Monday, June 11, 2012

गृह मंत्री की नाक



संसद में विपक्ष के नेता ने आरोप लगाया कि गृह मंत्री की नाक कट गयी है, लिहाजा उन्हे इस्तीफ़ा दे देना चाहिये। सत्ता पक्ष ने जवाब दिया- "ये लोग जिनकी खुद की नाक कटी हुयी है, दूसरो की नाक के बारे मे बात करने की हिम्मत कैसे करते हैं।" विपक्ष के नेता बोले - " साहब क्या  जमाना आ गया है| पूरा देश जानता है कि गृह मंत्री घोटालो मे लिप्त थे।  यहां तक कि वो सांसद  चुने तक घपले से गये हैं। इसके बाद भी ये बेहया सरकार कहती है कि गृह मंत्री की नाक नहीं कटी।" सता पक्ष ने कहा - "क्या सबूत है कि गृह मंत्री घोटाले में व्यस्त थे।  हम तो कहते हैं कि घोटाला हुआ ही नही वो तो हमने गरीबो को ध्यान रखते हुये कम कीमत पर दलालो को लाइसेंस बांटे।  । कम कीमत में मिली चीज का दाम भी कम होगा , उस पर टैक्स भी कम लगेगा तो मुनाफ़ा भी कम होगा। सो भाईयो घोटाला तो हुआ ही नही, नाक कटी कहां।" इसके बाद संसद में हो हल्ला मच गया। कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी।

संसद के बाहर, विपक्ष ने बयान दिया कि चूंकि गृहमंत्री  नाक विहीन हो चुके हैं।  बिना नाक का मंत्री अंबेडकर साहब के बनाये संविधान और इस संसद पर कलंक है। सो जब तक कोई नाक वाला आदमी इस नकटे की जगह न ले ले। तब तक हम संसद चलने न देंगे। इस खबर से सरकार में खलबली मच गयी। आखिर संसद चलती तब न उसके नेता विपक्ष से दुगुनी आवाज में चीख अपनी बात संसद से मनवा सकते थे। आखिर लोकतंत्र मे कानून ध्वनीमत से पारित होते हैं। यदि संसद ही न चले तो सरकार कैसी। सो इसके लिये कैबिनेट की बैठक बुलाई गयी। झांय झांय लपलपाती लालबत्ती गाड़ियों के प्रधानमंत्री आवास पहुंचने से पहले। उसमे बैठे लोगो के दिमाग में शक का कीड़ा बैठ गया कि भाई प्रधान मम्मी इस मीटिंग मे क्या सुनना चाहती है वो तो पहले जानें। प्रधान मम्मी के दफ़्तर से आती छुट पुट खबरो ने बैठक का एजेंडा ही बदल दिया। सवाल अब यह नही था कि बिना नाक वाले गृहमंत्री हटाया जाय। बल्कि मुद्दा अब यह था कि गृह मंत्री की नाक को वापस कैसे लाया जाये।

 कोर ग्रुप की मीटिंग शुरू होते ही वयोवृद्ध मंत्री जो कभी प्रधानमंत्री नही बन सकते थे ने सबसे सुझाव मांगा। चर्चा घूम के इस बात तक पहुंची कि बेचारे गृहमंत्री ने तो नाक कटाई ही पार्टी के लिये है। वरना जब नाक कटने की नौबत आयी तब वे नाक पीछे ले जाकर अपनॊ नाक को साफ़ बचा सकते थे। लेकिन चूंकि प्रधान मंत्री कार्यालय से पत्र आया था कि प्रधान मंत्री की नाक को इससे मामले आर्म्स लेंथ की दूरी पर रखा जाये। सो ऐसे मे किसी न किसी की नाक कटे बिना गठबंधन धर्म का पालन नहीं किया जा सकता था। ऐसे स्वामिनी भक्त गृहमंत्री को न बचाया गया। उनकी नाक न वापस जोड़ी गयी। तो कार्यकर्ताओं तक  संदेश चला जाये कि नाक कटते ही पार्टी किनारा कर लेती है। तब तो पार्टी का काडर बेस ही पार्टी से बिचक जायेगा।

ऐसे हाहाकारी संकट से बचने के लिये सारे मंत्रियो की आंख पार्टी के प्रधानमंत्री की ओर घूम गयी।  दसियो निगाहे अपनी ओर घूमती देख प्रधानमंत्री ने मरी सी आवाज से कहा। आप लोग देख लीजिये मैं ईमानदार आदमी हूं इस बेईमान में मुझसे कहते न बनेगा।  एक युवा मंत्री ने सुझाव दिया कि नाक कटी है। पर केवल सैद्धांतिक रूप से। अभी मामला कोर्ट के सामने है ही। वहां से बरी होते ही कटी हुई नाक को वापस जुड़ने से कौन रोक सकता है। आखिर लोकतंत्र यही तो है कि एक आदमी भले सौ लोगो के सामने हत्या कर दे। पर कानून तो अंधा होता है न उसे दिख नही सकता। तो देर सवेर अगर उसे अदालत बरी कर दे। तो हत्यारे पर हत्या का आरोप नही लगाया जा सकता। वरना अंधे कानून की अवमानना हो जाती है।

