन कारियों को दूर से पहचाना जा सकता था। आंसू गैस के गोले फ़ायर करती, डंडा भाजंती पुलिस का फ़ोटू इनका कामन ट्रेडमार्क मालूम होता था। हिंदू ठेकेदार संघ के लोग भी अलग से पहचाने जा सकते थे। इनके निशाने पर अग्नि मिसाईल हवाई जहाज आदि थे। इनकी राय थी जब ये हथियार पाकिस्तान पर नही चलाये जा रहे तो इनका प्रदर्शन खाली पीली नपुंसकता दिखाने के अलावे और कुछ नही। इनकी राय में इस तथाकथित सेकुलर मुल्लापरस्त संविधान से कोई आशा करना बेकार ही था। हांलांकि मेरे पूछे जाने पर ये अपने आईडियल संविधान पर कोई जानकारी विशेष नही दे पाये। मुस्लिम ठेकेदार भी अपनी राय जाहिर करने मे पीछे नही थे। एक सज्जन उर्दू मे शरिया कानून लागू किये बिना भारत मे सुख शांती स्थापित न हो पाने पर अडिग थे। हमारे द्वारा चंद सवालात पूछने पर वे थोड़ा हड़बड़ा गये। हिंदु द्वारा उर्दू पढ़ लेने पर उन्हे बेहद हैरानी थी। खैर उन्होने वक्त की क्मी का हवाला देते हुये माजरत के साथ विदा ले ली।

वैसे सबसे नरम दिल नजरिया दलित विचारको का ही था। आखिर बाबा साहेब के बनाये संविधान से लेकर बहन जी तक सारी चीजें उनके लिये श्रद्धेय कि श्रेणी मे आती हैं। हालांकि संस्कृत शब्द श्रद्धेय उन्हे स्वीकार तो न होगा लेकिन अभी दलित शब्दावली का निर्माण हुआ नही है शायद। आरक्षण विरोधी तो जाहिराना तौर पर इस संविधान के मूल प्रारूप से ही खफ़ा थे। उनकी नजर में आरक्षण के आधार पर अयोग्य को नौकरी देकर ही भारत के हालात इस स्तर तक गिर गये हैं। हालांकि हमने उन्हे याद दिलाने की कोशिश की भाई यह भ्रष्टाचार तो तब से आसमान पर है जब वी पी सिंग ने आरक्षण लागू भी न किया था। लेकिन साहब सोशल मीडिया मे सुनने की कहां होती है आसमानो से उतरो अपनी राय पेलो। सामने वाला सहमत न हो तो उसको तमाम उपाधियों नवाजो और कट लो।
सबसे संतुलित किसम का विरोध अपने एक बिलागर भाई का रहा| उनके हिसाब से मेरा भारत महान कहना ही मूर्खता है। तमाम खामिया उनकी उंगलियो की नोक पर गिनी गयीं। वैसे खामिया तो हर देश मे ही है, अमेरिका तक हजार किसम की समस्यांओ से दो चार है। साल में दो दिन अपने न सही  बच्चो की खातिर तो "मेरा भारत महान" बोलना तो बनता ही है भाई। बचपन से ही मेरा भारत बेईमान सीख लेंगे तो जाने इस देश का और क्या हश्र होगा।  सोचते सोचते सोचा जाये तो हमारा संविधान कैसा भी है लेकिन हर किसी को अपनी राय रखने, अपने मतभेद प्रदर्शन करने का हक तो मिला ही हुआ है। केजरीवाल संसद और व्यवस्था को कितना भी गरियाय���ं लेकिन यही व्यवस्था उन्हें प्रधान मंत्री के घर के बाहर धरना देने की छूट तो देती है कि नही। दसियों धर्म, भाषा, जति राज्यों में बटे इस देश के हर नागरिक को एक माला मे गूंथा हुआ भी इसी संविधान ने है। हिंदी हिंदू हिदुस्तान करने वालो लोगो की तरह जिन्ना ने भी उर्दू इस्लाम पाकिस्तान किया था। नतीजा क्या हुआ सिर्फ़ भाषा के आधार पर ही उसके दो टुकड़े हो गये। इस्लाम के नाम पर बनाये देश मे मस्जिदो दरगाहों इमामबाड़ो मे रोज बम धमाके हो रहे हैं। और बलोचिस्तान अलग देश बनने की कगार पर है।

मुझे भी अपने संविधान मे एक कमी खलती है। यह आदिवासियो के हकों की रक्षा करने मे नाकाम रहा है। चौसठ सालो मे आज तक उनके हितो के लिये कोई राजनैतिक आंदोलन खड़ा नही हो पाया। दिल्ली के बुद्धीजीवी, पत्रकारिता के गलियारे मे एक भी आदिवासी विचारक नही। सांसद और विधायक भी जो बने हैं सारे आदिवासी जमींदार परिवारो के है।
आरक्षित नौकरियों का अधिकांशतम हिस्सा इसाई धर्म अपना चुके उच्च शिक्षित परिवारो को चला गया। उसके जंगल वन विभाग ने साल सागौन के बागान बना दिये। और उसके सशस्त्र विरोध आंदोलन तक का नेतृत्व बंगाल, आंध्रा के वामपंथियो के हाथ मे है। मूल आदिवासी आज भी अपनी जगह ठगा हुआ खड़ा है।
लेकिन इन तमाम खामियों को दूर कर हमे अपने सपनो का प्यारा भारत बनाना है। बनने तक क्या किया जाये पर गालिब का एक शेर याद आ रहा है-

आशिकी सब्र तलब, तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूं, खून ए जिगर होने तक

Sunday, January 13, 2013

रामदेव बाबा ’पाकिस्तानी’


साहिबान मेहरबान कदरदान एक बात मैं दावे से कहना चाहता हूं कि भारत और पाकिस्तान जुड़वा भाई हैं। अब यह बात सरसरी तौर पर कुछ राष्ट्रभक्तो को बुरी लग सकती हैं। परंतु   ऐसा मान लेने से बड़े वाले हिंदु राष्ट्र का नक्शा बाबा रामदेव की तरह प्रमाणिकता प्राप्त कर सकता है। खैर कोई अगर इस बात को न मानता हो तो उसके बताने के लिये हमारे पास दोनो देशों की अनेको चारित्रिक समानताएं हैं।

सबसे पहले जिस तरह अपने परिवार के लोगो की शहादत दे चुका गांधी परिवार हर चुनाव में उनके फ़ोटू लहरा जनता से अनुकंपा नियुक्ती प्राप्त कर लेता है। उसी तरह पाकिस्तान का भुट्टॊ परिवार भी पाकिस्तान की छाती पर मूंग दल रहा है। दोनो देशो की जुड़वा जनता बड़ी भावुक है, फ़िल्मो के दुखी सीन के बैकग्राउंड म्यूजिक के साथ जनाजे का वीडियो या माला पहनी तस्वीरो को देखते ही भ्रष्टाचार, महंगाई, बेबसी का अपना गम भूल इनके गम के साथ गमगीन होकर वोट डाल देती है। चुनांचे कि दोनो देशो के प्रमुख विपक्षी दलों भाजपा और मुस्लिम लीग को हालिया दशकों में ऐसी कोई शहादत देने का सौभाग्य प्राप्त नही हुआ है। सो उनके समर्थक दोनो खानदानो की इज्जत की मिट्टी पलीद करने, उनके बारे मे झूठी कहानिया गढ़ने और उनको विदेशी ताकतो का जासूस करार देने को ही चुनावी जीत पाने का जरिया समझते हैं।