लेकिन कभी प्रधानमंत्री न बन सकने वाले वयोवृद्ध मंत्री जानते थे कि इससे मसला शांत न होगा। सो उन्होने  कहा कि गृहमंत्री की नाक ऐसे वापस नही जुड़ सकती। गृहमंत्री को नयी नाक लगाई जाये। एक जूनियर मंत्री ने सवाल दागा कि सर यह नयी नाक कंहां मिल सकती है। इस पर वयोवृद्ध मंत्री ने जवाब दिया कि भाई इसके लिये किसी विपक्षी पार्टी के नेता की नाक काटनी होगी। जूनियर मंत्री ने फ़िर पूछा सर वो लोग तो सत्ता मे है नही फ़िर उनकी नाक कैसे कटेगी और कटेगी नही तो गृहमंत्री में जुड़ेगी कैसे। वयोवृद्ध मंत्री ने मुस्कुराते हुये बेल बजाई। दरवाजा खुला और  सीबीआई के निदेशक ने कदम रखा। उसके पास फ़ाईलो का ढेर था, हर फ़ाईल से किसी न किसी विपक्षी नेता की नाक कटनी तय थी। वयोवृद्ध मंत्री ने सीबीआई निदेशक को रवाना कर सारी फ़ाईले अलग अलग मंत्रियों के हवाले कर दी और कहा -  : ईमानदार विपक्षी नेताओं से कहिये कि उनकी नाक कटवा सकने वाले इन दस्तावेजो को हमने दबा कर रखा था। पर अब  मजबूर है क्योंकि हमे अपने गृह मंत्री को नयी नाक लगाकर देनी ही है। अतः सुझाव दें कि किसकी नाक काट कर गृहमंत्री की नाक की जगह लगाई जाये।

विपक्षी गलियारों मे खलबली मच गयी। आनन फ़ानन में शीर्ष नेताओ की बैठक हुई। हर कोई अपनी नाक सहला रहा था। एक हिम्मत वाले नेता ने कहा -"जिस बुरी तरीके से गृहमंत्री की नाक कटी हुई है। वैसे में हमारे मे से किसी की भी नाक काट कर गृहमंत्री को नही लगाई जा सकती।" दूसरे ने कहा- "अपनी नाक की चिंता में अगर नकटे गृहमंत्री को छोड़ दिया तो देश थू थू करेगा। वयोवृद्ध विपक्षी नेता ने सबको शांत किया बोले -"आप लोग लोकतंत्र की मर्यादा को तार तार होने कैसे दे सकते हो। इस संसद के गौरवशाली इतिहास मे कई ऐसे नाजुक क्षण आये जब प्रधानमंत्री से लेकर अनेक मंत्रियो की नाक कट सकती थी लेकिन लोकतंत्र की गरिमा को ध्यान मे रखते हुये हमने कभी यह नौबत नही आने दी है। नाक काटने का काम अदालत का है। सांसदो का अधिकारक्षेत्र आरोप लगाने तक सीमित है।" एक युवा नेता ने तर्क रखा - "आज पूरा देश जान रहा है कि गृहमंत्री की नाक कटी हुई है और हम किस तरह इस तथ्य से इंकार कर सकते हैं। वयोवृद्ध विपक्षी नेता मुस्कुराते हुये बोले- " हमको कब इंकार करना है। आखिर देश मे क्या घोटालो और घोटालेबाज मंत्रियो की कोई कमी है। बाकियो पर भी तो ध्यान देना ही है कि नही। कि एक के चक्कर मे बाकी घोटालेबाजो को चैन से जीने दिया जाये। 

विपक्ष के गलियारों से सत्ता पक्ष के गलियारो से शांती के कबूतर उड़ाये गये। नाक आखिर नाक है किसी की भी नही कटना चाहिये। और पक्ष विपक्ष में आना जाना तो लगा हुआ है। देश की सेवा सर्वोपरी है आपस मे नाक काटने की होड़ शुरू हो गयी। तो देश में अराजकता और अंधकार छा जायेगा। फ़िर ऐसे अनुभवी नेता तैयार करने में दशको का वक्त लग जायेगा। अगले दिन संसद की कार्यवाही शुरू हुई। विपक्ष गृहमंत्री के सदन से बाहर जाने की मांग पर अड़ा हुआ था। भारी हो हंगामे के बीच गृह मंत्री ने बड़े भावुक आवाज से कहा कि-  "सदन में विपक्ष के नेता उनके पिछले तीस वर्षो से मित्र हैं। वे मेरा चरित्र अच्छी तरह से जानते हैं। चाहे तो मेरे दिल को चाकू से चीर लीजिये। लेकिन मेरी इमानदारी पर सवाल न उठाईये।" इतना कहते ही गृहमंत्री की आंखो मे आंसू आ गये। पूरा सत्ता पक्ष रो पड़ा। विपक्ष भी आंसू रोक न पाया। आंसुओं से दिल के साथ साथ आंखो का मैल भी निकल गया। अब सबने साफ़ साफ़ देखा गृहमंत्री की नाक कटी हुई नही थी। अपनी जगह चमक रही थी। गृहमंत्री ने अपनी नाक को सहला राहत की सांस ली। विपक्ष के नेता भी अपनी अपनी नाको को सहला रहे थे। आखिर नाक से ही सूघंने  की क्रिया संपन्न होती है। नाक ही नही रहेगी तो विपक्ष के नेता नये घोटालो को सूंघ कर कैसे खोद निकालेंगे। आखिर इस महान देश को रसातल मे जाने से बचाना है कि नही।

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2 Comments

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  1. आखिर सत्ता और विपक्ष दोनों की नाक का सवाल है मित्र, कैसे कटने दी जाएगी?

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  2. परसाई जी का "दो नाकवाले लोग" याद आ गया!

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