इधर के धर्म रक्षक हिंदु हिंदी हिंदुस्तान का नारा लगाते है उधर के उर्दू मुसलमान पाकिस्तान के। उधर के देश भक्तो ने हिंदुस्तानी भाषा को शुद्ध उर्दू बनाने के लिये दुनिया तमाम के शब्द गढ़े, हिंदु समझे जा सकने वाले तमाम शब्दो का उपयोग बंद कर दिया। इधर भी हिंदुस्तानी को शुद्ध हिंदी बनाने के लिये एक से एक शब्दो की खोज की गयी और उर्दू लग सकने वाले शब्दो को दरकिनार कर दिया गया। लेकिन दोनो तरफ़ के धर्म रक्षक नकारा निकले और आज भी दोनो देशो के आम नागरिक बिना किसी डिक्शनरी की सहायता के प्रेम से बात कर सकते हैं।  मै तो कहता हूं कि दोनो देशो के अखबार और साहित्य लिपी बदल के एक दूसरे के यहां छपने लगें तो इन राष्ट्रवादियों की चौसठ साला मेहनत पर महज एक साल में पानी फ़िर सकता है।
एक जगह  पाकिस्तान अपुन लोगो से भारी है वह यह कि उनका बाबा ए कौम जिन्ना पाकिस्तान बनाने के तुरंत बाद अल्लाह को प्यारा हो गया  सो आज भी जिन्ना की  हरकतों का अंजाम भुगतते हर पाकिस्तानी के लिये श्रद्धेय है।  अपने नेहरू जी चीन युद्ध में देश को हरवाने के बाद निपटे कि उनका किया धरा कोई नही पूछता। मै सोचता हूं कि अगर वो भी गांधी जी की तरह बटवारे के तुरंत बाद "हे राम" कहते हुये सौभाग्यवता हो जाते तो उनकी भी भौत इज्जत रहती अपने देश में।
खैर समानताओं की आखिरी कड़ी में जिस तरह अपने बाबा रामदेव कालाधन, भ्रष्टाचार,, नाकाम सरकार चुनाव सुधार आदि आदि इत्यादी एक सौ एक मांगो को ले अपने चेले चपाटियों के साथ दिल्ली मे अनशनिया गये थे। ठीक उसी तरह पाकिस्तान के शुद्ध स्वदेशी बाबा मिन्हाजुल कुरान के सर्बरा जनाब मौलाना तहारूल कादरी साहब लगभग ऐसी ही मांगो के साथ इस्लामाबाद में आज लांग मार्च कर धरना देने वाले हैं। बाबा की तरह कादरी साहब भी सेकुलर बाबा होने का दावा कर रहे है। बाबा की तरह कादरी साहब का भी कोई ऐसा सालिड राजनैतिक बैकग्राउंड नही है। जिस तरह बाबा के पीछे हिंदु ठेकेदार संघ का समर्थन था उसी तरह कादरी साहब को मुस्लिम ठेकेदार संगठनो का पूरा समर्थन मिल रहा है। हालांकि जिस तरह बाबा को कुछ और बाबा ठग और फ़र्जी करार दे रहे थे ठीक उसी तरह कादरी साहब को भी कुछ मौलवी फ़र्जी बता रहे हैं। जिस तरह भारतीय मीडिया, बुद्धिजीवि वर्ग बाबा को घेर रहा था उसी तरह पाक मीडिया भी कादरी साहब की पोल पट्टी खोलने में भिड़ा हुआ है।
चूंकि दोनो के पीछे कार्य कर रही ताकतें चुनावी मैदान में सत्तारूढ़ गठबंधन को धाराशाही करने में नाकाम है तो वे चाहते है कि शांती पूर्ण लोकतांत्रिक प्रदर्शन का सहारा ले महंगाई घोटालो कुशासन से भड़की हुई जनता को घरो से बाहर निकाल ऐसा अराजकता भरा माहौल पैदा कर दिया जाये कि सरकार चारो खाने चित्त हो जाये। आखिर लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गयी सरकार को बिना चुनाव के निहायत लोकतांत्रिक तरीके से निपटाने का प्रयास हम दो बिरादर मुल्को के सिवा कहां किया जा सकता है भला। खैर अपने श्रद्धेय बाबा को तो जान बचाने के लिये सलवार पहन कर आधी रात भागना पड़ गया था उनके चेले चपाटियो को पुलिस ने पीट कर भगा दिया था। कादरी साहब का भी अगर मिलता जुलता अंजाम हुआ तो मै अपने इस लेख मे जबरदस्ती दो चार सौ लाईने जोड़ "भारत पाकिस्तान भाई भाई" नामक शोध ग्रंथ बना "इति सिद्धं" लिख, पीएच डी के लिये जमा कराने की सोच रहा हूं ।